Anu aur Manu Part-3 in Hindi Fiction Stories by Anil Sainger books and stories PDF | अणु और मनु - भाग-3

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

अणु और मनु - भाग-3

गौरव ने ब्रेक लगाते हुए जैसे ही गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी की तो सब एक साथ बोल उठे “आ गया क्या” ? गौरव गाड़ी का इंजन बंद करते हुए बोला “हाँ” |

वैशाली जल्दी से गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर उतरते हुए एक लम्बी साँस लेकर बोली “कुछ जल्दी नहीं आ गये” |

कुणाल मुस्कुराते हुए बोला “मैडम आप सो गईं थी, इसलिए आपको पता ही नहीं चला”|

सिम्मी उतर कर अंगड़ाई लेते हुए बोली “गौरव यहाँ तो गाड़ियों की लाइन लगी हुई है | और तुम तो कह रहे थे कि..... ” |

गौरव कुछ बोल पाता इससे पहले ही मोहित बोला “अबे यार...... ये जगह तो बहुत सुंदर है | वो देखो वहाँ..... एक छोटा-सा पार्क भी है” | फिर दूर से ही पार्क के अंदर झांकते हुए बोला “अरे! देखो पार्क में छोटे-छोटे ख़रगोश....”, कह कर वह तेज क़दमों से उसी ओर चल देता है | मोहित के पीछे-पीछे बाकी सब भी पार्क की ओर दौड़ पड़ते हैं | गौरव और रीना वहीं गाड़ी के पास खड़े-खड़े उनकी ख़ुशी देख मुस्कुरा कर एक दूसरे को देखते हैं | रीना गौरव से नजर चुरा कर चारों तरफ देखते हुए बोली “जगह तो बहुत ही सुंदर और अच्छी लग रही है | आप तो कह रहे थे कि छोटी-सी दूकान है | यहाँ तो शानदार वातानुकूलित रेस्टोरेंट है” |

रीना की बात सुन गौरव चारों ओर हैरानी से देखते हुए बोला “मैं तो खुद हैरान हूँ कि एकदम काया पलट कैसे हो गया है | पहले तो मैं यहाँ रुक ही नहीं रहा था लेकिन फिर मेरी निगाह उस छोटे से बोर्ड पर पड़ी जहाँ पर अभी भी वही लिखा हुआ है | बस वही बोर्ड देख कर ही मैंने गाड़ी यहाँ रोकी थी | बाकी तो अंदर जा कर ही पता लगेगा”|

रीना, गौरव की बात सुन हैरान होते हुए बोली “मतलब आपको भी पक्का नहीं है | काफी दिन के बाद आ रहे हो क्या” ?

“हाँ, लगभग दो साल तो हो ही गए होंगे | चलो अंदर चलते हैं तभी पता चलेगा”, कह कर गौरव रेस्टोरेंट की तरफ चल देता है | रीना कुछ रुक कर गौरव के पीछे-पीछे चल पड़ती है |

रेस्टोरेंट के अंदर का नजारा देख कर गौरव हैरान रह जाता है | वह जगह एक शानदार रेस्टोरेंट में तबदील हो चुकी थी | सुंदर और आर्टिस्टिक स्टाइल की टेबल और कुर्सियां थी | पेंट-कोट और टाई लगाए छः-सात लड़के लड़कियाँ वेटर बने टेबल पर बैठे लोगों से ऑर्डर ले रहे थे | दूर कोने पर रसोई भी किसी अच्छे रेस्टोरेंट की तरह दिख रही थी | गौरव की नजर रेस्टोरेंट की दीवार पर पड़ती है तो वह देख कर हैरान हो जाता है कि दीवारों पर बहुत बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स लगी हुयीं थी | वह समझ गया कि यह वही जगह है | वह रीना की ओर देखते हुए बोला “ये पेंटिंग्स देख रही हो, इनको देख कर ही समझ में आता है कि यह वही जगह है” |

