Anu aur Manu Part -4 in Hindi Fiction Stories by Anil Sainger books and stories PDF | अणु और मनु - भाग-4

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अणु और मनु - भाग-4

“दोस्तों, आज हम एक बहुत ही गहन विषय पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं| वह है कि हम कैसे अपनी ज़िन्दगी से तनाव (stress) को दूर करें |

दोस्तों आपने इस विषय पर बहुत किताबें पढ़ी होंगी या फ़िल्में देखी होंगी | संत समागम या कथा-कीर्तन में इस विषय पर चर्चा सुनी होगी | हो सकता है कि आपने इस तनाव को दूर करने के लिए मेडिकल साइंस का भी सहारा लिया हो | क्या फिर भी आपकी जिन्दगी से तनाव दूर हुआ ? नहीं हुआ, क्यों आपने कभी सोचा ? आप सोच रहे होंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ | मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि आज हम और हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी बेलगाम घोड़े की तरह दौड़े जा रही है | आज से 50-60 साल पहले हमने ऐसी ही दौड़ती-भागती ज़िन्दगी की कल्पना की थी | आज जब हमें वह भाग-म-भाग की ज़िन्दगी मिल गई है तो अब हमें सुकून की तलाश है |

यह इंसानी फ़ितरत है जो मिल जाता है, हम उससे आगे की सोचने लगते हैं या फिर जो वक्त पहले था वह हमें अच्छा लगने लगता है | एक जमाने में हमें यह दौड़ती-भागती ज़िन्दगी विदेशी फिल्मों में या विदेश में रहने वालों से देख-सुन कर बहुत अच्छी लगती थी | हम हमेशा ही इस कल्पना में खोये रहते थे कि कब भारतवर्ष में भी यह पशिचमी सभ्यता आएगी | आज जब हमारे और उनमें ज्यादा फ़र्क नहीं रह गया है तो अब हम सुकून/शान्ति की तलाश में लग गये हैं |

आप शायद मेरी बातों से सहमत न हों लेकिन सच्चाई यही है | आज हम सब हर रोज सुबह उठते हुए यही सोचते हैं कि कब साप्ताहिक छुट्टी आएगी | कब हम आराम से सो कर उठेंगे, थोड़ी मस्ती करेंगे | कोई फिल्म देखने या फिर शॉपिंग करने जाएंगे | मैंने ऐसे भी बहुत लोग देखे हैं जो तीन-चार महीने पहले ही एक साथ आने वाली तीन-चार छुट्टियों में कहीं बाहर घूमने का प्लान बना लेते हैं |

आप सोचिये यह क्या है ? यह वही है जो मैं आपको कहना चाहता हूँ कि अब हम इसी दौड़ती-भागती ज़िन्दगी से दूर भागने की कोशिश में रहते हैं | वह सुकून कभी मिल पाता है और कभी नहीं | मैंने ऐसे बहुत लोगों को कहते सुना है कि ‘यार हम गये तो घूमने-फिरने और मौज-मस्ती करने थे लेकिन वहाँ की भीड़ और मारा-मारी देख कर दिल तो यही कर रहा था कि भाग कर वापिस घर आ जाएँ | सब कुछ पहले से बुक करा रखा था इसलिए वापिस भी नहीं आ पाए | लेकिन अब यही फ़ैसला किया है कि हम बाहर कहीं घूमने नहीं जायेंगे | जो सुकून घर में है वह अब बाहर नहीं रह गया है’| यह सब कहने के बावजूद ऐसे लोग हर छूट्टी में कहीं न कहीं घूमने चले ही जाते हैं | ऐसा सोचने वाले और करने वाले आप में से भी बहुत होंगे| क्यों ? आखिर क्यों ? आखिर क्यों नहीं हम सब सोचते कि जिस सुकून को तलाश रहे हैं वह कहीं और नहीं हमारे अंदर ही है|

