Ye Dil Pagla kahin ka - 2 in Hindi Love Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | ये दिल पगला कहीं का - 2

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ये दिल पगला कहीं का - 2

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-2

"हां। वो दोनों जेल में है और सरकार उन दोनों की शादी के लिए इंकार कर चूकी है।" शर्मिष्ठा ने बताया।

"कुछ भी हो दोस्तों! उन दोनों का प्यार निर्दोष है। हजारों युथ कपल के लिये वो लोग आइडियल है।" विवान बोला।

"और फ्रेंड्स! ये मत भूलो की ह्यूमन राइट्स वाले हमारे साथ है। मीडीयां वाले भी उन दोनों के लिये कोशिश कर रहे है।" सुखवंत ने कहा।

"तो फिर ठीक है फ्रेंड्स! हमें इस मुद्दे को राष्ट्रीय बनाना होगा। हम केन्द्रीय सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करने पर विवश कर देंगे।" विवान बोला।

"एमपी हो , एमएलए या कोई मंत्री हो! उन सभी को ज्ञापन देंगे। वे लोग जहां भी मिले, हम वहां पहूंचकर उनके सम्मुख अपनी बात रखेंगे।" प्रतिज्ञा बोली।

"ठीक है प्रतिज्ञा! लगे हाथ विवान और तुम लोग भी उसी मंडप में शादी कर लेना, जहां अभय और डिम्पल की शादी होगी!" शर्मिष्ठा बोली। सभी हंसने लगे।

"एक्सीलेंट! क्या आईडिया दिया है!" प्रतिज्ञा उत्साहित होकर बोली। विवान भी समझ चूका था।

"हमें उन कपल्स से काॅन्टेक्ट करना होगा जो जल्दी ही शादी करने वाले है। हमें उन्हें डिम्पल और अभय के विवाह के साथ अपना विवाह करने के लिए तैयार करना होगा।" विवान बोला।

"वैसे भी हमारे यहां ग्रूपस् में शादियां तो ही है न! इसे भी एक सामूहिक विवाह सम्मेलन जैसा बना देते है।" सुखवंत बोला।

प्रतिज्ञा और विवान की आपसी केमिस्ट्री कमाल की थी। एक-दूसरे के मन की बात वे तुंरत भांप लेते थे। प्रतिज्ञा और विवान की लव स्टोरी भी दिलचस्प थी।

सामाजिक संगठनों तक यह बात पहूंच रही थी। उन्हें स्वजातीय विवाह सम्मेलन अभय और डिम्पल के विवाह के तारीख के साथ आयोजित करने में कोई परेशानी नहीं थी। युवा बहुतायत में रजिस्ट्रेशन करवा रहे थे। विवान ने ऑनलाइन वेबसाइट बनाकर सभी के लिये यह अवसर उपलब्ध करवा दिया। युथ फोरम के सदस्य सुखवंत और शर्मिष्ठा अपने अन्य काॅलेज फ्रेंड्स के साथ मिलकर शहर के विभिन्न स्थानों पर केनोपी लगाकर अभय और डिम्पल के लिए आम सहमति बना रहे थे। उन्होंने हस्ताक्षर अभियान छेड़ दिया। लाखों पोस्ट कार्ड राष्ट्रपति के नाम लिखकर पोस्ट किये जाने लगे। विपक्ष को बैठे बिठाये एक मुद्दा मिल गया। युवाओ के साथ विपक्षी दल ने भरपूर हंगामा किया। पुलिस प्रशासन को यहां कुछ सख्त होना पड़ा। विवान और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके कारण इस मुहिम को तगडा झटका लगा। प्रतिज्ञा के पिता श्याम उनकी जमानत के लिये प्रयास कर रहे थे। श्रेष्ठा समझ चूकी थी की अभय और डिम्पल की शादी में विवान और उनके दोस्तों महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। उन्हें जेल से बाहर लाना ही होगा। वो मुख्यमंत्री जी से जाकर मिली। ऐन-केन प्रकारेण विवान, सुखवंत, प्रतिज्ञा और शर्मिष्ठा को जेल से जमानत पर रिहा कर दिया।

