shoukilal ji ka scooter prem - 1 in Hindi Comedy stories by Krishna manu books and stories PDF | शौकीलाल जी का स्कूटर प्रेम - भाग 1

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शौकीलाल जी का स्कूटर प्रेम - भाग 1





आज जहाँ लोग-बाग बुलेट ट्रेन पर सफर करने का सपना लिये फिरते हैं। हवाई जहाज पर सफ़र करने का ख़्वाब देखते हैं । अब तो रॉकेट-यात्रा की बात भी की जाने लगी है । वहां ये, हमारे शौकीलाल जी, दिन-रात सोते-बैठते केवल स्कूटर की सवारी की चिंता में डूबे रहते हैं.

बेचारे करते भी क्या, एकमात्र आशा थी कि शादी में ससुर जी नया न सही, सेकेंड हैण्ड स्कूटर दहेज़ में देंगे लेकिन उन्होंने भी एन वक्त पर ठेंगा दिखा दिया. नकचढ़ी बेटी दे दी और चुप लगा गए. घर की माली हालत ऐसी नहीं थी कि खुद से खरीद पाते. सो बेचारे चुप होकर बैठ गए देख दिनन के फेर. आजतक बेचारे बैठे हैं. न नीके दिन आये, न बात बनी.

किस्मत को कोसते हुए जब भी शौकीलाल जी पांव पैदल सड़क नाप रहे होते हैं और बगल से भर्र-भर्र करता हुआ कोई स्कूटर गुजर जाता है. तब वे बड़ी हसरत से दूर जाते स्कूटर को देखते रहते हैं. उनके मुंह से आह निकल जाती है-“ काश, मैं भी स्कूटर की सवारी कर पाता.” बगल से गुजरता हुआ स्कूटर देखकर उन्हें लगता स्कूटर सड़क को नहीं बल्कि उनके दिल को रौंदते हुए गुजर रहा है.

स्कूटर पर नहीं चढ़ने का दुःख ऐसा दुःख था जिसे न बताया जा सकता था, न छुपाया जा सकता था. बताये न बने, छुपाये भी न बने. शौकीलाल जी की छवि दोस्तों के बीच ऐसी बन चुकी थी कि शौकीलाल जी रोने भी लगते तो यार-दोस्त यही समझते, देखो, शौकीलाल जी पर अब रोने का शौक चढ़ा है. इसीलिए बेचारे मन की व्यथा मन में ही रख रहे थे. रहिमन मन की व्यथा, मन ही राखो गोय.
उस दिन शौकीलाल जी खोये-खोये से शिथिल कदमों से सड़क पर चले जा रहे थे. संयोग से उसी समय मैं भी उधर से गुजर रहा था. शौकीलाल जी पर नजर पड़ी तो नजदीक जाकर मैंने अपना स्कूटर रोक कर हार्न बजाया. वे चौंक उठे. देखकर हौले से मुस्कराए. मैंने स्कूटर पर बैठने का इशारा किया. वे बैठ गए. स्कूटर पर बैठते ही शौकीलाल जी खिल उठे. जैसे किसी रोते हुए बच्चे को लालीपॉप थमा दिया गया हो. मैंने गौर किया, आज शौकीलाल जी की नजर मुझसे ज्यादा स्कूटर पर ही टिकी थी. मुझे लगा , उनकी अभिरुचि मुझमें कम, स्कूटर में ज्यादा है.

एक चाय की दुकान पर मैंने स्कूटर रोक दिया.

-“आइये, शौकीलाल जी, चाय पीते हैं. कई दिन हो गये आप से मिले. दिखाई नहीं दिए इधर. कहीं बाहर गए थे क्या?”
- “ यहीं था, कहाँ जाऊंगा भाई? मेरे पास तो स्कूटर है नहीं कि किक लगाओ और उड़नछू हो जाओ.”
तबतक चाय आ गयी थी. हम चाय का सिप लेने लगे. मैं देख रहा था, चाय पीते हुए भी शौकीलाल जी की नजर स्कूटर से हट नहीं रही थी. गौर से शौकीलाल जी की आँखों में झाकने के बाद मुझे लगा, उनकी आँखों में स्कूटर के प्रति वैसी ही लालसा है जैसी पार्लियामेंट-भवन को देखकर एक नेता की होती है.
हमारी चाय ख़तम हो गयी थी फिर भी हम बेंच पर जमे रहे. कुछ देर बाद मैंने थोडा हिचकिचाते हुए पूछा- “ शौकीलाल जी, स्कूटर खरीदने का विचार है क्या?”
शौकीलाल जी के चेहरे पर घनी उदासी छा गयी. वे बोले-“ मजाक मत करो भाई, भला मैं कहाँ से उतने पैसे जुगाड़ करूँगा जिससे स्कूटर खरीद सकूँ.”