हम सब कहते जरूर हैं कि हम इस पश्चमी सभ्यता में अपनी बेवकूफी के कारण डूबते जा रहे हैं जबकि इसके विपरीत वे हमारी सभ्यता की ओर अग्रसर हो रहे हैं | हम यह कहते हुए खुद ही प्रश्न और खुद ही उत्तर भी दे देते हैं | हमारी पृथ्वी गोल क्यों है, वह गोल इसीलिए है क्योंकि वह बहुत तेजी से अपनी धुरी पर घूम रही है और अरबों वर्ष घूमने के कारण ही शायद वह गोलाकार हो गयी है | अब अरबों वर्ष पहले का हम अंदाजा ही लगा सकते हैं लेकिन आप तो कल होने वाले का अंदाजा भी नहीं लगाना चाहते हैं | यह एक कालचक्र है जहाँ आज दिन है वहाँ कल रात होगी ठीक उसी प्रकार हमारे साथ भी है | हम पश्चिमी सभ्यता को और वो हमारी सभ्यता को अपनाने में लगे हुए हैं | इसी से पता लगता है कि इस संसार में कुछ भी हमारा नहीं है चाहे वह हमारी सभ्यता हो या फिर परम्परा |

दोस्तो इसी परिवर्तन की वजह से स्ट्रेस ने हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में अपनी जगह बना ली है | क्यों, सही बात है या नहीं” कह कर अक्षित चुप कर जाता है | हॉल में सब तरफ ख़ामोशी छा जाती है | ऐसा लगता है सब आत्ममंथन में लगे हुए हैं कि यह बात सच है या नहीं ? इसी ख़ामोशी के बीच एक व्यक्ति अपनी कुर्सी से उठ कर बोलता है “सर शायद आप ठीक ही कह रहे हैं” | उसके कहते ही हॉल में बैठे लगभग सभी व्यक्ति एक साथ बोल उठते हैं “शायद” |

अक्षित हँसते हुए बोलता है “दोस्तो आप सब लोग लगभग रोज किसी न किसी स्ट्रेस से दिन में कितनी ही बार रूबरू होते हैं लेकिन फिर भी आप ‘शायद’ शब्द का प्रयोग कर रहे हैं | जानते हैं क्यों, क्योंकि आपने स्ट्रेस को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बना लिया है और यह मान लिया है कि आज की ज़िन्दगी बिना स्ट्रेस के चल ही नहीं सकती | यह स्ट्रेस हमारे इस संसार में पहली साँस लेने से भी पहले ही शुरू हो जाता है | हम अभी गर्भ में ही होते हैं तो हमारे माँ-बाप और परिवार को स्ट्रेस होता है कि बेटा होगा या बेटी | डिलीवरी नार्मल होगी कि सिजेरियन | बच्चा नार्मल होगा या एब्नार्मल | कौन से हॉस्पिटल में एडमिट कराएँ और आजकल तो एक और स्ट्रेस आ गया है कि कौन से अच्छे व इंटरनेशनल स्कूल में डालेंगे | वहीं दादा-दादी की हिदाएतें कि ज्यादा घुमो-फिरो नहीं | ये खाओ, ये नहीं खाओ | ऐसे बैठो, ऐसे करो | उधर डॉक्टर्स अलग ही बताते हैं |

ऐसे स्ट्रेस या तनाव में हम जन्म लेते हैं | हमारी ज़िन्दगी के पहले ढाई-तीन साल बिना किसी तनाव के गुजरते हैं | हम अभी गर्भ के स्ट्रेस को भूलते ही हैं कि अचानक एक दिन हमें स्कूल भेज दिया जाता है | उस दिन से हमारी जिन्दगी में मानसिक और शारीरिक तनाव की जो शुरुआत होती है वह मरते दम तक हमारे साथ रहता है | जब हम तनावग्रस्त होते हैं तो हमें समझाया जाता है कि यह तो आम बात है | स्ट्रेस के बिना तो हम जी ही नहीं सकते | यह सुन-सुन कर हमने इस स्ट्रेस को अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बना लिया है |

