Karm path par - 40 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 40

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कर्म पथ पर - 40




कर्म पथ पर
Chapter 40


भुवनदा के घर पर एक बैठक चल रही थी। इस बैठक में मदन, रंजन और जय भी शामिल थे।
हैमिल्टन के खिलाफ वृंदा की दूसरी रिपोर्ट छपने के बाद भुवनदा ने कुछ दिनों तक हिंद प्रभात का संचालन बंद करने का फैसला किया था। वह अपने नौकर बंसी के साथ अपने घर रहने आ गए थे। वृंदा भी अपने घर ना जाकर भुवनदा के साथ ही चली आई थी। उनका मानना था कि वृंदा के पड़ोसी उसे पसंद नहीं करते हैं। कोई पुलिस को खबर कर सकता है।
भुवनदा के मित्र सुजीत कुमार मित्रा का घर जहाँ अभी तक वो लोग रह रहे थे और हिंद प्रभात का संचालन कर रहे थे बंद पड़ा था।
हिंद प्रभात के संबंध में बात करने के लिए ही भुवनदा ने सबको अपने घर पर बुलाया था।
भुवनदा ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"वृंदा तुम्हारी रिपोर्ट की जानकारी हैमिल्टन तक अवश्य पहुँच गई होगी। वह पहले ही आहत था। इस चोट ने उसे और अधिक खूंखार बना दिया होगा।"
वृंदा ने कहा,
"दादा आप सही कह रहे हैं। लेकिन उसकी करतूत को सामने लाना भी बहुत ज़रूरी था।"
"तुम ठीक कह रही हो वृंदा। मेरा कहना सिर्फ इतना है कि अब हमें बहुत अधिक सावधानी से काम लेना होगा। वैसे भी कई महीने हो गए थे उस जगह से हिंद प्रभात निकालते हुए। इसलिए हमें वो जगह छोड़नी पड़ी। अब हमें कुछ और सोंचना होगा।"
मदन ने भुवनदा की बात का समर्थन करते हुए कहा,
"बात तो दादा की ठीक है। एक जगह टिक कर रहने से नज़र में आने का खतरा बढ़ जाता है। अब तो और अधिक बढ़ गया है।"
वृंदा कुछ रुक कर बोली,
"लेकिन मदन हम सावधानी बरतते हैं। अब प्रतियां भी कम छापते हैं। सावधानी पूर्वक उनका वितरण करते हैं।"
"पर एक बार फिर हमने हैमिल्टन के बारे में लिखा है। पिछली बार उसने इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर के जरिए तुम्हें गिरफ्तार कर लिया था ना।"
"हाँ पर तब भी वो हमारी जगह का पता नहीं लगा पाया था। मुझे पार्क से गिरफ्तार किया था। उस समय किसी ने मुखबिरी की थी।"
कहते हुए वृंदा की नज़रें बरबस जय की तरफ उठ गईं। उसने अपनी निगाहें दूसरी तरफ फेर लीं।
जय को दुख था कि वृंदा अभी तक उस पर यकीन नहीं कर पाई है। मदन उसके मन की स्थिति को समझ गया। वह बोला,
"वो मुखबिरी इंद्र ने की थी। पर बात वो नहीं है। जो दादा कह रहे हैं उसका मतलब है कि तब ना सही पर इस चोट के बाद हैमिल्टन वहाँ तक भी पहुँच सकता था।"

भुवनदा ने अपनी बात बढ़ाते हुए कहा,
"अब हैमिल्टन हमें कुचलने के लिए पागल हो रहा होगा। वह अपनी एड़ी चोटी का ज़ोर लगा देगा। इसलिए मैंने ये सावधानी बरती है। तुम लोग भी पहले से अधिक सतर्क रहो।"