"विवान! अब तुम लोगों को बहुत सोच समझकर काम करना लगा।" जेल परिसर के बाहर श्रेष्ठा बोली।

"लेकिन! हम सही रास्ते पर थे।" सुखवंत बोला।

"हां जानती हूं। तुम लोगों ने कोई बुरा काम नहीं किया। हम सभी अभय और डिम्पल के लिए लड़ रहे है।" श्रेष्ठा बोली।

"फिर हमें जेल में क्यों डाल दिया गया?" विवान बोला।

"देखो! तुम लोगों निश्चित ही अच्छा प्रयास कर रहे हो। लेकिन इस अच्छे कार्य में कुछ गलत लोग भी घुस गये है जो तुम्हारा इस्तेमाल कर रहे है।" श्रेष्ठा मुखर्जी बोली।

"कहीं आपका इशारा अपोजीशन पार्टी के लोगों से तो नहीं है?" प्रतिज्ञा बोली।

"सही समझा। अभी सब लोग घर जाओ। शाम को मेरे घर मिलते है। वहां बाकी की रणनीति पर बात करते है।" श्रेष्ठा बोली।

सभी ने हां में स्वीकृति दी। सभी श्रेष्ठा मुखर्जी की कार में बैठ गये। कार तीव्र गति से दोड़ पड़ी। सुखवंत मायुस था क्योकिं उसके माता-पिता उसे अनुमति नहीं देंगे। वे सुखवंत के भविष्य के लिये चिंतित थे। उस पर सुखवंत ने जेल जाकर उनके अरमानों को कुचल दिया था।

विवान और प्रतिज्ञा के पैरेन्टस भी इसी बात पर मंथन कर रहे थे। वे चाहते थे की उनके बच्चे अभय और डिम्पल की मुहिम से स्वयं को अलग कर ले।

श्रेष्ठा इंतजार करते-करते थक गयी। उसे आभास हो गया था कि बच्चों के पैरेन्ट्स नहीं माने होगें। उसने विवान का फोन भी ट्राय किया मगर फोन स्वीच ऑफ आ रहा था। यही हाल बाकी लड़के-लड़कीयों का भी था। रात के 11 बज चूके थे। श्रेष्ठा मायुस होकर शयनकक्ष की तरफ बढ़ गयी। बिस्तर पर वह करवटें बदल रही थी। उसे बच्चों का यूं धोखा देना ठीक नहीं लग रहा था। विचारों में मग्न वह नींद की झपकी लेने लगी। तब ही मुख्य द्वार पर डोर बेल बज उठी। यकायक उसने आखें खोलकर दीवार पर टंगी घड़ी की ओर देखा। रात के 1 बज चूके थे। घर पर अकेली रहने वाली श्रेष्ठा कुछ सतर्क हो गयी। बेडरूम से निकलकर वह नीचे हाॅल की तरफ आयी। डोर बेल अब भी बज रही थी। दरवाजे की मैजिक आई से झांकने पर उसे विश्वास नहीं हुआ। विवान, प्रतिज्ञा और बाकी के दोस्त सभी एक साथ वहां खड़े थे।

श्रेष्ठा ने दरवाजा खोला।

"अरे तुम लोगों इतनी लेट क्यों?" श्रेष्ठा ने पुछा।

"मैडम! वहीं काॅमन प्राब्लम! माॅम-डैड नहीं चाहते कि हम इस मामले में अपना फ्यूचर खराब करे।" विवान बोला।

"सेम प्राॅबलम हियर।" सुखवंत बोला।

"कोई बात नहीं! यह अभी तो शुरूआत है। आगे हमें ऐसे बहुत सी रूकावटों को लड़ना है।" श्रेष्ठा बोली।

"हम लड़ेंगे मैम।" शर्मिष्ठा बोली।

"हां मैम। अभय और डिम्पल को मिलाने के लिये हम हर संभव कोशिश करेंगे।" प्रतिज्ञा बोली।

