Teesri Raat - 3 in Hindi Thriller by mahesh sharma books and stories PDF | तीसरी रात - 3

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तीसरी रात - 3

तीसरी रात

महेश शर्मा

दूसरा दिन, दोपहर : 2 बजे

खाना खाने के बाद पत्नी को पत्नी को बस स्टैंड से छोड़ कर वह घर लौटा। थोड़ा थका-थका सा महसूस कर रहा था। वह कपड़े बदल कर बिस्तर में लेट गया। थोड़ी देर सोने का मन था।

उसने सिरहाने रखी किताब उठाई और पढ़ने लगा। वाकई दो-तीन पन्ने पढ़ते-पढ़ते उसकी आँखें बोझिल होने लगी। उसने किताब एक तरफ रख कर आँखें मूँद ली।

ठीक उसी वक्त उसकी नज़र सामने दीवार पड़ी। वहाँ एक छिपकली थी।

पहले तो उसके शरीर में झुरझुरी सी छूट गई। नींद उड़ चुकी थी। वह आँखें फाड़े-फाड़े बहुत ही गौर से उस छिपकली जो बिना हिले-डुले दीवार पर चिपकी हुई थी।

एकाएक उसे लगा कि छिपकली भी उसे देख रही है - बहुत ही गौर से। वह अचानक भयभीत हो उठा। लेकिन अगले पल उसने खुद को संयत किया।

वह धीरे से, बिना किसी आहट के बिस्तर से उतरा। बहुत ही सावधानी से उसने अपनी चप्पल उठाई और बिजली की फुर्ती से - छिपकली की ओर फेंकी। छिपकली नीचे फर्श पर गिर पड़ी।

उसने देखा कि छिपकली ने अपनी दुम अलग कर दी है – जो बुरी तरह से हिल-डुल रही थी। छिपकली तेज़ी से अल्र्मारी के ओर रेंगने लगी।

उसने फिर से अपनी चप्पल उठाई। वह छिपकली का काम-तमाम कर देना चाहता था। वह उस पर नज़रें जमाये हुए थोड़ा आगे बढ़ा। जिस हाथ में चप्पल पकड़े हुये था – उसे ऊपर उठा कर तान लिया। वह छिपकली पर चप्पल फेंकने ही वाला था कि – अचानक उसे महसूस हुआ कि कोई उसके पीछे खड़ा है। वह तेज़ी से पीछे घूमा –

वहाँ कोई नहीं था। उसने फिर से पलट कर छिपकली पर वार करना चाहा – लेकिन वहाँ छिपकली भी नहीं थी।

दूसरा दिन, शाम : 6 बजे

पड़ौसी ने आज फिर एक अजीब बात बताई।

जब वे दोनों टहलने के बाद, पार्क की बेंच पर बैठे सुस्ता रहे थे तो पड़ौसी ने अपने फोन में से एक विडियो उसे दिखाया। सड़क पर लगे किसी सीसीटीवी कैमरे से लेकर बनाई गई उस विडियो क्लिप में एक कार के सामने अचानक एक बिल्ली को आते हुये दिखाया गया था। कार वाला बिल्ली को बचाने के चक्कर में स्ट्रीट लाईट के पोल से टकरा गया था।

-“देखा आपने!” पड़ौसी अपने स्वर को भरसक रहस्यमयी बनाते हुए बोला – “यह बिल्ली अचानक से प्रकट हुई है सड़क पर! लीजिए फिर से देखिये।”

उसने दुबारा विडियो देखा। वाकई ऐसा ही लग रहा था मानो खाली सड़क पर अचानक एक काली बिल्ली हवा में से प्रकट हुई हो।

-“आप शायद इन सब चीजों में यकीन नहीं रखते होंगे –” पड़ौसी बहुत गंभीर था – “लेकिन यह सच है साहब। आत्माएँ होती हैं। और आपको हैरानी होगी कि वह कई बार तो हमारे बहुत आस-पास होती है। हो सकता है कि इस वक्त वह हमारे साथ इसी बेंच पर बैठी हुई हों।”

