यूँ ही राह चलते चलते
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रोम में पहुँच कर शाम का समय खाली था तो सब गाने के मूड में आ गये। निमिषा ने अपने मधुर गीत से सबको विभोर कर दिया, फिर क्या था सब एक-एक करके आगे आने लगे।
अर्चिता की मम्मी ने कहा ’’अर्चू तू भी सुना न गाना तू भी तो गा लेती है ।‘‘
अर्चिता को शायद इसी क्षण की प्रतीक्षा थी थेाड़ी सी बनावटी ना नुकुर के बाद वह गाने को तैयार हो गई ।
उसने गाया ’’तुम जो आये जिंदगी में बात बन गई....................‘‘उसके हावभाव स्पष्ट बता रहे थे कि ये गाना किसके लिये है। निमिषा जैसा मधुर तो नहीं पर हाँ सुर में गाया था। सभी ने ताली बजा कर स्वागत किया पर अर्चिता तालियों के परे यशील की आँखों में खोई थी । यशील ने भी आँखों-आँखों में उसके गाने पर दाद दी। अर्चिता के लिये इससे बढ़ कर क्या पुरस्कार हो सकता था।
अगले दिन सब थ्री ‘डी रिबाइन्ड शो’ देखने गये । वहाँ के शो में ग्लेडियेटर की लड़ाई और रोम का इतिहास दिखाया गया था ।
अब सब लोगों को पीसा जाना था।रास्ते में सुमित ने कहा’’ अच्छा आप लोग रोम को ले कर मुहावरे बताइये ‘‘।
यशील ने कहा ’’जब रोम जल रहा था नीरो बंसी बजा रहा था। ‘‘
अर्चिता बोली ’’रोम में कभी सूरज नहीं डूबता ।‘‘
सुमित ने कहा ’’वेरी गुड। ‘‘
वान्या के लिये यह चुनौती थी उसने तुरंत श्रीकृष्ण से कहा ’’ पापा बताइये और कौन सी कहावत है । तभी ऋषभ बोला ’’ रोम एक दिन में नहीं बना था। ‘‘
कोई बोला ’’सारी सड़कें रोम की ओर जाती हैं ‘‘।
वान्या की सहन शक्ति जवाब दे रही थी उसने कहा ’’ पापा टेल मी। ‘‘
उसके पापा ने कुछ याद करके बताया ’’ जब रोम में रहो तो रोमन की तरह रहो।‘‘
वान्या ने इससे पहले कि कोई और कह दे खड़े हो कर हड़बड़ाहट में कहा ’’ रोमन में रहो तो रोम की तरह रहो। ‘‘
सब हँस पड़े, उनमें से अर्चिता की हँसी की आवाज सबसे ऊँची और स्पष्ट थी और वान्या के लिये इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता था वह बिगड़ गई ’’ इसमें हँसने की क्या बात है क्या किसी की जबान फिसल नहीं सकती ।‘‘
’’ जबान तक तो ठीक है पर उसका मन न फिसले तो ठीक है । ‘‘
निमिषा ने संजना के कान में फुसफुसा कर कहा और दोनों हँसने लगीं ।
रास्ते में आरेलियन वाल और द्वार पड़ा जो आरेलियन राजा के द्वारा 1701 में रोम की रक्षा के लिये बना था फिर स्नो फाल चर्च देखा ।सब लोग थक गये थे तो सुमित ने कहा ’’ अब हम लोग सबसे प्रसिद्ध जगह लीनिंग टावर आफ पीसा देखने जाएंगे तब तक आप लोग बस में सिएस्ता ले सकतेहैं।‘‘
‘‘सिएस्ता क्या कोई खाने की डिश है पास्ता जैसी ‘’ रवि श्रीनाथ ने पूछा ।
सचिन ने कहा ’’ अरे अंकल इटैलियन में सिएस्ता मतलब झपकी ।‘‘
’’ओहो तो भाई हिंदी अंग्रेजी बोलो न, हम लोगों को तो अपने देश की ही भाषाएँ समझने में मुश्किल होती है अब ये इटैलियन में कहा से समझूँ।‘‘
मीना ने पूछा ’’ सुमित इटली तो फैशन के लिये भी काफी प्रसिद्ध है ।‘‘
सुमित ने बताया ’’हाँ आप ने सही कहा है, इटली तो फैशन का प्रमुख केन्द्र माना जाता है इसका मुख्य कारण है यहाँ की रचनात्मकता ।
अनुभा ने रजत से कहा ‘‘ आज हमें पता चला कि जियारडियानों, डीज़ल, अरमानी आदि डिजा़यनर ब्रान्ड इटली की ही देन हैं ।’’
