Krushna - 8 in Hindi Women Focused by Saroj Prajapati books and stories PDF | कृष्णा - 8 - अंतिम भाग

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कृष्णा - 8 - अंतिम भाग

कृष्णा जब से इस घर में आई थी, तब से ही देख रही थी कि उसके ससुर मोहन की अपेक्षा अपने छोटे बेटे संजय को अधिक प्यार करते हैं और उसकी हर अनचाही मांग को पूरा करते हैं। संजय ने छोटा सा बिजनेस किया हुआ था लेकिन उसकी लापरवाही की वजह से हर बार बिजनेस में घाटा हो जाता था । जिसकी भरपाई के लिए उसके सास-ससुर जब तब खुद भी और मोहन से भी पैसे ले उसके बिजनेस में लगाते रहते थे। मोहन में कितनी बार अपने माता पिता को समझाने की कोशिश की। संजय सही संगति में नहीं चल रहा अपनी बुरी आदतों के कारण ही वह बार-बार बिजनेस में घाटा कर रहा है लेकिन हर बार मां बाप संजय का ही पक्ष लेते हुए, मोहन को कहते हैं
"नहीं बेटा वह बेचारा अपनी ओर से पूरी जी तोड़ मेहनत कर रहा है लेकिन किस्मत ही साथ नहीं देती।" उनका ऐसा रवैया देख मोहन ने कहना ही छोड़ दिया था।
इसी बीच कृष्णा की जिंदगी में एक बार फिर से खुशियों ने दस्तक दी। वह मां बनने वाली थी। यह खुशखबरी जब उसने मोहन को दी तो उसने खुशी से झूमते हुए कृष्णा को अपनी बाहों में भर लिया और प्यार करते हुए बोला
"कृष्णा सचमुच मेरे सूने जीवन में तुम बाहर बनकर ही आई हो। पहले पति और अब पिता बनने का सौभाग्य तुम्हारे कारण ही मुझे मिला है। अब तुम्हें ज्यादा भागदौड़ करने की जरूरत नहीं है और ना ही किसी बात का का तनाव लेने की। अब पूरा ध्यान अपने खान-पान पर दो। जिससे कि तुम और हमारा होने वाला बच्चा सेहतमंद रहे।" कृष्णा ने उसकी बात सुन मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिला दिया।

एक दिन दुर्गा,कृष्णा से मिलने आई तो उसने अपने देवर और अपने सास-ससुर की बात उसे बताई तो वह उसे समझाते हुए बोली "माना कृष्णा तुम्हारा संयुक्त परिवार है लेकिन देखो तुम्हारा भी नन्हा मेहमान आने वाला है और अपने भविष्य के लिए भी कुछ बचा कर रखो। घर में तुम हो ही कितने प्राणी और एक तनख़ाह तो तुम दे ही रहे हो ना।"

यह सुन वह बोली "क्या करूं दीदी मेरे ससुर मेरा बहुत मान करते हैं और मैं उन्हें ना नहीं कर पाती सोचती तो मैं भी हूं बचाने की लेकिन हो ही नहीं पाता।"
"तेरी बात सही है लेकिन इस तरह दोनों हाथों से बिना सोचे समझे व्यर्थ में पैसे लुटाना समझदारी नहीं। भविष्य में क्या जरूरत पड़ जाए कह नहीं सकते आगे तुम्हारी मर्जी।" कह दुर्गा चली गई।
और वह खुशियों भरा दिन भी आ गया। कृष्णा ने एक बेटे को जन्म दिया। उसे गोद में उठाते हुए मोहन और कृष्णा की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। कृष्णा का चेहरा नारी की संपूर्णता पा और खिल उठा था। किंतु उसके सास-ससुर अब भी अपनी दुनिया में ही मस्त थे। उन्हें पोते से भी कोई खास लगाव ना था लगाव था तो बस रुपए और पैसे से।

कुछ महीने बाद ही कृष्णा के देवर का भी रिश्ता पक्का हो गया। एक रात खाना खाते हुए उसके ससुर ने मोहन से कहा
" बेटा तेरे छोटे भाई का रिश्ता तय हो गया है। यह तो तुम्हें पता ही है और कुछ ही महीने बाद शादी हो जाएगी तो मैं सोच रहा हूं यह घर थोड़ा छोटा है। इसे बेचकर हम एक बड़ा घर ले लेते हैं। जिसमें सारा परिवार एक साथ रह सकें।"

यह सुन वह बोला "कह तो आप सही रहे हो पापा।"

