"बाबूजी घर मे बेटे की लाश पड़ी है।मेरे पास उसके क्रिया कर्म के लिए भी पैसे नही है।"
वह एक नंबर का आलसी और कामचोर था।अपनी इस आदत के कारण वह कंही भी नही टिक पाता था।जंहा भी काम पर लगता,कामचोरी की आदत की वजह से जल्दी ही हटा दिया जााता। एक समय ऐसा आया जब उसे शहर मेंं काम मिलना ही बंद हो गया। परिवार के भरण पो पोोषण.के लिए उसे रििक्शा चलाना पडा। दिन भर रििक्शा खीचकर, जो कुछ वह कमाता।उससे परिवार की गाड़ी जैसे तैैसे खिचती।
एक दिन वह शहर के मुख्य चौराहे से गुजर रहा था।एक जगह भीड़ देखकर ठिठक कर रुक गया।रिक्शा एक तरफ खडा करके वह भीड का कारण.जानने के लिए उसमें घुस गया।
सडक के किनारे एक लाश रखी थी।जो सफेद चादर से ढकी थी।लाश के पास रखें कागज पर टेढे मेढे अक्षरों मे लावारिस लाश के अंतिम संस्कार के लिए चंदा देने की अपील लिखी थी।लाश के चारों तरफ नोट औऱ रेजगारी बिखरी पडी थी।लाश के पास खडे लोगों को वह देखते ही पहचान गया।
वे लोग रोज़ तरह तरह के स्वांग बनाकर भीख मांगते थे।रात को भीख से मिले पैसों से शराब पीते और भरपेट भोजन करके स्टेशन के मुसाफिर खाने में सो जाते।
सब कुछ अपनी आंखों से देखकर वह रिक्शा लेकर सोचता हुआ चल पड़ा।कुछ देर सोचने के बाद एक विचार उसके मन मे आयाऔर वह खुशी से उछल पड़ा।उसने रिक्शा चलाने का काम त्याग दिया।नए धंधे पर लगने से पहले अपना हुलिया दयनीय बनाया।और नए धंधे पर काम शुरू कर दिया।वह सड़क पर चल रहे सभ्य सेआदमी को पहचान कर उसके पास जाकर गिड़गिड़ाता,"बाबूजी घर मे मेरे बेटे की लाश पड़ी है।मैं बहुत गरीब हूं।मेरे पास उसके क्रिया कर्म के लिए भी पैसे नही है।मुझ पर दया कीजिये।"
उसकी दर्दभरी कहानी सुनकर राहगीर का हाथ अपनी जेब की तरफ चला जाता।"
उसे पैसे देते समय हर राहगीर सांत्वना के ये दो शब्द जरूर कहता,"हिम्मत से कम लो।ईश्वर की जैसी मर्ज़ी।,"
कुछ घंटे के बाद ही उसे अपनी जेब भारी नज़र आने लगी।उसने जेब से रुपये निकालकर गिने।पूरे पांच सौ रुपये।इतने रुपये तो वह कई दिन रिक्शा चलता तब कमा पाता।आजके जमाने मे रिक्शे में बैठता ही कौन है?उसे ये धंधा अच्छा लगा।बिना कोई ज्यादा मेहनत किये जरा सा झूंठ बोलकर पहले ही दिन उसने अछे पैसे इकठे कर लिए थे।
वह खुशी खुशी घर के लिए चल पड़ा।घर के पास पंहुचकर उसके कदम ठिठक गए।घर के अंदर सड़ दहाड़ मारकर रोने की आवाजें आ रही थी।उसने आवाज को पहचान लिया।आवाज उसकी पत्नी की थी।वह दहाड़ मारकर रोते हुए कहा रही थी,"मेरे लाल मेरे राजकुमार ---
पत्नी का रुदन सुनकर वह अंदर पंहुचा।घर के अंदर का दृश्य देखकर चोंक गया।उसकी आंखें फटी की फटी रह गई।उसके सामने इकलौते बेटे की लाश पड़ी थी।घर के अंदर मौहल्ले के मर्द औरतें बैठे थे।उसको देखते ही कुछ लोग उठकर उसके पास आये थे।एक व्यक्ति उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला,"स्कूल से लौटते समय ट्रक के नीचे----
अपने बेटे की लाश देखकर वह दहाड़ मारकर रोने लगा।लोगो के समझाने के बाद लाश को अंतिम क्रिया क्रम के लिए ले जाने की तैयारी होने लगी।
क्रिया कर्म के लिए उसकी जेब मे रुपये थे।ये रुपये उसने इसी काम के लिए ही तो मांगे थे।