-“ नहीं, मेरा मतलब है कि अगर कभी खरीदने का संयोग बने तो स्कूटर नहीं खरीदिएगा. एक से एक बाइक बाजार में आ गयी है.”
बाइक का नाम आते ही शौकीलाल जी भड़क गए. बोलने लगे-“ कहाँ मुझे स्कूटर की सवारी का शौक है. तुम कहाँ ऊंट की सवारी की बात कर दी. मैं तो स्कूटर के सिवा कुछ सोचता ही नहीं. कोई कार-वार भी मुफ्त में दे तो मैं इंकार कर दूँ. स्कूटर की बात ही कुछ और है.” उन्होंने फिर प्यार भरी नजर स्कूटर पर फेंकी .

मैं समझ गया, शौकीलाल जी स्कूटर-प्रेम का दीवाना हो गए हैं. उनका यह नया शौक उनपर कितना भारी पड़ेगा, शायद इस तरफ से वे अनजन हैं. मैंने कहा-“ शौकीलाल जी, आप को मालूम है आजकल पेट्रोल का दाम क्या है? ७०-८० रुपये लीटर . दाम बढ़ने के रफ़्तार से लगता है जल्दी ही १०० से ऊपर चला जायेगा. मान लीजिये आप के पास स्कूटर आ भी जायेगा तो पेट्रोल कहाँ से आयेगा? बताइए.”

-“ अरे भाई, गाय आ जायेगी तो रस्सी भी आ जाएगी. “ वे कुछ-कुछ नारुष्ट-से हो चले थे. मैं उन्हें नारुष्ट नहीं करना चाहता था इसलिए उनके मनोनुकूल बात करने लगा.
-“आप को स्कूटर चलाने आता है?” मैंने पूछा. मैंने तो उन्हें कभी सायकिल का हैंडल भी पकड़ते हुए नहीं देखा था. “ स्कूटर चलाने का शौक है तो चलाना भी आना चाहिए न .”
उनकी चुप्पी देख मैंने कहा-“ देखिये, यहाँ गाय के साथ रस्सी आ जाने की बात नहीं कहिएगा. स्कूटर के साथ आप को चलाना भी आ जाएगा, ऐसा नहीं है. चलाने के लिए सीखना पड़ेगा.” कहकर मैंने उनके चहरे पर नजर डाली. वे गंभीर थे.
उन्होंने लम्बी सांस ली-“ मुझे कौन सिखाएगा?”

-“ मैं सिखाऊंगा आप को. आप तैयार तो हो जाइये.” मैं तंग आ गया था अपने पुराने स्कूटर से. किसी के मथ्थे मढ़ना चाह रहा था. शौकीलाल जी के शौक देखकर सोचा, औने-पौने दाम में देकर इस खटारे से पीछा छुड़ाने का ऐसा मौका फिर मिलाने से रहा.

मेरे प्रस्ताव पर शौकीलाल जी मुस्कुरा उठे. उदासी के बादल पलमात्र में छट गए. उन्होंने अविश्वास से देखा. मैंने उन्हें आश्वस्त किया-“ हाँ शौकीलाल जी, मैं आप को स्कूटर चलाने में पारंगद कर दूंगा. फिर आप स्कूटर को भी कार की रफ़्तार से चला सकेंगे.

-“ वो तो ठीक है लेकिन सिखने के बाद मैं स्कूटर लूँगा कहाँ से?”

मेरे मन की मुराद पूरी हो रही थी. झट बोल पड़ा-“ मैं हूँ न शौकीलाल जी, आप चिंता छोडिये , बस सिखना शुरू कीजिए.”



दूसरे ही दिन से प्रशिक्षण की शुरुआत हो गयी. दो कोलनियों के बीच की खाली जगह को प्रशिक्षण स्थल के तौर पर उपयोग करने में कोई परेशानी नहीं हुई. शाम को भले ही बच्चों का हुडदंग मचा रहता था.लेकिन दिन में खाली ही रहता था. फिल्ड बड़ा तो नहीं पर छोटा भी नहीं था. एक तरफ सड़क और दूसरी तरफ नाला था. स्कूटर चलाना सिखाने के लिए पर्याप्त जगह थी.

