हड़पने की नियत
आर ० के ० लाल
मिलन अपनी मस्ती मे चला जा रहा था तभी अपने फुलवारी में खटिया पर बैठे हुए अजोध्या काका ने उसे आवाज़ दी, जहाँ उन्होंने बहुत सारी हरी सब्जियाँ लगा रखी थी और दिन रात वह उन सब्जियों की रखवाली के लिए वहीं पड़े रहते थे । मिलन अजोध्या काका के पास जाकर बैठ गया तो उन्होंने चिलम निकाल कर पीते हुए कहा, “ जब से तुम आए हो दिन भर घर में घुसे रहते हो, यहाँ फटकते भी नहीं हो। मुंबई का हाल –चाल तो बता दो, तुम भी यहीं रहोगे या वापस चले जाओगे? तुम्हें तो पता होगा कि दो दिन पहले तुम्हारे पिता रामायन और मेरे बेटे सुनील के बीच बहुत कहा-सुनी हो गयी थी”। फिर बोले, “मेरा बेटा तो गँवार है कम पढ़ा लिखा है मगर तुम लोग तो बड़े शहर से आए हो। ऐसी गली-गलौज करना ठीक नहीं है”।
मिलन अभी पंद्रह दिन पहले ही मुंबई से अपने पिता रामायन , अपनी मम्मी, पत्नी सरोज और पाँच साल के लड़के टिंकू के साथ कोरोना की महामारी से बचने के लिए यहाँ अपने गाँव वापस आया था। उसने गांव में ही रहकर अपनी जिंदगी बिताने की सोच ली थी। जब उसके पिता गांव से गए थे तो उनके घर का बंटवारा हो चुका था। कुल दो बीघे खेत थे जिसे चकबंदी के दौरान उसके पिता और ताऊ अजोध्या में बराबर बराबर दे दिया गया था। घर भी अलग हो गया था। पुराना मकान बड़े भाई अजोध्या ने ले लिया था। मिलन के पिता को खाली पड़ी जमीन दी गयी । उनसे कहा गया था कि उनके लिए नया कमरा बनवाने में पूरी मदद की जाएगी। मगर समझौता हो जाने के बाद अजोध्या ने फूटी कौड़ी भी नहीं दी, हमेशा कहते थे कि अभी हाथ तंग है। बरसात आने वाली थी इसलिए रामायन ने उधार मांग कर दो पक्के कमरे बनवा लिए थे। घर के सामने ही उनका खेत था, एक कुंआ भी था जिसका बंटवारा तो हो नहीं सकता था। गांव के लोग उसका इस्तेमाल करते थे मगर उसकी साफ-सफाई और मरम्मत का काम रामायन ही करवाते थे।
एक बीघे खेत में रामायन का गुजारा नहीं हो पाता था इसलिए चार साल पहले कटाई-मड़ाई के बाद वह ज्यादा पैसा कमाने मुंबई चले गए थे। घर पर उसकी पत्नी और बच्चे रह गए थे जो खेती का भी काम करते । रामायन साल में एक दो बार ही घर आ पाते थे। एक दफे सूखा पड़ जाने के कारण खेत में कुछ नहीं हुआ तो वे अपनी पत्नी और मिलन को भी मुंबई ले गये और फिर वहां अपना काम जमा लिया जिससे अच्छी खासी कमाई हो जाती थी। जाते समय उन्होंने अपना सारा सामान अपने कमरे में बंद करके चाबी अपने बड़े भाई को सौंप दी थी साथ ही उनसे कहा था , “तुम मेरे खेतों में भी जुताई-बुवाई कर दिया करना, जो अनाज पैदा हो उसे बेंच कर आधा पैसा मुझे दे देना। खेत का लगान भी मुझसे ले लेना”। अजोध्या का परिवार थोड़ा बड़ा था इसलिए वे तैयार हो गये। शुरू में तो एक- दो साल तक वह कुछ पैसा रामायन के पास भेजते थे परंतु बाद में उन्होंने पैसा भेजना बंद कर दिया। रामायन जब कभी फोन पर पैसा मांगते तो अजोध्या बता