First Love in Hindi Short Stories by Sachin Godbole books and stories PDF | पहला प्यार

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पहला प्यार


अशोक मेहता की डायरी से कुछ पन्ने-

१४ मार्च २००२.

पिछले कुछ दिनों से माँ कह रही थी की शादी कर ले। मैं इस विषय में बातचीत ही टाल रहा था। आखिर आज माँ ने पूछ ही लिया की अशोक तेरा किसी लड़की से प्रेम तो नहीं है। है तो बता दे उसमे कोई बड़ी बात नहीं।

वैसे हम लोग काफी परंपरागत परिवार से हैं इसलिए माँ का इस विषय पर मुझसे बात करना मुझे अटपटा सा लगा। मैंने नहीं कहा और फिर विषय टाल दिया। लेकिन शायद माँ चाहती है की मैं जल्दी से शादी कर लूँ. अपना घर बसा लूँ , घर में बहु आ जाये जिससे घर भी अच्छी तरह सम्हाला जा सके। चूँकि मै शादी के लिए टालमटोल कर रहा था इसीलिए माँ ने मुझसे साफ़ साफ़ पूछ ही लिया। घर में अभी मै, मेरा छोटा भाई विजय और माँ हैं। माँ से अब अकेले पूरा घर सम्हाला नहीं जाता। वैसे अब हमारा जनरल स्टोर्स भी ठीक ठाक चल रहा है, घर में चार पैसे आ रहे हैं इसलिए घर के कामों के लिए बर्तनवाली और खाना बनानेवाली है। पहले हमारी आर्थिक परिस्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। पिताजी का हार्डवेयर स्टोर्स कभी भी ज्यादा चला नहीं ऊपर से उन्हें शेयर बाजार में पैसे लगाने का शौक था। १९९२ में उन्हें शेयर बाजार में बड़ा नुकसान हुआ फिर हम घाटकोपर के छोटे से घर में आ गए। माँ को ही घर का सारा काम करना पड़ता था। पिताजी ५ साल पहले चल बसे विजय तब बारहवीं में था और मैंने अपनी Bcom. की पढाई पूरी की थी। मुझे और आगे पढ़ के CA बनने की इच्छा थी लेकिन पिताजी के जाने के बाद मेरे ऊपर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई थी इसलिए मैं पढ़ नहीं पाया। मैंने हार्डवेयर स्टोर्स का काम सम्हाला। पुराने स्टोर का रंग रोगन करवाया, हिसाब ठीक से रखे, साथ में स्टेशनरी और प्रसाधन का सामन रखकर उसे जनरल स्टोरस बना दिया। थोक माल देने वालों से और ग्राहकों से अच्छे संबंध बनाये और सामान और दुकान की काया पलट कर दी। अब हमारे माली हालात काफी ठीक हैं। हम घाटकोपर के पुराने घर से मालाड के छोटे फ्लैट में आ गए हैं। अब माँ को सारा काम भी खुद नहीं करना पड़ता।
लेकिन घर सम्हालना याने सिर्फ काम करना नहीं होता। माँ चाहती है की घर पर कोई उसका साथ देने वाली आये इसलिए मेरे पीछे पड़ी है की शादी कर ले। विजय का पढाई में ज्यादा मन नहीं लगता। उस पर फिल्मों का भूत सवार है। दिखने में वो ठीक ठाक ही है लेकिन उसका रहन सहन एकदम आजकल के फैशन के मुताबिक रहता है। जैसे तैसे BA पास हुआ है और अब फिल्मों के स्टूडियो के चक्कर काटते रहता है। वैसे मुझे भी फिल्मों का शौक था लेकिन घर की परिस्थिति के कारण मुझे पढाई में ध्यान देना पड़ा और फिर दुकान सम्हालनी पड़ी। मेरा रहन सहन भी एकदम साधारण ही है। विजय जवान हुआ तब तक घर में पैसे आने लगे थे तो उसकी ऐश हो गई। लेकिन मुझे अच्छा लगा। एक ही तो भाई है मेरा, अगर बड़े भाई की वजह से ऐश कर रहा है तो क्या बुरा है। असल में मैं भी उसे हीरो बनते देखना चाहता हूँ इसलिए नौकरी या पढाई के बारे में कभी कुछ नहीं कहता। पर माँ को उसका फिल्मो का प्रेम बिलकुल अच्छा नहीं लगता। उसे ये सब आवारागर्दी लगती है। वो हमेशा बेचारे को डांटती रहती है की आगे पढाई करे या दुकान पर मेरा हाथ बटाये।