बचपन से हम माँ-बाप को तनाव से जूझते हुए देखते हैं और इसके बावजूद हमारे माँ-बाप ही हमें तनाव में रहना व तनाव देने की बातें करते हैं | जब हम स्कूल से रिजल्ट लेकर आते हैं तब हम से यह कभी नहीं पूछा जाता है कि हमारे से कम कितने बच्चों के नम्बर आये हैं | बल्कि यह पूछा जाता है कि तुम्हारे से ज्यादा कितने बच्चों के आये हैं | हमारे बोलते ही हमें नसीहत दी जानी शुरू हो जाती हैं कि ‘देखा मैंने पहले ही कहा था कि तुम्हारे नम्बर कम आयेंगे | दूसरे बच्चे पढ़ते हैं तुम्हारी तरह हर समय घूमते-फिरते या टीवी नहीं देखते रहते हैं’ | हमें बार-बार यह सुनने को मिलता है | ‘उसके बच्चों को देखा है वह कैसे माँ-बाप की इज्जत करते हैं | आगे से कभी कुछ नहीं बोलते हैं | अपना ज्यादातर समय पढ़ाई में लगाते हैं | एक तुम हो जिसे सिर्फ खाने-पीने और पहनने को अच्छा से अच्छा चाहिए” |

अक्षित की यह बात सुन कर हाल तालियों व ठहाकों से गूंज उठता है | अक्षित हँसते हुए बोलता है “दोस्तों वैसे यह तालियाँ मारने या हंसने की बात नहीं है लेकिन मैं आपकी भावनाओं को समझता हूँ | आप ऐसा कर असल में यह बताना चाहते हैं कि यह सब आपके साथ भी हुआ है और आप भी लगभग ऐसा ही अपने बच्चों के साथ कर रहे हैं | क्यों सही बात हैं न” ? पूरा हॉल एक बार फिर से हल्की हंसी से गूंज उठता है|

अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “दोस्तों यह मुकाबला या तनाव एक दिन या कुछ सालों में नहीं आया | आज से पहले भी एक राजा का दूसरे राजा से, गरीब का अमीर से, अनपढ़ का पढ़े-लिखे से व छोटी जाति वालों का बड़ी जाति वालों से मुकाबला चलता ही रहता था | लेकिन आज की परिस्थितियाँ तो बद से बदतर की तरफ बढ़ रही हैं और न जाने कहाँ जा कर रुकेंगी | आज पति का पत्नी से, बहन का दूसरी बहन या भाई से, एक परिवार का दूसरे सगे परिवार से, दोस्त का दोस्त से, एक राजनीतिक पार्टी का दूसरी पार्टी से, एक ही राष्ट्र के एक प्रदेश का दूसरे प्रदेश से, एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र से मुकाबला हो रहा है | पिछले लगभग बीस-पचीस सालों से एक धर्म का दूसरे धर्म से जो मुकाबला शुरू हुआ था वह आज अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका है |

यह देख-सुन कर हम भी दूसरों से मुकाबला करने की होड़ और ईर्ष्या में ऐसे खो गये हैं कि आज हम अपने गम या दुःख से कम और दूसरों की ख़ुशी से, तरक्की से, दूसरे के बच्चे की अच्छाई से, दूसरे के बड़े घर से, दूसरे की बड़ी गाड़ी से ईर्ष्या या मुकाबला करने की वजह से ज्यादा दुःखी होने लगे हैं | अब तो दूसरे की बीवी, फ़ोन, दूसरे की इन्क्रीमेंट, तरक्की और पैसे पर ही नजर रहती है | आज हम दूसरों को देख कर सोचने, बोलने व काम करने लगे हैं तभी तो हम हर समय यह सुनते या खुद बोलते हैं कि लोग क्या कहेंगे? लोग क्या सोचेंगे ?