“वह कैसे” ? रीना हैरान होते हुए बोली |

“यह सब पेंटिंग्स मेरे अप्पा की पसंद की हैं...........”, अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि उसे जानी पहचानी आवाज सुनाई दी | “हां, यह तुम्हारे अप्पा की पसंद की हैं” | गौरव और रीना हैरान हो उस तरफ देखते हैं जिस तरफ़ से आवाज आई थी | बाबा को सामने देख गौरव का मुँह खुले का खुला रह जाता है | आज से लगभग दो साल पहले पीले पड़ चुके सफ़ेद कुर्ते-पायजामें में लिपटा वह बुजुर्ग जिसके बिखरे हुए लम्बे और सफेद सिर के बाल ऐसे लगते थे जैसे उनमें कभी कंघी ही न की हो और लम्बी सफ़ेद बिखरी हुई दाड़ी उसकी मानसिक अस्थिरता को दर्शाती थी | वह बुजुर्ग आज उसके सामने सफ़ेद चमकते रंग के कुर्ते पायजामें में करीने से कटे बाल और दाड़ी में खड़ा था | आज उसका दमकता चेहरा जिस पर हल्की मुस्कराहट एक अलग ही कशिश पैदा कर रही थी | बाबा गौरव को ऐसे एक टक देखते हुए बोले “क्या हुआ बेटा” |

गौरव नम आँखों से सकपका कर बाबा के पैरों की ओर झुक जाता है | बाबा उसे कन्धों से उठा कर गले लगाते हुए बोले “बहुत समय के बाद आए | तुम्हारे अप्पा का फ़ोन अभी आया था वह कह रहे थे कि गौरव बस आपके पास पहुँचने ही वाला होगा और देखो तुम आ भी गए” |

बाबा के चेहरे पर एक अध्यात्मिक तेज देख, रीना और बाकी सब दोस्त न चाहते हुए भी बाबा के पैरों में झुक जाते हैं | बाबा यह देख ख़ुशी से झूमते हुए बोले “बस, बस बेटा, आज के जमाने में भी आप लोगों का यह प्यार देखते ही बनता है | बहुत अच्छा लगा | ईश्वर आपको सबको लम्बी आयु व हमेशा खुश रखे | आओ तुम्हें दादी से मिलवाता हूँ | वह तुम्हें देख कर बहुत खुश होगी | उसे तो मालूम भी नहीं कि तुम आने वाले हो” | बाबा का चेहरा ख़ुशी से दमक रहा था और पूरा शरीर चहक रहा था बाबा ऐसे चल रहे थे जैसे वह हवा में उड़ रहे हों |

बाबा सब को इशारा करते हुए गौरव के कंधे पर हाथ रख कर रेस्टोरेंट के पीछे की ओर चल देते हैं | शीशे के दरवाजे को पार करने के बाद एक बड़ा सा गलियारा था जिस मे दोनों ओर बने कमरों के दरवाजे खुलते थे | उन में से ही एक कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल होते हुए बाबा बोले “आओ बच्चों” |

वह एक बड़ा-सा कमरा था जिसके बीचो-बीच शीशे की एक अंडाकार टेबल के चारों तरफ बहुत ही सुंदर दस कुर्सियां लगी हुई थीं | बाबा ख़ुशी की वजह से बोल भी नहीं पा रहे थे उन्होंने हाथ का इशारा करते हुए सबको बैठने को कहा | वह कमरा भी वातानुकूलित था | उस कमरे में अक्षित व बाबा के परिवार की फ़ोटो टंगी हुयीं थी | वहाँ छोटे-छोटे लकड़ी के नक्काशी दार फ्रेम्स में कई और फोटो भी लगी थीं |

बाबा लगभग भर्राई आवाज में बोले “तुम लोग यहाँ बैठो, मैं अभी तुम्हारी दादी को लेकर आता हूँ”, कह कर वह आँखें पोंछते हुए कमरे से बाहर की ओर चल देते हैं | बाबा के जाते ही सब अपनी जगह से खड़े हो कर वहाँ दीवार पर लगी फोटो को देखने लगते हैं |

