jaikgovardhan aur shekhar elizabeth in Hindi Classic Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | जैकगोवर्धन और शेखन एलिज़ाबेथ

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जैकगोवर्धन और शेखन एलिज़ाबेथ

मैं बरामदे में बैठा हुआ अख़बार पढ़ रहा था कि मेरी आठ वर्षीया बेटी दौड़ी दौड़ी आई और बोली- पापा पापा, आप कहते थे न कि सवेरे सवेरे देखा हुआ सपना सच होता है? तो आज मैंने बिल्कुल सुबह एक सपना देखा पापा...
- अच्छा! क्या देखा? मैंने कहा। यद्यपि मैं ये भी भूल चुका था कि कभी मैंने ऐसा कुछ कहा था।
- पापा, मैंने देखा कि मैं खूब सारे वोटों से चुनाव जीत गई और मैं...
मैंने चौंक कर अख़बार को परे किया ही था कि बिटिया की मम्मी भी आ गई। वो बोली- सपना वपना कुछ नहीं होता, तू जाकर बाहर खेल।
बच्ची रुआंसी हो गई और कभी मेरी ओर, तो कभी अपनी मम्मी की ओर देखने लगी।
मैंने खिसियाने की मुद्रा में आ जाने पर भी बात को संभालने की गरज से कहा- नहीं नहीं, सपने होते हैं बेटी और ज़रूर होते हैं।
- नहीं होते। उसकी मम्मी भी अडी रही।
अब बिटिया की दिलचस्पी इस निर्णय में थी कि सपने होते हैं या नहीं, और उसने आज सुबह जो सपना देखा था वो पूरा होगा या नहीं।
बहस छिड़ती देख कर बिटिया की मम्मी ने अपना पक्ष मजबूत करने के इरादे से सबूत सहित बात पेश की। बोली- सपने तो तब आते हैं जब पेट खराब होता है।
- क्या बात करती हो? बच्ची का पेट भला क्यों खराब होगा? और यदि होगा भी तो हम सबका पेट ख़राब होना चाहिए क्योंकि रात को जो इसने खाया, वही तो हम सबने भी खाया। मैंने दलील दी।
- हां हां वही तो कह रही हूं। रात को खाना खाकर तुम तो घूमने चले गए पर बाद में इसने जो खाया उसी से इसका पेट खराब हुआ। मम्मी बोली।
- मगर इसने खाया क्या? मैंने कहा।
- मैंने रात को पुए बनाए थे न, वही।
- अरे, वो तो हमने भी खाए थे, हमें तो कुछ नहीं हुआ?
- ओफ्फोह, तुमने तो मीठी सॉस के साथ खाए थे, पर इसने सॉस से नहीं खाए, चटनी से खाए थे।
-क्यों भला?
-क्योंकि सॉस खत्म हो गई थी, सो मैंने सुबह की बनी पोदीने की चटनी इसे देदी। बस, मीठे पुए और चटपटी चटनी... उसी से गड़बड़ी हो गई। इसका पेट खराब हो गया और आ गया सपना इलेक्शन का।
-अच्छा अच्छा, मैं कहता हूं यदि ऐसा ही हुआ, तब भी हर्ज क्या है, बच्चे दिल बहलाने के लिए एक आध सपना देख भी लें तो!
पत्नी इस पर निरुत्तर हो गई और रसोई के दरवाज़े से भीतर बिला गई।
बिटिया का उत्साह पुनः लौट आया। वह आकर मेरी गोद में बैठ गई और बोली- पापा, मेरा सपना सच होगा न?
- हो भी सकता है बेटी। मैंने उसे दिलासा दिया।
-पापा,वो अपने आप हो जाएगा कि कुछ करना पड़ेगा?
- बेटी,ऐसे सपने अपने आप सच नहीं होते, करना तो पड़ता है। मैंने उसे धरातल पर लाने की कोशिश की।
- तो मैं क्या करूं?
- करेगी?
-हां।
-कर सकेगी? तो सुन। मैंने कहना शुरू किया- रात को जो पुए तूने खाए थे न, वो तुझे कैसे लगे?
- ऊं पापा, मुझे ज़ोर से भूख लगी थी इसलिए खा लिए।
-अच्छा अच्छा, कोई बात नहीं, पर लगे कैसे?
