wo aise kaise in English Short Stories by anita verma books and stories PDF | वो ऐसे कैसे - लॉकडाउन मूड

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वो ऐसे कैसे - लॉकडाउन मूड


सुबह उठकर रोज़ की तरह शर्मा जी बड़ी मुश्किल तक दरवाज़े की तरफ़ अख़बार उठाने के लिए जा ही रहे थे कि तभी घंटी बजी। सोचने लगे कौन हो सकता है। उनके घर तो कोई आता जाता नहीं। पत्नी का देहांत हुए दस साल हो गये है। बेटा विदेश में रहता है। बेटी बैंगलोर में। कोई रिश्तेदार कोई पड़ोसी कोई भी नहीं। तालाबदी के समय पर तो कोई वैसे भी नहीं आता जाता। कामवाली भी आजकल नहीं आती। धीरे धीरे चल कर दरवाज़े तक पहुँचे तो जाली के दरवाज़े से झांका। बाहर कोई लड़की मॉस्क लगाकर व हाथों में दस्ताने पहनकर खड़ी थी। अंकल मैं आपके नीचे वाले फ़्लैट में रहती हूँ। मुझे पता चला आप अकेले रहते हैं।

शर्मा जी पहले तो चुप रहे। मन में शक होने लगा कहीं कोई चोरनी तो नहीं। अकेले समझकर कहीं घर में घुसकर चोरी करके या मारकर चली गई तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। बोले -आपको क्या काम है।

लड़की ने हंसते हुए कहा- अंकल मैं नर्स हूँ। आज कल कोरोना के चलते घर से बाहर निकलना मना है। सोचा आपकी तबीयत भी पूछ आती हूँ। और अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत है तो बाज़ार से ले आती हूँ।

शर्मा जी को विश्वास नहीं हो रहा था। आज के समय में भी ऐसा हो सकता है। ज़रूर कोई चक्कर है। बोले ठीक है। आप बाहर से ही अपना फ़ोन नम्बर बोलो। मैं नोट कर लेता हूँ। ज़रूरत हुई तो आपको फ़ोन करूँगा।

चाय पीते हुए सोचने लगे। पिछले बीस दिनों से घर में ही बंद हैं। पहले सुबह एक बार नीचे उतरते थे पर अब वो भी नहीं जाते।

फ़ोन की घंटी बजी। बेटी ने फ़ोन पर हाल-चाल पूछते हुए -बोली पापा आप बाहर बिल्कुल नहीं जाना। मैंने आपको साइट्स के लिंक भेज दिए हैं। आप आर्डर कर के घर पर सब डिलीवरी करवा लेना।

रात को बेटे का फ़ोन आया। पापा अपना ध्यान रखो। बाहर मत जाना। शर्मा जी को लगा कि कहें कि वो तो कई सालों से एकांतवास में हैं। उनके लिये यह नया नहीं है।

किचन में जाते हुए सोच रहे थे कि आजकल मैं कितना आत्मनिर्भर हो गया हूँ। घर की सफ़ाई खाना बनाना अपने कपड़े धोना सब कुछ तो स्वयं ही कर लेते हैं। बस थोड़ा थक जाते हैं। हॉं पहले जब सुबह नीचे उतरते थे तो लोगों से मिलते थे। या कामवाली आ जाती थी तो थोड़ी बातचीत हो जाती थी। बस अब तो टी वी देखकर ही समय बीतता है।

आज सुबह से पत्नी और बच्चों की याद आ रही थी। जब पत्नी ज़िन्दा थी तो उसके जन्मदिन पर हलवा बनाती थी और फिर भोग लगाती थी। बच्चे केक लाते थे। अब तो कई साल से अकेले ही जन्मदिन मना लेते हैं। तभी दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से घंटी बजने लगी। सोचा नर्स ही आई होगी। सुबह सुबह वो ही तो आती है। पर दरवाज़े पर पुलिस वालों को देख कर घबरा गये। जनाब मैं एक सीनियर सिटीज़न हूँ। अकेला रहता हूँ। एक बार भी घर से बाहर नहीं निकला हूँ।

तभी एक पुलिस वाला बोला - सर हम जानते हैं आप अकेले रहते हैं। आप के बेटे ने विदेश से फ़ोन करके बताया।

मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मुझे कुछ नहीं हुआ।

सर हम आपसे यह कहने आये हैं कि अगर कोई ज़रूरत हो तो हमारी हेल्प लाइन पर फ़ोन कर दें। हम समय समय पर आपका पता लेने आते रहेंगे। शर्मा जी को विश्वास नहीं हुआ। चुपचाप उनकी तरफ़ देखते रहे।

सोचने लगे ये यही पुलिस वाले हैं जिन्होंने कई दिन तक थाने के चक्कर लगाने के बाद भी बेटे की कार चोरी रिपोर्ट नहीं लिखी थी।

सोचने लगे महामारी ने मानवीयता का चेहरा बदल दिया है।