"मकान तो मैंने देख लिया है लेकिन पैसे थोड़े ज्यादा है। तुझे तो पता ही है ना सोनाली की शादी में कितना खर्च हो गया। थोड़े बहुत तो मैं कर दूंगा। लेकिन फिर भी पैसे पूरे नहीं हो रहे हैं तो मैं सोच रहा हूं क्यों ना हम बहू के जीपीएफ से कुछ पैसे निकलवा ले ।"
यह सुन कृष्णा बोली "नहीं पापा मैं अपने जीपीएफ से पैसे नहीं निकाल सकती। मेरे अकाउंट में तो वैसे भी अब कुछ नहीं है। बिट्टू के भविष्य के लिए भी तो कुछ सोचना है ना।"

" हां पापा कह तो कृष्णा सही रही है। संजय भी लोन क्यों नहीं ले लेता!"
यह सुनकर कृष्णा के ससुर बोले "उसने बिजनेस के लिए अभी तो लोन लिया था। फिर इतनी जल्दी नहीं मिलेगा लोन। मुझे समझ नहीं आ रहा। बहू को पैसे देने में क्या हर्ज है!"

"पापा जब मेरे पास पैसे थे, मैंने बिना कहे निकाल दिए। अब नहीं है तो मैं कहां से लाऊं!"
यह सुनकर उसकी सास गुस्से से बोली "अपने जीपीएफ से ही निकाल। तेरी एफडी भी तो होगी। शादी से पहले से ही तू नौकरी कर रही थी। तेरी सरकारी नौकरी देख कर ही तो हमने शादी की थी। नहीं तो तेरे जैसी काली लड़की को हम बहू बना कर लाते क्या!"
यह सुन कृष्णा सन्न रह गई "यह कैसी बात कर रही हो मम्मी! उस दिन तो आप कह रही थी कि आप मेरे स्वभाव को देखकर मुझे अपना रही हो। और आज जब मेरे पास पैसे नहीं तो आप ऐसी बातें कर रही हो। सुन रहे हो पापा मम्मी की बातें!"
" सुन रहा हूं बहू । वह कुछ गलत नहीं कह रही। सही कह रही !"
यह सुन उसे बहुत गुस्सा आया वह बोली "आज आप सब का असली रूप मेरे सामने आ गया है । मेरा तो रंग काला है लेकिन आप लोगों का तो मन काला है! जिसमें इतने नीच विचार भरे हुए हैं। पापा मैं तो आप दोनों को अपने माता पिता मान, इज्जत करती थी लेकिन आज मुझे खुद पर ही शर्म आ रही है कि मैं आपके अंदर बैठे चोर को क्यों ना पहचान पाई। आप सिर्फ मुझसे पैसे ऐंठने के लिए ही मीठी बातें करते थे !छी!!! पापा आप मुझसे जबरदस्ती नहीं कर सकते वरना!"