*

कुछ ही देर में दरवाज़े के बाहर से एक बूढी औरत की आवाज़ आती है | “यहाँ क्या दिखाने लाये हो ऐसे कह रहे हो जैसे कि......”, कहते एक झटके से कमरे का दरवाज़ा खुलता है और सुन्दर साड़ी पहने हुई दादी कमरे में दाखिल होती है | बाबा ने दादी की आँखों पर हाथ रखा हुआ था | बाबा को दादी की आँखों पर हाथ रखा देख गौरव जल्दी से दबे पाँव दरवाज़े के पीछे आकर छुप जाता है बाकी सब दादी को देख खड़े हो जाते हैं|

“अब अपना हाथ तो हटाओ”, कह कर दादी, बाबा का हाथ हटा देती है | अपनी आँखें पोंछती हुए दादी बोली “यह लोग कौन हैं”?

बाबा मुस्कुराते हुए बोले “पहचानो कौन हैं ये बच्चे” ?

सबको ध्यान से देखते हुए वह बोली “ये बच्चे तो अच्छे घरों के लगते हैं, जरूर दिल्ली से आए होंगे | अगर दिल्ली से आए हैं तो फिर ये अपने गोरु के दोस्त ही होंगे, क्यों सही है न” |

कोई भी कुछ नहीं बोला क्योंकि किसी को समझ ही नहीं आया कि ये गोरु कौन है | बाबा उन सब की स्थिति समझते हुए मुस्कुरा कर बोले “हां, तुमने सही पहचाना | यह सब गौरव बाबा के दोस्त ही हैं” |

यह सुन कर दादी खुश होते हुए बोली “बहुत अच्छे, पता नहीं क्यों सुबह से ही मुझे ऐसा लग रहा था कि आज गोरु आएगा”, फिर कुछ रुक कर भर्राई आवाज में बोली “बेटा तुम लोग आए, बहुत अच्छा लग रहा है लेकिन उसको भी साथ लेकर आते तो आज एक माँ के दिल की आवाज पूरी हो जाती | बहुत टाइम हो गया है अपने बच्चे को देखे हुए | बैठो-बैठो, तुम लोग खड़े क्यों हो” |

बाबा सबको बैठने का इशारा करते हुए बैठ जाते हैं | बाबा व दादी को बैठते देख सब बैठ जाते हैं | दादी रीना की ओर देखते हुए बोली “बेटा, तुम्हारे चेहरे की ख़ुशी देख कर लग रहा है कि तुम लोग मुझ से कुछ छुपा रहे हो | गोरु भी तुम लोगों के साथ ही आया है | क्यों सच बात है कि नहीं”?

इससे पहले कोई कुछ बोलता | गौरव दरवाजे के पीछे से निकल कर “दादी, सही पकड़े हैं”, कह कर दादी से लिपट जाता है | यह देख सब के चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है | ऐसा प्यार और वह भी एक अनजान से उन्होंने पहली बार देखा था | रीना और मोहित की आँखे नम हो आती हैं | दादी के चेहरे पर ख़ुशी देखते ही बनती थी | वह बार-बार गौरव का चेहरा पकड़ कर चूम रही थी |

“मुझे मालूम था कि तू आया है वरना ये इतने खुश-खुश मुझे यहाँ लेकर न आते”, कह कर वह एक बार फिर से गौरव का माथा चूम लेती है | गौरव उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोला “ये सब मेरे कॉलेज के दोस्त हैं” | फिर गौरव अपने दादा, दादी से सबका परिचय करवाता है और सब अपनी जगह से उठ कर दादी के पाँव छूते हैं |

गौरव बाबा को देखते हुए बोला “बाबा यहाँ की काया तो पूरी तरह से पलट गई है | यह सब इतनी जल्दी कैसे हो गया” |

बाबा मुस्कुराते हुए बोले “अब बेटा तुम ही इतने समय के बाद आए तो हम क्या करें.....”|

बीच में ही बात काटते हुए दादी बोली “तुझे मालूम है तू आज दो साल एक महिना और दस दिन के बाद आया है”| सब हैरान हो दादी को देखते हैं कि दादी के पास साल महिना दिन और शायद घंटो का भी हिसाब होगा | यह देख सबकी आँखें नम हो जाती हैं | रीना मन ही मन बोलती है ‘कमाल है ऐसा प्यार तो मैंने आज तक नहीं देखा | ऐसा लगता है कि मैं भी दादी से मिली हुई हूँ | लेकिन कहाँ....”?

