botal-pudiya sanvaad in Hindi Comedy stories by Mahaveer Prasad books and stories PDF | बोतल-पुड़िया संवाद

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बोतल-पुड़िया संवाद



एक मैली-कुचैली सी किराने की दुकान के बिना शीशा लगे शोकेस के एक कोने में टाट के टुकड़े के नीचे विमला, रजनी, और अमरी दुबकी बैठी थी। ये सभी पान-मसाले और गुटके की पुड़ियाएं थीं।लॉक-डाउन के दूसरे फ़ेज के बाद भी इनका बाहर निकलना मना था। मिर्च, धनिएं, जीरे और हींग के बदबूयुक्त वातावरण में गंदे टाट के नीचे उनका दम घुट रहा था। दुकान का बूढ़ा मालिक हिक़ारत से शोकेस के उस कोने की तरफ़ नज़र डालता और फिर बाहर गली में देखने लगता कि कोई लेने वाला आ जाए तो औने-पौने दामों में उनको चलता करूँ।कहीं कोई राज का आदमी आ गया तो इन कमीनी पुड़ियाओं के साथ उसके भी लेने के देने पड़ जाएँगे। पुड़ियाएँ बेचारी लम्बे लॉक-डाउन के घुटन भरे एकाकीपन से पहले ही मानसिक रूप से टूट चुकी थीं और अब मालिक की यह बेरुख़ी देखकर उन्हें रोना आ रहा था।

किराने की दुकान के सामने ही शराब की दुकान थी। सामने शुभ्र-धवल अक्षरों में “आपका ठेका” लिखा हुआ था। अन्दर वातानुकूलित स्वच्छ शोकेसों में एक तरफ़, अपने पाश्चात्य परिधान पहने, वोदकी, रामी, ज़िनी और थंडर्बोल्ट बैठी हुई थीं। उन पर लगे प्रतिबंध हट गए थे। इसलिए उनके चहरे पर अनायास ही एक ठसक-भरी अकड़ दौड़ गई थी। दूसरी तरफ़ के शोकेस में केसर, कस्तूरी और गुलाबी बैठी हुई थीं। उनके परिधान देशी थे। किन्तु ठसक उनके चहरे पर भी साफ़ झलक रही थी। महफ़िलें सजाने की छूट उन्हें भी मिल गई थी।

टाट के उभरे कोने में से विमला, रजनी और अमरी ये सब देख रही थीं। सुबह से ही शराब की दुकान पर लम्बी लाइन लगी हुई थी। ज्यों ही ग्राहक पैसे देता एक मचलती हुई मदमस्त बोतल उसके हाथों में नाच उठती। ग्राहक के हाथों में मचलती हुई बोतल एक घृणाभरी नज़र पुड़ियाओं पर डालती और अपने भाग्य पर इठलाती हुई ग्राहक के साथ चल देती। कभी-कभी कोई केसर, कस्तूरी या गुलाब लेता तो वह दबी नज़रों से किराने की दुकान की तरफ़ भी देख लेता। पुड़िया पर प्रतिबंध था। इसलिए मन मसोस कर आगे निकल जाता। उसके हाथों में छुपी बोतल कनखियों से एक करुणा भरी नज़र पुड़ियाओं की ओर डालती और फिर आकाश की ओर देखने लगती। मानो दुआ कर रही हो, भगवन इनको भी आज़ादी बख्शना।

विमला से रहा नहीं गया। उसने काफ़ी समय से साइलेंट मॉड पर पड़े अपने चाइनीज़ मोबाइल फ़ोन को निकाला और वोदकी को व्हाट्सएप कॉल लगाया।

वोदकी: “हेलो! कौन?”

“मैं बोल रही हूँ, विमला”, विमला के स्वर में कड़वाहट थी।

वोदकी: “ओह हो! बिमली, तू बोल रही है! घटिया सी पुड़कली! अबे तेरी उस फटी टाट में घुसी रह, नहीं तो किसी गट्टर में नज़र आएगी। चली है व्हाट्सएप करने! कंजरी कहीं की।अजय देवगन तेरा प्रचार कर रहा है, इसका मतलब यह नहीं है कि तू वीआईपी हो गई।किसी राज के आदमी ने देख लिया तो तेरा केसर का दम कूड़े में पड़ा नज़र आएगा।

विमला का ग़ुस्सा फूट पड़ा: “अबे चुप ओ कमीनी। एकदम चुप! तूने रूसी लिबास पहन लिया इसका मतलब यह नहीं है कि तू ज़रीना हो गई। मैं तुम्हारी एक-एक रग से वाक़िफ़ हूँ। मेरा मुँह मत खुलवा।ये जो मुझको खाते हैं ना वो ही तुमको अपने पैरों से रौंद-रौंद कर बनाते हैं और गंदी बोतलों में भरते हैं। ये रूसी लेबल लगाने से तुम कोई विलायती नहीं हो गई हो। रेशम पहना देने से क्या कोई तवायफ महारानी हो जाती है। चली है मेरे से जबान लड़ाने।