पड़ौसी की यह बात सुनकर एकाएका उसके दिल की धड़कन बढ़ गई।

-“यह हमारे घर में आकर यह बड़े मज़े से रह सकती है।“ पड़ौसी का कहना जारी था – “हम पर लगातार नज़र रख सकती है। यह कोई भी रूप ले सकती है। किसी कीड़े-मकोड़े का। चूहे या छिपकली का भी।”

वह सिहर उठा। पड़ौसी ने इधर-उधर देखा, फिर धीमे स्वर में बोला - “आप ज़रा कल्पना कीजिए कि आप मज़े से सो रहे हैं – और आपके कमरे में मौजूद एक छिपकली आप पर नज़र रखे हुए है। लेकिन वह आपको अकेले में ही मारेगी। जब उसे देखने वाला कोई न हो। यदि किसे ने उसे देख लिया तो फिर वह अपना काम नहीं कर पाएगी।”

वह कुछ नहीं बोला। पार्क में अंधेरा घिरने लगा।

दूसरा दिन, रात : 10 बजे

बहुत कोशिश करने के बाद भी वह सो नहीं सका। पत्नी घर पर नहीं है। अकेला है। पहले उसने देर तक टी वी देखा। फिर किताब पढ़ने लगा। लेकिन सब बेकार। उसने कमरे की लाईट ऑफ करके आँखें बंद करके सोने की कोशिश की।

सहसा उसे एक हल्की सी आहट सुनाई दी। लगा कि कोई किचन में चल रहा है। उसने एक झटके से आँखें खोल दीं। एक पल के लिए उसे लगा कि कोई लंगड़ाता हुआ – एक पैर को घसीट को चल रहा है।

उसने बहुत गौर से सुनने की कोशिश की। लेकिन स्पष्ट कुछ भी सुनाई नहीं दिया। वह आँखें खोले चुपचाप लेटा रहा। कमरे में तकरीबन अंधेरा था।

अचानक उसे लगा कि कोई उसके बिस्तर के सिरहाने चुपके से आकर खड़ा हो गया है। यह कल्पना करते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए कि जैसे ही अपने सिरहाने देखेगा उसे वही बूढ़ी मेड खड़ी नज़र आएगी।

वह सचमुच अपने सिरहाने की तरफ देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। बस दम साधे हुए लेटा रहा और खुद को यह तसल्ली देने की कोशिश करता रहा कि यह सब उसका वहम है। ऐसा कुछ नहीं होता। भूत-प्रेत-आत्मा यह सब बकवास है! और वह तो इन सब चीजों पर ज़रा भी विश्वास नहीं करता है।

उसने अपनी आँखें फिर से बंद कर ली। उसकी धड़कन बहुत तेज़ हो गई थी। वह गहरी-गहरी सांस लेने लगा। उसने अपने दिमाग को कहीं ओर केन्द्रित करने की कोशिश की। वह अपनी पत्नी और बेटी के बारे में सोचने लगा।

थोड़ी देर बाद वह नींद के आगोश में जाने लगा।

एकाएक फिर से उसे आभास हुआ कि कोई इस कमरे में है जो उसे देख रहा है। उसने एक झटके से अपनी आँखें खोली। सामने कुछ नहीं था। उसने अगल-बगल देखा। उसकी नज़र अलमारी पर गई। वहाँ कुछ था। उसने अंधेरे में आँखें गढ़ा कर बहुत ही गौर से देखा। उसे छिपकली जैसी कोई चीज़ नज़र आई – जो शायद अलमारी के पीछे से निकल कर आई थी और दीवार से चिपकी हुई थी।

उसने फुर्ती से उठ कर कमरे की लाईट ऑन कर दी। कमरा रोशनी से भर उठा। कहीं कुछ नहीं था। वह समझ गया कि छिपकली रेंग कर फिर से अलमारी के पीछे जाकर छिप गई है। उसे सहसा पड़ौसी की बात याद आ गई।