इटली के बारे में चर्चा करते करते वो लोग विश्व के सात आश्चर्य में से एक विश्व प्रसिद्ध लीनिंग टावर आफ पीसा पहुँच गये । सुमित ने सब को सावधान किया कि अपने पर्स सँभाल कर रखें वहाँ पाकेट मारों से सावधान रहने की बहुत आवश्यकता है।
रजत बोले’’ यानि कि इस मामले में भी हमारा देश पीछे ही रहा‘‘।
अनुभा को रजत का यह व्यंग्य रास न आया उसने कहा ’’ इस मामले में आपका क्या मतलब है, हमारे देश बहुत बातों में आगे है, हमारे देश की गौरवशाली परम्परा रही है।‘‘
’’हाँ बस तुम लोग अतीत के गुणगान करके ही संतुष्ट रहो, और सब देश कहाँ से कहाँ जा रहे हैं उनकी प्रणाली देखो, व्यवस्था देखो, एक अपना देश है जहाँ कितना भ्रष्टाचार है आबादी बढ़ती ही जा रही है ‘‘रजत जोश में आ गये।
अनुभा ने कहा ’’हमारे देश में एक से बढ़ कर एक प्रतिभाएँ हैं, हम कितने देशों से आगे हैं।‘‘
तभी सचिन बोला ’’ अंकल अभी तो इटली घूमिये अपने देश के बारे में बाद में सोचेंगे‘‘।
तब तक बस रुक गई थी और सब विश्व प्रसिद्ध लीनिंग टावर आफ पीसा देखने के लिये उत्सुक हो कर उतरने लगे।
पीसा इटली के प्रसिद्ध शहरों में से है जो किसी समय मे बंदरगाह था और उसका जिनोवो के साथ अपना अलग राज्य था पर चूंकि फ्लोरेंस का कोई बंदरगाह नहीं था अतः उसने इस पर अपना आधिपत्य जमा लिया ।
सुमित ने सबको एकत्र करके कहा ’’ इसे देखने से पहले इसकी विशेषताएँ जान लीजिये तो आपके देखने का आनन्द दोगुना हो जाएगा।‘‘
उसने बताया ‘‘ आज का प्र्रसिद्ध लीनिंग टावर आफ पीसा वास्तव मे चर्च का बेल टावर है जो पीसा की तीसरी सबसे पुराना इमारत है यह ओनानो पीसानो नामक आर्किटेक्ट के द्वारा बनाया गया । यह इमारत एक ओर झुकी हुई है।
रामचन्द्रन ने पूछा’’ क्या इसे ऐसे ही झुका हुआ बनाया गया है? ‘‘
सुमित ने बताया कि यह 177 वर्षों में तीन बार में बना है । पहला तल 1173 में बना जब 1178 में तीसरा तल बना तो एक ओर की मिटटी धंसने से टावर दक्षिण की ओर झुकने लगा । फिर युद्ध के कारण निर्माण का कार्य रुक गया तब तक मिट्टी का धंसना रुक गया । इसको स्थिर रखने के लिये इसके उत्तर में 1000 टन का भार रखा गया। इसे कुछ समय के लिये गिरने के डर से आम लोगों के लिये बन्द कर दिया गया था फिर 2002 से पुनः खुल गया ।अब यह 4से 5 डिग्री या 15 फीट झुका है । और इस मीनार पर घड़ी भी है जो तीसरे तल पर है । इस पर सात घंटियाँ हैं जो भिन्न धुनों पर ध्वनि करती हैं ।
अनुभा लीनिंग टावर आफ पीसा की अदभुत वास्तु कला के बारे में सोच रही थी कि निमिषा आ कर बोली ‘‘आंटी ये कहाँ खोई हैं ?‘‘
’’कुछ नहीं मैं इस इतने प्रसिद्ध कृति को देख कर अपने मन में इसका चित्र सहेज रही थी‘‘।
’’आंटी ये चित्र तो आपको हर जगह मिल जाएगा सहेजना है तो उधर देखिये’’ अनुभा ने मुड़ कर देखा तो अर्चिता और यशील दुनिया से बेखबर न जाने किस गुफ्तगू में खोए हुए थे ।
सच तो यह था कि अर्चिता दिन पर दिन वान्या के यशील के प्रति बिंदास रवैये से असुरक्षित और आतंकित रहने लगी थी उसे न तो कोई दृश्य आकर्षित करता न ही कोई कला, उसे बस एक ही ध्यान रहता कि यशील क्या कर रहा है और कहीं वान्या तो उसके साथ नहीं है।अपनी इसी असुरक्षा के चलते उसने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिये यशील से कहा ‘‘ मैं तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ। ’’
‘‘ अरे तो रोका किसने है ?’’
