karm path par - 36 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 36

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कर्म पथ पर - 36




कर्म पथ पर
Chapter 36


जय सब जानकर बहुत गंभीर हो गया था। स्टीफन और माधुरी ने बहुत कुछ झेला था। जय ने कहा,
"आप लोगों को बहुत सी तकलीफों का सामना करना पड़ा। पर मैं आपकी तारीफ करूँगा कि आप झुके नहीं। आपने माधुरी को उस दुष्ट के नापाक इरादों से दूर रखा।"
"मिस्टर टंडन मैंने जो किया वह पति के तौर पर मेरा फर्ज़ था। माधुरी ने भी कम हिम्मत नहीं दिखाई। डट कर हर परिस्थिति का सामना किया। मैं प्रभु यीशू का शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने मिस्टर ललित नारायण मिश्र जैसे नेक इंसान को हमारी सहायता के लिए भेज दिया। उन्होंने हमारी बहुत मदद की है।"
"अब स्थिति कैसी है ? क्या हैमिल्टन अभी भी परेशान करता है ?"
"नहीं... मिस्टर ललित नारायण ने साबित कर दिया कि हैमिल्टन के पास क़र्ज़ का कोई लिखित प्रमाण नहीं है। जो हिसाब उसने प्रस्तुत किया वह गलत है। इसके अलावा उसने मेरी माँ के इलाज के नाम पर मेरे पिता का मकान अपने नाम करवा लिया था। उसकी कीमत मेरी माँ के इलाज और मेरी मेडिकल की पढ़ाई के खर्च से बहुत अधिक है। उल्टा उस पर कुछ पैसे बनते हैं। बच्चे की मौत वाले केस में भी सब मेरे पक्ष में रहा। लेकिन मुझे लगता है कि हैमिल्टन और अधिक घातक हो गया है। वह बदला लेने के लिए मौके की तलाश में है।"
"सही कह रहे हैं आप। उसके जैसा इंसान अपनी हार स्वीकार नहीं कर पाता है। अब हम भी उसे नहीं छोड़ेंगे। माधुरी के पिता शिव प्रसाद सिंह ने हमें उसके बारे में सारी जानकारी दी है। वृंदा उसके विरुद्ध दमदार रिपोर्ट तैयार करेगी।"
"यह तो अच्छा है। उस दुष्ट को छोड़ा नहीं जाना चाहिए। आप शायद हिंद प्रभात की वृंदा की बात कर रहे हैं। माधुरी ने बताया था उनके बारे में।"
"जी उन्हीं की बात कर रहा हूँ। वृंदा पहले भी उसका पर्दाफाश कर चुकी है। उससे खीझ कर उस हैमिल्टन ने उसके साथ बहुत गलत किया। पर वृंदा टूटी नहीं। वह बहुत बहादुर है।"
वृंदा की बात करते हुए जय के चेहरे पर जो भाव थे उन्हें देखकर स्टीफन को एहसास हुआ कि जय के मन में वृंदा के लिए प्रशंसा से अधिक कुछ है। पर उसने कुछ कहा नहीं।
जय ने कहा,
"डॉ. स्टीफन अब मैं चलूँगा। पर जाने से पहले एक बार माधुरी से मिलना चाहता हूँ। अगर वो अपने घरवालों के लिए कोई संदेश भिजवाना चाहे तो.."
"बिल्कुल... मैं अभी बुलाता हूँ।"
स्टीफन भीतर जाने के लिए मुड़ा ही था कि माधुरी बाहर आ गई। उसके हाथ में एक लिफाफा था। वह जय को देते हुए बोली,
"जब आप मेरे अम्मा बाबूजी से मिलिएगा तो उन्हें यह खत दे दीजिएगा।"
जय ने खत लेते हुए कहा,
"मैं अब चलता हूँ। अपना खयाल रखना।"
"नहीं...आप ऐसे नहीं जा सकते। आप मेरे अम्मा बाबूजी से मिलकर आए हैं। एक तरह से मेरे मायके के हो गए। मैं आपको अपने बड़े भाई की तरह मान रही हूँ। आप बिना खाना खाए नहीं जा सकते हैं।"
माधुरी द्वारा खुद को बड़ा भाई कहा जाना जय को अच्छा लगा। उसने माधुरी की बात नहीं टाली। जय खाना खाने के लिए रुक गया।

सारे काम निपटा कर संतोषी आंगन में मोढ़ा डाल कर बैठी थी। गुनगुनी धूप में बैठना उसे बहुत अच्छा लग रहा था।
जब से जय उन लोगों को माधुरी के बारे में बता कर गया था तबसे पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई थी। यह जानकर की माधुरी स्टीफन के साथ खुश हैं संतोषी के दिल को बहुत तसल्ली पहुँची थी।
शिव प्रसाद के सीने पर एक भार था कि वह अपनी बिटिया की हिफाजत नहीं कर पाए। उसका ब्याह एक विदेशी से करा दिया। जिसके बारे में वह कुछ जानते भी नहीं थे। पर माधुरी के हालचाल मिलने के बाद उनके मन का बोझ उतर गया था।
संतोषी के हाथ में माधुरी का खत था। जय के जाने के बाद से वह कई बार उसे पढ़ चुकी थी। पर उसका मन नहीं भर रहा था। खत पढ़ते हुए उसे ऐसा लगता था जैसे माधुरी खुद उसके सामने बैठी हो।
एक बार फिर उसने माधुरी का खत पढ़ना शुरू किया....