आज जबसे माँ ने मुझसे पूछा है की तेरा किसी लड़की से प्रेम है क्या तबसे मैं विचारों में पड़ गया हूँ । बचपन से घर का इतना संस्कारी वातावरण देखा था की कभी सोचा भी नहीं था की अपने माता पिता से किसी लड़की का उल्लेख भी करने की अनुमति मिलेगी। वैसे अगर अनुमति होती भी तो क्या फायदा था? घर की ज़िम्मेदारियों और पढाई के बीच न तो कभी वक्त मिला न कभी इस बारे में विचार करने की ज़रूरत महसूस हुई। कॉलेज में लड़कियाँ कम ही थी और जो थी वो खुद को परियां समझती है इसलिए ऐसे ही किसी लड़की से पहचान हो जाये और फिर प्रेम हो जाये ये सब होना मेरे मामले में असंभव था। ऊपर से मेरा रहन सहन भी साधारण है। लोग मज़ाक उड़ाकर कहते हैं की अशोक तू गोलमाल फ़िल्म के राम प्रसाद शर्मा जैसा है और विजय लक्ष्मण प्रसाद शर्मा जैसा है। वैसे ये सही भी है। लेकिन पता नहीं माँ के उस सवाल के बाद से थोड़ा पछतावा सा हो रहा है। मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया, कभी कोशिश ही नहीं की। पता नहीं शायद कोई लड़की थी जिसे मैं अच्छा लगता था। मैं २६ का हो गया हूँ और ये असली ज़िन्दगी है कोई फिल्म नहीं के कोई लड़की मेरे जनरल स्टोर्स में सामान खरीदने आये और मुझसे प्रेम करने लगे। लेकिन पता नहीं ये मुंबई शहर है यहाँ कुछ भी हो सकता है। जो भी हो माँ के उस सवाल के बाद से मेरा लड़कियों की तरफ देखना थोड़ा बढ़ गया था और देखने का नजरिया भी।


२१ मार्च २००२.

एक हफ्ते से मेरा नजरिया क्या बदला है, लग रहा है दुनिया ही बदल गई हैं। जनरल स्टोर्स पर इतनी सारी खूबसूरत लड़कियां आती हैं मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया। मुझे तो जनरल स्टोर्स पर आने वाली कोई स्त्री या पुरुष ग्राहक से ज्यादा कुछ नहीं लगते थे लेकिन अब मामला थोड़ा अलग है। लेकिन अधिकतर लड़कियां मुझे भैया कह कर ही बात करती हैं इसलिए मुझे लगा की मेरा कोई चांस नहीं। लेकिन ३ दिन पहले एक लड़की आई थी ग्राहक बन कर और मेरा दिल ले गई। लड़की थी एकदम शालीन, बड़ी बड़ी ऑंखें, सलवार कुरता पहनकर आई भी और मुझे भैया भी नहीं कहा। उसके शब्द आज भी कानो में गूंज रहे हैं।

"शैम्पू का पाउच दीजिये"