देते कि इस बार तो अनाज हुआ ही नहीं। कभी बाढ़ , कभी ओले तो कभी सूखे का बहाना बता कर कह देते कि पूरी फसल चौपट हो गई फिर कहां से पैसे दूं । बीज और खाद का पैसा भी डूब गया। उल्टे वे रामायन से ही पैसा मांगते। कहते कि बिटिया की शादी करना है। हालांकि गांव वाले रामायन को बताते रहते थे कि इस बार फसल बहुत अच्छी हुई है। रामायन गांव नहीं आ पाते इसलिए वे कुछ नहीं कर पा रहे थे।
जब रामायन मुंबई छोड़कर सपरिवार वापस अपने गांव आये तो उन्हें पता चला कि उनके बड़े भाई ने उनकी जमीन जायदाद पर अपना कब्जा कर रखा है और उसकी कमाई से मौज कर रहे हैं। घर की चाबी मांगने पर अजोध्या की बीवी ने बहुत आनाकानी की और कई दिनों तक कहती रहीं कि चाबी मिल नहीं रही है । रामायन ने हथौड़ी से अपना ताला तोड़ा और घर खोला तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि पीछे की तरफ बनी रसोई और गुसलखाने में अजोध्या का सामान रखा है और उन लोगों ने पीछे से भी एक दरवाजा खोल लिया है। रामायन की पत्नी ने जब हंगामा किया तो उन लोगों ने कहा कि बारिश के कारण उनका सामान खराब हो रहा था इसलिए इसमें रख दिया था। अब तुम लोग आ गए हो तो मैं इसे खाली कर दूंगा। दस दिन हो गए हैं परंतु अभी तक समान नहीं हटाया गया । इतना ही नहीं, रसोई के पीछे की नाली को भी उन लोगों ने समतल कर दिया था। वहां पर एक चबूतरा बनवा दिया था और अपनी भैंस बांधते थे। इस कारण रामायन के घर का पानी भी बाहर नहीं निकल सकता था।
रामायन ने अजोध्या से बात की, “मुझे अब यहीं पर रहना है। इसलिए मेरे हिस्से की जमीन और मकान सब बिना किसी पंच-पंचायत
के वापस कर दो"। इस बारे में अजोध्या की नहीं चलती थी इसलिए उनकी पत्नी और बच्चों ने तो सारा घर ही सर पर उठा लिया था। वे कुछ भी छोड़ने को किसी तरह तैयार नहीं हो रहे थे। कह रहे थे कि रामायन अलग जमीन और खेत खरीद लें , बदले में हम उन्हें कुछ पैसे दे देंगे। अजोध्या के परिवार वालों में बेईमानी आ गयी थी । उनके यहाँ रोज शाम को प्रपंच होता कि ये लोग क्यों यहां आ गये हैं। कुछ गाँव वाले भी मजा ले रहे थे।
घर के सामने एक छोटी सी फुलवारी थी। इसमें भी दोनों भाइयों का आधा आधा हिस्सा था। उसमें रामायन का आम, सागवन और नीम का पेड़ था। आम का तो पेड़ अभी भी है मगर सागवन और नीम का पेड़ गायब था। दोनों महंगे पेड़ थे।
अजोध्या ने पूरी फुलवारी पर अपना कब्जा कर लिया था और उसमें अपने सोने के लिए एक झोपड़ी बना ली थी। उसी में उन्होंने बोरिंग भी करवा रखी थी। फुलवारी में भिंडी, करेला, लोकी , बैंगन, ककड़ी, टमाटर, पुदीना, लहसुन और प्याज आदि सब कुछ लगा रखा था। रामायन ने अजोध्या से पूछा, “तुम तो कहते थे कि यहां पर कुछ होता ही नहीं, मगर मैं तो देख रहा हूं कि मेरी जमीन पर कितनी कमाई कर रहे हो। छोटे भाई के साथ बेईमानी तुम्हें शोभा नहीं देती”।
