रमेसर के बुढ़ौती में जाके औलाद हुआ वो भी बेटी । वरना तो मेहरारू मन में मान चुकी थी कि बेऔलाद ही मरेगी लेकिन अब जाकर देव सहाय हुए और उसके महीने के चौदह व्रतों के फल स्वरूप उसकी गोद में लक्ष्मी डाल दी ।
छठियार को उत्सव की तरह मनाने की तैयारी होने लगी । सभी खुश थे सिवाय बड़के भैया बटेसर के परिवार के अलावा । भाई की खुशी से बटेसर खुश तो थे लेकिन पिता की जायदाद का हिस्सेदार आ गया जानकर थोड़े उदास थे । बटेसर की पत्नी के सीने में तो आग लगी हुई थी ।
समारोह के लिए चल रही तैयारियों के उत्साह में रमेसर इस ओर ध्यान नहीं दे पाए । भौजाई से किसी बात पर बहस कर बैठे । भौजाई ने बटेसर के पुरूषार्थ को ललकारा तो वे भी मैदान में आ गये । हाथापाई की नौबत आ गई । इतने में बटेसर के सुपुत्र दलन ने रणक्षेत्र में प्रवेश किया और सीधा ले लाठी कपार पर । रमेसर भरभराकर गिर पड़े । खून की पतली सी धार निकलकर नाक पर से होकर जीभ को छूने लगी ।
हल्की बेहोशी सी छाने लगी । एकटक दलन के चेहरे पर नजर टिका कर खो गये रमेसर । कैसे दलन जब छोटा था तो सरपर बिठाकर गाँव भर में घूमते रहते थे । दलन उनका बाल पकड़कर नोचते और कभी कभी सर पर ही मूत देते । जो सरककर कभी कभी उनके मुँह में चला जाता । स्वाद याद कर खून थूक दिया रमेसर ने । न! ये वो नमकीन पानी तो नहीं या शायद ये वो दलन नहीं ।
गाय दूहकर बाल्टी लिये पहले भौजाई की चौखट पर पहुंचते रमेसर दलन के लिए दूध रख लो भौजी ।
जब दलन जन्मे थे तब रमेसर का बियाह नहीं हुआ था । खेतीबाड़ी और दलन को खिलाना बस यही काम था रमेसर का ।
दलन भी चौबीस में बीस घंटे उन्हीं के पास रहते । भौजाई भी उनके खाने पीने का बहुत ध्यान रखती । वे मोटे होकर खेत की मेड़ न बन जाएं इसलिए इतना ही परोसती की खाकर बस कुदाल की बेंत सरीखी काया बनी रहे ।
वो तो कहिए दशक बाद जानकी बुआ नैहर आई और वो अड़तीस की उम्र में रमेसर को हल्दी लगवा गई । थाली चौकस लगने लगी तो रमेसर कुदाल की बेंत से फूलकर खेत की मेड़ हो गये । लेकिन दुर्भाग्य ने तब भी पीछा न छोड़ा सात आठ सालों तक आंगन में किलकारी न खिली तो दलन के प्रति मोह और बढ़ गया ।
दलन जब पढ़ने के लिए शहर जाने लगे तो पत्नी का सारा जेवर बटेसर को थमा दिये थे " बढ़िया जगह एडमिशन कराईयेगा भैया । यही एक तो हैं सबके । किसके लिए जोगेंगे धन दौलत । "
पत्नी कुनमुनाई थी तो झिड़क दिए थे " मरोगी तो साथ लेकर जाओगी क्या ?तर्पण तो यही करेगा न । "
वही दलन सर पर लाठी लिए खड़े थे । खून देखकर बटेसर घबरा गये लाठी छिनकर फेंक दिये । अंदर से रमेसर की पत्नी चार दिन की बेटी गोद में लिए दौड़ी । रोती कलपती जब उसने दलन को निर्वंश निपुत्तर होने का आशीर्वाद दिया तो रमेसर ने उसका हाथ कसके दबा दिया और "पानी पानी "बुदबुदाये ।
वो दौड़कर कटोरी में गंगाजल ले आई । बटेसर सर पर हाथ धड़े वहीं बैठे रहे । भौजाई सुरक्षित दूरी से दुआरी पर खड़े होकर रमेसर से इहलोक से प्रस्थान का आग्रह कर रही थी और वीर रस की कविताओं से दलन के इस कंटक को मिटा डालने का आवाहन ।
पत्नी ने ज्योंही कटोरी मुँह से लगाने की कोशिश की रमेसर ने हाथ से हटा दिया और नजरें दलन पर टिका दी । बटेसर ने कटोरी हाथ में लेकर दलन की तरफ बढ़ाया । लेकिन रमेसर के जीवन भर के कियेधरे पर भौजाई का कवित्त भारी पर गया ।
दलन ने हिकारत से कटोरी में थूक दिया और बाहर की तरफ बढ़ चले । बटेसर लाठी लेकर उसके पीछे मारने दौड़े लेकिन रमेसर लड़ाई झगड़े और मोहमाया से मुक्त हो चुके थे ।
Kumar Gourav