Do balti pani - 15 in Hindi Comedy stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | दो बाल्टी पानी - 15

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दो बाल्टी पानी - 15



बिना शर्ट के अपने बेटे को देख सरला हड़बड़ा गई, कलाई से बहता खून और मुंह को इतनी बेरहमी से चलाते हुए, ऐसी हालत देख अपने बेटे को देखकर सरला बिना ब्रेक की गाड़ी सी शुरू हो गई, "हाय रे मैं तो लुट गई, बर्बाद हो गई, मुझे तो पहले से ही शक था, यह ससुर के नाती चुड़ैल को भी हमारे फूल से लल्ला पर आकर बैठना था, अरे यह आजकल की नासपीटी करमजली चुड़ैलें भी नए-नए कुंवारे लड़कों को ही फंसाती हैं, अरे गांव के और बुड्ढे मर गए थे क्या, मरती जाकर उनके ऊपर…. हाय राम गजब हो गया"|

सुनील के गले में उसका प्रेम पत्र रोड़े की तरह जाम हो चुका था वह बोलने की कोशिश करता पर उसके गले से शब्द नहीं हवा निकलती, सरला समझ गई हालत बड़ी गंभीर है और नल वाली चुड़ैल ने उसको बेटे को धर लिया है, उसने सुनील को थोड़ा पानी पिलाया और पीठ थपथपाई, सुनील का प्रेम पत्र अब पिंकी के पास नहीं उसके पेट में था, सुनील की जान में जान पड़ी, इससे पहले सरला अपने सवालों की गोली सुनील के ऊपर दागती, सुनील सरला के गले लग कर बेहोश हो गया, मतलब बेहोशी का नाटक करने लगा |

दिन ढल गया और रात हो गई, चुड़ैल के डर से आज कोई पानी भरने भी नहीं गया पानी ना होने से सबको बड़ी किल्लत होने लगी और बिजली आने की संभावना तो अभी मीलों दूर थी |

उधर ठकुराइन ने स्वीटी से बड़े प्यार से कहा, "अरी बिटिया का बात है? तू आजकल बड़ी गुमसुम रहती है, किसी ने कुछ कहा का…" |

स्वीटी मां की तरफ मुंह बनाती है और कहती है, "अरे जब हम छोटे से इत्ता खाते थे तो मना नहीं कर पाती थी, हमारी उम्र के साथ-साथ यह खाने की आदत भी बढ़ती रही और हम हो गए सिंगल से डबल, वो भी खाली मोटापे में… अरे अम्मा अब हमसे सहन नहीं होता, हर कोई भैंस भैंस कहकर बुलाता है, कोई प्यार से तो देखता ही नहीं, किस्मत फोड़ दी तुमने हमारी, इससे अच्छा तो हम मर ही जाए, हमें सब अच्छी तरह पता है कि ये तुम बिटिया बिटिया पानी भरने के लिए करती हो, अरे हमारे मोटापे का झांसा देकर कहती हो थोड़ी सैर कर आ, ओ साथ में पानी भर लेना, यह पानी भरने से कहीं ना मोटापा कम हो रहा, हे भगवान कहाँ पैदा कर दिया "|

स्वीटी की लंबी चौड़ी बातें सुनकर ठकुराइन के तो होश ही उड़ गए, पहले तो वो माथे पे हांथ रख के बैठ गई और जरा देर सोचा और फिर बोली," का बिटिया… कब से इत्ता जहर इकट्ठा करके रखी थी, अरे ऊपर से हर मनमानी चीज खिलाओ, सुबह इनको जलेबी चाहिए वो भी दही के साथ, दोपहर में समोसा चाहिए चटनी के साथ और ना जाने दिन भर का भैंस की तरह चरती रहती है और गलती भी हमारी, वाह री औलाद… अरे राम जाने कब कोई इसे ब्याह कर ले जाएगा जो जी को चैन मिलेगा, हम ही को हर बात की चिंता फिकर करनी पड़ती है, बुढ़ाई को देखो खा लिया और बस… रात को सभा जोड़ने के लिए चले गए बाहर, घर गृहस्थी से तो जैसे मतलब ही नहीं "|

स्वीटी फिर खीझ कर बोली," पापा को बुढ़ाई मत कहो, बढ़िया तो तुम हो" ठकुराइन का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया और वो खिसियाकर बोली," अरे नागिन चुप होती है कि नहीं… कि आज ही तेरा मोटापा छाँटे हम"|

स्वीटी चुप हो कर छत पर चली गई | ठकुराइन बर्तन बढ़ाते हुए अपने आप से बोली, "अरे यह घर का काम ही नहीं खत्म होता, मिश्राइन और वर्माइन को भी देखने नहीं जा पाए, जाने कैसा काम है, आग लगे इस काम मे"|

सारा काम निपटा कर कुछ देर बाद ठकुराइन ने सिर पर पल्लू किया और अपनी चप्पल ढूंढते हुए बोली, "हे भगवान अब इस आदमी को का कहें, जनानी मर्दानी चप्पल में फर्क भी नहीं पता जो हमारी चप्पल सलिया कर चला गया"| ठकुराइन ने ठाकुर साहब की चप्पल पहनी और किवाड़ खोलकर जाने लगी | स्वीटी छत पर खड़ी थी तो उसने मां से न चाहते हुए भी पूछ ही लिया, "अब रात में कहां जा रही हो??? पापा आएंगे तो पूछेंगे"?

ठकुराइन ने मुहँ उठाकर देखा तक नहीं और बोली, "कह देना भाग गई घर से, छत पर दिन-रात टंगे टंगे चौकीदारी करती रहेगी भैंस, हम ही खिलाए थोप थोप के और हम ही को सिंघ मारे, नकारा औलाद…" |

यह कहकर ठकुराइन मिश्राइन को देखने निकल पड़ी स्वीटी भी गुस्से में जाकर बिस्तर पर लेट गई |


आगे की कहानी अगले भाग में