मैंने कब शैम्पू का पाउच उसे दिया उसने कब १ रूपया मेरे हाथ पर रखा और चली गई मुझे कुछ याद नहीं। बस वो गुलाब का सेंट जो उसने लगाया था मेरे दिल में अभी भी खुशबू भर रहा है। उस दिन शाम कब हुई और मैं बस से घर कब आया मुझे कुछ याद नहीं। क्या इसे ही प्यार कहते हैं? वैसे ये सारी बातें किसी १६ साल के लडके को शोभा देती हैं मेरे जैसे २६ साल के आदमी को नहीं। लेकिन कुछ भी हो बड़ा मजा आ रहा था।
दूसरे दिन दुकान जाने के लिए बस की लाइन में खड़ा हुआ तो सामने की सड़क पर फिर वो ही लड़की दिखाई दी। उसने मेरी तरफ देखा तो मेरा दिल ज़ोर से धड़क उठा। वो थोड़ा सा मुस्कुराई लेकिन मै डर के मारे बुत बना खड़ा रहा उसे तांकता रहा तभी उसकी बस आयी और वो चली गई। वो पक्का मेरी तरफ देखकर ही हंसी थी। आज तक कोई लड़की मेरी तरफ देखकर मुस्कुराई नहीं थी। ये पहली बार ही हुआ था।
उसके अगले दिन मैं बस स्टॉप पर रोज के मुकाबले जल्दी चला गया। २-३ बसें आयी पर मै चढ़ा ही नहीं। मुझे उसका इंतज़ार था। थोड़ी देर बाद वो आयी, मेरी तरफ देखा, इस बार मुस्कुराई नहीं पर अपने आप में हंसी और चली गई। मुझे लगा की कल मै जिस तरह से उसे तांक रहा था और फिर झेंप गया था उसका मज़ाक उडा रही थी। याने मैं उसे याद हूँ और शायद मेरे बारे में सोचती भी होगी। अब कल का इंतज़ार है, कल उसी के बस स्टॉप पर खड़ा रहूँगा। शायद कुछ बात हो पाए। मेरी ज़िन्दगी के पिछले २६ साल एक तरफ और ये आखिरी तीन दिन एक तरफ।

२८ मार्च २००२.

मेरी ज़िन्दगी में तूफान आ गया है। मन में आता है मेरी ज़िन्दगी में ये आखिरी दो हफ्ते आते ही नहीं तो कितना अच्छा होता। उस दिन के बाद से मैं ३ दिन तक उसके बस स्टॉप गया लेकिन वो आयी ही नहीं। तब मन में आया की क्या वो मुझे कभी नज़र ही नहीं आएगी- नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए। लेकिन आज लगता है वो मुझे इसके बाद नज़र ही ना आती तो ज्यादा अच्छा होता।
क्योंकि कल मैंने उसे विजय के साथ देखा दोनों हाथ में हाथ डाले फुटपाथ पर जा रहे थे। मेरे दिल पर क्या गुजरी ये मैं ही जानता हूँ. आप जिस लड़की को चाहो वो आपको न मिले तो दिल टूटता है, अगर आपके दोस्त को मिल जाये तो और बड़ा झटका लगता है, लेकिन अगर वो आपके छोटे भाई को मिल जाये तो? कल को उनकी शादी होगी और वो मेरे ही घर में रहने आएगी। जिस लड़की के मैंने सपने देखे उसे अपने भाई के साथ दिन रात मैं कैसे देख पाऊंगा? फिर उसने मुझे उस दिन बस स्टॉप पर झेंपते हुए भी देखा था वो शायद विजय को इस बारे में बताएगी। काश मैं अपना नजरिया न बदलता और इन लड़कियों के चक्कर में न पड़ता। कुछ लोगों का जीवन केवल काम करने के लिए होता है, उन्हें प्रेम करने का कोई अधिकार नहीं होता जैसे की मैं, और कुछ लोगों का जीवन सिर्फ ऐश करने के लिए होता है जैसे विजय।
लेकिन क्या मुझे ऐसे हार कर बैठ जाना चाहिए?नहीं कुछ तो करना ही होगा।मै ऐसे हाथ पे हाथ धरे नहीं बैठने वाला। लेकिन सीधे सीधे नहीं। माँ को बोल कर विजय की आवारागर्दी बंद करवा देता हूँ। उसे पैसे देना बंद कर देता हूँ या फिर उसे कहता हूँ की नौकरी कर नहीं तो अपना इंतज़ाम कहीं और कर ले। आटे दाल का भाव पता चलेगा तो सारी आशिक़ी बंद हो जाएगी।

30 अप्रेल 2002

आज बड़े दिनों के बाद डायरी लिखने बैठ हूँ। मन ही नहीं था या यूं कहिए की मेरे साथ जो जो घटनाएं घटी उन्हें समझने में ही मुझे काफी समय लगा।

