ek adhuri shaam - 1 in Hindi Classic Stories by Anant Dhish Aman books and stories PDF | एक अधूरी शाम - 1

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एक अधूरी शाम - 1


दिन ढलने के कगार पर थी और रात चढने की खुमार पर थी हवा गर्म से नर्म हो रही थी मौसम भी धीरे-धीरे लजीज हो रही थी टहलने का मन हुआ तो निकल पड़े लुफ्त उठाने मौसम का ।।
घर से कदम बाहर निकले हीं थे की मेरे एक अजीज मित्र का फोन आया और पुराने अड्डे पे आने को कहा, वह वही पुराना अड्डा है जहाँ एक कप चाय में घंटो बीत जाया करती थी न वक्त का पता लगता था और न कोई दर्द का पता लगता था जहाँ बैठकर हमसभी शहर के शहंशाह हो जाया करते थे न किसी का खौफ हुआ करता था और न किसी चिज का शौक हुआ करता था जहाँ हो दोस्तों की महफ़िल वो जगह जन्नत हुआ करती है वहाँ दुआ दवा हुआ करती वहाँ कि फ़िजा जिन्दाबाद हुआ करती है, मैंने कहा ठिक है पहुंचता हूँ ।।
मैं खुश था चलो काफी दिन बाद दोस्त के साथ समय बिताने का अवसर आया है वो भी इस खुशगवार मौसम में ।। थोड़े ही समय पर मैं वो स्कूल के समय के अड्डे पर पहुंच गया ।। क्या बात!!! यहाँ पर तो दोस्तो की फौज थी जो कभी स्कूल के समय पर हुआ करती थी मैं काफी खुश हुआ न जाने कई सालों के बाद यह मिलन की रुत आई थी ।।

पहुंचते हीं सभी दोस्तो के साथ भरत मिलाप हुआ और चाय के साथ बातों और भावो का सफर प्रारंभ हुआ सभी अपने-अपने जीवन के किस्से सुना रहे थे किसी की बिजनेस की कहानी, किसी की बैंक में नौकरी की, किसी का इंजीनियर का सफर चलने लगा यूं तो हल्क फूल्की खबर सब का सबके पास था फिर भी विस्तार का दौर चलने लगा ।। ज्यादातर की शादी भी हो चुकी थी और कुछ के बच्चे भी सच पूछो तो अच्छा लगता है अपने दोस्तो को आगे बढता देखना ।।
अब बारी मेरी आई और सभी की नजरे मेरी और थी सब को कुछ न कुछ पता था एक ने कहा यार ये तो कवि हो गया है अपने दिल का आवाज हो गया और कुछ ने उसे बीच में रोकते हुए कहा नही भाई ये तो संपादक हो गया है आजकल और उसे रोकते हुए एक ने कहा नही भाई आजकल अपना भाई राजनीति में आ गया है ।।

बात सभी की सही थी किंतु अंततोगत्वा जबाब की तालाश सबको मुझसे हीं थी मैं निरुत्तर था ठीक शाम की तरह जैसे न वो दिन है और न वो रात है फिर भी वो एक शाम है और शाम की कहानी दोनों के साथ होती है, न वो सूर्य की तपिश में तप रहा है और न वो चाँद की शीतलता में नर्म है फिर भी उसकी कहानी दोनों के साथ है ।।

मैं चुपचाप शाम को निहारता रह गया दोस्तों की चाय खत्म हो चूकी थी और मेरी अधूरी ठीक अधुरी शाम की तरह ।। दोस्तो नें मुझे देखते हुए कहा बाबरा हो गया है क्या शादी कर सब ठीक हो जाएगा किंतु उन्हें कैसे समझाया जाए शाम अपने आप में पूर्ण हैं संपूर्ण हैं इसके बगैर न दिन ढल सकता हैं और न रात छा सकता हैं ।।

अधुरी शाम की कहानी अभी शेष हैं ................

#अनंत