"गुड। आओ बैठो। आप लोगों ने जो प्लान बनाया वह बताओ।" श्रेष्ठा बोली।

"मैम! हमने अपनी युथ फोरम की टीम सोशल मीडिया पर एक्टीव कर दिया। हमने पुरे इण्डिया का सपोर्ट मांगा है।" विवान बोला।

"मैं समझी नहीं।" श्रेष्ठा ने पुछा।

"हमने फेसबुक, ट्वीटर और इन्स्टा पर अभय और डिम्पल की लव स्टोरी शेयर की है। और लोगों से उनकी लव स्टोरी की डिमांड की है।" प्रतिज्ञा ने बताया।

"इसमें हम एक नेशनल न्यूज चेनल पर देश भर से आई चयनित लव स्टोरी दिखायेंगे। और उनके कैरेक्टर्स का इन्टरव्यू भी प्रसारित करेंगे।" सुखवंत बोला।

"ये लव स्टोरीज़ ऐसी होगी जो देश और समाज को प्रेम और स्नेह करने की ही सीख न दे अपितु प्रेम के वास्तविक रूप को भी सभझाये। लोग अक्सर छल और कपट के शिकार होकर किसी को भी अपना सब कुछ मानने लगते है।" प्रतिज्ञा बोली। प्रतिज्ञा का इशारा 'फ्लर्ट वाला लव' की तरफ था।

"मगर इसके लिये हमें किसी न्यूज चैनल्स बात कर इस संबंध में उसे राजी करना होगा।" विवान बोला।

"फिक्र मत करो। वह सब मैं मैनेज कर लुंगी। तुम लोग अपना काम करो। मैं पोलिटिकल सपोर्ट प्राप्त करने की कोशिश करती हूं।" श्रेष्ठा बोली।

"बहुत रात हो चूकी है। अब तुम लोग सो जाओ। सुबह से काम पर लगना है।" श्रेष्ठा ने कहा।

देश भर से इस अभियान को बहुत सपोर्ट मिल रहा था। बहुत से लव कपल्स ने अपनी निजी लव स्टोरी दुनियां के सम्मुख शेयर करने की सहमती दी थी। प्रतिज्ञा और विवान ने उनमें से कुछ लव स्टोरीज़ सिलेक्ट की और संबंधित लोगों को इंदौर बुलवाया। श्रेष्ठा ने 'आज अभी तक' नेशनल न्यूज चेनल से बात की। वे अभय और डिम्पल की शादी करवाने की इस अनोखी मुहिम में सम्मिलित हो गये। न्यूज पेपर और टीवी मीडिया पर इस अनोखे रियलिटी शो का विज्ञापन प्रसारित होने लगा। बहुत से नामी गिरामी स्पांन्सर इसमें धन लगाने में सहमत हो गये। अब यह एक राष्ट्रीय चर्चा का मुद्दा बन चूका था। बच्चा-बच्चा अभय और डिम्पल के विषय में बात कर रहा था।

पहले एपीसोड की तैयारियां पुरी हो चूकी थी। 'अभय और डिम्पल की शादी' रियलिटी शो की प्रथम कहानी अथर्व और मानसी की थी। ये लोग मध्यप्रदेश के कटनी जिले से आये थे--

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अथर्व ने निर्णय लिया कि वह अपने हृदय की बात मानसी को बता देगा। मानसी जानती थी की अथर्व उसे पसंद करने लगा है।

"मैं जानती हूं अथर्व! तुम मुझसे प्रेम करते हो।" अथर्व कुछ कहे इससे पुर्व ही मानसी ने उसके हृदय की बात जान ली।

"हां मानसी! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। क्या मैं तुम्हारे योग्य हूं?" अथर्व ने पुछा।

"मुझे ज्ञात है कि लड़कीयों से दिल्लगी करना तुम्हारा स्वभाव है।" मानसी ने कहा।

अथर्व ने समझाया कि वह इस बार मानसी के प्रति गंभीर है। वह मानसी से ही विवाह करेगा।

