Ek katu saty in Hindi Motivational Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | एक कटु सत्य

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एक कटु सत्य

एक कटु सत्य

बारह बज गए हैं, अभी तक काम करने वाले नौकरानी नहीं आई । सारा काम पड़ा है ,नीला को समझ में नहीं आ रहा है कि वह कहाँ से काम शुरू करे । पता नहीं कैसे ये लोग इतना सारा काम घंटे भर में निपटा कर चली जाती हैं...नीला अभी सोच ही रही थी कि घंटी बजी । दरवाजा खोला तो देखा पार्वती खड़ी है । उसे देखकर नीला ने यह सोचकर चैन की सांस ली कि काम से छुट्टी मिली ...फिर भी बनावटी क्रोध ने पूछा …

' आज देर कैसे हो गई ? '

' मेमसाहब, अपने गोपाल को अंग्रेजी स्कूल में दाखिल करवाने गई थी । आज हम बहुत खुश हैं । लगता है हमारा सपना सच ही हो जाएगा । उसे स्कूल में दाखिला मिल गया है ।'

' क्या इंग्लिश स्कूल में दाखिला मिल गया है ? ' नीला ने आश्चर्य से पूछा ।

पार्वती की बात सुनकर नीला के मन में विचार उठे...जब वह और अनिकेत अपने बेटे अजिताभ का दाखिला करवाने गये थे... तब हेड मिस्ट्रेस के सारे प्रश्नों का सामना उसे ही करना पड़ा था जिससे खीजकर वह पूछ बैठी थी, दाखिला तो बच्चे का करवाना है फिर इंटरव्यू मेरा क्यों ?

' वह इसलिए कि आप उसको पढ़ा भी पाएगी या नहीं ।' हेडमिस्ट्रेस मुस्कुरा कर बोली थीं ।

' तुम इंग्लिश स्कूल में पढ़ाना तो चाह रही हो लेकिन पढ़ा भी पाओगी ?’ अतीत से वर्तमान में आते हुए नीला ने कहा ।

‘ हम नहीं पढ़ा पायेंगे तो क्या हुआ , टियूशन लगवा देंगे । एक ही तो बेटा है मेरा ...उस को पढ़ाने के लिए रात-दिन मेहनत करूंगी पर पढ़ाऊंगी अंग्रेजी स्कूल में ही । नया स्कूल खुला है । गोपाल के बापू ने अपने साहब से सिफारिश करवा दी तो दाखिला मिल गया वरना मिलता ही नहीं । मेमसाहब, उसकी फीस, ड्रेस ,किताबों में काफी पैसा लग जाएगा आप यदि 4000 उधार दे देंगी तो मदद मिल जाएगी । धीरे-धीरे हमारी पगार से काट लीजिएगा ।'

‘ वह तो ठीक है, अपनी मातृभाषा में शिक्षा दिलवाने से बच्चा शिक्षा को भली प्रकार समझ सकता है वरना तोते की तरह रटता रहता है । ’ नीला ने उसे समझाना चाहा ।

‘ आप ठीक कह रही हैं मेमसाहब, किन्तु आजकल अंग्रेजी जानने तथा बोलने वाला ही अच्छी नौकरी पा सकता है । नेता लोग हमें कहते हैं कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है, हिन्दी में पढ़ाओे किन्तु अपने बच्चों को फॉरेन में पढ़ायेंगे । जरा सी तबियत खराब होने पर इलाज के लिये विदेश भागे जायेंगे और मेमसाहब आपका आशीष बाबा भी अंग्रेजी स्कूल में ही पढ़ रहा है । मेमसाहब, मेहनत मजदूरी करूँगी किन्तु अपने गोपाल को अंग्रेजी स्कूल में ही पढ़ाऊंगी ।'

‘ इतनी बातें कहाँ से सीख गई ?’ आश्चर्य से नीला ने कहा ।

‘ हम टी.वी. नहीं देखते का ? इहाँ धोती कुर्ता में रहेंगे, जहाँ फॉरेन गये, सूट-बूट पहनकर अंग्रेजी में बातें करने लगेंगे...हम अनपढ़ जरूर हैं मेमसाहब लेकिन इन लोगों की नस-नस पहचानत हैं ।'

एक साधारण मेहनतकश नारी ने अनेकों कटु सत्यों के मध्य झूलती जिंदगी के एक कटु सत्य को उजागर कर दिया था । सचमुच हमारी कथनी एवं करनी में इतना अंतर आ गया है कि इंसान का इंसान पर से विश्वास उठता जा रहा है । क्या होगा हमारे देश का, हमारे समाज का ? मन में न जाने कैसा सैलाब सा उठने लगा था किन्तु विचारों पर अंकुश लगाकर कहा, ‘ ठीक है कल ले लेना ।’

पार्वती काम में लग गई । नीला के मन में एक बार फिर विचारों का सैलाब उमड़ पड़ा ...पिछले वर्ष मकान की छत बनवाने हेतु उसने ₹2000 माँगे थे । उसके मना करने पर अनिकेत कितना बिगड़े थे , कहा था …' जब तुमको आवश्यकता पड़ती है तो तुरंत माँग बैठती हो या बैंक से लोन लेकर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करती हो और यह बेचारी जो दिन-रात खून पसीना बहाकर तुम्हारी तीमारदारी में लगी रहती है उसे ₹2000 देने से इंकार कर दिया । याद है पिछले वर्ष जब तुम्हें टाइफाइड हुआ था तो महीना भर इसी ने तुम्हें और तुम्हारे घर को संभाला था वरना मेरा क्या हाल होता ? आवश्यकता के समय अगर यह तुमसे नहीं मांगेगी तो और कहां जाएगी ? उधार ही तो माँग रही है , धीरे-धीरे उसके वेतन से काट लेना ।'

