Aouraten roti nahi - 7 in Hindi Women Focused by Jayanti Ranganathan books and stories PDF | औरतें रोती नहीं - 7

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औरतें रोती नहीं - 7

औरतें रोती नहीं

जयंती रंगनाथन

Chapter 7

झूठा समंदर

दो दिन पहले रूमा ने जिद की कि वे सप्ताह भर का राशन, पानी, सब्जी वगैरह लाकर रखें फिर तो उन्हें फुर्सत नहीं मिलेगी। श्याम चलने को हुए, तो उनके साथ मन्नू और बच्चे भी तैयार हो गए। अनिरुद्ध और उज्ज्वला को स्कूटर पर आगे खड़ा कर और सहमती सी मन्नू को पीछे बिठाकर वे पहले ओखला सब्जी मंडी गए और वहां से आई.एन.ए. मार्केट आए। कोने पर ही चाट की दुकान लगती थी। मन्नू के आने के बाद पहली बार उन्होंने उसे बाहर ले जाकर चाट खिलाई। अपने जेठ से बचते-बचाते और आंचल संवारते मन्नू ने जैसे ही गोलगप्पा मुंह में रखा, पचाक से पानी छलककर उसकी साड़ी पर आ गिरा। श्याम की नजर पड़ी, तो जेब से अपना रूमाल निकाल दे दिया।

मन्नू के चेहरे पर दिनों बाद उन्होंने हंसी देखी। ढलका आंचल, खिला चेहरा और चेहरे पर लाज और ठिठोली की कशिश। श्याम ने देखा, तो देखते रह गए। कौन है ये शापित कन्या? इतनी आकर्षक, इतनी वांछनीय? मन काबू में नहीं। भावनाएं उछाल भर रही हैं। पलभर को मन्नू से उनकी नजरें मिलीं और श्याम को अपने तमाम प्रश्नों का उत्तर मिल गया।

बच्चे खा-पीकर खुश थे। श्याम ने उस शाम मन्नू को इंडिया गेट दिखाया। इंडिया गेट के लॉन पर पांव सिकोड़कर बैठी मन्नू के करीब बैठ गए श्याम। बदन की खुशबू और सामीप्यता को पूरी तरह अपने अंदर भर लेना चाहते थे। पता नहीं ऐसा फिर कभी कर पाएं भी या नहीं?

उस वक्त अगर जमीन धंस जाती, धड़कनें रुक जातीं, आसमान टूट पड़ता तो भी अफसोस न होता। एक पल में भी तो जीने का आनंद लिया जा सकता है। उसके बाद देह का मिलना क्या जरूरी है?

लेकिन वे पल कुछ समय बाद वहीं बिखरे से रह गए। लौटे तो एक हादसा हो चुका था।

ज्ञान का इस तरह से मरना बहुत समय तक श्याम को मंजूर न हुआ। समय से पहले। कुछ तो वक्त था हाथ में, बहुत टुकड़ों में उन्होंने बात समझने की कोशिश की। घर में रूमा थी अपनी बच्ची के साथ अपने कमरे में बंद। अचानक ज्ञान के सिर में दर्द उठा, लगा दिल की धड़कन ही रुक जाएगी। हथेलियों में पसीना। घबराकर ज्ञान रूमा के कमरे का दरवाजा खटखटाने लगा। अंदर रूमा ने तेज गाना चलाया हुआ था, ऊपर से कूलर की खरखर की आवाज। ज्ञान ने तीन-चार बार कोशिश की, फिर शक्ति चुक गई, तो जमीन पर गिर पड़ा।

जिस समय श्याम बच्चों के साथ लौटे, देर तक घंटी बजाने के बाद ही दरवाजा खुला। रूमा दरवाजे पर अवाक खड़ी थी, ‘‘पता नहीं ज्ञान भाईसाहब को क्या हो गया है? दरवाजे पर गिरे हुए हैं।’’

श्याम लपककर अंदर गए। ज्ञान का शरीर टटोला, गर्म थाी, लेकिन सांस रुक चुकी थी।

उस रात उन्होंने रूमा को खूब लताड़ा। इतना कि खुद पछाड़ खाकर रोने लगे। रूमा को भी अहसास था कि उसकी गैर जिम्मेदारी की ही वजह से ज्ञान की मौत हुई है।

