Adhuri Mannate - 2 in Hindi Fiction Stories by Iqbal Amrohi books and stories PDF | अधूरी मन्नते - 2

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अधूरी मन्नते - 2

अधूरी मन्नते - भाग 2
प्रिय पाठकों किसी भी कहानी उपन्यास के 2 भाग कहानी की
दरवाज़े के दूसरी तरफ रजनी,,(मन्नत की सौतेली माँ,, सिर्फ नाम से नही बल्कि रवैया भी सौतेला ही है,,, ना तो रजनी को मन्नत एक आँख भाती है,,और ना ही मन्नत को रजनी,,फिर भी दोनों रहती है एक ही छत के नीचे,,) ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाते हुए,,मन्नत को आवाज़ देते हुए कहती है,
" महारानी साहिबा अब उठ भी जाओ,,, तुम्हारे पापा ने नोकर नही रखे हुए है यहां,,, जो,,आगे पीछे घूमेंगे,,,,,कोई काम से मतलब नही ,, सिर्फ खाने आ जाती हो,, " मन्नत भी कोई कम नही है अंदर से ही सब सुनते हुए दरवाज़ा खोलकर, पलट जवाब देते हुए कहती ," जी! बिल्कुल अगर मैं खाती हूं ,, तो अपने पापा का ही खाती हु।।।आपका नही,,,,,लेकिन इस जवाब से भी रजनी को चैन नही पड़ता बल्कि,,,ताना मारते हुए कहती है,," अच्छा,, इतना ख्याल है अपने पापा का तो सुबह का नाश्ता क्यों नही बनाती हो, वेसे भी सुबह का नाश्ता तुम्हारे ज़िम्मे ही है ना,,, मन्नत जवाब देने को होती है,,,की रिषभ ( 23 साल फेयर कलर, स्टाइलिश बाल चहरे पर हल्की सी दाढ़ी,, हैंडसम कहे तो गलत ना होगा, मन्नत का सौतेला भाई,,, सौतेला सिर्फ,,, नाम का ही है मन्नत को अपनी सगी बहन से भी ज़्यादा मानता है,,, म) दबे पाँव रजनी के पीछे आकर खड़ा हो जाता है,,,और मुँह पर उंगली रखते हुए मन्नत को चुप रहने का ईशारा करता,, साथ ही साथ अपनी ओर हाथ का इशारा करते हुए यह भी,कहता है ,,की माँ को वो सभाल लेगा।,,,, मन्नत भी रिषभ को सगा भाई मानती है,,तो वो उसके इशारे को समझते हुए चुप हो जाती है,,, ,,रिषभ अपनी माँ को बीच मे ही टोककर समझाते हुए कहता है,,, ," अरे,आप लोगो की महाभारत फिर से शुरू हो गई,, ,,अरे मॉम आप यहां क्या कर रही है जल्दी जाइये डेड आपको बुला रहे है,,, ,रिषभ की बात सुन रजनी मन्नत को घूरती हुई,,तुनक कर नीचे चली जाती है,,, रजनी के जाते ही ,, रिषभ अपने कान पकड़ते हुए मन्नत से कहता है,," सॉरी ,,सॉरी,, अरे मन्नत मैं ही तुम्हे जगाने आ रहा था, पर मुझसे पहले मॉम ऊपर आ गई,,, मन्नत एक टूक रिषभ को बोलते हुए देख रही है एक दम मुस्कुराते हुए कहती अरे मेरे भाई मेने कुछ बोला तुम्हे?? नही ना! , कितनी बक-बक करता है तू?? ,,, बात करते करते मन्नत की नज़र दीवार पर टँगी घड़ी पर पड़ती है,,,और बिना कुछ बोले नीचे की ओर दौड़ पड़ती है,,,सीढ़ियों से उतरते, ही एक बड़ा हॉल जिसके दाई ओर,,, डाइनिंग रूम है जहां घर के बाकी सदस्य,,नाश्ते के लिए डाइनिंग टेबल पर बेठे है,,,टेबल के सामने ,,मेजर साहब, (लम्बी चौड़ी कद काठी,, बड़ी-बड़ी मूछें , मोटे फ्रेम का चश्मा ,, सर पर अभी भी पूरे बाल है जो सफेद हो चुके या ये कहा जाए के मेजर साहब ने कभी डाई नही किये),,,,उन्ही की बगल वाली कुर्सी पर,,, अर्णव, (32 साल मन्नत का सगा बड़ा भाई बिज़निस के सिलसिले में,, साल के ज़्यादातर महीने शहर से बाहर ही रहता है,,, शायद इसलिए परिवार को समय नही देता पाता है,, लेकिन उसके सहमति के बिना मेजर साहब कोई फैसला भी नही लेते है,,,) अर्णव की ठीक बराबर वाली चियर पर ,,, रश्मि( उम्र 19 साल (मन्नत की सौतली बहन घर में सबसे छोटी इसलिए लाड प्यार ने उसे ज़िद्दी बना दिया है,,,, उसे सगे सौतेले का फर्क समझ नही आता ,, वो तो बस सबको प्यार देना जानती है,,, हाल ही में ग्रेजुएशन पूरा किया है,,) मन्नत,, इतनी तेज़ी से सीढ़ियों उतरती है कि सब घबराकर कर उसकी तरफ देखते है,,, मेजर साहब चाय की चुस्की लेते हुए कहते है,,, "अरे बेटा ध्यान से सीढ़ियों से गिरने का इरादा है क्या?? " उस पर अर्णव मुस्कुराकर कहता है " डेड ये नही सुधरने वाली,, कही जाना होगा,,अब ये हर बार की तरह ,,, आफ़त मचाएगी,,,,," मन्नत अर्णव की बात सुनते हुए जवाब देती,,है,,, " बस आप लोगो को मेरी खिंचाई का मौका मिल गया, ( उदास चेहरा बनाते हुए किसी बच्चे की तरह) डेड देखिये ना भाई को,,, मन्नत की बात सुनकर अर्णव ज़ोर ज़ोर हसने लगता है,,, और कहता है,," अरे ,,बाबा मज़ाक कर रहा हु ,, अच्छा इतनी भागा दौड़ी किस लिए हो रही है ,,, कही जाना है क्या?? ,, उस पर मेजर साहब भी बीच मे बोल पड़ते है" अरे नाश्ता तो कर ले बेटा ! फिर जहाँ जाना है चली जाना? मन्नत पीछे से ही अपने डेड के गले मे बाहे डालती हुई,,,कहती है,,, " जी डेड जाना तो है! डेड आज IBPS फॉर्म सबमिट करने की लास्ट डेट है जिसके लिए मेने कॉलेज से bonafied सर्टिफिकेट इशू करवाया है,,, कॉलेज का ऑफिस भी 12 बजे तक ही खुलेगा।।,,,,, बस इसी बात की जल्दी है,,, अभी मन्नत अपनी बात पूरी भी नही कर पाती के पीछे से,,,रजनी आ जाती है,,, डाइनिंग टेबल से चाय का कप उठाते हुए , मन्नत की तरफ देखकर तन्ज़िया लहजे में कहती है," हा हा जाओ जिसे जहाँ ,,,जाना है,,, एक मैं ही तो नोकरानी हूँ इस घर की ,, बाकी किसी को परवाह तक नही है,,,मन्नत कान खोल कर सुनलो जब तक सारे कपड़े नही धुल जाते तब तक तुम कही नही जाऊंगी,,, और ना जाने की कोशिश करोगी,, इतना कहकर रजनी वापिस किचन में चली जाती है,,, , रजनी की बात सुनकर मन्नत का चेहरा मुरझा जाता है,, वो आस भरी निगाहों से ,,अपने भाई और पिता की ओर देखती है के शायद वो कुछ मदद कर दे, लेकिन मेजर साहब और अर्णव बिना कुछ कहे ,, अपना मुंह दूसरी तरफ फिरा लेते,, मेजर साहब अपने रूम में और अर्णव ऑफिस के लिए निकल जाता है,,, है,,,,,जिससे ये ज़ाहिर होता है की, रजनी के फैसले के आगे दोनों बाप बेटे भी लाचार है,,,और मन्नत की कोई मदद नही कर सकते !!