बहुत आदर्शवादी हैं अनिकेत , एक नामी पेपर के प्रधान संपादक जो हैं । बहुत मान सम्मान है उनका समाज में । अपने निर्भीक एवं निष्पक्ष विचारों के कारण सदैव चर्चित रहे हैं ।

‘ पार्वती चार हजार रूपये माँग रही है, दे दूँ...?’ शाम को अनिकेत के आने पर चाय देते हुये नीला ने कहा ।

‘ दे दो भई, होम मिनिस्टर हो घर की ... मुझसे पूछने की क्या आवश्यकता है ?’

‘ निर्णय तो ले सकती हूँ किन्तु घर खर्च के लिये रूपये तो आप ही देते हैं, जरा भी ज्यादा खर्च हो जाने पर तुरन्त पेशी भी तो हो जाती है ।’

‘ तुम्हारा आरोप ठीक है, मेरा मानना है जितनी चादर हो उतना ही पैर पसारने चाहिए । उधार माँगकर घर चलाना मेरे उसूलों के विरुद्ध है । बेचारी गरीब है , उसे आवश्यकता है तो दे दो, अपने अनावश्यक खर्चों में कटौती कर लेना… एक साड़ी कम खरीदना ।'

' साड़ी खरीदती हूँ तो बुरा लगता है । मुझे क्या, मैं तो कुछ भी पहनकर चली जाऊँगी, नाक तो आपकी ही कटेगी समाज मे...मामूली लेखक तो हो नहीं, प्रमुख दैनिक पत्र के संपादक हो ।' नीला ने तुनककर कहा ।

'अच्छा छोेडो...यह बताओ , पार्वती को चार हजार रुपयों की आवश्यकता किसलिये पड़ गई ?’ चाय पीते हुए अनिकेत ने पूछा ।

‘ उसके लड़के को इंग्लिश स्कूल में दाखिला मिल गया है । उसकी ड्रेस, फीस एवं किताबों के लिये उसे रुपयों की आवश्यकता है ।’

‘ इंग्लिश स्कूल में...लेकिन क्या वह उसे पढ़ा भी पायेगी ?’ अनिकेत भी उसी की तरह प्रश्न पूछ उठे थे ।

‘ यही प्रश्न मैंने भी उससे किया था तथा प्राप्त उत्तर से मैं भी आश्चर्यचकित रह गई थी...। पार्वती का कहा एक-एक शब्द उसने अनिकेत को सुना दिया ।

उसकी बात सुनकर अनिकेत कह उठे, ‘ सचमुच भारत तरक्की कर रहा है...कौन कहता है भारत का मतदाता जागरूक नहीं है तभी तो वादा पूरा न करने पर सरकारें बदल जाती हैं ।’

‘ वह तो ठीक है किंतु इनके बच्चे भी अंग्रेजी पढ़कर बाबू बनने लगेंगे तो घर का काम कौन करेगा...? हमारे यहाँ तो किसी को भी स्वयं एक गिलास पानी पीने की भी आदत नहीं है । ’

‘ तुम्हारी मानसिकता भी अंग्रेजों जैसी हो गई है ! अंग्रेजों ने हम भारतीयों पर अंग्रेजी इसलिये थोपी थी कि हम ज्यादा पढ़ लिख न सकें, उनके गुलाम बनकर उम्र भर उनकी सेवा करते रहें । हम भी अगर ऐसा सोचते हैं तो उन्होंने क्या गलत किया ? शायद इसीलिये हमारे संविधान निर्माताओं को देश के गरीब एवं पिछड़े लोगों के लिये आरक्षण की नीति अपनानी पड़ी थी .. जो राजनीतिक दुराग्रह के कारण समाज के लिए कोढ़ बन गई है जिसके कारण धर्म और जाति के नाम पर आज समाज कई गुटों में बंट गया है । ’ कहते हुये अनिकेत का स्वर बोझिल हो गया था ।

‘ आप ठीक ही कह रहे हैं, मैं ही गलत थी । सभी को समान अधिकार एवं सुविधायें मिलनी चाहिए । प्रत्येक व्यक्ति को अपना काम स्वयं करने की आदत डालनी चाहिये तभी समाज का उत्थान एवं सुधार संभव है । प्रतिभायें किसी जाति एवं धर्म विशेष की बपौती नहीं होती, सुअवसर प्राप्त कर वे दलदल में खिले कमल के सदृश चतुर्दिक दिशाओं को अपनी सुगंध से सुवासित करने की क्षमता रखती हैं एवं सही अर्थों में मानव कहलाने की अधिकारी होती हैं । '

' अरे, तुम भाषण कब से देने लगीं ?' अनिकेत ने मुस्कराकर कहा ।

आपकी संगत का असर है । उचित अवसर पाकर गूलर भी गुलाब बन जाता है । ' नीला ने नहले पर दहला मरते हुए कहा ।

इसके साथ ही नीला के मन में पैठी ऊँच-नीच, जाति-पांति एवं ईर्ष्या का घना कोेहरा छँटने लगा था...।

सुधा आदेश