यूँ ही राह चलते चलते
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सुमित ने सबको वहाँ से आगे चलने के लिये कहा, अगला पड़ाव था ट्रेवी फाउन्टेन । दुकानों से सजी एक गली को पार करके सब ट्रेवी फाउन्टेन पहुँचे, व हाँ पहुँच कर सचिन, निमिषा, संजना और ऋषभ सभी अति उत्साहित थे। यह जगह टाइबर नदी से लगभग 20 मीटर दूर बनी है तथा एक्वा डक्ट के द्वारा इस फव्वारे तक पानी आता है । रजत ने बताया कि इसे पोप क्लीमेंट ग्यारह ने निकोल साल्वी से बनवाना प्रारम्भ किया था और पेट्रो ब्रेसाई और बुइसेप पानिनी ने इसे पूरा किया था । 1730 से प्रारम्भ हो कर यह 1762 में बन कर तैयार हो पाया। इस जगह से तीन रास्ते जाते हैं अतः इसका नाम ट्रेवी रखा गया । यहाँ यात्रियों की भीड़ लगी थी ।यह रोमन ट्रायम्फल आर्च से प्रेरित है।इसमें मध्य में सागर के देवता नेपच्यून खड़े हैं और उनके दोनो ओर, ट्रीटान है जो एक ओर उद्दंड समुद्री घोड़े और दूसरी ओर शान्त समुद्री घोडे़ को नियंत्रित करके समुद्र के विभिन्न मूड दिखा रहा है और उसके पैर के नीचे से चट्टानों से पानी निकल रहा था और पानी में ढेर सारे सिक्के तैर रहे थे क्योंकि यात्रियों में सिक्के फेंकने की होड़ सी लगी थी ।
सुमित ने एक रोचक बात बतायी कि यहाँ की मान्यता है कि यदि फव्वारे की ओर पीठ करके खड़े हो जायें और पीछे पानी में एक सिक्का फेंकें तो वापस दोबारा रोम आने का अवसर मिलता है यदि दो सिक्के फेंकें तो गर्ल फ्रेंड मिलती है तीन सिक्के फेंकने पर तलाक हो जाता है और चार सिक्के फेंकने का अर्थ है धन की बरबादी।
यह सुन कर आपस में सुगबुगाहट शुरु हो गई।निमिषा बोली ’’ वाह क्या डील है
एक सिक्का फेंको और रोम की सैर दोबारा, लाओ सचिन एक सिक्का दो‘‘।
’’ एक सिक्का तो दे दूँगा पर दोबारा आने का बाकी खर्चा कौन उठाएगा? हमसे तो उम्मीद करना नहीं।‘‘
निमिषा रूठ गई ’’ जाओ मत दो सिक्का कंजूस।‘‘
ऋषभ ने छेड़ा ’’ अरे फेंकना ही है तो दो सिक्के फेंकेा तो गर्ल फ्रेंड मिलेगा, एक में तो बेकार का खर्चा होगा और वही जगह दोबारा देखने में क्या मजा?‘‘
’’हाँ तो पहले तीन सिक्के फिंकवाओ न जिसमें तलाक हो जाये तब गर्ल फ्रेंड ढूँढना‘‘ निमिषा ने तुनक कर कहा ।
’’ अरे क्यों उसका मूड खराब कर रहे हो, ‘‘संजना ने ऋषभ को डपटा।
सचिन ने कान पकड़ कर कहा ’’ सारी‘‘ और एक सिक्का निमिषा के आगे कर दिया। निमिषा ने सिक्का ले कर अहसान दिखाते हुये ’’ चलो माफ किया ।‘‘