"अथर्व! प्रेम और विवाह जितना सरल दिखता है, उतना सरल नहीं है। केवल प्रेम के सहारे संपूर्ण जीवन निकाला नहीं जा सकता।" मानसी ने तर्क दिये।

"तब तुम ही बताओ! तुम्हें प्रसन्न करने के लिए मैं क्या करूं?" अथर्व ने पुछा।

"मुझे कुछ अधिक नहीं चाहिए अथर्व! सर्वप्रथम एक उचित रोजगार ढूंठो। स्वयं के परिश्रम से धन कमाना आरंभ करो। काम छोटा हो या बड़ा, मुझे परहेज नहीं है! काम अनैतिक न हो बस!" मानसी बोली।

"इसमें तो अधिक समय लगेगा।" अथर्व बोला।

"तुम साहस तो करो। अपना कॅरियर बनाने के लिए तुम्हारे पास मूल्यवान पांच वर्ष है। इन पांच सालों में स्वयं को प्रमाणित करो। मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी।" मानसी बोली।

मानसी स्वयं आत्मनिर्भर और स्वावलंबी थी। अपने होने वाले जीवनसाथी में भी वह यहीं गुण देखना चाहती थी।

अथर्व के चेहरे पर चिंता के भाव उभर आये। मानसी ने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा- "मैं भी तुमसे बहुत प्रेम करती हूं अथर्व! जीवन के संघर्ष को तुम करीब से देखो, अनुभव करो और विजय प्राप्त करो। मैं यही चाहती हूं।"

मानसी ने अथर्व को गले लगा लिया। मानसी के हृदय लगकर अथर्व को संबल मिला। वह अपने जीवन को संवारने निगल पड़ा।

अथर्व संकट में था। व्यापार-व्यवसाय आरंभ करे अथवा नौकरी का प्रयास? इस दुविधा को उसे स्वयं ही समाप्त करना था। व्यवसाय आरंभ करने के लिए हाथ में पुंजी का होना आवश्यक था। बैंक ॠण हेतु योग्यता और अनुभव दोनों का उसके पास अभाव था। विचारों के मंथन में अन्ततः वह उबर ही आया। उसने प्रतियोगी परिक्षा में सफलता प्राप्त करने का निश्चय किया। यह भी सरल कार्य नहीं था। उसे आर्थिक सहयोग लिये बिना ही परिक्षा में सफल होना था। प्रतियोगी परिक्षा की तैयारी हेतु धन की आवश्यकता थी। अखबार में 'ड्राइवर की आवश्यकता है' काॅलम को चिन्हित कर वह डॉ. ॠषभ सक्सेना से मिला। सक्सेना जी ने उसे अपने यहां ड्राइवर रख लिया। सक्सेना जी और उनकी पत्नी दोनों एमबीबीएस डाॅक्टर थे। शहर भर के हाॅस्पीटल में उन दोनों को पेसेन्ट देखने बुलाया जाता था। आर्या उनकी एकमात्र अवयस्क बेटी थी। वह स्वयं मेडीकल ऐक्ट्रेंस एक्जाम क्वालीफाई करने की तैयारी कर रही थी। आर्या को कॉलेज छोड़ना और वहां से घर लाने का दायित्व अथर्व पर था। यदा-कदा वह मि. एण्ड मिसेस सक्सेना को हाॅस्पीटल लाने-ले जाने का कार्य भी करता। ड्राइवरी के वेतन से उसकी परिक्षा की तैयारी सुगमता से हो रही थी।

