कभी कभी बिना कुछ किए ही महानता मिल जाती हैं।या यूं कहें कभी कभी बिना परिश्रम के ही, सब कुछ मिल जाता है।
जिसे हम लॉक कहते है.....
और कभी कभी कुछ पाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता हैं।
ये संयोग की बात है, ...ना कि किस्मत की।
संयोग, ये टेक्निकल फाल्ट है,.. ना कि टेक्निकल थेयोरी।
ये बिना रास्ते की मंजिल है। मंजिल तो मिल जाती हैं पर रास्ते नहीं होते।
पर ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई लक्ष्य निर्धरित कर, और उसे हासिल करने के लिए उसकी कीमत के बराबर मेहनत कि गई और वह हासिल ना हुआ हो ऐसा कभी नहीं हुआ। सर्त बस इतनी है, लक्ष्य अपने पसंद का हो, ना कि दूसरे का।
दोस्तो, मांग=पूर्ति, ये गणितीय सिद्धांत हर जटिल प्रक्रिया को हल करता है।
चाहे व्यापारिक प्रकिया हो... चाहे प्यार की..
हर जगह लागू होता है
जितनी उची मंजिल हो, जितने बड़े सपने हो,
उतनी ही बड़ी... मेहनत होनी चाहिए..... सफलता आप के क़दमों में होगी।
यदि प्रथम प्रयास में आप सफल नहीं हुए तो इसका सीधा मतलब ये है कि उस लक्ष्य प्राप्ति के लिए जितनी मेहनत की मांग थी, जितनी जरूरत थी ... उतनी मेहनत नहीं की गई,... उतनी पूर्ति नहीं कि गई।
मै *आज आप लोगो के लिए दो पक्के मित्र मोहित और नयन, की कहानी ले कर आया हूं। जो स्कूल की पढ़ाई से ले कर कालेज की पढ़ाई तक साथ साथ पूरी किए, पढ़ाई पूर्ण करने के बाद दोनों दो-चार शहर शहर भटके और कायदे की नौकरी ना मिलने के बाद गांव लौट आए, गांव आते ही, पहले विवेक कि फिर साल के अंतराल में नयन कि शादी हो गई।*
नयन के ससुराल वालों के प्रयास से नयन कि फिर एक कंपनी में नौकरी मिल गई, लेकिन उसका मन फिर वहा नहीं लगा कुछ दिनों के बाद उसको भी छोड़ कर घर आ गया, घर में आने के बाद उसके घर वालों ने फिर एक छोटी सी *दुकान* खुलवा दी, दुकान जिस स्तर की थी, उस स्तर की चलने भी लगी, पर नयन का मन उसमे भी नहीं लगा और साल के पहले की उसको भी बंद कर दिया।
उधर *मोहित* एक मेडिकल स्टोर में *काउंटर सेल्स मैन* कि नोकरी कर लेता है, और साथ में कोई भी सरकारी मुफ्तखोरी कि योजना आती, तुरंत उसके लाभ के लिए प्रयत्न शील हो जाता।
बेटी के जन्म लेते ही उसका नाम *लाडली लक्ष्मी योजना* में शामिल करवा कर सुकून कि चैन लेता है,
*मनरेगा के तहत खेत में कुएं का निर्माण कारवाया,* सरपंच से जुगाड करवाकर अपना नाम *बीपीएल सूची* में शामिल किया जिसके कारण उसको हर महीने अनाज की प्राप्ति होने लगी, बेटी का *प्राइवेट स्कूल* में दाखिला भी बीपीएल के तहत मुफ्त शिक्षा के लिए करवाया लिया,
*प्रधानमंत्री आवास योजना* के तहत दो पक्के कमरों का निर्माण करवाया, कुल मिलाकर कुछ अपने कुछ सरकारी योजनाओं के बल पर धीरे धीरे सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कर लिया।
नयन का इन सब योजनाओं कि तरफ ध्यान ही नही था,
उसकी योजना तो कुछ और थी,
मोहित, जब भी नयन से मिलता एक अच्छे दोस्त की तरह उसे भी सब बताता उसे भी समझता कि भाई हम लोगो को कोई बड़ी नोकरी नहीं मिलने वाली और इतने पैसे भी नहीं है कि कोई बड़ा व्यापार ही करले पढ़े लिखे है तो दीमक का उपयोग करके सब योजनाओं का लाभ ले सरकार कि ना जाने कितनी योजनाएं चल रही है उनका लाभ लेना चाहिए।
धीरे धीरे घर परिवार सब अच्छे से चलने लगता है।
*नयन , मोहित* के बातो में हां में हां मिलता।
और फिर अपने में खो जाता।
नयन के घर वाले भी परेशान थे एक दिन उसके पिता उससे कहा कि *अठाईस साल* का हो गया कब कुछ करेगा, कैसे अपना परिवार चलाएगा तेरे भी तो बच्चे बड़े हो रहे, कुछ सोचा है उनके बारे में,
नयन सर नीचे किए सब चुप चाप सुनकर चलता बना , दो तीन महीनों बाद एक दिन चुपके से बिना किसी से कुछ बताए अपनी पत्नी के सब जेवरात गिरवी करके *30000* में जबलपुर से *दोना पत्तल* बनाने वाली मशीन लाता है और ,.... और फिर क्या... एक ऑपरेटर नियुक्त कर के
पूरी लगन से काम सुरु कर देता है
धीरे धीरे उसका व्यापार चल निकला उसके बनाए डिस्पोज़ल की सामग्री मार्केट में शामिल हो गई
साल के पूरा होते होते वो इनकम टैक्स रिटर्न के दायरे में आ गया।
सब उसकी तरक्की से ताजुब थे
कि कैसे इतनी जल्दी वो सफल हो गया
लेकिन उसे कोई ताजुब नहीं था उसे मालूम था कि वो किसके लिए बना है वो क्या कर सकता है ये समझने में बड़ा वक्त लगा।
एक दिन अचानक तहसील में मोहित से नयन की मुलाकात हो गई दोनों एक दूसरे को देख कर काफी खुस हुए दोनों के हाथ में एक एक *फाइल* थी नयन बोला *मोहित* तुम यहां कैसे मोहित बोला अरे यार *बेटा* हुआ है मुझे तो बस प्रसव के बाद सरकार कि योजना है कि *12000* कि राशि देती है उसी के लिए हलफनामा बन वाने आया हूं । *तुम कैसे ?*
नयन बोला मैं भी एक हलफनामा बनवाने आया हूं, *कीसका* *?*
*इनकम टैक्स रिटर्न फाइल का....*
Nagendra Singh sombansi...✍️