हमें जो मिल रहा है, उसे हम कभी न सोचते हैं और न देखते हैं | इस दौड़ती-भागती दुनिया में हमारी नज़र हमेशा यदि दूसरे पर ही रहेगी तो फिर हम कभी भी यह रेस नहीं जीत पाएंगे | हम अपनी जवानी तक पहुँचते-पहुँचते थक जाते हैं लेकिन फिर भी इस मुकाबले और ईर्ष्या को छोड़ नहीं पाते हैं | दिन-प्रतिदिन यह मुकाबला और ईर्ष्या बढ़ती ही जा रही है और उससे भी कहीं ज्यादा तेजी से तनाव व तनाव से पैदा हुई नई से नई बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं | मेरे हिसाब से यह ईर्ष्या और मुकाबला ही हमारी ज़िन्दगी के तनाव का मुख्य कारण है फिर भी कभी हमारा ध्यान इस तरफ नहीं जाता है |

दोस्तों मैंने कई स्ट्रेस मैनेजमेंट पर भाषण या फिर आध्यात्मिक भाषण देने वालों को इसका उपाय बताते हुए सुना है कि ‘आप भविष्य की चिंता करना व लोगों से मुकाबला करना छोड़ दो’ | ऐसा कहने वालों का मानना है कि हम भविष्य की चिंता में अपना आज भी खराब कर रहे हैं और जब आपका आज खराब हो जाएगा तो भविष्य तो अपने आप ही अच्छा नहीं होगा | उनका यह भी कहना है कि ‘हमें लोगों से मुकाबला नहीं करना चाहिए क्योंकि इसको करने से ही ईर्ष्या जन्म लेती है’ | कुछ का कहना है कि ‘हमें अपने सोचने और करने पर संयम बरतना चाहिए’ | वह हम कर नहीं पाते हैं इसलिए हमें सोचना ही छोड़ देना चाहिए | दोस्तों आप में से कोई कुछ कहना चाहेगा कि आख़िर हमें करना क्या चाहिए”?

अक्षित की बात सुन कर दो महिला और एक पुरुष उठ कर खड़े हो जाते हैं | उन्हें देख कर अक्षित बोलता है “इन्हें माइक दीजिये” | एक व्यक्ति जो स्टेज के साइड में बैठा था यह सुन कर दौड़ कर आगे की पंक्ति में बैठे पुरुष को माइक थमा कर वहीं खड़ा हो जाता है | वह पुरुष माइक हाथ में लेकर बोला “सर मेरा नाम सुरिंदर है और मेरा भी यही मानना है कि हमें आज को, ख़ुशी से जीना चाहिए और भविष्य जब हमें पता ही नहीं है तो फिर चिंता कैसी? धन्यवाद” | कह कर वह माइक वापिस दे देता है | उसी पंक्ति में खड़ी महिला बोली “सर मेरा नाम पिंकी है | मैं सर्विस करती हूँ और मेरा मानना है कि हम ईर्ष्या तो छोड़ सकते हैं लेकिन मुकाबला छूटना मुश्किल है | धन्यवाद” | दूसरी महिला बोली “सर मेरा नाम सुमन है और मैं कॉलेज में पढ़ाती हूँ | मेरा मानना है कि अपने कर्म और सोच पर कण्ट्रोल करना ही पड़ेगा | इसके इलावा और कोई रास्ता नहीं है | धन्यवाद” |