दादी की आवाज सुन रीना की तन्द्रा टूटती है | दादी उसकी ओर देखते हुए ही बोल रही थी “बेटा तुम क्या सोचने लगी | जरूर यही सोच रही होगी कि इससे पहले हम कहाँ मिले थे ? क्यों हैं न, यही सोच रही थी न” ?

रीना मुस्कुराते हुए बोली “दादी आप ने कैसे जाना” ?

“बेटा दादी हूँ तुम्हारी | तुम्हारे दिल की बात पकड़ सकती हूँ”, कह कर वह हँस देती हैं | उन्हें हँसता देख सब हँसने लगते हैं |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “बाबा बताओ न कैसे हुआ ये सब” |

बाबा मुस्कुराते हुए बोले “यह सब अक्षित की लग्न और मेहनत का ही नतीज़ा है | उसने हमें एक व्यक्ति से मिलवाया जोकि अपनी इच्छा पूरी होने पर एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर में सोने का मुकुट भेंट करना चाहता था | लेकिन अक्षित से मिलने के बाद उसने अपना इरादा बदल दिया और वह पैसा उसने यहाँ लगा दिया | उसके बाद से तो फिर बहुत से लोग यहाँ आने लगे और किसी पूजा स्थल में दान देने की बजाय यहाँ पैसा दे जाते हैं | उन सबकी वजह से ही आज एक छोटी सी चाय की दूकान से शुरू हुआ ढाबा एक आलिशान रेस्टोरेंट में तबदील हो गया है | एक बार एक NGO चलाने वाले कुछ लोग अक्षित के साथ आये थे और वह अपने NGO में रहने वाले गरीब बेसहारा बच्चों व औरतों को यहाँ छोड़ गये जिन्हें तुम आज सूट-बूट पहने वेटर बने देख रहे हो | यहीं पास के एक NGO से कुछ लोग रोज यहाँ आते हैं और इन बच्चों को पढ़ाते-लिखाते भी हैं | यहाँ काम करने वाले सब बच्चे काम के साथ-साथ ओपन स्कूल से पढ़ भी रहे हैं” |

गौरव हैरान होते हुए बोला “यह पढ़ते कब हैं और काम कब करते हैं” ?

“बेटा यहाँ तीन शिफ्ट में काम होता है | सब पांच घंटे काम करते हैं और चार घंटे पढ़ते हैं | यह रेस्टोरेंट अब सुबह आठ बजे से रात दस बजे तक खुला रहता है | हम सब अब यहीं रहते हैं” |

कोतुहल वश वैशाली बोली “आगे चल कर कोई यहाँ से पढ़-लिख कर कहीं और जाना चाहे तो” ?

बाबा मुस्कुराते हुए बोले “बेटा हम इनको पढ़ा-लिखा कर एक अच्छा इंसान बना रहे हैं | अगर कल यह कहीं अच्छी जगह नौकरी करते हैं और अपना घर बसाना चाहते हैं तो इसमें हमें क्यों ऐतराज होगा | हम तो यही चाहते हैं कि यह भी सभ्य समाज का हिस्सा बने | इसके लिए हम इन्हें शिक्षा के इलावा योग और ध्यान दोनों सिखा रहे हैं” |

यह बात सुन गौरव बोला “बाबा फिर तो आपके यहाँ खाने के पैसे बहुत ज्यादा देने पड़ते होंगे”|