-अरे पापा, मीठे पुए नमकीन चटनी से कैसे लगेंगे? बस वैसे ही लगे। भैया ने तो एक टुकड़ा मुंह में डाल कर थूक दिया था। मैंने तो खा लिए।
- खा लिए तो अब तू ऐसा कर... उन चटनी पुओं का कोई अच्छा सा नाम रख दे.. जैसे... जैसे
-मैं बताऊं, पुदीना पुए! वो बोली।
- तू ऐसा कर, पुदीना को पोडीन कर दे और पूओं को करदे प्याउमीन... पॉडीन प्याउमिन !
बिटिया हंसने लगी। बोली - पर इससे क्या होगा पापा?
-अब तू इसे ऑस्ट्रेलियन डिश बताकर इसकी रेसिपी किसी मशहूर मैगज़ीन में भेज देना। मैंने सुझाव दिया।
-फ़िर, इससे क्या होगा पापा?
-होगा बेटी होगा... फ़िर घर घर में मीठे पुए और पुदीने की चटनी.. मेरा मतलब पॉडीन प्याउमिन बनेगी।
-लेकिन पापा सब हमारी चालाकी समझ जाएंगे कि हमने बनाने की विधि तो पुओंं की लिख दी और नाम ऑस्ट्रेलियन रख दिया।
- नहीं बेटी, हम विधि भी अलग तरह से रखेंगे। ऐसे, कि सब मम्मियों को पसंद आए और ऑस्ट्रेलियन ही लगे।
-वो कैसे? बिटिया ने जिज्ञासा बताई।
-हम लिखेंगे कि सबसे पहले पुदीने को वेजिटेबल वाशिंग मशीन में धो लीजिए...
-वेजिटेबल वाशिंग मशीन?
-हां, इससे अपनी डिश पॉपुलर हो जाएगी। क्योंकि घर घर में मम्मियां अपने पतियों के पीछे पड़ जाएंगी कि वेजिटेबल वाशिंग मशीन लाओ जी, नई डिश बनानी है।
- पर पापा,ऐसी तो कोई मशीन होती ही नहीं है।
- बेटी होती नहीं है तो क्या? हो जाएगी।ऐसे ही तो पूरे होते हैं सपने!
-अच्छा, फ़िर?
-फ़िर लिखेंगे कि प्याउमिन फ्राई करने के लिए थोड़ा कुकुरमुत्ता ऑयल तैयार रखिए।
- हा पापा ! कुकुरमुत्ते का तेल होता है? वो तो ज़हरीला होता होगा?
- नहीं बेटी, होता ही नहीं है। लेकिन तू चिंता मत कर। तेरे ताऊजी हैं न, जो गांव में वेजिटेबल ऑयल की मिल डाल रहे हैं, वो अपने मूंगफली के तेल का नाम कुकुरमुत्ता छाप ऑयल ही रखने वाले हैं। बस, उधर कुकुरमुत्ता छाप ऑयल बाज़ार में आयेगा, इधर तेरी पॉडीन प्याउमिन पॉपुलर होगी। तू ताऊजी के काम आएगी, ताऊजी तेरे काम !
- सच पापा? अपन इसको ताऊजी के तेल में तलेंगे? तब तो अपन इसका नाम भी ताऊमीन रख देते हैं।
-नहीं नहीं बेटी, प्याउमिन ही ठीक है।बस फ़िर तू इसकी एक फोटो खींच कर मैगज़ीन में छपने भेज देना।
-पर पापा,फोटो से सब समझ जाएंगे कि हमने पुए बना कर चटनी में भिगो दिए हैं।
- नहीं, हम उसके ऊपर चांदी का वर्क लगा कर फोटो खींचेंगे।
- अच्छा, फ़िर क्या होगा?
- फ़िर? फ़िर वो छपेगी। साथ में तेरी फोटो भी छपेगी। फ़िर तेरे पास ढेर सारे मैसेज आयेंगे। फ़िर मैगज़ीन्स वाले तुझसे और भी रेसिपीज़ पूछेंगे।तू कभी तिल के लड्डू को केलिफोर्नियन लजीज़ी बता कर,तो कभी सत्तू को केनेडियन ईटिंग पाउडर डिश बता कर तरह तरह की रेसिपी भेजती जाना। हर रेसिपी में मम्मी से पूछ पूछ कर उनमें कोई कहानी जोड़ती जाना।
-जैसे?