जब श्याम और मन्नू का संबंध बना, रूमा ने एक बार श्याम से कहा भी, ‘‘मेरे अंदर एक बोझ सा है। मैं कभी तुमसे इस बारे में कोई सवाल नहीं करूंगी कि मन्नू से तुम्हारा क्या संबंध है और उसे तुम क्या दे रहे हो? हां, कभी मेरी और बच्चों की कीमत पर तुम उसे कुछ देने की हिम्मत मत करना। अपनी सीमा नहीं लांघोगे, तो मैं भी यह बात दिल में रखूंगी।’’

एक बार मन्नू से शारीरिक संबंध होने के बाद श्याम रूमा से शरीर के स्तर पर कभी नहीं जुड़ पाए। उसने शिकायत भी नहीं की। बस अपने इर्द-गिर्द पंजा कसती चली गई।

सरला कब एक बच्ची से युवती हो गई, पता ही नहीं चला। बीच के दस साल श्याम ने यूं ही गुजार दिए। मन्नू के साथ, उसका घर बनाने में, उसका साथ निबाहने में। जिस मन्नू को देख उनका दिल पिघला था, वह उनके नजदीक आते ही और भी मोहिनी बन गई। वह कहती श्याम राम हैं और वो अहिल्या। श्याम ने जो छुआ, तो वह जीवित हो उठी।

मन्नू की जिंदगी श्याम से ही शुरू होती थी और उन्हें पर खत्म। मायका न के बराबर। ससुराल से तो कब का नाता टूट गया। श्याम का साथ सम्मानजनक ओट था जीने के लिए।

बहुत बाद में अहसास हुआ था मन्नू को कि जिंदगी यूं ही निकल गई श्याम के नाम। हाथ कुछ न आया। यह अहसास भी हुआ कि कहीं छली तो नहीं गई वह श्याम के हाथों?

सरला की शादी। मन्नू को लगने लगा कि कहीं कुछ दरकने लगा है उसके और श्याम के बीच। वो पहले सी मोहब्बत न रही। सरला की शादी को लेकर श्याम तनाव में थे, ‘पिताजी ने मुझसे कुछ मांगा नहीं। जिससे सरला की शादी कर रहे हैं, उम्र में उससे बारह साल बड़ा है, दो बच्चे हैं। पहली पत्नी को मरे अभी साल नहीं हुआ। कैसे निभाएगी सरला? पिताजी को न जाने क्या सूझी, कम पैसेवाला ही सही, कुंआरा लड़का खोजा होता...’

श्याम रो पड़े। फफक-फफककर।

‘‘मैं अपनी बहन के लिए कुछ नहीं कर पाया। मैं किसी काम का नहीं... देखो क्या हो गया...।’’

मन्नू ने उन्हें प्रलाप करने दिया। श्याम की तबीयत ठीक नहीं थी। सड़क पर चक्कर खाकर गिरने के बाद डॉक्टर को दिखाया। ब्लड प्रेशर देखते-देखते चकरघिन्नी सा ऊपर-नीचे होने लगा। डॉक्टर की हिदायत थी कि वे ज्यादा तनाव न पालें। सुबह-शाम सैर करें।

क्या करें मन्नू? कैसे कहे कि बहन के लिए इस तरह रोने की जरूरत नहीं। शादी में कुंआरा और विधुर क्या है? शादी, शादी है और मर्द, मर्द। अगर उसकी संवेदनाएं सही स्थान पर हैं तो औरत की इज्जत करेगा। श्याम रोते रहे। अगले दिन उन्हें शादी के लिए निलना था।

कन्नू ने उनको उसी तरह विलाप करने दिया। घर में एक अलमारी थी। कभी श्याम ने ही दिलवाई थी। उसी अलमारी के एक खाने में एक पुराने दुपट्टे में बांधकर गहने रखा करती थी। करीब बीसेक तोले सोना था। कुछ शादी के समय मायके से आया हुआ, बाकी श्याम का दिलाया। हर साल श्याम दीवाली पर उसे कुछ दिलाते थे।