यह सुन दादी मुस्कुराते हुए बोली “आज भी चाय समोसे की कीमत हमने नहीं रखी है | जो जितना देना चाहता है हम वही ले लेते हैं | हाँ, खाने की थाली का पचास रुपया है लेकिन जो जितना खाना चाहे वह खा सकता है” |

कुणाल हैरान होते हुए बोला “इतने कम पैसे में आप यह सब कैसे कर पाते हैं” |

“नहीं बेटा, हम जितना खर्च करते हैं उतना हमें यह कीमत रख कर भी मिल ही जाता है | हम यहाँ व्यापार नहीं करने आए हैं | और अब हमें पैसा कमा कर करना भी क्या है | हम तो यहाँ लोगों को शुद्ध और दिल से पका पॉजिटिव खाना खिला रहे हैं | यहाँ का खाना खा कर उनमें कुछ तो जरूर बदलाव आएगा | कुछ लोग चाय व समोसे के पैसे देते हुए पूछते हैं कि हम यह सब कैसे और क्यों कर रहे हैं तो हम उनको सविस्तार से सब बताते हैं | कुछ ऐसे भी लोग आते हैं जो खा-पी कर चुपचाप चले जाते हैं | हम किसी से कोई जबरदस्ती नहीं करते हैं | हाँ जैसा मैंने अभी कहा कि जो हम से पूछता है तो उसे हम जरूर कहते हैं कि आपको धार्मिक स्थलों में दान देने की बजाय कुछ इंसानियत के लिए करना चाहिए | पैसा ही नहीं अगर आप श्रम दान या फिर शिक्षा का दान भी करना चाहें तो यहाँ कर सकते हैं | बहुत लोग छुट्टी के दिन या कभी-कभार यहाँ आकर बच्चों को कापी-किताबें या फिर पढ़ा कर जाते हैं | बेटा मैंने तो अपनी आँखों से देखा है कि अभी भी इंसानियत जिन्दा है | बस वक्त की धूल चढ़ गई है |

हमारे इस काम से बहुत लोगों का भला होता है जैसे हम गरीब किसानों से सीधा सामान खरीदते हैं | उनको भी पूरा पैसा मिलता है और बेसहारा बच्चों को रहने खाने-पीने के इलावा पढ़ने-लिखने का भी मौका मिलता है| यही मेरे बच्चे का सपना था जिसे हमने उसके जाने के बाद भी पूरा किया है” |

सब भावनावश तालियाँ बजाने लगते हैं और गौरव उठ कर दादा-दादी के गले लग जाता है | दादी गुस्से से बाबा को देखते हुए बोली “आपको तो बस कोई बात करने वाला मिलना चाहिए | बच्चे इतनी दूर से आये हैं | इनका पेट खाली बातों से ही भरोगे या कुछ खिलाओगे भी” |

बाबा उठते हुए बोले “भागवान बोल तुम रही हो कि मैं | और बेटा तुम लोग देख ही रहे हो कि कौन बोल रहा है | बाकी मैंने कह दिया है खाना बस आता ही होगा | हाँ गोरु बेटा ये बताओ कि तुम में से बीमार कौन है | उसके लिए क्या लाऊं” |

गौरव हैरान होते हुए बोला “नहीं बाबा, हम में से कोई भी बीमार नहीं है | लेकिन आप यह क्यों पूछ रहे हैं” ?

बाबा अपना सिर खुजलाते हुए बोले “फिर हो सकता है मैंने ही कुछ गलत सुना होगा | अब बेटा बुढ़ापे में कान से भी तो कम सुनने लगा है” |

सभी अचरज भरी निगाह से एक दूसरे की ओर देख कर बाबा को देखने लगते हैं लेकिन कोई कुछ बोलता नहीं है | सभी को हैरान होते देख बाबा खुद ही बोल पड़े “अक्षित का फ़ोन आया था | वही शायद कह रहा था कि गौरव का एक दोस्त बीमार है उसे दादी के हाथ से बनी चाय पिला देना | अब हो सकता है वह कुछ और कह रहा हो”, कह कर दादा-दादी आपस में नोंक-झोंक करते हुए उठ कर कमरे से बाहर निकल जाते हैं |

