यूँ ही राह चलते चलते
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लेवेरियान के पोर्ट पर क्रूस से उतर कर सब बाहर आये। निमिषा ने सचिन से कहा ‘‘ आज तो तुम मेरे पाँवों की फोटो ले लो जो चार दिनों बाद धरती पर आये हैं’’।
सचिन ने कहा ‘‘ गनीमत है धरती पर आये तो ’’।
संजना हँस पड़ी।फोटो की बात पर ऋषभ को अचानक मान्या-महिम की याद आ गयी उसने कहा ’’ वो अपना हीरो हीरोइन कहाँ गया‘‘?
संजना ने कहा ’’ तुम्हे टेंशन की जरूरत नहीं वो अपना काम कर रहा है ‘‘
अनुभा ने मुड़ कर देखा तो सच में महिम और मान्या का फोटो सेशन चल रहा था ।
’अरे इन्हे छोड़ो ये तो पति-पत्नी बन चुके हैं इनके प्यार में ग्लैमर कहाँ है। असली हीरो तो यशील है जिसके लिये दो-दो हीरोइनें आपस में लड़ी जा रही हैं ‘‘ सचिन ने कहा।
निमिषा बोली ’’यशील भी कम खिलाड़ी नही है दोनो से ही दोस्ती बढ़ा रहा है, जब जिससे मौका मिलता है उसी से निकटता बढ़ाता है ।‘‘
सचिन ने कहा ‘‘वो क्या करे जब दोनो ही उसके पीछे पड़ी हैं ‘‘।
संजना ने कहा ’’ये तो कोई बात नहीं हुआ, बात एक तरफ से नहीं होती वो दोनो को लिफ्ट क्यों देता है ‘‘।
’’अब जब कोई लड़की बोलेगी तो लड़का मना तो नहीं कर देगा‘‘ सचिन ने कहा। संजना बिगड़ गई ’’ क्यों लड़कों से दस लड़कियाँ बोलेगा तो वो दस से दोस्ती कर लेगा, उसे सिंसियर नहीं होना चाहिये? ‘‘
निमिषा भी बहस में आ जुड़ी ’’ इन लड़कों के हिसाब से तो इन्हे पूरी छूट है सिंसियरटी तो हम लड़कियों का ठेका है, पर मुझसे ऐसी आशा मत रखना जिस दिन तुमने किसी लड़की से दोस्ती की मैं भी करके दिखा दूँगी‘‘।
सचिन बोला ’’हद है बात उनकी हो रही है और तुम अपने को ले आई‘‘।
’’ नहीं बात थिंकिंग की है ‘ ‘निमिषा ने अपनी बात पर अड़ते हुये कहा।
सामान्य रूप से चल रही चर्चा ने गंभीरता की दिशा पकड़ ली थी अनुभा ने बात बदलने के उद्देश्य से कहा ’’ चलो पहले कुछ फोटा- वोटो ले लो अभी सुमित आ कर कहेंगे आगे चलो ‘‘।
वहाँ से इटैलिया हवाई जहाज से वो सब इटली की राजधानी रोम के लिये रवाना हुये। सब लियोनार्डो दि विंसी एअर पोर्ट पर पहुँचे । जहाँ से आगे की या़त्रा उन्हे बस से करनी थी । सबने सुमित के बनाये नियम के अनुसार अपनी-अपनी जगह ले ली । आज पाँसा पलट गया था, वान्या पीछे से एक सीट आगे बैठी थी यशील सबसे पीछे और अर्चिता सबसे आगे । अनुभा की सीट अर्चिता के पीछे थी । अर्चिता के पापा श्री चन्द्रा ने कहा ’’अर्चू, देख बाहर कितना सुन्दर सीन है थोड़ी सा वीडियो बना ले। ‘‘
’’मुझे नहीं बनाना ‘‘।
‘‘ये भी कोई बात हुई, वैसे तो दिन भर बेकार में ही वीडियो बनाती रहती हो और हमने कह दिया तो नखरे दिखा रही हो । ‘‘
‘‘कोई जबरदस्ती तो है नहीं, नहीं मन है मेरा आप खुद बना लीजिये ।’’
श्री चंद्रा नाराज हो गये और श्रीमती चंद्रा से बोले ’’ देख रही हो तुम्हारी बेटी किस तरह बात कर रही है । ‘‘
श्रीमती चंद्रा ने कहा‘‘ आप भी बस हर समय उसके पीछे पड़े रहते हैं अरे उसका मन नहीं है। ‘‘