यह सुन कर अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “क्या आप इन सबके विचारों से सहमत हैं” | हॉल में हां और ना के स्वर एक साथ गूंज उठते हैं | अक्षित हंसते हुए बोलता है “दोस्तों आप सहमत भी हैं और असहमत भी हैं | खैर मैं आपको अपने विचारों से अवगत कराने से पहले सोच और तनाव पर हमारी आज की मेडिकल साइंस क्या कहती है वह बताना चाहता हूँ | एक आम कंप्यूटर जो आज बाजार में मिलता है | उसमें लगभग एक से डेढ़ लाख फ़ोटो, अठारह से बीस हजार गाने और सौ से डेढ़ सौ फ़िल्में स्टोर हो सकती हैं | लेकिन आप यह नहीं जानते होंगे कि ईश्वर द्वारा बनाया गया कंप्यूटर जोकि हमारा दिमाग है | उसमें हमारी पूरी जिन्दगी की छोटी से छोटी सोच और कार्य सदा के लिए स्टोर हो जाता है | आप सोचते जरूर हैं कि बचपन और जवानी की घटनाएँ या बातें आप भूल गये हैं लेकिन ऐसा होता नहीं हैं | बस आपको पुरानी यादें और घटनाएँ वापिस पाने यानी रिकवर करने की तकनीक आनी चाहिए | आज भी हमारे द्वारा बनाया गया कंप्यूटर इतनी तेजी से डाटा प्रोसेस नहीं कर सकता जितनी तेजी से ईश्वर द्वारा बनाया गया दिमाग कर सकता है | आप सुन कर हैरान हो जाएंगे कि हमारा दिमाग एक सेकंड में एक लाख करोड़ के बराबर का डाटा प्रोसेस करता है और हमें इसका एहसास तक भी नहीं होता है | है न कितनी अजीब लेकिन सच बात |

इसी तरह हर रोज हमारे दिमाग में लगभग पचास से साठ हजार विचार या थॉट आते हैं | आप सोच रहे होंगे कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता है | इतने विचार या सोच रोज हमारे दिमाग में नहीं आते होंगे | लेकिन यह पूर्णतः सच और विज्ञान द्वारा प्रमाणित है | आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे दिमाग में लगभग हर सेकंड में चार से पांच विचार आते हैं | आप नहा रहे हैं या रास्ते में जा रहे हैं या जब आप सो भी रहे होते हैं तो भी आपका दिमाग सक्रिय रहता है | हाँ, जब आप चैन की नींद सोते हैं तो आपका दिमाग जरूर शांत रहता हैं |

दोस्तों अब बात करते हैं तनाव यानि स्ट्रेस पर साइंस क्या कहती है | हमारे दिमाग में जैसे ही तनाव या नकारात्मक विचार यानि स्ट्रेस या नेगेटिव थॉट आती है वैसे ही हमारे शरीर में एक केमिकल रिएक्शन होता है जोकि हमारे मस्तिष्क को मजबूर करता है कि वह शरीर से कोर्टिसोल (cortisol) एक तरह का स्ट्रेस हॉर्मोन(stress hormone) रिलीज करे | ऐसा नहीं है कि यह कोर्टिसोल हॉर्मोन सिर्फ तनाव या नकारात्मक विचार आने पर ही रिलीज़ होता है | यह होरमोन हमारे शरीर के मेटाबोलिज्म(matabolism) को बनाए रखने में सक्षम होता है इसलिए यह समय-समय पर रिलीज़ होता रहता है | इससे हमारी बॉडी का शुगर, रोग प्रतिरोधक क्षमता व ब्लडप्रेशर कण्ट्रोल में रहता है | इससे हमें जुकाम-खांसी, दिल सम्बन्धित बीमारी, मोटापा इत्यादि समस्याएं नहीं होती हैं | यह हमारे दिमाग की कार्य करने की क्षमता को भी बढ़ाता है | लेकिन बार-बार तनाव होने पर यह बार-बार रिलीज़ होने लगता है | इसकी मात्रा जितनी होनी चाहिए उससे लगभग दस से बीस गुना ज्यादा हो जाती है | जिसके कारण यह हॉर्मोन फायदे की बजाय बीमारी देना शुरू कर देता है | हमें मोटापा, ब्लडप्रेशर, शुगर, स्किन की बीमारी या फिर नींद कम या न आना, जल्द मूड का बदल जाना जैसी कई बीमारियाँ घेर लेती हैं | इससे और भी कई बीमारियाँ हो जाती हैं जैसे इन्फेक्शन जल्दी होना, थाइरोइड और दिल की बीमारी होने में इस होरमोन का ज्यादा रिसाव भी एक कारण है | ऐसा नहीं है कि इन बीमारियों में सिर्फ इस होरमोन का ही हाथ होता है लेकिन यदि हम अपनी सकारात्मक सोच और स्वभाव से इसका ज्यादा रिसाव न होने दें तो काफी हद तक बीमारी या तो होंगी ही नहीं या इन बीमारीयों पर काबू पाया जा सकता है |

