Hum bhi adhure tum bhi kuchh aadhe in Hindi Love Stories by डिम्पल गौड़ books and stories PDF | हम भी अधूरे..तुम भी कुछ आधे

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हम भी अधूरे..तुम भी कुछ आधे



तेज कदम बढ़ाते हुए विशाखा सूनी सड़क पर चली जा रही थी। सड़क किनारे लगे कतारबद्ध अशोक के वृक्ष भी असक्षम थे उसके मन की वेदना को मिटाने में ।
सड़क के उस ओर मोड़ पर बने उस नर्सिंग होम के एक कमरे में बैड पर उसके दिल का टुकड़ा अर्धमूर्छित हालत में पड़ा हुआ था। जिसके पास फिलहाल अपनों के नाम पर कोई भी न था ।
विशाखा को आज शाम ही किसी भी हालत में ऑपरेशन की फीस जमा करानी थी । तब कहीं जाकर उसके बेटे का ऑपरेशन कर पाएँगे डॉक्टर ।
इसी आवश्यक कार्य के लिए वह सड़कों पर दौड़ी जा रही थी । लॉक डाउन के कारण सड़क पर एक भी वाहन नज़र नहीं आ रहा था ।
बैंक में जितनी रकम इकठ्ठा थी सब लगा चुकी दवा पानी में ,मगर बेटे की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ । छोटी सी कंपनी में काम करने वाली विशाखा के सहकर्मी भी इतने समर्थ न थे कि उसकी मदद कर सकते ।
पेट में अचानक उठी असहनीय पीड़ा इतना बड़ा रूप अख्तियार कर लेगी उसे मालूम न था । डॉक्टर ने उसे बताया- यह गांठ कभी भी फूट सकती है, इसीलिए जल्द से जल्द ऑपरेशन कराना होगा ।
शहर में अकेली स्त्री करे भी तो क्या करे ,किस से मदद माँगे !
उसने जय को कई बार फोन किया मगर उसका फोन हमेशा स्विच ऑफ ही आता था । शायद दूसरा नम्बर ले लिया था उसने
माथे पर उभरी पसीने की बूंदों को दुपट्टे से पौंछते हुए वह उस मकान में पहुँच गई जो कभी उसका घर हुआ करता था! जिसकी दीवारें गवाह थी उन दोनों के बेशुमार प्यार की। मगर उस तूफान से भी अछूता न था यह मकान और उसमें रहने वाला आदमी उसके लिए एक अजनबी से ज्यादा कुछ न था ।
दरवाज़ा बंद था । उसने डोर बेल बजाई । दो तीन बार लगातार डोर बेल बजाने के बाद बंद दरवाज़ा खुल गया ।
सामने जय खड़ा था । बिखरे बाल,सूजी हुई बड़ी-बड़ी आँखें । शायद गहरी नींद से जागा था । विशाखा ने दुपट्टे से मुँह ढका हुआ था एकबारगी वह पहचान नहीं सका फिर उसके मुँह से निकला " विशाखा तुम !"
विशाखा का मन किया जल्दी से जय के सीने से लिपट जाए और फूट-फूटकर रोते हुए उसे सारा हाल कह दे । लेकिन उसने खुद को संयत करते हुए कहा-" जय, एक ज़रूरी बात कहनी है तुमसे । हमारा बेटा विक्की मौत के मुँह में है उसका ऑपरेशन कराना बहुत ज़रूरी है...तुम्हारी तरफ से कुछ मदद..कहते हुए वह रोने लगी ।

"क्या कह रही हो तुम ! कहा था न मैंने,मुझे दे दो विक्की को । नहीं रख सकीं न ध्यान तुम मेरे बेटे का..अब बताओगी कौनसे हॉस्पिटल में है वो ! "
"सुश्रुषा नर्सिंग होम में " विशाखा ने धीमे से जवाब दिया ।
जय ने आननफानन अपनी गाड़ी निकाली । सड़कों पर तेज गति से दौड़ाते हुए वह विशाखा के साथ हॉस्पिटल पहुँच गया ।
वहाँ पहुँच डॉक्टर्स से मिलकर सारी फॉरमैलिटी पूरी करने के बाद वह डॉक्टर के केबिन में से बाहर आया ।
आते ही विशाखा की ओर देखते हुए कहा - "कल होगा ऑपरेशन "
"तुम्हारा शुक्रिया किन शब्दों में करूँ जय । आज तुम न होते तो मेरा बेटा...."आँखों की कोर से आँसू बह निकले।
"क्या कह रही हो सिर्फ तुम्हारा बेटा। विक्की पर मेरा भी हक़ है विशाखा । वैसे तुमने फोन क्यों नहीं किया मुझे ।अरे हाँ! मैं तो भूल ही गया, तुम्हारा स्वाभिमान ! हर जगह आड़े आ जाता है, है न.." उसकी आवाज़ में तल्खी थी ।
"हर वक्त मेरी ही गलती नज़र आई तुम्हें । नम्बर बदल चुका है तुम्हारा। तुम्हारी ही तरह ।"
"कभी नहीं समझ पाओगी मुझे तुम.."कहते हुए वह उससे दूर जाकर खड़ा हो गया ।
विशाखा कुछ देर उसी मुद्रा में खड़ी रही फिर धीमी गति से चलते हुए जय के समीप पहुँच गई ।
"नैना कैसी है ?" एक प्रश्न जय की ओर उछला ।
जय ने उसकी आँखों में देखा। समंदर छलक रहा था वहाँ ।
" विदेश में है । अपने पति और बच्चों के साथ ।"दीवार की ओर देखते हुए,बड़ी सहजता से उसने यह बात कह दी।
यह सुनते ही विशाखा का रंग पीला पड़ गया ! हैरत से जय की ओर अपलक देखती रही " सच में जय, ये शक की सुई बड़ी नुकीली और जहरीली होती है । जब वो आँखों पर छा जाती है न, तब कुछ भी नज़र नहीं आता । दिखता वही है, जो शक दिखलाता है । हो सके तो मुझे माफ़ कर देना जय । धीरे-धीरे विशाखा के मन पर छाए गलतफहमी के बादल हटने लगे थे ।
कुछ देर वहाँ चुप्पी छाई रही ।
मौन को तोड़ते हुए जय अपनी बात कहने से खुद को रोक न पाया - "एक बात कहूँ विशु.. तुम्हारे बाद ये ज़िंदगी, ज़िन्दगी न रही । हो सके तो विक्की के ऑपरेशन के बाद घर लौट आना ।"
उसके इतना कहते ही विशाखा की आँखों से अश्रुधारा बह निकली और उसी की साथ मन में दबी गलतफहमियाँ भी बह गयीं ।
वह उजड़ा मकान अब फिर से एक घर बनने की प्रतीक्षा में था ।