’’क्यों अब यहाँ मूड को क्या हो गया ?अच्छे खासे विदेश यात्रा पर आये हैं, सब लोग एन्जाय कर रहे हैं पर इस लड़की को तो मुँह फुलाने की आदत है । ‘‘
’’आप नही समझेंगे लड़की है, कभी मन किसी बात से उदास हो जाता है। ‘‘
अनुभा समझ गयी कि श्रीमती चंद्रा अपनी बेटी के दिल की बात का आभास है इसीलिये वह उसके बिगड़े मूड को समझ रही हैं आखिर माँ ही तो होती है जो बेटी को सबसे अधिक समझती है।
अनुभा ने यूँ ही अर्चिता का मूड बदलने के उददेश्य से कहा ’’अर्चिता तुम क्या कर रही हो‘‘? ’’ आंटी मैं इंजीनियरिंग के फाइनल में हूँ।‘‘
’’हुँ फिर आगे क्या प्लान है?‘‘
‘‘आगे क्या आंटी जॅाब और फिर शादी‘‘।
ज्ब अर्चिता ने अपनी शादी की बात इतनी सहजता से कही तो अनुभा ने पूछ लिया ’’वैसे तुम लव मैरिज में विश्वास करती हो कि अरेंज्ड में? ’’
‘‘ आंटी लाइफ पार्टनर तो मन का ही होना चाहिये।’’
‘‘ तुम्हारा कोई फ्रेंड नहीं है, आजकल ज्यादातर तो अपने कैरियर के साथ-साथ तुम लोग अपना लाइफ पार्टनर भी चुन लेते हो ‘‘अनुभा ने उसके मन की थाह लेनी चाही।
’’आंटी इसमें गलत क्या है अगर हम अपने मन का पार्टनर चुनें आखिर लाइफ तो हमें ही बितानी है न ?‘‘
’’नहीं-नहीं मैं तो खुद इस बात की समर्थक हूं कि जीवन साथी ऐसा होना चहिये जिनके मन आपस में मिलें, पता चला कुंडली तो मिल रही है और मन कोसों दूर तो सामंजस्य क्या खाक होगा ‘‘अनुभा की बात सुन कर अर्चिता को लगा कि वह उनसे अपने मन की बात बाँट कर मन हल्का कर सकती है। वह रजत से बोली ’’अंकल प्लीज आप मेरी सीट पर आ जाइये मै आंटी के पास बैठ जाऊँ।‘‘
अर्चिता अनुभा के पास आ कर बैठ गई । दोनो जीवन साथी की पसंद को ले कर बातें करती रही अचानक अर्चिता बोली ’’आंटी आपको नहीं लगता कि वान्या यशील में कुछ ज्यादा ही इन्टरेस्ट ले रही है ‘‘।
’’वैसे अच्छा तो तुम्हें भी वो लगता है नहीं ?‘‘अनुभा ने अर्चिता के मन की बात जाननी चाही।
अर्चिता ने बिना झिझके कहा ’’ आंटी ही इस सो हैन्डसम, कोई भी फिदा हो जाएगा ।‘‘
’’केवल हैंडसम है यह काफी है?‘‘
’’नो आंटी हमारी आज की जनरेशन इतनी समझदार है, यशील हैस गुड कैरियर, ही इज डीसेन्ट टू ।‘‘
’’हाँ वो तो है ‘‘ अनुभा ने समर्थन किया।
अर्चिता उत्साहित हो कर बोली ’’ आंटी यह सच है कि मुझे यशील अच्छा लगने लगा है ।‘‘
’’ पर क्या यशील भी तुम्हे पसंद करता है? ‘‘
’’ अभी हम इतने फ्री नहीं हुए है कि कोई कमिटमेंट कर लें ‘‘फिर रूक कर बोली ’’ आंटी प्राब्लम तो वान्या है पता नहीं क्यों हम लोगों के बीच आने की कोशिश करती रहती है‘‘।
’’ पर यशील कोई तुम्हारी सम्पत्ति तो है नहीं कि कोई उससे बात न करे।वो कहते न कि वो तुम्हें चाहता है तो खुद ही तुम्हारे पास आयेगा और अगर तुम्हारा है ही नहीं तो उसके पीछे क्या भागना‘‘ अनुभा ने उसे समझाने के लिये कहा। यद्यपि वह जानती थी कि उसके तर्क में कोई दम नहीं है, क्योंकि जब कोई किसी को चाहता है तो उसपर मन का आधिपत्य होता है तर्क का नहीं ।
‘‘आंटी मुझे पता है कि यशील मुझे पंसद करता है। ‘‘
उसे सांत्वना देने के उद्देश्य से अनुभा बोली ’’ फिर इस वान्या रूपी झोंके से क्यों परेशान हो ?जैसे आया है वैसे ही उड़ जाएगा‘‘।