दोस्तों हमें समझाया जा रहा है कि हमें भविष्य की चिंता में अपना आज नहीं खराब करना चाहिए | अपने आज को आनन्द पूर्वक जीना चाहिए | मेरी उन लोगों से हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि वह लोग ऐसी बातें या विचार न फैलाएं जिनका गलत मतलब निकलता हो | इसका गलत संदेश हमारी युवा पीढ़ी में जा रहा है | वह अपने आज में ही खोते जा रहे हैं और कहते हैं कि कल जो होगा वो देखा जाएगा | जबकि जो यह सन्देश फैला रहे हैं शायद उनका भी ऐसा मत नहीं होगा जैसा कि आज की युवा पीढ़ी सोच रही है |

हम हर पल भविष्य में ही जीते हैं | मैं यह साबित कर सकता हूँ | हम पढ़ाई क्यों करते हैं भविष्य में परीक्षा में पास होने के लिए | हम बचत क्यों करते हैं भविष्य के लिए | हम आज मकान बनाना शुरू करते हैं और वह एक साल के बाद पूरा होता है तो वह भी तो भविष्य ही है” | अक्षित यह बोलते हुए पूरे जोश में आ जाता है और लगभग चिल्लाते हुए बोलता है “हम शादी करते हैं यह सोच कर कि हमारा परिवार बढ़ेगा तो वह भी तो भविष्य ही है | हम पूरा महीना मेहनत करते हैं वेतन पाने के लिए तो वह भी तो भविष्य ही है | हम खेलते हैं जीतने के लिए तो वह भी भविष्य ही है तो आप कैसे कहते हैं कि हमें भविष्य के बारे में नहीं सोचना चाहिए | गर्भवती महिला के बच्चे का जन्म भी तो भविष्य में होता है | तो क्या उसे वर्तमान में जीते हुए गर्भवती नहीं होना चाहिए | हम घर से ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं | ऑफिस पहुंचना भविष्य है तो फिर क्या हमें घर से नहीं निकलना चाहिए क्योंकि अगले पल मौत भी तो आ सकती है | अगले पल दुर्घटना भी तो हो सकती है | अगले पल भूचाल भी तो आ सकता है | अगले पल कुछ भी हो सकता है लेकिन फिर भी हम भविष्य का सोच कर घर से निकल पड़ते हैं | हम जब खाना खाते हैं तो हमारा हाथ रोटी का टुकड़ा तोड़ता है और मुंह में डालने के लिए चलता है तो उस पल से कुछ पल बाद ही वह रोटी का टुकड़ा मुंह में आता है तो वह भी तो भविष्य ही है | जैसा कि आपने सुना ही होगा कि कुछ लोग रोटी का टुकड़ा तोड़ते तो हैं लेकिन मुंह में डालने से पहले ही मर जाते हैं | इस पर हम क्या कहते हैं ? हम कहते हैं कि वह रोटी का टुकड़ा तोड़ने के अगले पल ही मर गया | तो इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि हमारा हर एक कदम व साँस वर्तमान है और हर अगला कदम व साँस भविष्य........” |

पूरा हॉल तालियों की करतल ध्वनि से गूंज उठता है | इसी बीच अक्षित अपनी साँस पर काबू पाते हुए फिर से बोलने लगता है “दोस्तों मैं मानता हूँ कि हमें भविष्य की चिंता में अपना वर्तमान खराब नहीं करना चाहिए बल्कि भविष्य का प्लान बना कर वर्तमान में बिना वर्तमान या भविष्य की चिंता किए अपने कर्म को पूरी शिद्दत से करना चाहिए | जब आज का कर्म सही होगा तो भविष्य अच्छा आएगा या होगा | यदि हम सिर्फ आज के बारे में ही सोचेंगे या आज के लिए ही कर्म करेंगे तो जब उस कर्म का फल भविष्य में आएगा तो हम डगमगा जाएंगे | जैसे हम सिर्फ आज का सोच कर अपने वातावरण को खराब करते जा रहे हैं तो भविष्य में हम पानी व साँस तक नहीं ले पाएंगे |