कभी कभी ज़िन्दगी आपको बड़े तगड़े झटके देती हैं वो भी बिना कोई पूर्व सुचना दिए। ज़िन्दगी की गाडी किसी पैसेंजर ट्रैन की तरह धीरे धीरे लेकिन सही दिशा में जाती रहती हैं। सालों निकल जाते हैं ऐसी कोई घटना नहीं होती जो ज्यादा दिन तक याद रहे लेकिन फिर कभी ऐसा दौर आता है जो आपकी ज़िन्दगी आपके हालत और आपकी सोच सब कुछ बदल कर रख देता है। पिछले तीन हफ्ते मेरी ज़िन्दगी में ऐसे ही उतर चढाव भरे रहे हैं।
मैंने उसे विजय के साथ फुटपाथ पर देखा था। उसके बाद सोचा था की विजय की आवारागर्दी बंद करने के लिए माँ को कहूंगा लेकिन विजय मेरा इतना लाडला है की उसे देखा और उसके बाद उसे डांटने का मन ही नहीं किया। अभी भी वो रोज सुबह उठ कर मुझे और माँ को प्रणाम करता है, मेरी इतनी इज़्ज़त करता है और फिर उसे ये मालूम थोड़े ही है की वो मैं भी उस लड़की को पसंद करता हूँ. इसलिए उसे कुछ भी नहीं पूछा बस माँ से उसके बारे में चर्चा की। माँ ने बताया की वो कल सुबह ४ बजे घर आया था। कह रहा था किसी फिल्म की नाईट शिफ्ट के सेट पर था, फिल्मो की शूटिंग के बारे में सीख रहा था और ५ हज़ार रुपये लेकर गया था किसी एजेंट को देने के लिए। मुझे लगा की चलो ठीक है काम में ध्यान लगा रहा है तो उस लड़की का भूत भी शायद अपने आप उतर जाए।
२-३ दिन में मैं ये सारी बातें भूलने लगा था। दुकान पर पहले की तरह सीधे मुँह जाता और आता। और फिर एक रात को तकरीबन ९ बजे जब मैं दुकान से घर आ रहा था मुझे विजय बस में उस लड़की के साथ जाते हुए दिखा। विजय या उस लड़की का ध्यान मेरी तरफ नहीं था। रात को ९ बजे लड़की के साथ? कहीं उस लड़की के साथ विजय का रिश्ता मर्यादा के पार तो नहीं चला गया? महानगरों में लड़कियाँ बड़ी आधुनिक होती हैं और विजय को भी मुंबई की हवा लगी हुई है। मैं घर आया और तुरंत माँ से विजय के बारे में पूछा। माँ ने वही बताया जो मैं सुनना नहीं चाहता था। विजय रात को नहीं आने वाला था। कल ही 5 हज़ार रुपये लिए थे एजेंट को देकर फोटो शूट करवाने के लिए। मेरा माथा ठनकने लगा, माना उस लड़की से प्यार है लेकिन शादी से पहले उस लड़की के साथ साथ महंगे होटल में रंगरलियां मनाना वो भी अपने भाई की मेहनत से कमाए पैसे पर?
मुझे विजय पर गुस्सा आने लगा। मैंने माँ को कुछ नहीं बताया।
सारी रात मैंने जाग कर काटी। कुछ ईमानदारी से सोचा तो मैंने पाया की अगर वो उस लड़की की जगह कोई और लड़की को साथ लेकर जाता तो क्या मैं इतना ही गुस्सा होता। शायद नहीं। शायद मैं विजय से सीधे बात करता। अगर सच्चाई देखि जाए ये सिर्फ छोटे भाई के चरित्र का सवाल नहीं था। उस लड़की के साथ मैंने जो सपने देखे थे वो पूरी तरह टूट चुके थे मुझे गुस्सा शायद उस बात का था। शायद मैं ये भी सोच रहा था की मै विजय से हार गया। जो भी हो मुझे विजय को उस लड़की से तो दूर रखना ही होगा। मैं कब तक समझदारी दिखाऊं। मैं क्यों मेरी भावनाएं दबाता रहूं। मुझे पूरा अधिकार है प्रेम करने का अगर वो लड़की मुझे नहीं मिली तो अब के बाद मैं उसे विजय को भी नहीं मिलने दूंगा। फिर अभी कुछ पूरी तरह से पता भी तो नहीं। हो सकता है वो लड़की भी विजय की तरह फिल्मों में काम ढूंढ रही हो और सच में उसके साथ नाईट शिफ्ट पर फिल्म की शूटिंग पर हो। जो भी हो इस तरह से भागने से और ज्यादा विचार करने से कुछ नहीं होगा। सच्चाई क्या है मुझे पता लगाना ही चाहिए और फिर विजय को रोकना चाहिए।
सुबह मैंने माँ से सिर्फ इतना कहा की अगली बार विजय पैसे मांगे और रात को न आने को कहे तो उसे पैसे दे देना लेकिन तुरंत मुझे बताना। मैं विजय के स्टूडियो में जा के देखूंगा। सुबह जब विजय आया मैंने उससे शूटिंग की लोकेशन पूछी। उसने बिना सकपकाए मुझे गोरेगांव के किसी स्टूडियो का पता दे दिया। अब मुझे इंतज़ार था की विजय पैसे कब मांगता है और नाईट शूट के लिए कब जाता है। मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा।अगले हफ्ते ही मेरे दुकान जाने के पहले ही विजय ने मुझसे पैसे मांगे। कहा की उसे डबिंग और डायलॉग डिलीवरी की ट्रेनिंग लेनी है ५ हज़ार रुपये चाहिए और आज फिर वो गोरेगांव के स्टूडियो में ही नाईट शूट में रहेगा और सुबह आएगा। मैंने उसे पैसे दे दिए।