गहनों की पोटली खोल मन्नू ने एक नौलखा नेकलेस निकालकर अलग रखा। मां की निशानी। हालांकि चमक पुरानी पड़ गई है, लेकिन गहने की गढ़न लाखों में एक। सोने की अमियानुमा झालरों पर जड़ाऊ नग। बाकी गहनों को बिना देखे पुटलिया सी बना दी।

कमरे में लौटी तो श्याम उसी तरह कुर्सी पर सिर टिकाए लेटे थे। मन्नू ने उन्हें टहोककर कहा, ‘‘ये... अपनी बहन को दे देना। मन में यह शिकायत मत रखो कि बहन के लिए कुछ किया नहीं।’’

ऐसा नहीं था कि उस दिन के बाद श्याम मन्नू से मिलने नहीं आए, संबंध बनाए नहीं रखा। उस दिन जो हुआ, मन्नू के साथ ही हुआ। मन के कांच में तिरक लग गई। श्याम को जो अलकों-पलकों पर बिठा रखा था, जो जिंदगी की धुरी मान रखा था, उसे दिल ने नीचे धकेल दिया। श्याम पहले की ही तरह आते मन्नू के पास। लेकिन मन्नू बदल गई। पहले वह घर से बाहर निकलती ही नहीं थी। श्याम ने जो राशन-पानी ला दिया, उसी से गुजारा चलाती। अब उसने अपनी बंद दुनिया की किवाड़ें खोलनी शुरू कर दीं। श्याम आते तो पाते कि बिस्तर पर पड़ोस का चार साल का बेटा सो रहा है।

कभी मन्नू बरामदे में बैठकर दो-तीन औरतों के साथ अचार या बड़ियां खल रही है।

मन्नू हंसने लगी थी, श्याम के बिना भी। रोती नहीं थी श्याम के जाने पर।

दुबली-पतली बाईस इंची कमर की मन्नू ने अपने को भी खुला छोड़ दिया। मोटापे ने घेरा, तो श्याम ने कह ही दिया, ‘‘क्या हाल बना लिया है तुमने अपना? एकदम भैंस होती जा रही हो। मैं यहां किसलिए आता हूं? दो घड़ी चैन मिलता था तुमसे, अब वो भी नहीं...’’

मन्नू रोई नहीं। उस दिन अपने रूखे बालों में ढेर सा तेल लगा रखा था उसने, वो भी सरसों का। श्याम ने आते ही साथ कहा था कि बाल धो ले।

ढीले-ढाले सलवार-कमीज में ऊपर से ही उसके अंग-प्रत्यंग टटोलकर श्याम ने इशारा कर दिया था कि आज वे समागम के मूड में हैं। पता नहीं कैसे मन्नू ने पहली बार उनके आग्रह को ठुकरा दिया। न बाल धोए, न कपड़े बदले। ढीठ सी बैठी रही टीवी के सामने। बेकार सी फिल्म चल रही थी। नायिका का दो बार बलात्कार हो चुका था। नायक उससे कहने आया था कि बावजूद इसके वह उससे शादी करना चाहता है। मन्नू ने तुरंत प्रतिक्रिया की, ‘‘बकवास। औरत में हिम्मत हो, तो उसे नहीं करनी चाहिए शादी। एक के चंगुल से निकली, दूसरे में फंसने चली। क्या होगा इस आदमी के साथ रह के? कौन सी जिंदगी सुधर जाएगी? हरामी, वो भी वही सब करेगा... उसने जबरदस्ती की, ये शादी के नाम पर करेगा।’’

श्याम हतप्रभ रह गए। मन्नू ऐसा सोचती है पुरुषों के बारे में? क्या वह उन्हें भी इसी श्रेणी में आंकती है? मन्नू की आंखों में अब भी क्षोभ था। अपने तेल से सने बालों में उंगलियां घुमाते हुए बड़ी अजीब निगाहों से टीवी पर नजरें गड़ाए थी। श्याम की मन्नू नहीं थी वह। वह एक ऐसी मन्नू थी, जिसने अपने ढंग से, अपने विचारों के साथ जीना सीख लिया था।

