Mahamaya - 9 in Hindi Moral Stories by Sunil Chaturvedi books and stories PDF | महामाया - 9

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महामाया - 9

महामाया

सुनील चतुर्वेदी

अध्याय – नो

अखिल तैयार होकर शाम सात-आठ बजे बाबाजी के पास पहुँचा। वहाँ पहले से एक मोटा आदमी बैठा था जो श्यामवर्णी था। उसके पास ही लगभग इसी हुलिये वाला एक नौजवान भी था। वानखेड़े जी हमेशा की तरह हाथ में माला लिये बाबाजी के दांयी और खड़े थे। मोटा आदमी बाबाजी से आगे के कार्यक्रम के बारे में चर्चा कर रहा था। नौजवान बीच-बीच में सबकी नजर बचाकर कनखियों से माताओं की ओर देख लेता था।

‘‘शोभायात्रा का कार्यक्रम कल दोपहर एक बजे रखा है बाबाजी’’ मोटे व्यक्ति ने हाथ जोड़कर बाबाजी से कहा -

‘‘बाबाजी कुछ जवाब देते इसके पहले ही वानखेड़े जी बीच में बोल पड़े - ‘‘किशोरीलाल जी आप बड़े अनुभवी आदमी हैं। हमें इतना ही कहना है कि शोभायात्रा बाबाजी के अनुरूप होनी चाहिये। बाबाजी तो समाधि को उपलब्ध संत हैं। उन्हें शोभायात्रा से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन हम सांसारिक लोगों को तो अच्छी बुरी सब बातों का ध्यान रखना पड़ता है।’’

‘‘आप निश्चिंत रहिये। मैं इतना ही कह सकता हूँ कि आज तक शहर में ऐसी शोभायात्रा नहीं निकली होगी।’’ कहकर किशोरीलालजी ने बाबाजी और दोनों माताओं को साष्टांग प्रणाम किया। नौजवान ने भी उसका अनुसरण किया। एक बार फिर किशोरीलाल जी ने बाबाजी के सामने दोनों हाथ जोड़ते हुए पूछा-

‘‘यहाँ कोई तकलीफ तो नहीं है बाबाजी?’’

‘‘नहीं बेटे...’’ बाबाजी ने मुस्कुराते हुए किशोरीलाल जी के सिर पर हाथ रखा‘‘

‘‘किशोरीलाल जी... यदि बाबाजी के कमरे में एक ए.सी. लग जाता तो ठीक रहता’’ निर्मला माई के स्वर में आदेश मिश्रित अनुरोध था।’’

‘‘अरे माताजी ये कौन सी बड़ी बात है। आपका आदेश हुआ और समझो काम हो गया।’’ कहते-कहते किशोरीलाल जी ने निर्मला माई के सामने दोनों हाथ जोड़कर सिर को थोड़ा सा झुका लिया।

बाहर निकलकर किशोरीलाल जी ने अपने एक खास सिपाहसालार को संत निवास के दोनों कमरों में ए.सी. लगाने का निर्देश दिया। फिर अपने नौजवान बेटे के साथ कार में बैठकर मंदिर प्रांगण से बाहर चले गये। अखिल बाबाजी से कुछ बात करना चाहता था लेकिन कुछ और लोग बाबाजी के दर्शनों के लिये आ पहुँचे। अखिल ने कुछ देर तो उन लोगों के उठकर जाने का इंतजार किया लेकिन बातों का सिलसिला खत्म न होता देखकर वह बाबाजी को प्रणाम कर माई की बगीची में लौट गया। सुबह जालपादेवी मंदिर प्रांगण में अच्छी खासी चहल-पहल हो गई थी। भक्त लोग बाबाजी के दर्शन के लिये संत निवास के बाहर इकट्ठा होने लगे थे।

दोपहर एक बजे मंदिर से बाबाजी की शोभायात्रा निकली। एक बग्घी को सुंदर रथ की तरह सजाया गया था। उसमें चार घोड़े जुते थे। घोड़ो का खूब श्रृंगार किया गया था। इस रथ में दोनों माताएँ बैठी। भगवा वस्त्र से सुसज्जित दोनों माताओं ने बालों का जुड़ा लपेटकर उसमें वेणी गूंथी थी। बाबाजी के लिये हाथी पर एक पालकी तैयार की गई। आठ-आठ बैण्ड, आतिशबाजी, लंबे डण्डों पर रेशमी भगवा कपड़ा और उस पर सतरंगी छतरिया, झूमर। हाथी की सवारी के आगे-आगे, गोटा किनारी वाली सुन्दर रंगी बिरंगी साड़ियों में लिपटी, माथे पर चांदी का कलश लिये, महिलाएँ। हाथी के बीच बग्घी, बग्घी के पीछे शस्त्रधारी पुरूष। जो थोड़ी-थोड़ी देर में बंदूक हवा में लहराते। गोलियों की गड़गड़ाहट से आसमान गूँज उठता। हाथों में नंगी तलवार लिये लोग तलवार बाजी का प्रदर्शन करते चल रहे थे। शोभायात्रा में स्थानीय अखाड़े थे। आगे-आगे बीस-बीस ढोलची जोर-जोर से अपने बड़े-बड़े ढोलों को लकड़ी की डंडियों से पीट रहे थे। अखाड़ों के पहलवान भी अपनी-अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर रहे थे।

बधाई गाती महिलाओं का तीखा लेकिन मधुर स्वर, बंदूकों की गड़गड़ाहट, तलवारों की झंकार, ढोल की थाप, बेण्ड की पूंपाऽऽऽ..... आतिशबाजी का शोर, अखाड़ों के बीच से उठता हर-हर, बम-बम, का स्वर। सब कुछ आपस में इस तरह गडमड हो गया था कि कुछ भी स्पष्ट सुनाई नहीं पड़ रहा था।

