shivambhika - 1 in Hindi Love Stories by Monika kakodia books and stories PDF | शिवाम्बिका - 1

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शिवाम्बिका - 1

मॉमी.... मॉमी..... कहाँ हो प्लीज़ आओ ना...प्लीज़ एक कप कॉफ़ी बना दी ना, प्लीज़ मॉमी।

एक स्नेह भरा हाथ अम्बिका के बालों को सहलाने लगा। माथे पर बिखरे केसुओं को चुन चुन कर चोटी में पिरोने लगा । तर्जनी उंगली छूने लगी उसके गालों को,और चुपके से उसके अधरों को, छूते हुए इस बात का पूरा ख़याल रहा कि नींद ज़रा भी ना टूटे। अम्बिका का चेहरा अभी तक तकिये में गड़ा हुआ है , इतने लाड़ से सहलाता हुआ ये हाथ उसे फिर से नींद की सुनहरी दुनिया में ले जाने लगा। दुनिया ऐसी जहाँ अम्बिका के पीठ पर दो पँख उग आए थे, जिन्हें फड़फड़ाते हुए उसे तय करना था मीलों तक का अम्बर। उड़ते हुए ही छूने थे समंदर में उठते हुए ज्वार भाटे। ऊँचे ऊँचे दरख़्त की नव कोंपलों पर गिरती हुई सूरज की किरणों को भी देखना था। यूँ तो ये सपना अम्बिका के लिए हकीकत से कम नहीं था।

कोई जरूरी काम याद आते ही हाथ हटा ही था, कि अम्बिका किसी नवजात की भांति कुलबुलाने लगी और पलट कर हाथ फिर से थाम लिया । आँखे अब भी बंद,इन्हें खोल कर वो उस खूबसूरत एहसास को क़तई खोना नहीं चाहती। अम्बिका को यूँ बच्चों सा मासूम देख शिव की हँसी निकल गई।

"ओह अम्बु ..मेरी अम्बु यु आर लुकिंग सो क्यूट"
खिलखिलाते हुए शिव ने अम्बिका को बाहों में कस लिया और चूमने लगा उसके माथे को जिन पर अभी भी केसुओं का पहरा लगा हुआ था।

" शिव ! तुम थे क्या ? मुझे लगा मॉमी हैं " अम्बिका ने शिव की बाहों से खुद को आज़ाद किया ,और सारे केसुओं को एक एक कर इकट्ठा करके जुड़े में क़ैद करने लगी।

शिव ने मौका पा फिर से अपनी बाहों को उसकी कमर पर कस दिया। शिव की मद्धम हँसी अभी भी उसके अधरों पर जमी हुई है, "
कोई बात नहीं यूँ समझो मैं भी तुम्हारी मॉमी हूँ" अम्बिका महसूस कर रही थी अपनी नाभि के पास एक सरसराहट को।

"तुम भी ना शिव हद करते हो , उठाया क्यों नहीं मुझे ,क्या सोच रहें होंगे सब ,कैसी बेशर्म बहू है 8 बजे तक सोई हुई है, सुनो तुम्हारी मम्मी गुस्सा तो नहीं हैं ना, बाहर सब नॉर्मल तो हैं ना, अब छोड़ो भी ना, शिव हँसना बन्द करो ,बताओ तो, " उँसास ले अपने दोनों हाथों की ताकत से अम्बिका एक बार फिर शिव की बाहों से ख़ुद को आज़ादी दिलाने में सफल हो गई।

"अरे मेरी अम्बु तुम घर में ही हो, किसी क़ैद में नहीं इतनी फ़िक्र क्यों करती हो , मैं हूँ ना , मैं सब सम्भाल लूँगा
तुम तो बस ये बताओ चाय पीओगी या कॉफ़ी ?

खिड़की से आती सुरमई धूप के साथ साथ शिव के अधरों की हँसी का प्रतिबिंब भी अब अम्बिका के अधरों पर भी दिखने लगा....

वो काम जो शिव के हाथों को यकायक याद आया था, बेशक़ ये ही रहा होगा । कहीं ये धूप अम्बिका के चेहरे पर पड़ कर उसकी नींद में ख़लल ना डाल दे, इसी डर से पर्दो को पहरेदार बना दिया जाए।




क्रमशः........