उस दिन के बाद श्याम मन्नू से मिलने कभी नहीं आए। बल्कि मरने से कुछ समय पहले उन्होंने मन्नू को एक लंबा पत्र लिखा, यह कहते हुए कि वे उसके लिए कुछ कर नहीं पाए। तमाम दुख। मन्नू केगहने लेने का दुख। रूमा की बेरुखी का गम।

श्याम लिखते समय शायद जल्दी में थे। मन्नू ने सुना था कि उनको दिल के तीन दौरे पड़ चुके हैं। इन दिनों नौकरी पर भी नहीं जा पा रहे। घर पर ही रहते हैं। मन्नू ने कभी जाकर उनसे मिलने की कोशिश भी नहीं की।

श्याम ने पत्र में यही लिखा था- तुम बहुत छोटी और नासमझ थीं, जो मेरे एक बार कहने पर मेरे साथ चली आईं। अब सोचता हूं, तो मसोस उठती है कि तुम्मारी मैंने दोबारा शादी क्यों न की? न मैं तुम्हें नाम दे पाया न बाल-बच्चे। मुझे इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा।

मन्नू... एक बात बड़े दिनों से साल रही है, मन करता है तुमसे बांटने को। जब मैं तुमसे मिला और ज्ञान की मृत्यु हुई, मन में एक ललक थी, किसी के लिए कुछ करूं। सोचा तुम्हें एक जिंदगी देकर अपनी यह इच्छा पूरी करूंगा।

वे पांच लड़के जो चौदह साल पहले मेरे अंदर एक आग सी जला गए, उसकी आंच मैंने रोक ली मन्नू। मैं आज भी गुनाहगार महसूस करता हूं अपने को, शोभा के लिए और तुम्हारे लिए। देश की तो छोड़ दो, मैं तो अपने आसरे जो आया, उसके लिए भी कुछ न कर पाया।

अब मेरे शरीर में ताकत न रही। तन-मन से खोखला हो चला हूं। बस, एक ही काम कर पाया हूं, ये घर तुम्हारे नाम कर दिया है, रूमा को बता कर ही। तुम हो सके तो अपना घर बसा लो। सरला का ही देख लो, एक बच्चा हो गया। ठीक चल रही है उसकी गृहस्थी। तुमने अपना क्या कर डाला है? ऐसे जिंदगी से उम्मीद मत छोड़ो। कभी न कभी कुछ होगा तुम्हारा भी।

मैं अगले इतवार को ऑपरेशन करवा रहा हूं। तुम मत आना। घर से सब आ रहे हैं। पिताजी भी। बच गया तो कभी आकर तुमसे मिलूंगा।

मेरी तरफ से अपना मन दुखी न करना।

पत्र पढ़कर दो-चार दिन मन्नू विचलित रही। पर श्याम को अनुमान न था कि वे उसकी जिंदगी से बहुत दूर चले गए हैं। श्याम को कहने की जरूरत ही नहीं थी कि वह उनसे मिलने न आए। वह खुद अब श्याम से अपने को जड़ा हुआ नहीं पाती।

बस, एक बात कहना चाह रही थी श्याम से- यह कहने में देर कर दी कि शादी कर लो, बच्चे पैदा कर लो। दो महीने पहले उसे भयंकर रूप से रक्तस्राव हुआ। इतनी पीड़ा... पड़ोसन डॉक्टर के पास ले गई। सारे टेस्ट हुए। डॉक्टर ने कहा कि उसे समय से पहले मेनोपॉज हो रहा है। ये उसी के लक्षण हैं। अब वह हर महीने की परेशानी से मुक्त है। मन्नू ने अंदर बहुत खालीपन महसूस किया। उन पीड़ा के क्षणों में आंसुओं से कई बार चेहरा धुंधलाया। लेकिन कहीं न कहीं इस अहसास ने उसे राहत दी कि अब वह मातृत्व के लिए कामना नहीं करेगी। अब उसकी जिंदगी उसकी अपनी है। कोई श्याम आकर यह दलील नहीं देगा कि तुमको मैंने मां बनने का सुख नहीं दिया।

काहे का सुख, काहे का मातृत्व? कहां से अपूर्ण हूं मैं? पहली बार अपने को यह कहते सुना मन्नू ने। पर श्याम यह सुनने के लिए बचे नहीं थे।

क्रमश..