सबने भुवनदा की बात से सहमति जताई। पर वृंदा हिंद प्रभात के बंद हो जाने से परेशान थी। जो लड़ाई वह अपनी कलम से लड़ रही थी हिंद प्रभात उसका रणक्षेत्र था। उसे लग रहा था कि जैसे किसी ने उसे रणभूमि से बाहर कर दिया हो।
वृंदा से रहा नहीं गया। वह बोली,
"दादा आपकी सारी बातें ठीक हैं। पर हिंद प्रभात नहीं छपेगा तो हमारी लड़ाई ही बंद हो जाएगी।"
भुवनदा को वृंदा की बात भी सही लगी। इस लड़ाई में उनकी हिस्सेदारी हिंद प्रभात के माध्यम से ही थी। पर कुछ समय के लिए सावधानी बरतना बहुत आवश्यक था।
वृंदा ने आगे कहा,
"फिर भुवनदा अब ये खतरा स्थाई हो गया है। क्या हिंद प्रभात दोबारा कभी शुरू नहीं होगा ?"
सब इस बात को समझ रहे थे। यह बात उन्हें भी परेशान कर रही थी।
जय के मन में एक विचार आया।
"भुवनदा ऐसा भी किया जा सकता है कि एक नई और सुरिक्षत जगह चुन कर वहाँ से हिंद प्रभात का संचालन किया जाए।"
मदन और रंजन ने उसकी बात का समर्थन किया। भुवनदा भी यही सोंच रहे थे। पर कुछ समस्या थी। उन्होंने इस विषय में अपना मत रखते हुए कहा,
"ये बात मेरे दिमाग में भी थी जय। पर अखवार के लिए सिर्फ एक दफ्तर की ही आवश्यकता नहीं होती है। प्रिंटिंग मशीन भी चाहिए। हम अपनी प्रिंटिंग मशीन उस जगह से दूसरी जगह ले जाएंगे तो उसमें खतरा है। हमें एक ऐसी जगह चाहिए जहाँ प्रिंटिंग की भी व्यवस्था हो।"
रंजन ने उसमें अपनी बात जोड़ते हुए कहा,
"इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि वह जगह जल्दी किसी की निगाह में ना आए।"
जय के मन में एक बात आई। पर उसे लगा कि बिना पक्का हुए उसे यह बात नहीं करनी चाहिए। वह कुछ नहीं बोला।
मदन ने कहा,
"अब हमें जल्दी ही ऐसी जगह तलाशनी होगी।"
सहमति बनी कि मदन, रंजन और जय इस काम का जिम्मा लें।
बहुत देर से रंजन के मन में एक दूसरी बात घूम रही थी। अब जब हिंद प्रभात की बात शांत हो गई थी तो वह बोला,
"हम लोगों ने एक बात पर ध्यान ही नहीं दिया।"
सब उसकी बात सुनकर चौंक गए। मदन ने पूँछा,
"कौन सी बात ?"
"वृंदा दीदी के लेख में माधुरी का ज़िक्र है। हैमिल्टन समझ जाएगा कि सारी जानकारी माधुरी के परिवार ने ही दी होगी। इससे माधुरी के घरवालों पर खतरा बढ़ गया है।"
सबको उसकी बात ठीक लगी।
जय ने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा,
"जब मैं माधुरी का समाचार देने उसके घर गया था तब मेरी शिव प्रसाद जी से इस विषय में बात हुई थी। उन्हें भी लग रहा था कि हिंद प्रभात में रिपोर्ट छपने के बाद हैमिल्टन कुछ भी कर सकता है। उन्होंने बताया था कि वो पंजाब के अमृतसर में अपने लिए एक नौकरी देख रहे हैं। यदि मिल गई तो वो और उनके साले रमनलाल दोनों वहीं चले जाएंगे। पर उन्होंने कोई खबर नहीं दी है। मैं पता करता हूँ।"
भुवनदा ने कहा,
"यदि ऐसा हो गया है तो अच्छा है। वरना रंजन ने सही बात उठाई है। हमें इस पर ध्यान देना पड़ेगा।"
बैठक खत्म हो गई। जय ने आश्वासन दिया कि वह जल्द से जल्द माधुरी के घरवालों के बारे में पता करता है।
जय और रंजन चले गए। मदन वृंदा से बात करना चाहता था। इसलिए वह रुक गया।

वृंदा और मदन घर की छत पर बैठे थे। मदन उससे जय के बारे में बात करना चाहता था। वृंदा भी समझ रही थी कि उसके रुकने का कारण क्या है ?
मदन ने कहा,
"क्या बात है वृंदा ? तुम हाथ धोकर जय के पीछे क्यों पड़ी हो ?"
वृंदा ने तुनक कर कहा,
"अजीब सवाल है तुम्हारा। मैं क्यों उसके पीछे पडूँगी ? मैं तो उससे जितना दूर रह सकती हूँ उतना दूर रहने की कोशिश करती हूँ।"
"तुम उससे दूर रहो। ये तुम्हारी मर्ज़ी। पर सब जानते हुए भी बार बार उसकी मंशा पर शक करना ठीक नहीं है।"
"मुझे उससे कोई लेना देना नहीं है। फिर उसकी मंशा से मेरा क्या मतलब।"
मदन गंभीर होकर बोला,
"मैंने तुम्हें बताया था कि वह बदल गया है। तुम जानती हो कि माधुरी के माता पिता को सच बताने के लिए उसने ही राज़ी किया था। उसने माधुरी के माता पिता को उसका समाचार पहुँचाया। तुम उससे कोई मतलब ना रखो। पर बार बार उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचाना ठीक नहीं है।"
वृंदा शांत हो गई। मदन उठते हुए बोला,
"जय ने अपने पिता का घर भी छोड़ दिया है। एक महीना होने को आया वह अपने दम पर ज़िंदगी जी रहा है।"
मदन चला गया। पर चलते समय उसने जो कहा उसे सुनकर वृंदा विचार में डूब गई।