दिन भर दुकान में मैं रात का इंतज़ार करता रहा। रात को उसने बताये गोरेगांव के स्टूडियो में जाऊंगा और फिर उसके मोबाइल पर फ़ोन कर उसे बुलाऊंगा। अगर वो वहीँ मिला तो ये साबित हो जायेगा की मैं बेकार ही अपने भाई पर शक कर रहा था। रात को ९ बजे दुकान बंद करके मैं गोरेगांव जाने के लिए निकला लेकिन तभी गोवर्धन भाई का फ़ोन आया की एक ज़रूरी काम है इसलिए विक्रोली में बुलाया है। गोवर्धन भाई होसिअरी के होलसेल व्यापारी हैं वो एक नयी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट करने वाले थे और चूँकि मेरी दुकान पर उनका सामान बिकता है इसलिए मुझे उस कंपनी वालों से मिलवा के कमीशन वगेरे की बातें करने वाले थे। उन्होंने विक्रोली के किसी ठीक ठाक होटल में मीटिंग रखी थी और मुझे बुलाया था। मैंने सोचा चलो पहले विक्रोली चलते हैं धंधा पहले हैं, गोरेगांव तो उसके बाद भी जाया जा सकता है।
मैं विक्रोली के होटल में गोवर्धन भाई और उस कंपनी के लोगों से मिला। मीटिंग काफी अच्छी रही। कंपनी वाले गोवर्धन भाई और मुझे काफी अच्छा कमीशन देने को तैयार हो गए। गोवर्धनभाई और उस कंपनी के लोगों के साथ वहीँ खाना खाने वाले थे मुझे भी खाने के लिए रोक रहे थे लेकिन मैंने व्रत होने का बहाना बनाया और तकरीबन १०:३० को वहां से निकला और गोरेगांव की बस पकड़ ली। बस में बैठा ही था की मुझे बाहर फुटपाथ पर वो ही लड़की दिखी। लड़की अकेली ही थी। मेरे लिए बस से उतरना संभव नहीं था इसलिए बस में से ही जितना हो सके देखने की कोशिश करने लगा। विजय मुझे कहीं दिखाई नहीं दिया लेकिन लड़की धीरे धीरे चलते हुए उसी होटल में चली गई जहाँ हमारी मीटिंग थी। मेरा दिल बैठ गया। विजय को शायद मुझे पर शक हो गया था इसलिए वो लड़की के साथ न आते हुए पहले से ही होटल के कमरे में चला गया होगा और लड़की बाद में वहां पहुंची। मैं इन्ही विचारों में बस की खिड़की पर बैठा रहा। समुद्र से आने वाली हवा चेहरे पर झेलते हुए, मुंबई शहर के रात के रूप को देखते हुए। बस ने थोड़ी देर में मुझे गोरेगांव पर छोड़ा पर अब वहां जाकर कोई फायदा नहीं था। लेकिन फिर भी वहां तक आ ही गए हैं तो एक बार स्टूडियो तक भी हो आते हैं ये सोच कर स्टूडियो की तरफ चलने लगा।
स्टूडियो के दरवाजे पर थोड़ी बहुत चहल पहल थी याने वहां कोई तो शूटिंग चल रही थी। विजय ने झूट भी बड़ा सोच समझ के बोला था। दरवाजे पर खड़े वॉचमन को मैंने विजय मेहता के बारे में पूछा। उसे इस नाम का कोई आदमी मालूम नहीं था। फिर मैंने विजय के मोबाइल पर फ़ोन लगाया। २-३ घंटियों के बाद विजय ने फ़ोन उठाया। मैंने उसे कहा की मैं काम के सिलसिले में गोरेगांव आया था और उसका काम और फिल्म की शूटिंग देखनी थी इसलिए स्टूडियो में आया हूँ। उसने बहुत टाल मटोल की और कहा की वो बहुत व्यस्त है बाहर नहीं आ सकता। १२ बजे ब्रेक होगा तब उसे १० मिनट की छुट्टी मिलेगी और तभी वो बाहर आ सकता है। उसने मुझे कल उसके साथ आकर शूटिंग देखने को कहा। लेकिन मैंने उसकी एक न सुनी। मैंने कहाँ की मैं १२ बजे तक यहीं रुका हूँ तू फ्री होगा तब आ जाना। मुझे पता था की वो विक्रोली के होटल में रंगरलियां मना रहा है वो कहाँ १२ बजे यहाँ आएगा। उसका झूट रंगे हाथ पकड़ने का ये ही रास्ता था।
१२ बजे के आस पास स्टूडियो में से काफी लोग बाहर आने लगे शायद सच में ब्रेक हुआ था और फिर अचानक अंदर से विजय ही आ गया। मुझे अपने आप पर विश्वास नहीं हो रहा था। विजय मुझे अंदर ले गया और उसके असिस्टेंट डायरेक्टर से मिलवाया। विजय सचमुच सेट पर छोटे मोटे काम करके फिल्म बनाने की बारीकियां सीख रहा था। रात को घर पहुंचा तो चिंता से ज्यादा दुविधाओं ने मुझे घेर लिया। विजय अपना करियर तो गंभीरता से ले रहा है और मुझसे झूट भी नहीं बोल रहा। पर फिर वो लड़की? विचारों के जाल में मुझे नींद लग गयी।