‘‘ नहीं ऐसे सबके सामने नही अकेले में ’’ कहते-कहते उसका गला सूखने लगा ।
‘‘तो चलो जहाँ कहो मैं चलूँ’’ कहते हुए वह उसके साथ सबसे अलग में चला आया।
अर्चिता का हदय धड़कने लगा माथे पर स्वेद बूँदे झिलमिलाने लगी।उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे पूछे।
कुछ देर के मौन के बाद यशील बोला‘‘ क्या कहना है ?’’
अर्चिता ने कहा ‘‘ मुझे समझ नहीं आ रहा है कि कैसे कहूँ। ’’
यशील ने मजाक करते हुए कहा ‘‘ ऐसा करो मुझे लिख कर दे दो मैं तुम्हें बता दूँगा कि कैसे कहो ।’’
यशील ने मजाक में कहा था पर अर्चिता को लिखने वाला विचार भा गया, उसे अपने ऊपर क्षोभ भी हो रहा था कि उसे यह क्यों नहीं सूझा उसने कहा ‘‘ ठीक है लिख कर ही बताऊँगी’’।
यशील ने कहा ‘‘ अरे वो तो मैं मजाक कर रहा था, तुम तो मेरी उत्सुकता बढ़ाती जा रही हो, अब बता भी दो ।’’
‘‘ ओके तुम ये बताओ कि इंडिया लौट कर तुम दिल्ली कब आओगे?’’
यशील ने सिर पकड़ कर कहा ‘‘ क्या यार इसके लिये इतनी देर से परेशान थी मैं तो सोच रहा था कि पता नहीं कौन सी गंभीर बात है।’’
अब अर्चिता उसे क्या बताती कि बात तो गंभीर ही थी पर उसकी वाणी ने उसके मन का साथ छोड़ दिया और वह कहना कुछ चाहती थी बोल कुछ गयी। उसे आभास भी न था कि सदा वाद-विवाद में प्रथम स्थान पाने वाली वह आज इतनी सी बात कहने में इतना संकोच करेगी। आज उसे प्रथम बार प्यार की अनुभूति ने छुआ था और यह स्पर्श जहाँ एक ओर उसे आँच भरी सिहरन से भर रहा था तो वहीं उसके चैन पर भी डाका डाल दिया था ।
अनुभा ने निमिषा से तो कुछ नहीं कहा पर उसके मन में कहीं अर्चिता के भेालेपन और उसकी बिंदास बातों ने उसके लिये विशेष स्थान बना दिया था इसीलिये उसका यशील के प्रति आकर्षण उसे चिंता में डाल रहा था। क्योंकि वान्या भी तो यशील के प्रति आकर्षित थी पता नहीं यशील के मन में क्या है ।
कभी-कभी तो उसके मन में आता कि यदि यह यशील को पसन्द न करती होती तो अपने प्रियांश के लिये वह उसकी पहली पसंद होती।
रजत ने आवाज दी और कहा ’’इधर उधर घूम रही हो मैं तुम्हे ढूँढ रहा हूँ कि तुम्हारी फोटो ले लूँ और तुम्हारा पता ही नहीं है।‘‘
’’आपको भी महिम का असर हो गया है क्या ’’अनुभा ने हँसते हुए कहा।
’’अरे खैर मनाओ कि इस उम्र में भी तुम्हारी फोटो खींच रहा हूँ, वर्ना लोग तो केवल टावर की लेते हैं ।‘‘
’’अच्छा रहने दो’’ अनुभा ने भी गुस्सा दिखाया।