इनकी नोक-झोंक तो चल ही रही थी पर वहाँ कोई भी ऐसा नही था जिसने सिक्का न फेंका हो।
रजत तो वैसे भी पुरानी फिल्मों के शौकीन हैं या यह कह लें कि उन फिल्मों के बारे में उन्हें इतना ज्ञान है कि यदि वो लिखने का शौक रखते तो कई पुस्तकें लिख चुके होते। उन्होंने ही बताया कि संगम फिल्म में वैजयंती माला के द्वारा सिक्का फेंकने का सीन है ।
सबको सिक्का फेंकते देख अनुभा ने भी रजत को छेड़ते हुये पूछा ’’आप का क्या इरादा है एक सिक्का फेंक रहे हैं कि दो ? ‘‘
रजत ने भी तुर्की बतुर्की जवाब दिया ’’मन तो दो फेंकने का है, पर तुम्हारे रहते एक ही से काम चलाना पड़ेगा । ‘‘
तभी अनुभा की नजर यशील पर पड़ी अर्चिता उसे दो सिक्के दे कर कह रही थी ’’ यशील तुम फेंको देखें तुमको गर्ल फ्रेंड मिलती है कि नहीं । ‘‘
तब तक वान्या भी वहाँ आ चुकी थी वह कहाँ छोड़ने वाली थी उसने तुरंत कहा ’’ गर्ल फ्रेंड तो बहुत मिलेंगी पर सवाल तो यह है कि उसके मन पसंद है कि नहीं । ‘‘
’’इतनी समझ उसे है कि किसको फ्रेंड बनाये किसे नहीं ‘‘अर्चिता ने यह कह कर यशील को देखा उसके देखने में पूर्ण विश्वास और आशा झलक रही थी, कि भले यशील मुँह से कुछ न कहे पर हाव भाव से स्पष्ट कर ही देगा कि वह अर्चिता को पसंद करता है । पर यशील उसके विश्वास को काँच में धुंध की तरह जमा कर न जाने किधर विलुप्त हो गया।
वान्या को अर्चिता की चुनौती फाँस सी चुभ गई थी उसने अर्चिता को चुनौती देते हुए कहा ’’ कुछ दिनों में पता ही चल जाएगा कि यशील ने सिक्का किसके लिये फेंका था। ‘‘
अर्चिता को निमिषा की कही बात याद आ गयी जब उसने उसे सावधान करने के उद्देश्य से कहा था ‘‘अर्चिता तुम कहाँ इसके चक्कर में पड़ी हो, एक तरफ यह तुमसे दोस्ती बढ़ा रहा है दूसरी तरफ वान्या से भी दोस्ती कर रहा है।’’
उस समय अर्चिता को निमिषा का यह उपदेश नीम के समान कड़ुवा लगा था, उसने कहा था ‘‘वह वान्या से बोलता है पर उसके मन में साफ्ट कार्नर किसके लिये है यह आप को तो पता नहीं है। ’’
निमिषा ने कहा ‘‘ समझाना मेरा काम बाकी तुम जानों । ’’
अर्चिता ने निमिषा की सलाह को तो एक सिरे से नकार दिया था पर उसकी आत्मविश्वास की जड़ में दही की छींटें अवश्य पड़ गयी थीं। जब मन में किसी के प्रति कोमल भावनाओं का अंकुरण हो जाए तो मन इतना भीरु हो जाता है कि हल्का सा हवा का झोंका भी उसे थरथरा देता है।