सुबह उठा और हमेशा की तरह अपने काम में लग गया। थोड़ी देर बाद गोवर्धन भाई का फ़ोन आया। उन्होंने बताया की उस कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट हो गया है और मुझे और गोवर्धन भाई को कमीशन भी तगड़ा मिलेगा। मैंने उन्हें बधाई दी और पूछा की इतने सारे मर्चेंट होने के बावजूद ये कंपनी आपके पास ही कैसे आयी. उनका जवाब सुन कर मैं अवाक् रह गया. गोवर्धन भाई ने कहा "अधिकारीयों की खातिर करने का गुर सब लोगों में नहीं होता। उस कंपनी के आदमी को कल रात को खाने के बाद लड़की की व्यवस्था भी की गई थी. तुम्हारे जाने के तुरंत बाद ही वो लड़की आयी तुम थोड़ी देर रुकते तो खुद ही देख लेते, कैसी सुन्दर और शालीन दिखने वाली लड़की पेश की थी हमने उस अधिकारी को".
मैंने फ़ोन बंद किया मेरी सारी दुविधाएं हल हो चुकी थी लेकिन फिर भी मेरा काम करने का मन नहीं था। मैंने दुकान बंद करके समुद्र किनारे चला गया। अब उस लड़की से विजय की शादी होने का डर तो नहीं था। लेकिन अब विजय को सम्हालना होगा। भाई की कमाई पर वो ऐसी लड़कियों के साथ रंगरलियां मनाता है?