तभी संजना ने आवाज दी ‘‘आंटी इधर आइये देखिये यहाँ से कितनी अच्छा व्यू आएगा’’।
अनुभा ने देखा ऋषभ कुछ ऐसा पोज बना कर खड़ा है मानो वह गिरते हुय टावर को धक्का दे कर रोक रहा हो । रजत को आइडिया पसंद आया वो भी उसी स्टाइल में खड़े हो गये अनुभा ने उनकी फोटो ली ।
रजत बोले ’’चलो तुम्हारी भी ले लें नहीं तो कहोगी बस अपनी ही लिये जा रहे हैं। अनुभा अपने लिये सही जगह देखते-देखते टावर के पीछे की ओर चली गई वहाँ अर्चिता की मम्मी यशील और चंदन खड़े बातें कर रहे थे ।
अर्चिता की मम्मी श्रीमती चंद्रा यशील से पूछ रह थीं ’’ अर्चिता बता रही थी तुम गाजियाबाद के हो। ‘‘
’’जी मैं तो मुंबई में ही रहा हूँ पर मेरे मम्मा-पापा वहाँ के हैं, तो बहुत बार गया हूँ बचपन में तो हर साल ही छुटिटयों में जाता था ।‘‘
’’हाँ तो हुये तो वहीं के न, अरे जैसे कोई विदेश में बस जाये तो क्या कहलाएगा तो भारतीय ही न आई मीन एन-आर-आई।‘‘
’’हम लोग भी दिल्ली के हैं, कभी गाजियाबाद आना तो हमारे घर भी आना ।‘‘
’’जी जरुर।‘‘
’’अर्चिता का तो फाइनल है यहाँ से जा कर कैम्पस भी शुरु हो जाएगा, कहो
मुंबई में ही नौकरी मिल जाये।‘‘
’’हो सकता है आंटी ये तो कम्पनी पर निर्भर करता है वैसे भी अर्चिता कहाँ की च्वायस देती है । उस कम्पनी की वहाँ ब्रांच हो और कम्पनी को वहाँ पर जरुरत हो उसी पर डिपेन्ड करता है । ‘‘
यशील उनकी बातों से बोर हो रहा था, चंदन समझ रहा था उसने यशील से कहा ’’ यार जरा ...............................................
यशील श्रीमती चंद्रा से बोला ’’आंटी एक मिनट ’’और वहाँ से जान छुड़ा कर भागा ।
‘‘थैंक गॅाड तुमने बचा लिया आज अर्चिता की मम्मी ने तो मुझे बोर ही कर दिया।‘‘
’’लगता है अपना सन-इनला बनाने की सोच रही हैं‘‘ चंदन ने कहा’’ यू लकी ब्वाय‘‘।
’’ चुप भी रहो तुम्हें तो हर समय यही दिखाई देता है ।‘‘
’’हाँ हाँ तेरे दोनों हाथ में लड्डू है न इस लिये महात्मा बन रहा है, मुझसे पूछ जो एक को तरस रहा है ‘‘कहते हुये चंदन ने नाटकीय ढँग से सीने पर हाथ रख कर आह भरी ।
फिर गम्भीर हो कर बोला’’ वैसे एक बात कहूँ। ‘‘
’’ कहो। ‘‘
‘‘ तू इतनी दोस्ती नहीं बढ़ा, नहीं तो किसी दिन बुरा फँसेगा फिर न कहना कि सावधान नहीं किया। ‘‘
’’ तू जल रहा है क्या ?‘‘यशील ने चुटकी ली। तो चंदन अपने चिरपरिचत हँसोढ मुद्रा में बोला जलूँ या न जलूँ कौन सा अन्तर पड़ने वाला है । ‘‘
क्रमशः--------
अलका प्रमोद
pandeyalka@rediffmail.com