रजनी, विमला और वोदकी का संवाद सुन रही थी। वो जानती थी दोनों ही सिरफिरी हैं। एक जार की वंशज है और दूसरी अजय की लाड़ली। जब दोनों ने भड़ास निकाल ली तो रजनी बोली:

“ला विमला फ़ोन मुझे दे।”

विमला अभी ज़रीना को दो-चार खरी-खरी और सुनाना चाहती थी पर रजनी बड़ी थी। उसकी शालीनता की दुहाई तुलसी और ज़िनी भी देती थी। विमला सहित सभी उसका सम्मान करती थीं।इसलिए विमला ने रजनी को फ़ोन दे दिया।

रजनी: “वोदकी बहना ऐसे क्या करती है! माना ग़ुस्सा तेरे नाक पर रहता है पर यह समय झगड़ने का थोड़े ना है।

वोदकी: होय! होय! तो रजनीगंधा जी लाईन पर हैं। देखो पुड़कलियों, तुम पुड़कलियाँ हो और पुड़कलियाँ ही रहोगी और गंदे-भद्दे मज़दूरों के मुँह में जाओगी।ज़बरदस्ती बहना-बहना कह कर रिश्ते मत गाँठो।तुम्हारी और हमारी कोई बराबरी नहीं है। इसलिए अपने दायरे में ही रहा करो। और हाँ, इस तुम्हारे चायनीज़ मोबाइल से मेरे ऐप्पल पर फ़ोन मत किया करो। पता है हमारे ट्रम्प महाशय उस मिचकी आँखों वाले चमगादड़ भोजी को क़तई पसंद नहीं करते हैं। उन्होंने साफ़ कह दिया है कि चाइना का बाईकाट! इसलिए अब मेरे अमरीकन ऐप्पल से नो चाइनीज़ कनेक्टिविटी।

रजनी: “अरे अरे बहना ऐसा मत कर। एकबार ज़िनी बहन से तो बात करा दे।”

वोदकी ने पुड़ियाओं को अपनी उच्चता का अहसास करने के लिए उनको खरी-खोटी तो सुना दी थी पर वो जानती थी कि पुड़ियाओं के बिना काम उनका भी नहीं चलता। जब भी कोई घरवालों से छुपकर पीता है तो बदबू मिटाने के लिए पुड़िया ही मुँह में डालकर घर जाता है। इसलिए पुड़ियाओं को गरियाने तक तो ठीक है पर नाराज़ करना उचित नहीं। इसलिए उसने फ़ोन बंद करने के बजाय ज़िनी की तरफ़ बढ़ा दिया। जब ज़िनी ने पूछा कौन है तो मुँह बिचका दिया।

ज़िनी: “हेलो! कौन?”

रजनी: “ मैं हूँ, ज़िनी बहन”

ज़िनी: “ओह! रजनीगंधा बहन। कैसी हो बहना?”

रजनी: “बस टाईम पास हो रहा है, इस टाट के नीचे पड़े-पड़े। न दिन का पता चलता है न रात का। मालिक ऊपर से बेचैन रहते हैं। पता नहीं कब छापा पड़ जाए और जेल का रास्ता हो जाए। खाने वाले वहाँ तड़प रहे हैं, मालिक को देख कर हम यहाँ बेचैन हो रहे हैं। पता नहीं कब मुक्ति होगी। ख़ैर आपकी सुनाओ क्या हाल चाल है?”

ज़िनी: “ हमारा हाल तो तुम देख ही रही हो। सुबह से किलोमीटरों लम्बी लाईन लगी है। शायद इतनी लम्बी लाईन तो भगवान के दर्शन के लिए भी नहीं लगती। अब यहाँ बहार है। रात को मयखाने और महफ़िलें सजेंगी।”

रजनी: “मगर बहना हमारे साथ यह अन्याय क्यों हुआ? आपके साथ हमें छूट क्यों नहीं मिली? आख़िर समानता का हक़ तो हमें भी है।”