अथर्व ने सुचित किया कि आर्या का झुकाव उसके प्रति था। अथर्व आश्चर्य में पढ़ गया जब उसने अपने मोबाइल में आर्या का 'आई लव यू' वाला मैसेज देखा। आर्या अभी अवयस्क थी। उसे समझाया जाना आवश्यक था की प्रथम वह अपनी पढ़ाई पुरी करे। मगर आर्या कहां मानने वाली थी? कार में अथर्व से सटकर बैठना। उसे धोखे से गालों पर चूमना, अथर्व को यहां-वहां छु कर उसे तंग करना, अब उसकी नियमित दिनचर्या बन गई थी। अथर्व ने आर्या को संयम बरतने हेतु आग्रह किया। किन्तु वह इन आनंद के पलों में ही प्रसन थी। एक शाम काॅलेज कुछ विलम्ब से छुटा। आर्या अपने चिरपरिचित व्यवहार से अथर्व को छेड़ रही थी। क्षुब्ध होकर अथर्व ने कार रोक दी। अथर्व, आर्या की ओर झुका। वह उसे गले लगाना चाहता था। कुछ पल तक अथर्व की इस प्रतिक्रिया पर आर्या की सहमती थी। किन्तु अथर्व अब आर्या पर झपट पड़ा था। आर्या असहज हो गयी। उसने हाथों के बल से अथर्व को स्वयं से दुर किया--

"ये क्या कर रहे हो अथर्व? प्लीज दुर रहो?" आर्या बोली।

"तुम्हें जो पंसद है मैं वही कर रहा हूं।" अथर्व बोला।

यह आर्या के लिए बहुत बड़ी शिक्षा थी। जिसे योजना के माध्यम से अथर्व ने उसे दी थी। अथर्व अब आर्या को ओर भी अधिक प्रिय लगने लगा। वह उसे रियल हीरो स्वीकार चूकी थी। ऐसा उसने फिल्मों में ही देखा था। अथर्व ने डा. सक्सेना को सबकुछ बताकर वहां से नौकरी छोड़ दी। आर्या अथर्व को अपने से दुर जाते देख व्याकुल हो गई। उसने सारा घर आकाश पर उठा लिया। आर्या अपने जिद्दी स्वभाव के वशीभूत होकर हिंसक हो जाती थी। शहर में अपने नाम की बदनामी के भय से डा. सक्सेना ने अथर्व को पुनः घर बुलाया। अथर्व को अपने सम्मुख देखकर आर्या उसके हृदय से लिपट गई। मानसी को अथर्व ने अपने साथ घटित हो रही घटनाओं पर सहयोग मांगा।

"अथर्व! यदि मैं आर्या को तुमसे दुर रहने के लिए कहूंगी तब हो सकता है कि वह मुझे भी यही सब कहे। हम दोनों में से तुम्हारे लिए कौन उपयुक्त है? इसका चयन तो तुम्हें ही करना है।" मानसी ने स्पष्ट कह दिया।

अथर्व पुनः दुविधा में था। एक ओर मानसी का परिपक्व और निस्वार्थ प्रेम था तो दुसरी ओर जिद्दी और अध कच्चे प्यार की तलवार हाथों में लेकर तैयार खड़ी अबोध आर्या थी।

डॉ. सक्सेना की कार में घुमने से मना करने वाली मानसी अथर्व की मेहनत की कमाई की सायकिल पर बैठना गर्व समझती थी। आर्या का प्रेम अस्वीकार करने का अर्थ था, उसके द्वारा उठाये जान वाले उचित-अनुचित कदम के लिए तैयार होना। इन्हीं विचारों में मग्न अथर्व कुछ निश्चय कर आर्या से जाकर मिला।

"आर्या! तुम मुझसे प्यार करती हो और मैं तुम्हारी प्रसन्नता चाहता हूं।" अथर्व की सहमती सुनकर आर्या प्रसन्न हो उठी।

"किन्तु अभी तुम अठारह वर्ष की नहीं हो। मैं तुम्हारे वयस्क होने तक प्रतिक्षा करूंगा।" आर्या अथर्व के हृदय से लिपट गई।

"तब तक अगर तुम एमबीबीएस डाॅक्टर बन जाओ, तब मेरी प्रसन्नता ओर भी अधिक बढ़ जायेगी।"

आर्या ने मन लगाकर पढ़ाई आरंभ कर दी। अथर्व के लिए वह पुर्व से अधिक परिश्रम करने लगी। आर्या में आये परिवर्तन को देखकर सक्सेना दम्पति प्रसन्नचित थे। मेडिकल ऐक्ट्रेंस एक्जाम वह उत्तीर्ण कर चूकी थी। उसे नई

क्रमश..