Karn in Hindi Moral Stories by Amar Gaur books and stories PDF | कर्ण

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कर्ण

सुबह की सुहानी धूप में बैठ पंकज चाय की चुस्कियों का आनंद ले ही रहा था की तभी उसकी मां भागी भागी आई और बोली कि बहू की हालत खराब हो गई है, इसी वक़्त हस्पताल ले जाना पड़ेगा । पंकज बेतहाशा शारदा के कमरे की ओर दौड़ा और उसे बाहों में लेकर जल्दी से कार में बैठाकर हस्पताल की ओर चल दिया । हस्पताल पहुंचते ही इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करवाया और डाक्टर साब को तलब किया गया । डॉक्टर ने आकर शारदा की जांच की और बोले - " ऑपरेशन करना पड़ेगा "। शारदा को तुरंत ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया और कुछ घंटे बाद जो पंकज को सदियों समान लगे नर्स बाहर आई और पंकज के हाथ में एक छोटा सा रूई का टुकड़ा पकड़ा गई जो की ज़ोर ज़ोर से रो रहा था । नर्स बोली - " बधाई हो ! लड़का हुआ है । " पंकज जो हमेशा से ही लड़की चाहता था थोड़ा उदास हुआ पर बच्चे को हृष्ट पुष्ट देख उसकी उदासी जाती रही और उसकी जगह एक बहुत बड़ी मुस्कान ने ले ली । दो दिन बाद शारदा को घर लाया गया और उसका और बच्चे का ढोल नगाड़े संग स्वागत किया गया । घर में सभी ख़ुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे । पंकज के पिता जी अपने पोते को देख ख़ुशी के मारे रो पड़े और उसे गले से लगा लिया । घर के बुजुर्ग होने के नाते बच्चे का नामकरण उन्हें करना था और रोज़ गीता का पाठ करने वाले कृष्णकांत जी ने अपने पोते का नाम अर्जुन रखा ।