दोस्तों, जैसा कि मैंने पहले कहा था कि हमें समझाया जा रहा है कि हमें दूसरों से मुकाबला नहीं करना चाहिए | हमें अपनी यह आदत या व्यवहार बदलना चाहिए क्योंकि इससे ईर्ष्या जन्म लेती है यह स्ट्रेस का मुख्य कारण है | यह बात तो सच है लेकिन अगर हम इस बात पर गौर करें तो यह आदत हम में इतनी पक्की हो चुकी है कि आज हम चाह कर भी इसे छोड़ नहीं सकते | बचपन से हमें एक ही पाठ पढ़ाया जाता है कि देखो दूसरे बच्चे कितना पढ़ रहे हैं, देखो दूसरे बच्चे कितनी मेहनत कर रहे हैं, देखो दूसरे बच्चे कितनी तमीज से बात करते हैं | जब नौकरी लायक हो जाते हैं तो यह कहा जाता है देखो दूसरे कैसे कम्पीटीशन की तैयारी कर रहे हैं | शादी हो जाती है तो कहा जाता है देखो दूसरों का घर कितना अच्छा है, देखो वह कैसे सब कुछ सम्भाल रहे हैं, ये देखो, वो देखो इत्यादि | अब जब हम सब कुछ दूसरों को देख कर करने लगे हैं तो अब कहा जा रहा है कि दूसरों को देखना छोड़ दो |

अब कहा जा रहा है कि सोचना छोड़ दो | कैसे हो सकता है ? जबकि मेडिकल साइंस कहती है कि रोज हमारे दिमाग में लगभग साठ-सत्तर हजार सोच आती हैं तो हम सोचना कैसे छोड़ सकते हैं | दोस्तों हमें यह गलत समझाया जा रहा है | हमें यह भी गलत समझाया जा रहा है कि हम अपनी सोच पर कण्ट्रोल करें | यह भी हम नहीं कर सकते | हमें कहा जाता है कि स्ट्रेस तो नेचुरल है तो फिर नेचुरल बात को कैसे छोड़ा जा सकता है | आप देखिए कि हर जगह और यहाँ तक कि आज मुझे भी इसलिए बुलाया गया है कि मैं स्ट्रेस मैनेजमेंट पर आप को अपने विचारों से अवगत कराऊँ | इससे ही समझ आता है कि हम मान चुके हैं कि स्ट्रेस तो नेचुरल है | हमें अब यह सोचना और करना है कि इसे कैसे कम किया जा सकता है, यानि कि स्ट्रेस को कैसे मैनेज किया जाए|

दोस्तों जैसे मदमस्त नदी पर बाँध इसलिए बनाया जाता है ताकि हम उसके बहाव को नियंत्रित कर सकें | उस बहाव को नियंत्रित कर बिजली प्राप्त कर सकें | उस उफनती नदी की ज्यादा से ज्यादा छोटी-छोटी नदियाँ या नहरें बना कर उसके पानी का फायदा जन सधारण तक पहुंचा सकें | लेकिन हम नदी के बहाव को रोक नहीं सकते | रोकेंगे तो नदी का बहाव बड़े से बड़े और मजबूत से मजबूत बाँध को भी तोड़ देगा | अभी कुछ साल पहले ही आपने सुनामी यानी पानी की शक्ति को महसूस किया या देखा ही होगा |

