देवी देवताओं की पूजा के बाद उसकी सास ने कृष्णा को एक तस्वीर की ओर इशारा करते हुए कहा
" बहु इनसे भी आशीर्वाद लो। यह तेरी सास है ।मोहन की मां!" यह सुन कृष्णा को आश्चर्य हुआ। फिर उसने दोनों हाथ जोड़ अपनी सासू मां से भी आशीर्वाद लिया।
शाम को आस पड़ोस की औरतें मुंह दिखाई के लिए आई तो लक्ष्मी को देख उसकी सास से बोली
"क्या शांता तुम लगता इसकी नौकरी और लेने पर मर गई। अरे जोड़ी तो मिला लेती। रंग तो देख अपनी बहू का!"
ऐसी बातें कृष्णा के लिए कोई नई नहीं थी ।बचपन से ही तो सुनती आ रही थी। इसलिए उसने यह बातें दिल पर ना ली। इतनी देर में ही उसकी सास बोली
"क्या करें बहन, किस्मत में जो लिखा हो वही आनी होती है। अब मोहन ने इसे ही पसंद किया तो हम क्या करें! भई उसे ही जिंदगी गुजारनी हैं इसके साथ। यह सब तो उसे ही सोचना चाहिए था ना!"
अपनी सास की ऐसी बात सुन कृष्णा को विश्वास ही ना हुआ । उसका मन कर रहा था कि वह उसी समय कह दे कि सासू मां आप झूठ बोल रही हैं । आपने ही तो मुझे पसंद किया था मुझे। कितनी तारीफ कर रही थी आप उस समय मेरी! लेकिन संकोचवश वह कुछ कह नहीं पा रही थी।
तभी पीछे से उसके ससुर की आवाज आई " क्या कमी है हमारी बहू में! लाखों में एक है और मैं अपनी बहू के बारे में कुछ गलत नहीं सुनना चाहता।"
यह सुन सभी औरतें चुप हो गई । कृष्णा का मन अपने ससुर के प्रति श्रद्धा से भर गया।
रात को वह घड़ी आ गई। जिसका हर पति-पत्नी के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है। जैसे ही मोहन कमरे में आया है कृष्णा लज्जा से और सिकुड़ गई। मोहन उसके पास बैठता हुआ बोला "
कृष्णा मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुम मेरी जीवनसंगिनी बन गई हो। मैंने तो तुम्हें पाने की कल्पना की थी और भगवान ने देखो उसे हकीकत में बदल दिया। मुझे लग रहा है कि मेरे जीवन से रूठी हुई खुशियां, अब मुझे फिर से मिलेंगी और जिस प्यार को मैं अब तक तरसा हूं , मेरे हिस्से का प्यार भी अब मुझे मिल जाएगा। मैं वादा करता हूं जीवन के हर सुख दुख में तुम्हारा साथ दूंगा। कृष्णा आप तुम भी तो कुछ कहो! क्या तुम मुझे पाकर खुश हो । मैं चाहता हूं कि तुम भी अपने दिल की बात मुझसे कहो। एक दूसरे के बारे में जानकार ही जीवन का यह सफर और हसीन बना पाएंगे!"
मोहन की बात सुन कृष्णा शरमाते हुई बोली "आप जैसा जीवनसाथी मिलना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। सच कहूं तो मेरी भावना भी आपसे अलग नहीं। जब आपको पहली बार देखा था तो मन के किसी कोने में आपकी मूरत संजो ली थी। लेकिन मुझे पता था आप चांद हो और शायद मेरे हाथ वहां तक ना पहुंचे और वैसे भी मुझे अपनी सीमाएं पता थी। लेकिन जब आपका रिश्ता आया तो यह मेरे लिए किसी चमत्कार से कम ना था।"
"चमत्कार नहीं पगली, यह हम दोनों का एक दूसरे के लिए प्यार था। जो शब्दों का मोहताज नहीं था और देखो ना दिल के तार ऐसे जुड़े की मां ने जो मेरे लिए पहली लड़की पसंद की वह तुम ही निकली है।
बुआ सच कहती थी कि भगवान और ऊपर बैठी मेरी मां मेरे दिल की हर मुराद एक ना एक दिन जरूर पूरी करेंगे।" कह उसने कृष्णा को आलिंगनबद्ध कर, उसके होठों पर अपने पहले प्यार की निशानी अंकित कर दी। कृष्णा भी छुई मुई सी उसकी बाहों में सिमट गई।
अगले दिन ससुराल में उसकी पहली रसोई थी। खाना खा उसके ससुर , बुआ सास और मोहन ने उसके बनाए खाने की खूब तारीफ की।
बुआ सास तारीफ करते हुए बोली "साक्षात अन्नपूर्णा है यह तो! कितना स्वाद हैं इसके बनाए खाने में!" कह उसे शगुन दिया।।
उनकी बात सुन कृष्णा की सास बोली "क्या जिज्जी कभी आपने हमारे खाने की तो इतनी तारीफ ना करी! क्या हम बढ़िया खाना ना बनाते!"