सड़क के दोनों और घर की छतों, छज्जों, बालकनियों में खड़े महिला-पुरूष, बच्चे, सभी पूरी श्रद्धा के साथ बाबाजी की पालकी और बग्घी में बैठी दोनों माताओं पर फूलों की वर्षा कर रहे थे। बीच-बीच में महायोगी...... महामंडलेश्वर की जय से आसमान गूँज उठता था।

साध्वी कुसुम कंधे पर थैला उठाये शोभायात्रा में कभी आगे पहुँच जाती और सिर पर कलश उठाये मंगला चरण गा रही महिलाओं के स्वर से स्वर मिलाकर गाने लगती। कभी बाबाजी पर फूल फैंकने वाले लोगों को डपटने लगती। कभी दोनों माताओं की बग्घी में चढ़ जाती। बग्घी चालक से घोड़ों की लगाम अपने हाथ में लेने के लिये झगड़ा करने लगती। कभी बाबाजी की पालकी के आगे-आगे चल रहे खप्पर बाबाजी की जटाओं में सड़क से उठाकर फूल सजाने लगती। कभी भीड़ में चल रही अनुराधा के पास जाकर उसके कान में कुछ कहती। कभी किसी अखाड़े में पहुँचकर ढोल की थाप पर नाचने लगती।

शहर के प्रमुख मार्गों से होता हुआ जुलूस शाम छः बजे वापस मंदिर पहुँचा। दिन भर से सूने पड़े मंदिर प्रांगण में फिर से चहल-पहल और शोर शराबा शुरू हो गया। मंदिर प्रांगण में यहां-वहां बिखरे लोग आज की शोभायात्रा का विश्लेषण कर रहे थे।

‘‘अभी तक नौगाँव के रिकार्ड में तो हमने ऐसी शोभायात्रा नहीं देखी’’ एक ज़्यादा ही उत्साहित नजर आ रहा था।

‘‘साधु में तप होना चाहिये फिर वो जहाँ खड़ा हो जाय वहीं रिकार्ड बनने लगते है।’’ दूसरा आनंद और श्रद्धा से सराबोर था।

‘‘पैसा हो तो सब रिकार्ड टूट जाते हैं।’’ तीसरा खींजा हुआ था।

‘‘होने को तो टाटा, बिड़ला और अंबानी से भी ज़्यादा पैसे वाले लोग है। पर रिकार्ड तोड़ने के लिये पैसा खरचने का कलेजा भी चाहिये भैया’’ चैथे ने तर्क दिया।

‘‘ये बात तो है। धरम-करम में अपने किशोरीलाल पैसा खरचने में बिल्कुल पीछे नहीं हटता। अभी एक महिने पहले ही ‘कासाराम बापू’ का कार्यक्रम करवाया था। उसमें भी लाखों खर्च कर दिये थे पट्ठे ने।’’ पाँचवें ने चैथे के समर्थन में कहा।

किशोरीलाल जी ने बापू जी की कथा धरम-करम के लिये नहीं करवायी थी। वो तो हंड्रेड परसेंट बिजनेस पॉलिसी थी। तुम्हे याद होगा जिस दिन कासाराम जी ने अपनी कथा में यह कहा था जिस भूमि पर भागवत कथा हो जाय वो पुण्य भूमि में तब्दील हो जाती है। उस भूमि पर निवास करने वाले लोगों के जीवन में कभी दुख-दर्द, बीमारी-संकट नहीं आते हैं। उसी दिन लोग टूट पड़े थे। प्लाट बुक कराने के लिये। नहीं तो यह कॉलोनी दो साल पहले कटी थी। कोई कुत्ता भी मूतने नहीं आया था यहाँ।’’ पाँचवा अब खरी-खरी पर उतर आया था।

‘‘क्यों भैया भाभी से झगड़कर आये हो क्या?’’ पहले ने उड़ाने वाले अंदाज में कहा।

सब हँस दिये।

‘‘तुम लोगों से बहस बेकार है’’ कहते हुए तीसरा गुस्से में मंदिर प्रांगण से बाहर चला गया।

इतने में साध्वी कुसुम कंधे पर झोला टांगे एक हाथ में सींक वाली बुहारी लेकर आ गयी। झाड़ू लगाते-लगाते बड़बड़ाने लगी ‘‘सबके सब अंधे हैं। किसी को कुछ दिखता ही नहीं। यहाँ कितनी गंदगी फैली है। साफ-सफाई का तो किसी को ध्यान ही नहीं है। अरे सब गंदगी के कीड़े हैं। गंदगी में ही पैदा हुए गंदगी में ही मरेंगे। कोई साफ-सफाई करना ही नहीं चाहता। कुसुम अकेली कितनी गंदगी साफ करेगी। कुसुम बड़बड़ाती जा रही थी और झाडू लगाती जा रही थी।

धूल उड़ती देख एक-एक कर लोग वहाँ से खिसकने लगे। पीछे से किसी ने कहा ‘‘भैया सरदी के खिसके जरा ज़्यादा सर्द होते हैं।’’ सब हँस दिये।

प्रवचन हॉल में आठ बजे भजन शुरू हो गये थे। मंच से राधामाई मधुर स्वर मंे ऊँ नमः शिवाय.. का जाप कर रही थी। आँखे मूंदे भक्ति में डूबे लोग दोहरा रहे थे ‘‘ ऊँ नमः शिवाय... ऊँ नमः शिवाय..।

क्रमश..