पंकज अगले दिन ऑफिस गया , सब लोगों को खुशखबरी सुनाई और एक हफ्ते की छुट्टी ले आया । ऑफिस में सबसे खुश उसकी सबसे अच्छी दोस्त पृथा हुई । दोनों कॉलेज में साथ साथ पढ़े थे और फिर उसके बाद एक ही दफ्तर में काम करने लगे इसलिए एक दूसरे के ख़ुशी और गम बराबर बांटते थे । पृथा उसके साथ बच्चे को देखने घर आई और पंकज की शादी के बाद वो पहली बार घर उसके घर जा रही थी क्योंकि शारदा को पंकज का उससे दोस्ताना कुछ खास पसंद नहीं था । पंकज ने भी शारदा को खुश रखने के लिए पृथा से बात करना काम कर दिया था पर वो अक्सर ये सोचता था कि क्या शारदा की खुशी के लिए अपनी ख़ुशी से समझौता करना सही था ? पंकज हमेशा से पृथा के करीब था और उसे पसंद भी करता था पर संकोचवश कभी उसे कह नहीं पाया क्योंकि उसे लगता था कि अगर पृथा ने माना कर दिया तो उसकी अच्छी दोस्ती भी जाती रहेगी । लेकिन दरअसल बात ये थी की पृथा भी उसे काफी पसंद करती थी और उसे खोने के डर से ही उसने भी पंकज से कभी अपने प्यार का इज़हार ना किया । फिर पंकज की मां एक दिन उसके लिए रिश्ता लेकर आईं और शारदा से दो दफा मिलने के बाद पंकज ने भी हामी भर दी । शादी होते ही धीरे धीरे वो पृथा से दूर होने लगा पर एक साल से ज़्यादा गुजर जाने के बाद भी उसका प्यार बेकरार था क्योंकि शारदा की बाहों में भी उसे वो सुकून कभी महसूस नहीं हुआ जो सिर्फ पृथा से बात भर करने पर आ जाया करता था । पर पिछले कुछ समय से शारदा गर्भवती होने के कारण कुछ चिड़चिड़ी हो गई थी जो की स्वाभाविक भी था किन्तु पंकज को ये अखरने लगा और वो उससे और दूर होने लग गया । वो घंटों दफ्तर के बाद पृथा के साथ वक़्त गुजारने लगा और अक्सर घर देर से ही आया करता था ताकि शारदा से ज्यादा बात ना करनी पड़े । शारदा को ये सब बुरा लगता था और आवेश में वो कई दफा पृथा को उल्टा सीधा कह दिया करती थी । बहरहाल बच्चे के जन्म पर जब पृथा घर आई तो दोनों ऐसे मिली जैसे जन्मों की बिछड़ी हुई बहने हैं । बच्चे को आशीर्वाद दे कर पृथा अपने घर चली गई और एक सप्ताह तक पंकज से कोई बात नहीं की । पंकज को पृथा का ये बर्ताव कुछ अटपटा लगा क्योंकि सालों तक शायद कोई दिन ऐसा नहीं गया था जब उन्होंने एक दूसरे से कोई बात ना की हो ।
जब अपनी छुट्टी के बाद पंकज वापिस दफ्तर गया और उसने उससे इसका कारण पूछा तो पृथा बोली - " पंकज मुझे लगता है की तुम्हें अपनी गृहस्थी पर ध्यान देना चाहिए । शारदा एक अच्छी लड़की है और इस समय उसे तुम्हारी मुझसे ज्यादा जरूरत है । मैं नहीं चाहती की मैं तुम्हारे जीवन में और कठिनाइयां लाऊं । मुझे लगता है हमें बात बंद कर देनी चाहिए"
पंकज स्तब्ध रह गया और फिर संभलकर बोला - " ऐसी कोई बात नहीं है । शारदा भी जानती है की हमारे बीच का रिश्ता सिर्फ दोस्ती का है और उसे इससे कोई दिक्कत नहीं है । "
"लेकिन क्या तुम जानते हो कि हमारे बीच का रिश्ता क्या है ? हम दोनों ही जानते हैं की ये दोस्ती से बढ़कर है लेकिन हम दोनों ही इसपर बात करने से कतराते हैं । हम दोनों के लिए ही ये सुगम होगा की हम अलग अलग राह चले जाएं । "
" मैं इस वक़्त इस बारे में कुछ नहीं कह सकता । ठंडे दिमाग से आज की पार्टी में इस बारे में बात करते हैं । "
इतना कहकर पंकज वहां से उठकर चला गया ।
उस दिन दफ्तर की वार्षिक पार्टी थी जिसमे सभी लोग एक क्लब जाया करते थे और वहां नाच गाना करते। शाम हुई और पंकज और पृथा ने टैक्सी ली और क्लब पहुंचे। वहां पहले से ही महफ़िल जमी हुई थी और उन दोनों ने भी खूब नाच गाना किया । पार्टी खत्म हुई तो पृथा बोली की तुम बहुत नशे में हो, ऐसे में घर ना जाओ मेरे घर चल पड़ो । दोनों टैक्सी ले पृथा के घर पहुंचे और देर रात तक सोए नहीं । घंटों एक दूसरे से पिछड़ी बातें करते रहे और बातों बातों में एक दूसरे से प्यार का इज़हार भी कर ही बैठे ।
सुबह पृथा बोली - " पंकज हमें बात बंद कर देनी चाहिए । अब हम ऐसे और नहीं रह सकते, अब तुम्हें अपने परिवार का ख़्याल भी रखना है । "
पंकज - " तुम्हारा हुक्म मेरे सर आंखों पर, प्यार में तो लोग जान भी दे देते हैं तो मैं इतना तो कर ही सकता हूं । "
अगले दिन बहुत सोच विचार के बाद पंकज ने अपना इस्तीफा दे दिया और दूसरी नौकरी की तलाश करने लगा । जल्द ही उसे दूसरी नौकरी भी मिल गई और उसकी ज़िन्दगी भी वापिस पटरी पर आ गई । शारदा भी उससे अब कहीं ज्यादा खुश रहती थी और बच्चे की खुशी तो सबसे ज़्यादा होती ही है । नन्हा अर्जुन देखते ही देखते बड़ा हो गया और उसके पहले जन्मदिन पर उसके दादा जी ने एक बड़ी पार्टी आयोजित की । सभी जान पहचान के लोगों को बुलाया गया । शारदा पंकज से बोली - "पृथा को भी बुला लेना, कितने दिन से उससे भी मुलाकात नहीं हुई " । पंकज ने निर्णय किया की आज दफ्तर के बाद सीधा पृथा के घर हो आयेगा और उसे भी निमंत्रण दे आयेगा । शाम को जब वो पृथा के घर पहुंचा तो एक 2-3 महीने का बालक आंगन में खेल रहा था । पंकज अंदर कमरे में गया और नाराज़ होकर बोला - "क्या पृथा ! तुमने शादी भी कर ली और मुझे बताया भी नहीं । अब क्या हम इतने दूर हो गए हैं ? और इतनी जल्दी बच्चा भी कर लिया, ऐसी क्या जल्दी थी भाई ! "
रसोई से बेढ़ाल पृथा कमरे में आई और हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली - " मैंने शादी नहीं की पंकज, ये हमारा बेटा है कर्ण ! "