-जैसे, कि इस डिश को पहली बार संयोगिता ने पृथ्वीराज के घोड़े की बर्थडे पर बनाया था।
- ओ हो पापा, संयोगिता और पृथ्वीराज ऑस्ट्रेलिया कब गए थे?
-कभी न कभी तो गए होंगे बेटी, ये सब चिंता तू मत करना। ये तो मीडिया वाले करेंगे। तभी तो सपना...
- अच्छा पापा, फ़िर?
-फ़िर तेरे पास कई चैनल्स वाले आयेंगे, टी वी वाले आयेंगे, तेरे से व्यंजन विधियां टी वी पर बताने को कहेंगे। तू जाना। वहां भी तू बढ़िया प्रोग्राम देना।
-पर टी वी पर मैं अपने आप कैसे बोलूंगी?
-बोल देना बेटी, कहना- बहनों आज हम आपको गोभी का मुरब्बा बनाना सिखाएंगे। गोभी का मुरब्बा श्रीलंका की फेवरेट डिश है। वहां इसे छुआरे के पापड़ के साथ खाया जाता है। इसे विभीषण की पत्नी ने राम को खाने में परोसा था...
- अरे पापा, विधि तो बताओ?
-हां विधि,तू कहना, सबसे पहले गोभी लीजिए, फ़िर उसका मुरब्बा बना लीजिए।
- अच्छा अच्छा पापा समझ गई, लेकिन फ़िर क्या होगा?
-फ़िर तेरे पास विज्ञापन वाले आयेंगे, मॉडलिंग करने को कहेंगे। फोटोग्राफर आयेंगे, पोर्टफोलियो बनाने को कहेंगे, फ़िर फिल्म वाले भी आयेंगे। तेरे दरवाजे पर टी वी, फ़िल्म वालों की लाइन लगने लगेगी। डायरेक्टर, प्रोड्यूसर कतार लगाएंगे। कारें, ट्रक, रथ आने लगेंगे। फ़िर वो लोग कहेंगे कि आप पर्दे पर बहुत अच्छी दिखती हैं, चुनाव में खड़ी हो जाइए।
- हैं ? सच्ची?
- हां, फ़िर तू कहना कि सोच कर बताऊंगी, और बिना सोचे समझे हां बोल देना।
-फ़िर?
-फ़िर चुनाव होंगे, वोट पड़ेंगे, तेरा सपना...
-अच्छा अच्छा समझ गई, समझ गई पापा। बस आप ये और बता दो कि मैं अपना अपना चुनाव चिन्ह क्या रखूं? और मैं अपना नाम क्या रखूं?
- तू अपना चुनाव चिन्ह रखना गोवर्धन पर्वत ! क्योंकि मीठे पुए मम्मी ने गोवर्धन की पूजा में ही तो बनाए थे?
-छिः पापा, डिशों के नाम तो इतने बढ़िया बढ़िया बताए, मेरा चुनाव चिन्ह ऐसा सड़ा सा?
-तो तू अपने झंडे पर गोवर्धन पर्वत का चित्र बना लेना और उसका नाम रखना जैक गोवर्धन।
-और मैं अपना नाम क्या रखूं?
-अपना नाम रखना शेखन एलिज़ाबेथ!
- लेकिन शेखन क्यों पापा?
-हां बिटिया, तूने कल जो कहानी मुझे सुनाई थी उसमें लड़के का नाम था शेख़ चिल्ली! है ना ?? तो तू ही सोच, लड़की का क्या होगा?
-धत पापा, मैं आपसे नहीं बोलती, मैं तो बाहर खेलने जा रही हूं।
बिटिया गोद से कूद कर बाहर खेलने भाग गई। इतने में ही बिटिया की मम्मी रसोई घर से पकौड़े की प्लेट हाथ में लेकर बाहर आईं और बोलीं- लो अब चटपटी चटनी के संग मीठे पुए नहीं, नमकीन पकौड़े ही बनाए हैं... अपने मुंह को ज़रा आराम दे लो।
मैंने झट प्लेट हाथ में पकड़ी और सोचने लगा, क्या कहा इन्होंने- अपने मुंह को ज़रा लगाम दे लो???
-प्रबोध कुमार गोविल