"मैंने कब कहा तू अच्छा खाना नहीं बनाती लेकिन बहु जितना बढ़िया नहीं!" सुन कृष्णा की सास और उसकी ननद का मुंह उतर गया।
कृष्णा ने घर व ऑफिस की जिम्मेदारी अच्छे से संभाल ली थी वह दोनों ही जगह सामान्जस्य बनाकर चल रही थी।
उसकी शादी को एक महीना हो गया था बुआ सास वापस अपने घर जा रही थी। जाते हुए वह कृष्णा को आशीर्वाद देते हुए बोले "बहू भगवान जो करता है, अच्छे के लिए करता है। तेरी सास ने कभी मेरे मोहन का भला ना सोचा लेकिन उसने बुरा करते-करते एक अच्छा काम कर दिया कि तुझे मेरे मोहन की बहू बना कर ले आई। तेरा काम व व्यवहार देख अब मैं अपने मोहन की ओर से निश्चित हो गई हूं। उसकी मां के जाने के बाद मैंने कभी उसे इतना खुश नहीं देखा। वैसे भी शांता ने कहा इसे अपना बेटा माना है। हमेशा अपने बेटे बेटी में ही लगी रही। दोष तो मेरे भाई का है । जो दूसरी शादी करते ही अपने पहले बेटे को भूल गया। बहु मेरा मोहन बहुत सीधा है। वह तो आज तक इन लोगों का छल कपट ना समझा। तुम होशियारी से काम लेना। आगे तुम खुद समझ जाओगी, बुआ क्या कह रही थी!
कृष्णा को बुआ की बातें ज्यादा समझ तो नहीं आ रही थी। फिर भी उसने सहमति में सिर हिला दिया।
शादी के बाद कृष्णा जब पहली बार अपने मायके गई तो सभी उसे देख बहुत खुश हुए। रमेश और कमलेश अपनी बेटी को आशीर्वाद देते ना थक रहे थे। 2 दिन रुक कर कृष्णा वापस अपने ससुराल आ गई।
कृष्णा अपनी हर जिम्मेदारी बखूबी निभा रही थी। फिर भी उसकी सास व ननंद कुछ ना कुछ कमी निकाल उसे ताने मारने से ना चूकती थी।
कृष्णा कई बार उन सब का यह बर्ताव देख दुखी हो जाती थी। तब मोहन उसे समझाते हुए कहता "कृष्णा मां बड़ी है कुछ कह दिया तो इतना बुरा क्यों माना और सोनाली तो अभी बच्ची है। इनकी बातों को दिल पर मत लिया करो।"
हां उसके ससुर उसकी तरफदारी करते हुए उसकी सास व अपनी बेटी को डांट दिया करते थे कि तुम क्यों इसके पीछे हरदम पडी रहती हो।
एक दिन कृष्णा जब ऑफिस जाने लगी तो उसके ससुर बोले
" बेटा जरा ₹3000 दो। बिजली का बिल भरना है। तुमसे ना लेता लेकिन तुम्हें तो पता है ना शादी में कितने खर्चे होते हैं।"
यह सुन कृष्णा बोली "कोई बात नहीं पापा । घर खर्च की जिम्मेदारी हमारी भी है।"
अब तो जब तब उसके ससुर उससे कुछ ना कुछ पैसे लेते ही रहते। कृष्णा को थोड़ा अजीब लगने लगा था क्योंकि उसके पति अपनी तनख्वाह अपने पिताजी के हाथ में ही रखते थे। उसके बाद भी उसके ससुर महीने में कई बार घर खर्च के नाम से उससे पैसे लेते । कुछ महीने बाद ही उसकी ननद की शादी तय हो गई।
उसके ससुर ने कृष्णा व मोहन को एक दिन पास बुला कर कहा "तुझे तो पता ही है ना मोहन तेरी बहन के ससुराल वाले अच्छे खाते पीते लोग हैं इसलिए उनके हिसाब से ही हमें लेनदेन करना होगा और सब हमारी तरह तो होते नहीं ना कि जो बिना दहेज के शादी कर ले।"
यह सुन कृष्णा को थोड़ा बुरा लगा सब कुछ तो लाई थी वह अपनी शादी में। उसके बाद भी! लेकिन वह लिहाज के मारे बोल ना पाई।
"तुम्हारी सैलरी तो घर-घर खर्च में ही निकल जाती है और तुम्हारे छोटे भाई की अभी इतनी तनख्वाह नहीं कि वह सहारा लगा सके इसलिए बहू तुम्हें भी शादी में पूरा सहयोग करना होगा।"
उनकी बात सुन कृष्णा ने कहा "पिताजी आप कैसी बात करते हो सोनाली आपकी बेटी ही नहीं मेरी ननद भी है। आप बेफिक्र रहें। हम उसकी शादी बहुत धूमधाम से करेंगे।" शादी में अच्छी खासी रकम खर्च की गई। जिसमें से आधी कृष्णा के खाते से गई।
क्रमशः
सरोज ✍️