*

“दादी ये सब परांठे खाने आए थे और हमें आपने मुरथल के परांठो से भी ज्यादा स्वादिष्ट परांठे खिलाए | इच्छा तृप्त हो गई | मज़ा आ गया | अच्छा दादी अब हम चलते हैं | जल्दी ही मिलेंगे”, कह कर गौरव दादी के पाँव छूता है और उसे देख सब दादा-दादी के पाँव छू कर गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर बैठने लगते हैं | दादी व बाबा के आँखों में प्यार के आँसू देख गौरव भराई आवाज में बोला “दादी, याद हैं न अप्पा क्या कहते हैं” |

यह बात सुनते ही वह दोनो अपनी आँखों के आंसू पोंछ चेहरे पर जबरदस्ती नकली हंसी लाते हुए बोले “हम बेटा दुखी थोड़े ही हैं ये तो बच्चों से मिलने पर ख़ुशी के आँसू हैं” |

गौरव मुस्कुराते हुए गाड़ी स्टार्ट करता है | पीछे बैठा मोहित दबी आवाज में बोला “रुक यार मुझे कुछ पेट में गड़बड़ लग रही है | मैं अभी गया और अभी आया | शायद पोटी आ रही है” |

वह जल्दी से उतर कर शौचालय की तरफ भागता है | उसे शौचालय की तरफ भागता देख बाबा दादी से बोले “तुम जल्दी से जा कर अपने हाथ की बनी चाय ले आओ | शायद मैंने सही सुना था | यह बच्चा ही बीमार है” | यह सुन दादी व बाबा तेज क़दमों से रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ जाते हैं |

उन दोनों की बात सुन सब हैरानी से एक दूसरे को देखने लगते हैं |

“इस में हैरान होने वाली क्या बात है | मेरे अप्पा ऐसे ही कुछ भी बोल देते हैं जो उन्हें उस समय महसूस होता है”, गाड़ी का इंजन बंद कर नीचे उतरते हुए गौरव बोला | उसे गाड़ी से उतरता देख सब जैसे ही दरवाजा खोल उतरने लगते हैं तो गौरव सब को इशारा करते हुए बोला “प्लीज आप लोग बैठिए मैं मोहित को अभी चाय पिला कर लाता हूँ”, कह वह शौचालय की तरफ बढ़ जाता है |

गौरव की बात सुन सब जल्दी से अपने पाँव गाड़ी के अंदर खींच कर गाड़ी का दरवाज़ा बंद कर लेते हैं | सब एक दूसरे को कभी प्रश्न भरी निगाह से देखते हैं तो कभी उस ओर देखते हैं जिस ओर अभी गौरव गया था |

गौरव अभी शौचालय के पास पहुँचता ही है कि दरवाज़ा खोल पेट को पकड़े मोहित बाहर निकलता है “यार पोटी तो नहीं आई लेकिन दर्द बढ़ता ही जा रहा है | भाई किसी डॉक्टर को बुला ले | मेरी जान निकल रही है” |

मोहित की बात सुन, गौरव बहुत ही शांत भाव से बोला “भाई कोई बात नहीं, तू मेरे साथ अंदर चल | दादी अभी चाय बना कर ला ही रही होगी | चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा”, कह कर वह मोहित को सहारा देकर रेस्टोरेंट के पीछे की ओर चल देता है |

वह दोनों उसी कमरे में वापिस पहुँचते जिसमें वह अभी थोड़ी देर पहले बैठे थे | मोहित कुर्सी पर बैठते-बैठते गिर जाता है | गौरव उसे उठाने की कोशिश करता है लेकिन मोहित उसे हाथ का इशारा करते हुए दर्द भरी आवाज में बोला “भाई बहुत दर्द हो रहा है मैं कुर्सी पर नहीं बैठ पाऊंगा”, कह कर वह वहीं पसर जाता है |

गौरव उसी शांत भाव से बोला “दोस्त चिंता मत कर चाय का एक घूंट अंदर जाते ही दर्द रफूचक्कर हो जाएगा” |