वह उदास हो कर बोली ’’ हाँ पर मेरे मन का आशियाँ तहस-नहस करके उड़ा तो क्या उ़ड़ा‘‘ उसका मुरझाया चेहरा देख कर अनुभा को अनायास ही उसके प्रति चिंता हो गई, यह तो निश्चिंत था कि यह भावुक लड़की प्रेम की गहराइयाँ नापने लगी है पता नहीं यशील के मन में क्या है ।अर्चिता गलत नहीं कह रही थी वान्या से भी उसकी मित्रता हो गई है और अन्जाने ही इसीलिये अर्चिता और वान्या प्रतिद्धन्दी बन गई हैं। अनुभा का मन समझ रहा था कि अर्चिता एक भावुक लड़की है वहीं वान्या के लिये यशील चुनौती बन गया है जिसे उसके रहते कोई नहीं छीन सकता। यह जो प्रतिद्वन्दिता इन दोनो के मध्य प्रारम्भ हुई है उसका अन्त क्या होगा यह तो समय ही बताएगा।
अब सब संसार के सबसे छोटे देश ईसाई धर्म के तीर्थ स्थान वैटिकन सिटी पहुँच गये थे । अनुभा ने सोचा था कि यह कोई अलग देश होगा पर जब वहाँ पहुँचे तो आश्चर्य हुआ कि यह तो रोम के बीचोंबीच एक चारदीवारी के मध्य बसा है, बस वह चारदीवारी पार की और वो सब दूसरे देश में पहुँच गये।
ऋषभ बोला ’’अरे यह तो कमाल ही हो गया हम अभी रोम में था और अब हम दूसरा देश में हैं । ‘‘
तो संजना ने कहा ’’यानि कि एक देश का राजधानी के अंदर दूसरा देश। कितना अद्भुत व्यवस्था है । ‘‘
पीछे आ रही निमिषा ने अनुभा से कहा ‘‘आंटी ये संजना और ऋषभ हिन्दी इतनी गलत क्यों बोलते हैं?’’
अनुभा ने कहा ‘‘ बंगाली लोग प्रायः ये गलती करते हैं संभवतः बंगला भाषा में बोलने में स्त्रीलिंग और पुर्लिंग में अंतर नहीं होता इसलिये हिन्दी बोलते समय ये गड़बड़ा जाते हैं।’’
‘‘ ये तो कोई बात नहीं हुई’’
‘‘ ठीक है न, कम से कम हम लोग आपस में बात कर लेते हैं समझ लेते हैं, यही क्या कम है । हम हिन्दी भाषी भी यदि दूसरी भाषा बोलेंगे तो गलती करेंगे ।’’
‘‘हाँ ये तो है’’ निमिषा ने माना ।
अनुभा ने देखा वैटिकन सिटी एक विशाल क्षेत्र था उसकी कल्पना को आघात सा लगा वह सोचने लगी कि इससे बड़ा तो अपने देश में मोहल्ला होता है।
वैटिकन सिटी का बड़ा सा परिसर था, जहाँ रोमन शैली का एक चर्च था । अंदर आने पर बीच में एक बड़ा सा प्रांगण था यह सन्त पीटर स्क्वेयर है जहाँ लोग एकत्र हो कर पोप केा भाषण सुनते हैं । उनके ऊपर 140 सन्तों की मूर्तियांहैं। यह चर्च 400 वर्ष पुराना है । यह एक राज्य है जहाँ का राजा पोप होते हैं ।
रजत ने पूछा ’’ मैम फिर तो हमारे देश की मदर टेरेसा की मूर्ति भी यहाँ होनी चाहिये उन्हे भी तो सन्त की उपाधि दी गयी है ।‘‘
’’ हाँ हमें पता है मदर टेरेसा भी एक महान सन्त है पर अब यहाँ और मूर्ति लगाने की जगह नहीं बची इसीलिये बाद में जिनको सन्त की उपाधि दी गयी उनकी मूर्तियाँ यहाँ नहीं लग पाईं।‘‘
दोनों मूर्तियों के मध्य पीछे एक मंच बना है जहाँ आ कर प्रत्येक बुद्धवार को पोप जनता को दर्शन देते हैं ।
जब सब लोग चर्च के अंदर जाने लगे तो वहाँ खड़े गार्ड ने वान्या को रोकते हुये नम्रतापूर्वक कहा ’’ मैम यू कान्ट गो इनसाइड‘‘।
’’ बट व्हाय ‘‘?