अर्चिता के चेहरे से व्यग्रता स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी यशील को ढूँढ रही थी। यशील दिखा तो वह बोली ‘‘मैं आपको ही ढूँढ रही थी ।’’
’’ क्यों कुछ काम था क्या ?‘‘
अर्चिता कहना तो चाहती थी कि तुम एक बार वान्या के सामने कह दो कि तुम मुझे ही पसंद करते हो पर संकोच वश कह न पाई । उसने कई बार यशील की आँखों में अपने लिये आकर्षण देखा है, अपरोक्ष रूप से वह अपने भाव यदा-कदा प्रकट भी करता है पर फिर भी पता नहीं क्यों जब वान्या उसके पीछे पड़ती है तो वान्या को उपेक्षित भी नहीं करता। अर्चिता का मन किया कि वह कह दे कि तुम वान्या को पास आने से रोकते क्यों नहीं हो, पर यशील उसे कितना ओछा समझेगा यही सोच कर वह चुप रह जाती।
यशील ने उसके सामने अपना हाथ हिलाया तो अवने विचारों से चैांक कर उसने यही कहा ’’ नहीं बस ऐसे ही ।‘‘
अर्चिता दिन पर दिन यशील के लिये पसेसिव होती जा रही थी ।वह प्रायः अपने मन को समझाती कि वान्या पीछे पड़ी ही रहती है तो यशील सामान्य शिष्टाचार के नाते ही बोलता है पर उसकी आँखे कहती है कि वह अर्चिता को ही चाहता है। यशील की आसक्त दृष्टि के स्मरण ने उसके उद्वेलित मन पर ठंडी फुहार का छिड़काव किया । उसने अपने मन में सिर उठा रहे संशय के सर्प को कुचला और एक बार पुनः आशा की डोर थामें उत्साह से उठी तभी यशील ने उसे आवाज दी ’’ कम आन अर्चिता हम लोग पिक्स ले रहे हैं तुम भी आओ‘‘ उसने देखा वान्या यशील से सटी खड़ी है। उसके उत्साह की लौ झप्प से बुझ गई, वह बेमन से उनके साथ खड़ी हो गई।उसने तिरछी दृष्टि से देखा वान्या के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। अर्चिता की आँखों में आँसू आ गये, पर वह वान्या के समक्ष दुर्बल नहीं पड़ना चाहती थी अतः मुँह फेर कर वहाँ से हट गयी।यशील उसे जाते देख कर उसके पास आ कर बोला ‘‘ तुम चली क्यों आयी क्या हुआ? ’’
‘‘ कुछ नहीं ’’
‘‘ कुछ तो है.....मैं समझ गया मैं ने वान्या के साथ फोटो खिंचवा ली तो तुम्हें बुरा लग गया ’’
‘‘मैं क्यों नाराज होऊँगी मेरा तुम पर क्या अधिकार है ।’’
‘‘ कम आन यार क्या अच्छे खासे मूड को बिगाड़ रही हो ’’यशील ने कहा ।
यह आरोप सुन कर अर्चिता के आँसुओं का बाँध टूट गया वह फफक फफक कर रो पड़ी। यशील घबरा गया। ‘‘
उसने कान पकड़ते हुए कहा ‘‘अरे बाबा लो मैं कान पकड़ता हूँ कभी किसी के साथ फोटो नहीं खिंचवाऊँगा।’’
यशील के हाथ उसके कानों से हटाते हुए अर्चिता ने कहा ‘‘ मैं ऐसा नहीं चाहती हूँ ।’’
‘‘ फिर आप क्या चाहती हैं मैडम ?’’