जब लगन हो तो कुछ भी आप सीख सकते हैं. कभी सायकल को हाथ भी नहीं लगानेवाले शौकीलाल जी पहले ही दिन से शुरू हो गए. कलच, ब्रेक, गियर को समझने में थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन उनका उपयोग जानने के बाद तो उन्होंने रफ़्तार पकड़ ली. दो-तीन दिनों बाद वे बेझिझक फिल्ड के चक्कर पर चक्कर लगाने लगे.मैं पीछे बैठकर केवल उन्हें गार्ड करता था. रोकने से भी वे नहीं रुकते थे. पगहा मुक्त बछड़े की तरह कुलांचे भरने लगते. उन्हें बलात रोकना पड़ता. आखिर पेट्रोल का भी सवाल था. स्कूटर उन्हें थोपना था इसलिए पेट्रोल भरवाने के लिए उन्हें कभी नहीं कहा.

बाजार जाते समय मैंने कहा- “ शौकीलाल जी, आप का यह शौक भी पूर्ण हुआ. बस एक दिन और. फिर तो निपुण होने का प्रमाणपत्र मैं दे दूंगा आप को.” आगे मन ही मन कहा- “ और यह खटारा भी. ताकि मैं पीछा छुड़ा सकूँ इससे.”

शौकीलाल जी भावविभोर हो उठे- “आप का एहसान नहीं भूलूंगा भाई. जीवनभर नहीं भूलूंगा.”

मैं मन ही मन बोला- “ भूलना चाहेंगे भी तो मेरा यह बात-बात पर रूठनेवाला और बिगडैल घोड़े की तरह टांग उठा देनेवाला स्कूटर आप को भुलने नहीं देगा.” मैं प्रकट में आगे बोला- “ अरे नहीं शौकीलाल जी, एहसान-उहसान की कोई बात नहीं. आप और मैं वर्षों एकसाथ रहे हैं. इतना तो फ़र्ज़ बनता है मेरा. फिर समय भी था मेरे पास. दिन को खाली था. रात की शिफ्ट थी मेरी. कल के बाद मैं चाहकर भी समय नहीं दे पाउँगा. अब तो आप को जरुरत भी नहीं. आप रहेंगे, स्कूटर रहेगा और सड़क रहेगी. मजा लीजिए फिर.”

“ क्या मजाक कर रहे हो यार ! मैं रहूँगा, सड़क भी रहेगी. लेकिन स्कूटर कहाँ रहेगा ?”

“ रहेगा..रहेगा, स्कूटर भी रहेगा शौकीलाल जी. मैं हूँ न. यह स्कूटर अब आप के पास रहेगा.” मैंने स्कूटर की बॉडी थपथपाकर कहा.
सुनते ही शौकीलाल जी आंखे चमक उठीं मानो धुआंती आग अचानक शोला बन गयी हो. फिर तुरंत बुझ भी गयी निराशा के पानी से. बोले- “ तुम्हें देने के लिए पैसे कहाँ से लाऊंगा भाई? तुम भी अच्छा मजाक कर लेते हो.”

“ अभी पैसा कौन मांग रहा है शौकीलाल जी, देते रहिएगा सुविधानुसार . चार-पांच किस्तों में चुका दीजियेगा आराम से.”

“ हाँ, यह ठीक रहेगा.” शौकीलाल जी धन्य हो उठे.

दूसरे दिन सवेरे ,बिस्तर छोड़ने के बाद मैं ठीक से अंगड़ाई भी नहीं ले पाया था कि दरवाजे पर थाप लगी. मैं संभलूं कि बीवी ने बड़बड़ाते हुए- कौन आ मरा इतना सवेरे, दरवाजा खोल दिया. सामने शौकीलाल जी खड़े मुस्कुरा रहे थे.

-“ ओह , शौकीलाल जी, आइये..आइये. रात को ठीक से नींद नहीं आई थी क्या आप को? आइये , चाय पीजिये तबतक मैं जरा फ्रेश हो लूँ. फिर चलते हैं.”
शेष भाग 2 में

©कृष्ण मनु
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