उस दिन इसी बात पर दोनों परिवारों में काफी कहा-सुनी हो गयी थी, मार-पीट की नौबत आ गयी थी । जमीन छोड़ने की बात पर अजोध्या की पत्नी बोली, “अभी कुछ नहीं हो सकता है। यह फसल जब कटेगी तब देखा जाएगा”। गांव के लेखपाल ने बताया कि अजोध्या चाहता है कि खेत पर कब्जा दिखा कर खेत उसके नाम कर दिया जाय । किसी ने उसे बता दिया था कि अगर किसी ने कब्जा जारी रखा है तो उसे कानूनन मालिकाना हक प्राप्त हो जाता है। मगर उसे पूरी बात का ज्ञान नहीं था इसलिए वे लेखपाल को घूँस देकर काम करवाना चाहते थे। लालच जहां किसी व्यक्ति की आंतरिक चाह होती है वहां भाई-भाई के बीच स्नेह एवं प्रेम का अंत हो जाता है। उनमें दुश्मनी पैदा हो जाती है और दोनों परिवार नष्ट हो जाते हैं । यही अजोध्या और रामायन के बीच हो रहा था।
अजोध्या की हर कोशिश रहती कि किसी न किसी बहाने रामायन की जायजाद हड़प लें मगर गाँव वाले तो सब जानते थे। वे लोग भी रामायन का साथ देना चाहते थे।
यह सब समझ कर ही अजोध्या ने मिलन से बात करने की सोची थी । उन्होंने कहा, “ देखो बेटा मिलन, तुम तो पढ़े-लिखे हो, शहर में रहते हो। मेरा बेटा तो गया गुजरा है, उसे कुछ समझ नहीं है। हम लोगों ने एक एक पैसे बचा कर इस फुलवारी की बाउंड्री खड़ी की, इसमें खाद, गोबर और मिट्टी डलवाई तब जाकर कुछ होता है। इसी तरह खेत में भी फर्टिलाइजर और मिट्टी डलवानी पड़ी थी। इसी तरह पीछे चबूतरा बनवाने में भी काफी खर्च हुआ है। अपने पास कोई दूसरी कमाई तो है नहीं। तुम तो जानते ही हो कि सुनील की पत्नी बीमार रहती है उसकी दवा दारू में सब निकल जाता है, ऐसे में सारा कुछ छोड़ देना किसी को कैसे ठीक लगेगा । हम नहीं चाहते कि आपस में हम लोग के बीच रंजिश हो इसलिए कुछ ऐसा रास्ता निकालना चाहिए कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे”।
मिलन सब समझ गया था कि इस दुनिया में न कोई किसी का भाई है और न दोस्त। आज गाँव का इंसान भी बदल गया है। मिलन ने कहा, “काका जी, आप स्पष्ट बताइए कि आप क्या कहना चाहते हैं”? अजोध्या ने कहा, “हिसाब किताब कर लो और खर्चा का भुगतान करवा दो”। उन्होंने एक लंबा चौड़ा डिमांड सामने रख दिया। धन लूटने का कितना कारगर तरीका था उनका।
मिलन ने अपने पिता को सब कुछ बताया और कहा, “आपस में समझौता हो जाए तो अच्छा है क्योंकि आए दिन जमीन जायजाद के झगड़े में दुश्मनी और हत्या तक हो जाती है। फ़ौजदारी और दीवानी के मुकदमेबाजी में हम अगर फंस जाएंगे तो बहुत समय लगेगा और खर्च भी ज्यादा होगा। इसलिए जो कुछ वे लोग चाहते हैं हम धीरे-धीरे दे देंगे “। मगर हम जिंदगी भर नहीं भूलेंगे कि एक भाई मुसीबत के वक्त भी दूसरे का शोषण करने से बाज नहीं आया। आज उनकी नियत खराब हो गयी है। ऐसे लोगों के यहाँ कभी बरक्क्त नहीं होती शायद इसीलिए अजोध्या काका सपरिवार हमेशा परेशान रहते हैं। ईश्वर उनका भला करे।
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