" वरना क्या करोगी तुम! जरा सुनें तो हम भी!" उसके ससुर गुस्से से बोले।
"पिताजी अपने व अपने बच्चे के हक के लिए मैं आपको काली का रूप धर कर दिखा सकती हूं। समझ रहे हैं ना आप!"
अपनी बहू का यह रौद्र रूप देख उसके सास-ससुर सकपका गए और आखिरी हथियार के रूप में अपने बेटे की ओर देखते हुए बोले
"देख रहा है! अपनी बेइज्जती करवाने के लिए लेकर आए थे क्या हम इसे?" यह सुन मोहन बोला
"पिताजी अपमान तो आप सब ने किया है, आज तक इसका। यह तो आते ही इस घर की हो गई थी। क्या नहीं किया इसने इस घर के लिए ! आपको अपने माता-पिता से बढ़कर माना लेकिन आपने इसे मेरी तरह से पैसे छापने की मशीन से ज्यादा कुछ ना समझा! आपको तो आज तक अपने बेटे की भावनाओं की कद्र नहीं रही तो फिर इसकी क्या होगी। मेरी मां के जाने के बाद आपको तो नयी पत्नी मिल गई लेकिन मुझसे तो मेरा पिता भी छिन गया। आपको तो यह भी नहीं पता होगा की रातों को मैं कितना रोया करता था और कितनी ही रात में भूखा सोया। यह तो मेरी मां के कोई पुण्य कर्म रहे होंगे जो कृष्णा मुझे पत्नी रूप में मिली और इसके लिए तो मैं अपनी नई मां का भी धन्यवाद करता हूं कि कृष्णा को पसंद करते हुए उनके मन में चाहे कैसे भी भावनाएं रही हो लेकिन उन्होंने मेरा भला ही किया। वैसे मां मैंने तो हमेशा आप में अपनी मां की छवि ही देखी है लेकिन आपने कभी मुझे अपना बेटा नहीं माना। आप तो फिर भी दूसरी है, मेरा खुद का पिता ही मुझे भूल गया तो आप से क्या उम्मीद रखूं। मैं इतने वर्षों से आप लोगों से मिला हर अपमान चुपचाप सहता रहा क्योंकि आप मेरे माता पिता है। लेकिन जब माता-पिता ही अपने फर्ज भूल जाए तो! मैं अपना अपमान सह सकता हूं लेकिन अपनी पत्नी का नहीं! जब हम दोनों के लिए आपके मन में नफरत ही है तो इस घर में एक साथ रहने का कोई औचित्य नहीं बनता। हम जा रहे हैं, अब हम अलग रहेंगे र ै! कृष्णा चलने की तैयारी करो!"
"यह आप क्या कह रहे हो! मम्मी पापा को छोड़ हम अलग रहे! यह‌ नहीं हो सकता!" कृष्णा ने कहा।
"इतना कुछ सुनने के बाद भी तुम इनके साथ रहना चाहती हो !"
"वह हमारे बड़े है। गुस्से में आकर उन्होंने कुछ कह भी दिया तो इसका मतलब यह तो नहीं हम उन्हें छोड़कर चले जाएंगे! क्या अच्छा लगेगा माता पिता के होते हुए, हम अनाथों की तरह जिंदगी गुजारे! हम जहां रहेंगे, सब साथ रहेंगे!"
कृष्णा की बात सुन उसके सास ससुर का चेहरा शर्म से झुक गया है। चाहकर भी उनके मुंह से बोल नहीं निकल पा रहे थे। किसी तरह हिम्मत जुटा कर उसकी सास बोली " बहू हमारे अपराध माफी के लायक तो नहीं लेकिन हो सके तो हमें माफ कर दे। हमने तेरे साथ इतना बुरा किया, फिर भी तेरे मन में हमारे लिए इतना दया भाव! सचमुच तेरे माता पिता महान है जो उन्होंने तुझे इतने अच्छे संस्कार दिए।"
"हां बहू तेरी सास सही कहा रहीै है। व्यक्ति अपने रंग रूप से नहीं विचारों से महान होता है। आज तूने इस बात को सार्थक कर दिया। हम चाह कर भी तेरे कद को छू नहीं सकते।" कह उन्होंने अपनी बहू के सिर पर हाथ रख दिया।
उन दोनों की बात सुन कृष्णा बोली '"आप दोनों कैसी बात कर रहे हो। आप बड़े हो। मुझसे माफी मांग, मुझे पाप का भागी मत बनाइए। बस अपना आशीर्वाद हमारे सिर पर सदा बनाए रखिएगा।"
मोहन के पिता उसकी ओर देख बोले "मोहन तेरा मैं सबसे बड़ा गुनाहगार हूं। सच कहता है तू! मैंने कभी पिता का नहीं निभाया लेकिन तू अपने सभी फर्ज निभाता रहा। मैं.......!!" कहते कहते मोहन के पिता का गला रूंध गया और उनकी आंखों से आंसू निकल आए।
मोहन अपने पिता के गले लग गया और बोला "पापा और कुछ ना कहिए!" और दोनों ही बाप बेटे के आंखों से आंसुओं के सैलाब में दिल के सारे बैर भाव बह निकले।
इस भावुक क्षण में कृष्णा व उसकी सास के आंखों से भी अविरल अश्रु धारा बह रही थी । सबके चेहरे पर वैसे ही शांति थी, जैसे बड़ा तूफान गुजरने के बाद चारों तरफ शांति छा जाती है।
मोहन के समझाने के बाद व अपने भावी जीवन के बारे में सोच अब संजय ने भी अपने बिजनेस पर ध्यान देना शुरू कर दिया था। उसके माता-पिता भी उसकी अनचाही मांगों पर ध्यान ना देते थे। अब उन का सारा दिन अपने पोते के साथ खेलने और घर के कामकाज में मदद करवाने में बीतने लगा था।
कृष्णा ने अपनी समझदारी व विवेक से ना केवल अपना घर टूटने से बचाया अपितु अपने सास-ससुर को भी उनकी गलतियों का एहसास करा दिया। उसके कारण ही मोहन को अपने माता पिता मिल पाए।
सच ही कहा गया है व्यक्ति रंग रूप से नहीं अपने कर्मों से महान बनता है।
यह वाक्य कृष्णा ने जीवंत करके दिखा दिया।
समाप्त
सरोज ✍️