अर्चिता कहना चाहती थी कि वह उसे आश्वासन दे दे कि वह बस अर्चिता को ही चाहता है उसके बाद चाहे जिसके साथ फोटों खिंचवा ले, इतनी संकीर्ण वह भी नहीं है। पर चाह कर भी वह मन की बात कह नहीं पायी और अपने आँसू पोंछ कर सामान्य होने का प्रयास करने लगी। उसने सोच लिया था कि वह इससे पहले कि देर हो जाय अपने मन की बात यशील को अवश्य बता देगी ।
जितनी रोचक यहाँ के बारे में किवदंती प्रचलित थी उतनी ही रोचक यहाँ की यात्रा भी रही । अनुभा ने सुमित से कहा ’’ यह तो अच्छा तरीका है पैसे कमाने का और यात्रियों को बेवकूफ बनाने का । बाद में यह पैसा आसपास के लोग उठा लेते होंगे ।‘‘
’’हाँ है तो पैसा एकत्र करने का ही तरीका पर रोज यह धन एकत्र करके जरूरत मंदो को दान दिया जाता है ‘‘सुमित ने बताया । यह सुन कर अच्छा लगा और अनुभा का मन भी सिक्का फेंकने का हो गया ।
वह सिक्का फेंक ही रही थी कि उसने देखा संजना और निमिषा एक ओर संकेत करके आपस में खुसर-पुसर कर के हँस रही हैं उसने उनके संकेत की दिशा में दृष्टि उठाई तो अनुभा का चेहरा लज्जा से आरक्त हो उठा वहाँ एक शो विन्डो में नग्न स्त्री और पुरुष की मूर्ति रखी थी। इससे पूर्व कि उसे कोई देखते हुये देखे, उसने तुरंत अपनी दृष्टि हटा ली। जबकि वहाँ आये पर्यटकों को उसने उस ओर सामान्य रूप से देखते पाया। यह हमारे संस्कार और सोच ही तो हैं जो हम ऐसा देखने में भी अपराध बोध से ग्रस्त हो जाते हैं जबकि पाश्चात्य सभ्यता में पले बढ़े लोगों के लिये यह एक सामान्य सी बात है, अनुभा ने सोचा।
उसके बाद सब ट्रेवी फाउन्टेन के पास बनी दुकानों में तितर-बितर हो कर छोटी मोटी खरीदारी में लग गये । इटली आयें और यहाँ का पिज्जा न खायें यह कैसे हो सकता था । अनुभा और रजत एक दुकान में गये और कहा‘‘ हमें वेज पिज्जा चाहिये।’’
दुकानदार ने हँस कर बताया ‘‘यहाँ सब वेज पिज्जा ही है हम लोग प्रकृति के संरक्षण को बढ़ावा देते हैं । ’’
बहरहाल उसने ओवन में गर्म करके पिज्जा दिया तो उसे खा कर उन्हें आनन्द ही आ गया । अभी वो पिज्जा खा ही रहे थे कि रजत पिसटैचियो आइसक्रीम ले आये । आइसक्रीम अनुभा की कमजोरी है यह उन्हें भी पता है। अनुभा ने खुश हो कर कहा ’’ थैंक्स‘‘।
यह देख कर निमिषा रुठ गई‘‘ अंकल ये क्या केवल आंटी के लिये ।‘‘
तो संजना कहाँ चुप रहने वाली थी उसने कहा ’’ अंकल हम भी है ।‘‘
फिर तो रजत फँस ही गये । अपना इंडिया होता तो यह कोई बड़ी बात नहीं थी पर वहाँ की मुद्रा यूरो में आइसक्रीम खिलाना काफी महँगा था पर रजत छोटों के साथ जितना जल्दी आत्मीय हो जाते हैं उतना ही उनका ध्यान भी रखते हैं ।
सब लोग आइसक्रीम खा ही रहे थे कि यशील और चंदन भी आ गये ।चंदन कह रहा था ’’ हमने तो तुम्हारे साथ तो आ कर गलती की, तेरे सामने मुझे कोई लड़की लिफ्ट ही नहीं देती ।’’
अनुभा ने चंदन की ओर देखा सच ही है वह कोई बुरा नहीं पर यशील तो अलग ही लगता है ऊपर से इतनी अच्छी नौकरी, स्वाभाविक है किसी रेखा के आगे बड़ी रेखा खिंच जाये तो वह तो खुद ही छोटी हो जाएगी ।
यशील ने कहा ’ ’ अरे यार तेरे लिये जान हाजिर है जिसको चाहे ले ले ।‘‘
’’अरे रोज दिलदारी दिखाता है ले ले, लेले ।क्या ले कोई सामान है जो ले लूँ मुझसे कोई इंप्रेस हो तब तो ।‘‘
यशील आत्म विभोर सा हँस पड़ा चंदन भी रूठने का नाटक करते-करते हँस पड़ा।
क्रमशः--------
अलका प्रमोद
pandeyalka@rediffmail.com