मारिया ने कहा’’ सॅारी मैम चर्च के अन्दर शार्ट्स या बिना बाँह के परिधान नहीं पहन सकते।‘‘
वान्या के भाई मानव ने कहा ’’ सुमित ने बताया तो था। ‘‘
’’मैंने नहीं सुना पर जब मैंने पहना तब तुम नहीं बता सकते थे ‘‘।
’’ मैं क्या तुम्हारी ड्रेस ही देखता रहता हूँ। ‘‘
’’नहीं मेरी क्यों देखोगे तुम तो बस अपने कालेज लड़कियों की ड्रेस देखते हो वो सान्या, राशि, मीषा एन्ड सो आन‘‘।
’’वान्या की बच्ची मेरा मुँह न खुलवाओ नहीं तो बता दूँगा मम्मी-पापा को तुम्हारे और यशील का चक्कर। ‘‘
तब तक श्रीमती लता मातोंडकर आ गईं, उन्होने मानव को डाँटा ’’ ये कौन सा तरीका है, बड़ी बहन से बात करने का ‘‘।
वान्या को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अन्दर जाये तभी यशील ने उसे अपना मफलर देते हुय कहा इस ओढ़ लो, तो अन्दर जा सकोगी‘‘ वान्या ने यशील को कृतज्ञ दृष्टि से देखते हुए कहा ’’ सो नाइस आफ यू।‘‘
गनीमत है कि अर्चिता उस समय वहाँ नहीं थी।
अन्दर जाने पर एक विशाल चर्च था जिसके केन्द्र में एल्टेअर इर्नीनी में ईसा मसीह की मूर्ति थी।इसके अतिरिक्त पूरे चर्च मे अनेक विशाल मूर्तियाँ थी उसमें एक माइकल एंजेलो द्वारा बनाया उन्ही के नाम से जाना जाने वाला डोम था जिसकी वास्तु कला अद्वितीय थी । सबसे महत्वपूर्ण मूर्ति थी ‘संत पीटर्स पिएटा’ जिसमें एक आदमकद से बड़े लगभग 69 फिट के विशाल संगमरमर पर मदर मैरी गोद में प्रभु ईसा मसीह के शरीर को ले कर उनको खोने के दुख में बैठी हैं।यह मूर्ति लगभग 1698-99 में महान मूर्तिकार माइकल एंजेलो ने बनायी थी और उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध कृति है।इस मूर्ति पर माइकल एंजेलो का नाम लिखा है । यह अद्भुत कलाकृति है जिसकी भव्यता माँ मरियम के दुख के भाव और विशालता अवर्णनीय है।
चर्च में एक मूर्ति के बारे में सुमित ने बताया कि उसको स्पर्श करने से मन की आकाक्षाएं पूर्ण होती हैं।
यह सुनते ही उस मूर्ति को छूने और वहाँ फोटो खिंचवाने की होड़ सी लग गई।
निमिषा बोली ‘‘ अब तो हो गई मुश्किल ’’
संजना ने पूछा ‘‘ क्या हुआ?’’
‘‘अरे अर्चिता और वान्या दोनों ने मूर्ति का स्पर्श किया है अब किसकी इच्छा पूरी होगी?’’
‘‘ जो मन से सच्चा और अच्छा होगा ’’ अनुभा ने समस्या का काल्पनिक समाधान बताया तो संजना ने कहा ‘‘ ये तो कोई बात नहीं फिर इनका क्या महत्व रहा ’’?
अनुभा ने कहा ‘‘मैंने तो तर्क के अनुसार बताया बाकी तो ईश्वर ही जानें’’।
क्रमशः--------]
अलका प्रमोद
pandeyalka@rediffmail.com