उसी प्रकार हमें अपनी सोच के बहाव को नियंत्रित करने के लिए बाँध बनाना ही पड़ेगा | अब आप कहेंगे या सोचेंगे कि अभी कुछ देर पहले तो मैंने कहा था कि हम अपनी सोच पर कण्ट्रोल नहीं कर सकते या रोक नहीं सकते तो दोस्तों मैं अभी भी यह ही कह रहा हूँ | हमें सोच को नहीं, सोच के अनियंत्रित बहाव को नियंत्रित करना है | उसे पॉजिटिव दिशा देकर सोच के बहाव को छोटी-छोटी नहरों में परिवर्तित करना है जोकि हमें और हमारे आस-पास रहने वाले हर किसी को फ़ायदा पहुंचा सके |

सोच के अनियंत्रित बहाव पर बाँध सिर्फ ध्यान या मैडिटेशन के द्वारा ही बनाया जा सकता है | वह हमारी उफनती सोच की नदी को नियंत्रित करता है और हमारी नेगेटिव और बेवजह सोच को एक पॉजिटिव दिशा देता है | हम समझ पाते हैं कैसे ख़ुशी हमारे अंदर ही है और हमें अपनी सोच और शारीरिक एनर्जी को ख़ुशी ढूढ़ने में व्यर्थ नहीं करना है अपितु खुश रह कर अपने आप को व दूसरों को खुश रखना है |

यहाँ हम अपनी सोच के अनियंत्रित बहाव को मैडिटेशन के बाँध से मैनेज कर रहे हैं न कि स्ट्रेस को मैनेज कर रहे हैं | गलत सोच स्ट्रेस पैदा करती है | जैसे नदी जीवनदायिनी है लेकिन उसका अनियंत्रित बहाव हमें दुःख देता है उसी प्रकार सोच का अनियंत्रित बहाव स्ट्रेस को जन्म देता है | स्ट्रेस हमारे जीवन में तूफान लाता है जबकि वही नियंत्रित सोच से कोई भी अविष्कार या अध्यात्म के क्षेत्र में उंचाई पर पहुँच सकता है | अब फैसला आपने करना है कि बहाव में बहना है या फिर उसे नियंत्रित कर उपयोग में लाना है | फैसला भी आपका और फायदा भी आपका, मेरा काम तो सिर्फ आपकी सोच को दिशा दिखाना है |

दोस्तों अब हम आत्मा की शान्ति के लिए एक प्रार्थना बोलेंगे | इस में ईश्वर एक नाम है उस अनंत अविनाशी और निराकार का | आप जिस भी धर्म या सम्प्रदाय से हैं आप राम, कृष्ण, वाहे गुरु, अल्लाह, जीसस या जिसका भी नाम लेना चाहें, ईश्वर की जगह बोल सकते हैं | अब आप मेरे साथ बोलते जाएंगे |

“हे ईश्वर हमें बुद्धि, शान्ति व ज्ञान दो | हम जो भी करते हैं वह हम ही करते हैं | हमारे साथ जो भी हो रहा है वह हमारे इस जन्म या पिछले जन्मों का ही फल है | हमें बुद्धि दो........ “इसी बीच स्टेज के काफी पास ही दो जोरदार धमाके होते हैं | चारों तरफ धुंआ और चीख़ पुकार मच जाती है |

यह देख अचानक गौरव की आँख खुल जाती है | वह बेड पर से कूद कर खड़ा हो जाता है | उसे कुछ देर तक कुछ समझ ही नहीं आता है | पसीने से उसकी पूरी बनियान भीगी हुयी थी और साँस बहुत तेज चल रही थी | वह पागलों की तरह आस-पास देखता है फिर उसे समझ आता है कि वह अपने घर में है और अभी-अभी सपने से जागा है | वह अपने आप को नियंत्रित करता है और पास पड़ी टेबल से गिलास उठा कर पानी पीता है और वहीं चुप-चाप कुछ देर बैठा रहता है |

कुछ देर में जब उसकी मनःस्थिति शांत होती है तो वह फिर से लेट जाता है और कब उसकी आँख लग जाती है उसे पता ही नहीं चलता है |

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