The Author रनजीत कुमार तिवारी Follow Current Read जरूरत By रनजीत कुमार तिवारी Hindi Short Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books स्वयंवधू - 27 सुहासिनी चुपके से नीचे चली गई। हवा की तरह चलने का गुण विरासत... ग्रीन मेन “शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल... नफ़रत-ए-इश्क - 7 अग्निहोत्री हाउसविराट तूफान की तेजी से गाड़ी ड्राइव कर 30 मि... स्मृतियों का सत्य किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे... मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share जरूरत (6) 2.1k 5k नमस्कार दोस्तों मैं रनजीत आपके लिए एक नयी कहानी लेकर आया हूं। मुझे विश्वास है आपको मेरी कहानी अच्छी लगेगी और कोई त्रुटी हो तो माफ़ करिएगा।अब कहानी पर आते हैं।एक परिवार में कितने सदस्य होते हैं। पति-पत्नी,मां बाप, बच्चे यही हम जानते हैं। लेकिन सच तो यह भी और ऐसा होना भी चाहिए। जहां आप रहते हैं और जितने लोग वहां रहते हैं। सबको अपना परिवार समझा जाए।पर अफसोस है आज के समय में ऐसा नहीं है।आज घर परिवार में ही सब लोग दुर हो गये है।इसका जो भी कारण हो लेकिन सच्चाई है।एक लड़का था जिसका नाम चिंतामणि गोस्वामी था।वह बहुत सुन्दर मिलनसार और मृदु भाषी था। उसको सब लोग पसंद करते थे।घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण कई बार उसे और उसके परिवार को भुखे रहना पड़ता था। चिंतामणि बहुत दुखी होता पर क्या करें समझ नहीं आ रहा था। मां बाप का एक ही लड़का था और तिन बहने जो उससे छोटी थी। चिंतामणि के पिता अब बुढ़े हो चुके थे। अपनी पढ़ाई बहनों की शादी और भी बहुत सारी जिम्मेदारी चिंतामणि को सता रही थी। उसने फैसला किया अब मुझे काम करना पड़ेगा। वह अपने आस पास काम तलासने लगा। बहुत ढुढने के बाद उसे एक दुकान में काम मिला वह मन लगाकर काम करने लगा।अब उसे खाने पीने की दिक्कत नहीं होती। उसने पढ़ाई छोड़ दी वह दुकान में काम करता ।और अपने घर के काम में हाथ बटाता । लेकिन चिंतामणि की परेशानी यही खत्म नहीं हुई थी। बहनों की शादी और दहेज की चिंता उसे खोखला करती जा रही थी। चिंतामणि का स्वभाव इतना सरल था उसने किसी व्यक्ति को तकलीफ़ नहीं दिया था कभी ।और नहीं किसी को महसूस होने देता मैं तकलीफ में हूं।एक बार वह शहर किसी काम से जा रहा था।उसे एक बृध व्यक्ति दिखा जो रोड पर गिरा पड़ा था। बहुत सारे लोग आ जा रहे थे। लेकिन किसी ने उस बुजुर्ग व्यक्ति पर ध्यान नहीं दिया।वह काफी बुजुर्ग व्यक्ति थे करिब 85-90 साल के होंगे। चिंतामणि उस बुजुर्ग के पास गया और उनसे बोला बाबा। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया चिंतामणि के कयी बार बोलने के बाद भी। वह जबाब नहीं दे पा रहें थे। चिंतामणि उनको उठाकर पास के एक अस्पताल में भर्ती कराया कुछ समय बाद जब उनको होस आया उनसे पुछा आप कहां रहते हैं। उन्होंने अपनी सारी कहानी सुनाई उस बुजुर्ग का कोई भी नहीं था।और पत्नी भी बहुत साल पहले ही चल बसी थी। चिंतामणि बहुत दुखी हुआ और उनको अपने साथ घर लेकर आया ।और अपने घर पर उनको रहनेके लिए बोला कुछ दिनों बाद ही वह भी चल बसे लेकिन जाते जाते उन्होंने चिंतामणि की जिंदगी ही बदल दी।वह व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि एक हिरे के बड़े व्यापारी थे।और जाते जाते भी उन्होंने एक अनमोल हिरे का व्यापार किया। अपनी जिंदगी की सारी कमाई का वसियत चिंतामणि के नाम कर दिया।इस तरह चिंतामणि की जरूरत पुरी होगी उसने कभी सोचा या उम्मीद नहीं किया होगा। दोस्तों आपको मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरूर बताएं। धन्यवाद Download Our App