Do balti pani - 16 in Hindi Comedy stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | दो बाल्टी पानी - 16

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दो बाल्टी पानी - 16


ठकुराइन ने मिश्राइन के घर का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, "अरे मिश्राइन… खोलो ठकुराइन बोल रहे हैं, नंदू जो अभी जाकर बिस्तर पर सही से लेट भी नहीं पाया था, वह न चाहते हुए भी दरवाजा खोलने उठकर आया, मिश्राजी ऊपर छत पर चारपाई डालकर खर्राटे लगा रहे थे, नंदू दरवाजा खोलते ही बोला," कुंडी लगा देना ताई जी" और नंदू जाकर लेट गया | मिश्राइन लेटी थी, ठकुराइन को देखा तो उठ कर बैठ गई और बोली, "आओ जीजी.. कहो कैसी हो? इत्ती रात को फुर्सत मिली"?
ठकुराइन आवाज को दबाते हुए बोलीं, "अरे मिश्राइन हमारी छोड़ो, तुम बताओ कैसी हो? सुबह से एक मिनट की फुर्सत नहीं मिली जो तुम्हारे पास आते लेकिन राम ही जाने हम सुबह से कितना परेसान थे तुम्हारे लिए, तुम्हें सही सलामत देखकर जी को ऐसी ठंडक पड़ी है, जैसे किसी ने प्यासे को ठंडाई पिला दी हो" |
ठकुराइन अपने बनावटी आंसू साड़ी के पल्लू में पोछते हुए दुबारा बोलीं," वैसे मिश्राइन हुआ का था??? सुना है सड़क के उस पार वाले नल पर चुड़ैल आ धमकी है, तुम्हारी बाल्टी में चुड़ैल के बाल निकले और चुड़ैल ने तुम्हारी बाल्टी भी फेंक दी, हाय राम घोर कलजुग है, अब तो गांव पर संकट आने वाला है" |

मिसराइन ने धीरे से कहा मानो दीवारें उनकी बात सुन लेंगी, " संकट आने वाला नहीं है जीजी… आ चुका है… वरना तुम्हीं सोचो खून की प्यासी चुड़ैलों को अब कहीं जगह ना मिली तो नल पर डेरा जमा बैठी, अरे जो भी गलती से पानी भरने जाए वो तो समझो गया…. "|


ठकुराइन की धड़कनें उफनते नाले सी बह चली, डर से उनका पेट तक गुडगुडआने लगा, उन्होंने मिश्राइन से दो बातें की और चलते बनी |

मिश्राइन ने नंदू को कई आवाजें लगाई पर नंदू टांगे फैलाकर सोता रहा तो मिश्राइन ने उठकर दरवाजे की सिटकनी लगाई |

ठकुराइन राम का नाम लेते हुए मिश्राइन के घर से निकली और जोर-जोर कदम बढ़ा कर चलने लगी, मन ही मन में ठकुराइन बोली, "ना जाने ये हरामी बिजली वाले बिजली कब देंगे, कब पानी आएगा, मुए मरें, इनके मुंह में कीड़े पड़े, इतना घना अंधेरा है खुद के पैर नहीं दिख रहे हैं" | ठकुराइन अभी कुछ कदम ही चली थी कि उन्हें पायलों की छन-छन सुनाई दी, छन…. छन…, ठकुराइन का सिर चकराने लगा और आंखें शतरंज की गोटियां जैसी इधर-उधर चारों ओर घूमने लगी पर अंधेरे के सिवाय कुछ नहीं दिखा |

पायलों की आवाज फिर आई… इस बार छन… छ… की आवाज के साथ एक और आवाज आई, जैसे उन्हें किसी ने पुकारा… "ठकुराइन…." |

ठकुराइन समझ गई कि नल वाली चुड़ैल मिश्राइन के ऊपर से उन पर आ मंडराई है, वो हांथ जोड़कर बोली, "अरे मुझे छोड़ दो बहन…. मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, अरे मैं तो नल पर पानी भरने भी नहीं जाती हूं, तुम आराम से नल में रहो… जब तक मर्जी आए तब तक रहो… पर मुझे छोड़ दो, अरे अपनी बड़ी बहन समझकर ही छोड़ दो" | इतना कहकर ठकुराइन ने फिर अपने कदम बढ़ाए ही थे कि किसी ने उनका हाथ पकड़ा और ठकुराइन की चीख गूंज उठी |

सब अपने-अपने घर में चीख को सुनकर घबरा गए थे पर मजाल था कि अपने किवाड़ खोल कर देख लेते, चुड़ैल का खौफ सबको खाय जा रहा था तो कुछ खर्राटे भरते हुए सो रहे थे, उधर ठाकुर साहब ने घर आकर स्वीटी से कहा, "रे बिटिया… तुम्हारी अम्मा कहां है"?
स्वीटी ने नींद में जबाव दिया, "अम्मा भाग गई है…" | ठाकुर साहब यह सुनकर हंसते हुए बोले, "अरे बिटिया… नींद में पगलाई हो, अरे कौन भगाएगा हथिनी को, अरे उसे भगाकर ले जाने के लिए तो ट्रैक्टर लाना पड़ेगा.. चल तू सो जा… आ जाएगी मिश्राइन के घर गई होगी | यह कहकर ठाकुर साहब भी चारपाई पर लोट गए |

आगे की कहानी अगले भाग में....