मोहित दर्द से कहराते हुए बोला “भाई चाय तो मैं पीता ही नहीं, यार तू डॉक्टर को बुलवा | ऐसा लग रहा है जैसे इस दर्द से मेरा पेट फट जाएगा......” |

अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि दादी हाथ में चाय का कप लिए कमरे में प्रवेश करती है और उसके पीछे-पीछे बाबा भी आ जाते हैं |

“ये ले बेटा चाय पी ले”, दादी चाय का कप मोहित की तरफ बढ़ाती है |

मोहित लगभग कहराते हुए दबी आवाज में बोला “दादी मैं चाय नहीं पीता......” |

“कोई बात नहीं, आज पी ले | जरा सा उठ मेरा बेटा, मैं तुझे पिलाती हूँ”, कह कर दादी वहीं जमीन पर बैठ जाती है और कप उसके मुंह पर लगा देती है | मोहित न चाहते हुए भी एक घूंट पी लेता है | उसे उस चाय का कुछ अजीब ही स्वाद लगता है | घूंट अंदर जाते ही उसके पेट में हो रहा दर्द ऐसे कम होने लगता है जैसे जलती हुयी आग पर पानी पड़ता है | वह खुद ही दादी के हाथ से चाय का कप ले जल्दी-जल्दी पीने लगता है | कप में चाय खत्म होते-होते उसके पेट का दर्द रफूचक्कर हो जाता है |

“दादी”, कह वह दादी से लिपट कर बच्चों की तरह रोने लगता है |

बाबा मोहित की हालत देख परेशान हो बोलते हैं “बेटा क्या दर्द और बढ़ गया है” |

दादी मुस्कुराते हुए बोली “तुम बूढ़े हो गये हो लेकिन समझ आज भी बच्चों वाली ही है | मेरा बच्चा ख़ुशी से रो रहा है | क्यों मेरे बच्चे सही बात है न”, कह कर वह अपने दोनों हाथों में मोहित चेहरा पकड़ लेती है |

“हाँ दादी, चाय पीते ही दर्द ऐसे गायब हो गया है जैसे था ही नहीं”, मोहित अपने आंसू पोंछते हुए बोला |

“बेटा ये दादी की चाय है, लोग दूर-दूर से पीने आते हैं”, मुस्कुराते हुए दादी बोली |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “चल उठ, ड्रामे बाज कहीं का | अभी मरा जा रहा था और अभी खुश हो रहा है | जल्दी कर देर हो रही है”, कह वह मोहित का हाथ पकड़ उसे उठा कर खड़ा कर देता है |

रेस्टोरेंट से बाहर आते हुए गौरव बोला “मेरे हिसाब से सिम्मी जो भी तेरे बारे में कह रही थी बिलकुल ठीक था | तू ड्रग्स लेता है और यह दर्द उसी का था | अप्पा को पता था कि इस दर्द को सिर्फ माँ की ममता ही ठीक कर सकती है | इसीलिए उन्होंने ऐसा कहा होगा” |

मोहित कान पकड़ते हुए बोला “यार दर्द ऐसा जानलेवा हो रहा था कि पूछो मत लेकिन दादी के हाथ की बनी चाय का एक घूँट अंदर जाते ही सब गायब होना शुरू हो गया था | भाई कसम से, तेरे अप्पा ग्रेट हैं, यार, उनसे तो अब मिलना ही पड़ेगा”, मोहित गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए बोला | पीछे की सीट पर बैठी सिम्मी आशंकित होते हुए बोली “क्या हुआ | सब ठीक तो है” | मोहित उसके पास बैठते हुए हाथ जोड़ कर बोला “हाँ मेरी माँ” |

गौरव के गाड़ी स्टार्ट कर हाइवे पर आते ही सब मोहित से उसका हाल पूछते हैं | वह अपने दर्द और चाय पीने की कहानी मिर्च-मसाले के साथ सुनाने लगता है |

✽✽✽