भाग २ -
दरबार अपने निर्धारित समय पर सज गया। मुख्य न्यायाधीश ने अपने सहयोगी न्यायाधीशों और सभी दरबारियों का स्वागत किया। आज की सुनवाई के लिए धरती के सभी व्यसनी सितारों को उपस्थित होने का आदेश दिया गया।
द्वारपाल बाहर खड़े सभी सितारों में से व्यसनी सितारों को सभा में उपस्थित होने का आदेश देने गया। वह भी अचंभित हो गया क्योंकि कल के 90% के भी 95% आज अंदर जाने लगे। कल के सितारे आज दुगने अपराध बोध से शर्मसार दिख रहे थे क्योंकि उन्हें दूसरी श्रेणी में भी उपस्थित होना पड़ रहा था।
सहायक न्यायाधीशों के दल ने परस्पर परामर्श करके फाइल मुख्य न्यायाधीश को पढ़ने हेतु दे दी।
मुख्य न्यायाधीश ने सबकी ओर नज़रें उठाकर देखते हुए कहा, "तुममें से अधिकांश सितारे कल वाले ही हो। शराब, गुटखा, सिगरेट तथा अन्य विभिन्न प्रकार के व्यसनों से तुम्हारी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो गयी थी इसलिए तुम महामारी की आपदा को सहन नहीं कर पाये। हवा में धुआँ उड़ाकर, जगह जगह गुटखा और पान मसाला थूक कर, शराब के लिए चोरी तथा गलत तरीके से पैसे कमाकर और नशे की हालत में परिवार और समाज में कलह का वातावरण बना दिया। सामाजिक नियमों की अवहेलना और मानवता के नैतिक मूल्यों का हनन करके तुम लोगों ने पृथ्वी ग्रह की गरिमा और इसके अप्रतिम सौंदर्य को बर्बाद कर दिया। क्या तुम अपना अपराध स्वीकार करते हो? तुम्हें अपने बचाव में कुछ कहना है?
चार पाँच धृष्ट एवं मनचले किस्म के सितारे आगे आकर कहने लगे, "श्रीमान! हम बेहद तनाव में जी रहे थे। कुछ मानसिक तथा आर्थिक परेशानियाँ थी जिनसे हम निजात पाना चाहते थे।"
मुख्य न्यायाधीश - "तुमने अपनी परेशानियों का हल इन अल्पकालिक वस्तुओं में खोजकर दीर्घकालिक नुकसान को आमंत्रित कर दिया। तुम कुछ पलों के लिए शांत होकर अपने अपने इष्ट का ध्यान करते तो शायद बेहतर समाधान मिल जाता। अपने परिवार, मित्रों, सम्बन्धियों से अपने दुःख दर्द साझा करते तो वे तुम्हें उचित सलाह के साथ हर संभव मदद भी करते।"
सबने अपनी गलती स्वीकार की और फिर दोबारा ऐसा न करने का प्रण करके क्षमायाचना की।
"आपका न्याय आपको यथोचित समय पर दिया जायेगा।" यह कहकर मुख्य न्यायाधीश ने सभा स्थगित करने का आदेश दिया।
सहायक न्यायाधीश ने घोषणा की, "जिन्होंने परिवार, समाज, देश और विश्व के प्रति इस आपदाकाल में गैर जिम्मेदार रवैया अपनाया है उनकी सुनवाई आगामी सभा में होगी।"
"जो आज्ञा हुजूर !" मुख्य दरबारी ने कहा।
भाग ३ -
समयबद्ध, अनुशासनयुक्त दरबार की कार्यवाही प्रारम्भ। सब कुछ पूर्व की भांति किन्तु सबसे आश्चर्यजनक बात; कुछ नए सितारों के साथ फिर कुछ पुराने सितारे क्रमबद्ध खड़े थे। तीसरी बार उपस्थित सितारे ग्लानि, पश्चाताप तथा शर्मिंदगी से भरे थे। मुख्य न्यायाधीश को उनकी फाइल पेश की गयी। फाइल पढ़कर मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया।
"आप में से कुछ लोगों ने परिवार की चिंता नहीं की। बाहर से आकर तथा दूसरे रेड ज़ोन शहरों से वापिस लौटकर सामाजिक तथा शारीरिक दूरी के आदेश की अवहेलना की। स्वयं के साथ अपने भरे पूरे परिवार को भी संक्रमित कर दिया। W.H.O. द्वारा सुझाये गए स्वच्छता के नियमों का पालन नहीं किया। सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन के नियम भी तोड़े। सड़को पर उतरकर उपद्रव किया। कई नियमविरुद्ध कार्य गुप्त तरीके से भी किये। ये सभी अपराध आपको यहाँ ले आये हैं।"
मुख्य न्यायाधीश की बात को बीच में टोकते हुए कुछ सितारे आगे आकर कहने लगे - "श्रीमान ! हम मजबूर थे ये सब करने के लिये। हमें एकांतवास और पृथकवास से डर लगता था क्योंकि इसमें समाज हमारा तिरस्कार करता। लोग हमें अछूत समझते इसलिए हम सड़क मार्ग से अवैध तरीके अपनाकर निकल पड़े।हमारे पैसे ख़तम हो गए थे। हम भूख से मर जाते इसलिए हम अपने गृहनगर लौटना चाहते थे।"
मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें समझाते हुए कहा, "किन्तु आप इसका परिणाम अब इस रूप में भुगत रहे हैं। आपका परिवार आपसे वंचित हो गया। आप एकमात्र कमाने वाले थे। संकट की घड़ी में थोड़ा धैर्य से काम लेते तो शायद कुछ अच्छा हल निकल जाता।"
कुछ सितारों को बात समझ में आ रही थी और वो अपनी गलती मान रहे थे पर अधिकांश अपनी मजबूरी को ही सर्वोपरि बता रहे थे।
मुख्य न्यायाधीश - "मजबूरी की अवस्था में इंसान की बुद्धि उचित निर्णय लेने में सक्षम नहीं होती। वे बुद्धिमानी की जगह मनमानी करने लगते हैं। किन्तु यह समय क्षेत्रवाद, जातिवाद, और धर्मविभेद करने का नहीं है। यह संकट सम्पूर्ण मानवता का है और इसे सबको मिलजुल कर सुधारना चाहिये। परस्पर दोषारोपण, विद्रूप राजनीति, कालाबाज़ारी तथा अविश्वास और नफरत के नकारात्मक वातावरण से दूर रहकर एक दूसरे की सहायता करने का समय है। आप सब इस पर अमल करने में असफल रहे। परिणाम आपके सामने है। अब आपको अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है।"
इन सभी सितारों को पिछले २ -३ माह में किये गए अपने अवैध और अनुचित क्रिया-कलाप एक चलचित्र की भाँति मन के परदे पर दृष्टिगोचर हो रहे थे। सभी ने अपनी गलती एक स्वर से स्वीकार की तथा क्षमायाचना की मुद्रा में थे। न्याय की प्रतीक्षा का आदेश हुआ।
दरबारी द्वारा अगली घोषणा हुई, "कल की सभा चिकित्सक, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी, मीडियाकर्मी तथा अन्य सभी प्रकार के सेवाकर्मी जो इस महामारी में शरीर त्याग चुके हैं, उनके लिए रखी जाएगी।"