प्यारे बाबूजी और अम्मा
प्रणाम
मैं समझ सकती हूँ कि उस दिन चर्च में मुझे एक अजनबी के हाथों सौंपते हुए आप लोगों के दिल पर क्या बीती होगी। मैं भी आप लोगों से अलग होकर बहुत रोई थी।
स्टीफन के साथ जब मैं उनके घर पहुँची थी तो मुझे लग रहा था कि जैसे मैं किसी बहेलिए के जाल में फंसी हुई चिड़िया हूँ। मेरी नियति यही है कि मैं इस बहेलिए का निवाला बनूँ।
लेकिन मैं गलत थी। मेरी शादी स्टीफन से भले ही दबाव बनाकर की गई हो पर वह एक बहुत भले इंसान हैं। वो खुद भी हालात का शिकार थे।
अपने घर ले जाने के बाद उन्होंने हमेशा इस बात का खयाल रखा कि आप लोगों से दूर रहते हुए मैं दुखी ना हूँ। वो मेरी हर छोटी बड़ी चीज़ का खयाल रखते हैं।
अम्मा बाबूजी स्टीफन ने सदैव मुझे अपनी पत्नी का सम्मान दिया है। मेरे लिए उस हैमिल्टन से लोहा लिया। कई तकलीफें झेल कर भी हमेशा मेरा साथ दिया। उस दुष्ट हैमिल्टन को मेरे पास तक नहीं फटकने दिया।
मैं सोचती हूँ कि स्टीफन से अच्छा पति मुझे मिल नहीं सकता था। वो मुझे पूरी तरह से समझते हैं। कई बार मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरे मन की बात समझ जाते हैं। स्टीफन के साथ बहुत खुश हूँ।
अम्मा ने जैसा सिखाया था मैं भी उसी तरह स्टीफन का पूरा साथ देती हूँ। उनके हर सुख दुख में हमेशा उनके साथ रहती हूँ। उनके हर सुख का खयाल रखती हूँ।
जय भैया ने बड़ी कठिनाई से हमारा पता लगाया। वो हमसे मिलने आए हैं। उन्होंने हमें बताया कि वो आप लोगों से मिले थे। आप लोग मेरे विषय में सोंच कर बहुत परेशान थे। इसलिए मैं आप लोगों को यह खत लिख रही हूँ।
अम्मा बाबूजी आप लोग अब मेरे बारे में तनिक भी चिंता ना करें। स्टीफन जैसे पति को पाकर मैं धन्य हो गई हूँ।
अभी कुछ उलझने हैं। पर मुझे पूरा यकीन है कि स्टीफन उन्हें जल्दी ही सुलझा लेंगे। उसके बाद मैं और स्टीफन आप लोगों से मिलने ज़रूर आएंगे।
मेरा बहुत मन करता है कि एक बार फिर अपने बाबूजी के गले में बाहें डाल कर झूल जाऊँ। आपके पास बैठ कर सर में तेल लगवाऊँ। हम सब मिलकर पहले की तरह खूब हंसे खूब बातें करें।
मालती और मेघना से कहिएगा कि उनकी दीदी उन दोनों को बहुत याद करती है। दोनों खूब मन लगाकर पढ़ाई करें। ग्रैजुएट बनने का मेरा सपना अब तुम लोगों को पूरा करना है।
भगवान की दया रही तो हो सकता है कि एक दिन उनकी बहन उन दोनों की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी उठाने के काबिल हो सके।
आप दोनों बस ईश्वर से मेरे और स्टीफन के लिए प्रार्थना करिएगा।

आपकी बेटी
माधुरी

खत पढ़ते हुए संतोषी की आँखों से आंसू बह रहे थे। मालती उसके पास आकर बैठ गई। माधुरी का खत उसके हाथ से लेकर बोली,
"अम्मा क्यों रो रही हो ? जय भैया बताकर तो गए हैं कि माधुरी दीदी वहाँ बहुत खुश हैं। स्टीफन जीजा जी बहुत अच्छे हैं। दीदी का बहुत ख्याल रखते हैं।"
अपने आंसू पोंछते हुए संतोषी ने कहा,
"जानती हूँ बिटिया। मैं दुख के कारण नहीं बल्कि खुशी में रो रही थी। भगवान ने हम पर बड़ी दया की कि माधुरी की शादी स्टीफन से करवा दी। मेरा रोम रोम स्टीफन को आशीर्वाद दे रहा है।"
"अम्मा जय भैया को भी आशीर्वाद दो। उन्होंने ही तो दीदी को खोज निकाला है।"
"बिटिया मैं तो रात दिन उसका एहसान मानती हूँ। भगवान से मनाती हूँ कि उसे हमेशा खुश रखें।"
"चलो अब अंदर चलकर बैठो। धूप ढल रही है। हवा लग जाएगी।"
संतोषी ने मालती के सर पर हाथ फेरा और उठकर अंदर चली गई।