वह यह सोच कर सिहर उठा कि आज रात वह अपने घर में अकेला है। छिपकली अलमारी के पीछे छिपी हुई उसका इंतज़ार कर रही है – जो मौका पाकर उसे मार डालेगी।

वह बहुत ही दबे पाँव अलमारी के पास गया। एक हाथ में अपनी चप्पल मजबूती से पकड़े हुए। अलमारी दीवार से लगभग सटी हुई थी। उसने अलमारी को थोड़ा सा खिसकाने का प्रयास किया। लोहे की बनी उस भारी अलमारी को वह बस उतना ही खिसका पाया कि अलमारी और दीवार के बीच की झिरी थोड़ी सी बड़ी हो गई।

अचानक वह चौंका। उसने ठीक वैसे ही आवाज़ फिर से सुनी थी – किसी चाकू या तलवार को घिसने जैसी आवाज़! तो क्या यह आवाज़ अलमारी को खिसकाने से पैदा हुई थी? तो क्या उस सुबह उस वह मेड ने मेरे कमरे की सफाई करते वक्त इस अलमारी को खिसकाया होगा? लेकिन यह मुमकिन नहीं है। वह बहुत ही बूढ़ी और कमज़ोर औरत है। उसके लिए इस अलमारी को हिला पाना भी संभव नहीं है।

पहले तो उसने पूरी सतर्कता से, अलमारी के पीछे जा छिपी उस छिपकली को ढूँढने की कोशिश की। लेकिन वह वहाँ नहीं थी। फिर वह देर तक कमरे का एक-एक कोना छानने लगा। जब कुछ नहीं मिला तो फिर से अपने बिस्तर पर लेट गया। उसने लाईट नहीं बुझाई। आँखें बंद करके एक बार फिर सोने की कोशिश की।

रोशनी में सोना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। उसने खुद को लिहाफ से पूरा ढँक लिया। सर से लेकर पाँव तक। हाँ अब वह थोड़ी नींद ले सकता है। और ऐसा हुआ भी। उसकी आँखें फिर से बोझिल होने लगी।

एक तेज़ आवाज़ के साथ उसकी नींद फिर से टूट गई। वह उठ कर बैठ गया। क्या आवाज़ थी वह? कहाँ से आई थी? शायद किचन में से। बर्तनों के खड़कने या किसी भारी बर्तन के फर्श पर गिरने जैसी आवाज़ थी वह।

कौन होगा किचन में? यह ख्याल आते ही उसका जिस्म भय से ठंडा पड़ने लगा। वह हिम्मत करके उठा। कमरे से बाहर आया। किचन थोड़ी दूर पर ही था। वहाँ अंधेरा था। वह अभी सोच ही रहा था कि उसे आगे बढ़ना चाहिए या नहीं कि तभी – उसे कोई साया दिखाई दिया। वह वहीं जड़ हो गया। उसके पाँव मानो पत्थर हो गए थे। उसने साफ-साफ देखा – वह बूढ़ी मेड किचन से बाहर निकली – कुछ पल वहीं खड़ी रही फिर धीरे-धीरे चलती हुई उसकी तरफ आने लगी। वह लंगड़ाती हुई चल रही थी। एक पैर को घसीटते हुए – और उसके चलने पर कोई आहट नहीं हो रही थी।

उसने कस कर अपनी आँखें बंद कर ली। वह समझ चुका था कि अब वह मौत के चंगुल में फंस गया है। किसी भी तरह की कोशिश करना अब बेकार है। उसे फिर से वही आवाज़ सुनाई दी। चाकू पर धार लगाई जा रही थी।

सहसा उसके कानों में एक तीखा शोर सुनाई दिया। उसने घबरा कर अपनी आँखें खोल दीं। उसने अपने चारों ओर उजाला देखा। वह अपने बिस्तर में था। कॉलबेल बजने की तेज़ आवाज़ लगातार उसके कानों से टकरा रही थी।

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