ज़िनी: “बहना समानता! हक़! ये किताबी जुमले हैं। ये बेवक़ूफ़ों को और बेवक़ूफ़ बनाने के फ़ार्मूले हैं। अब तू ही देख हमें पीता है वो वैसे ही मरता है जैसे तुम्हारे पति तंबाकूजी को खाने से मरता है। हमें पियेगा उसे सोरायसिस होगा और तुम्हारे पति को खाएगा उसको कैन्सर होगा। मौत दोनों से ही निश्चित है। पर तुम्हारे पति को कैन्सर की फ़ोटू वाला ऐसा भद्दा लिबास पहना दिया है कि बेचारा जेब में से निकलने से ही कतराता है और कोई देख ले तो शर्म से पानी-पानी हो जाता है।जैसे दीवार फ़िल्म में अमिताभ बच्चन के माथे पर लिख दिया था कि ‘मेरा बाप चोर है’। और हमें देखो! एक से एक नया चमकीला लिबास पहनाया जाता है। और तो और वह भगोड़ा माल्या तो हमारा प्रचार करने के लिए हर साल देश की बहन-बेटियों की नंगी तस्वीरों के कलेण्डर छापता था।किसी ने नहीं कहा कि मौत का प्रचार करने के लिए बहन-बेटियों की इज्जत मत उतारो। क्यों? रजनी क्यों? क्योंकि तुम्हें और तुम्हारे पति को ग़रीब-गुर्गा और मज़दूर खाता है। रोग मिटाना होता तो तुम्हें पैदा करना ही बंद कर देते! पर नहीं! पैदा तो करेंगे। और घटिया आदमी खाएगा तो घटिया तरीक़े से ही पेश करेंगे। और हम! हम बड़े-बड़े ड्राइंगरूमों में सजती हैं! हमें बड़े-बड़े लोग पीते हैं! इसलिए हमारी सुंदरता रात-दिन बढ़ाई जाती है। पीने वाले की पीनक़ में चार-चाँद लग जायें इसके लिए सुरा के साथ शबाब भी होना चाहिए। नंगी तस्वीरें भी होनी चाहिएँ। फिर चाहे वे बहन-बेटियों की ही क्यों न हों। इसलिए माल्या छाप ढोंगी घर (देश) की बेटियों की इज्जत उतार कर तस्वीरें बनायें तो बनायें।अब तू समझ ले, हम और तुम में फ़र्क़ कहाँ है। दोनों मौत देती हैं। दोनों घर बरबाद करती हैं। पर दोनों के ग्राहक अलग-अलग हैं। तुम ग़रीब की जेब में होती हो। हम अमीर के मयखाने में। खाने-पीने वाले दोनों आदी हैं। दोनों मन के कमजोर हैं। आदत छोड़ नहीं सकते। पर अमीर गरीब को गरियाकर महान बना रहता है। ग़रीब अपनी समझ की कमजोरी से ग़रीब का ग़रीब रहता है और गालियाँ ऊपर से खाता है।…..”

रजनी: “ओहो! बहन मैं सब कुछ समझ गई! बहुत कुछ समझ गई!

ज़िनी: “बहुत कुछ क्या?”

रजनी: “बहन काफ़ी दिनों से मैं अपने ग्राहक ग़रीब-गुर्गों की त्रासदी को समझ नहीं पा रही थी। सोचती थी, यह कोरोना सात समंदर पार चीन से यहाँ आया। कहते हैं, यह अपने बल से छह फ़ीट से ज़्यादा चल नहीं सकता। तो यह तय है कि इसे लाने वाले वो लोग थे जो हवाई जहाज़ों में उड़ते हैं। हवाई जहाज़ में कोई ग़रीब-गुर्गा तो उड़ नहीं सकता। तो ये बीमारी ज़रूर अमीर लाए होंगे। अब त्रासदी देख! ग़रीब-गुर्गों की जान के लाले पड़े हैं ।मजबूरन सड़कों पर भटक रहे हैं। भूखे-प्यासे। कल क्या होगा इसका कोई इल्म नहीं। कोई घर पहुँचा तो भूखा-नंगा। और कोई तो पहुँचा ही नहीं। जहाँ भी अख़बार-टीवी में देखो वहीं केवल एक ही हाहाकार नज़र आता है।उद्योगों का क्या होगा! अमीरों का क्या होगा! कहीं भी यह सुनाई नहीं देता कि ग़रीब का क्या होगा। मज़दूर का क्या होगा। जिसका रोज़गार छिन गया उसका क्या होगा। वो पेट कैसे भरेगा। ऐसा लगता है कि जैसे ये कीड़े-मकोड़े हैं, जिनके पेट में गाँठ है! यही बीमारी यदि ग़रीब मज़लूम ले आता तो सब उसकी जान के ग्राहक हो जाते। पर अब कोई नहीं पूछ रहा ये बीमारी कौन लाया? ग़रीब की त्रासदी का ज़िम्मेदार कौन है?”

ज़िनी: “ वाह! बहन वाह! चल अब हम इन ग़रीब-गुर्गों से कहें कि हमें खाना-पीना छोड़ो। दो अक्षर सीखो। अपनी ग़रीबी और त्रासदी का कारण ढूँढो।”

लेखक-महावीर प्रसाद