जीवनदान
देवाशीष उपाध्याय
रात भर नींद में मच्छरों के भुनभुनाने की आवाज सुनायी दे रही थी। उनके द्वारा बेरहमी से काटने के कारण पूरे शरीर में खुजली हो रही थी। एक बार तो मुझे लगा जैसे, मैं कोई सपना देख रहा हूॅं। या टीवी पर मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया सबंधी सनसनीखेज समाचार देखकर मच्छरो-फोबिया हो गया है। वैसे भी मच्छरों के बढ़ते प्रकोप से मैं बुरी तरह से आजीज आ गया था। क्योंकि ऑल आउट जलाने के बाद भी मच्छरों पर कोई असर नहीं होता है और वे निर्भिक होकर हमारे इर्द-गिर्द घूमकर अपना काम कर जाते थे। सोते समय मच्छरदानी लगाने के बावजूद मच्छर मेरे इर्द-गिर्द कैसे घूम सकते हैं? इसी उपापोह में नींद में भी मैं उलझा रहा। सुबह जब नींद टूटी तो देखा, मेरी मच्छरदानी के अंदर चार-पाॅंच मच्छर बेफिक्र होकर मस्ती कर रहे थे। रात में मेरा खून चूसकर काफी मोटे-ताजे और हट्टे-कट्टे हो गए थे। मच्छरदानी के अंदर मच्छरों को बेखौफ घूमते देख मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुॅंच गया। मैंने बेगैरत और बेहया मच्छरों पर चिल्लाते हुए कहा, ‘तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई, मेरी मच्छरदानी के अंदर घुसने की? किसकी परमिशन से तुम लोग अंदर आए हो?’
एक मच्छर मुस्कुराते हुए बोला, ‘हमें कहीं जाने और आने के लिए किसी से परमिशन की जरूरत नहीं पड़ती है। इस धरती पर जीतना आपका अधिकार है, उतना ही हमारा भी अधिकार है।’
उसकी बातें सुनकर मेरा गुस्सा और भड़क गया, मैंने चीखते हुए कहा, ‘तुम लोग बड़े बेशर्म हो, ऑल आउट जलाने के बाद भी नहीं भागते हो। मच्छरदानी लगाने के बाद भी अंदर आ जाते हो।’
दूसरा बुजुर्ग सा मच्छर बड़ी विनम्रता से बोला, ‘क्या करें, बाबूजी पापी पेट का सवाल है। पिछले कई सदियों से आप लोग, हमारी प्रजाति को नष्ट करने पर उतारू हैं। लेकिन आखिरकार जीत हमारी ही हो रही है।’
‘तुम लोगों को पता है, मच्छरदानी के अंदर आने की सजा क्या है?’ मैंने चीखते हुए कहा।
‘बाबूजी, आप हम निहत्थों को मारने के सिवाय और कर भी क्या सकते हैं? इंसान तो पूरी प्रकृति के सभी जीव-जंतुओं के दुश्मन है। आप लोगों ने तो पूरे नेचुरल सिस्टम को ही तहस-नहस कर डाला है। अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति के लिए मासूम जानवरों की जिन्दगी से खेलना तो आपका शौक बन चुका है।’ एक दूसरे मच्छर ने बड़ी मासूमित से कहा।
उस मच्छर की बातें सुनकर मेरा दिल थोड़ा सा पसीज गया। अपने गुस्से को कंट्रोल करते हुए मैंने कहा, ‘हम इंसानों तो तुम्हारी प्रजाति से परेशान हो गये हैं। तुम लोगों ने तो हमारा जीना दूभर कर दिया है और दोष इंसानों के मत्थे मढ़ रहे हो।’
‘बाबूजी, हम लोगों ने कौन सा अपराध किया हैं? अरे आपके भारी-भरकम शरीर से खून की चंद बूंदे चूसकर अपनी क्षुधा की तृप्ति कर लेते हैं। जिसे आप लोग दूसरे जानवरों के हाड़-मांस रूपी शरीर का सेवन करके इकट्ठा किये हैं।’ बुजुर्ग मच्छर ने कहा।
‘खून की चंद बूंदें?’ आश्चर्यचकित होकर मैंने पूछा, ‘अरे तुम लोग तो खून पीने के अलावा साथ में मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी इंसेफेलाइटिस जैसी न जाने कितनी खतरनाक बीमारियां भी उपहार में दे जाते हो। जिससे हर वर्ष लाखों लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं।’
‘अरे बाबूजी, किसी को मारने की हमारी कहाॅं औकात है? हम तो ऊपर वाले के आदेशों का पालन करते हैं। हम तो हर रोज लाखों लोगों को काटते हैं। उसमें से कुछ चंद लोग जिनका टाइम पूरा हो जाता है, वे लोग निपट जाते हैं। सब कुछ ऊपर वाले की लीला है। लेकिन बदनामी हमारे खाते में आती है। बाबूजी हम लोग मासूम और बेकसूर हैं। जुल्म तो आप लोग हम पर ढ़ाहते है। हमारी नस्लें खत्म करने के लिए हर साल लाखों रूपये पानी की तरह बर्बाद करते हैं। न जाने कितने वैज्ञानिक हमें बर्बाद करने में अपना कीमती समय, श्रम और धन खर्च कर रहे हैं। अब देश में कोई मच्छर आयोग तो है नहीं, जिसके समक्ष हम लोग भी अपनी अपील और दलील रख सकें। हमारी तो कहीं कोई सुनवाई ही नहीं है। हम जाएं भी तो कहाॅं?’ एक सांस में उस मच्छर ने अपना दर्द बयां कर दिया।
‘देखो तुम लोगों ने अति मचा रखी है। तुम मानव जाति के सबसे बड़े दुश्मन हो। अभी पिछले महीने ही मेरे मित्र की दस साल की छोटी सी मासूम बिटिया डेंगू की चपेट में आने से भगवान की प्यारी हो गई।’ मैंने गुस्से में कहा।
‘बाबू जी, जरा सोचिए आपके घर-परिवार, नात-रिश्तेदारी में साल-दो साल में कभी-कभार हमारे कारण कोई इक्का-दुक्का आदमी निपट जाता होगा। जबकि हमारे यहाॅं तो आप लोगों और आपकी केमिकल दवाइयों की मेहरबानी से हर रोज लाखों मासूम बच्चों, बड़े-बुजुर्गों की जान चली जाती है। इतना ही नहीं हमारे लारवा (अजन्मे बच्चों) को भी आप लोग बड़ी बेरहमी से मार देते हैं। जरा सोचिए कि, आखिर हम लोग कैसे सरवाइव कर रहे हैं? आप लोगों को तो हम पर तरस भी नहीं आता है। बेदर्दी से हमें रौंद देते हैं, हमें मारने के लिए आपके वैज्ञानिकों द्वारा हर रोज नए-नए किस्म के अनुसंधान किये जा रहे हैं। अरे, हमारी मौत को दुनिया, के एक बडे़ वर्ग ने अपनी आजीविका का साधन बना लिया है। या यूं कहें कई मल्टीनेशनल कम्पनियाॅं तो हमारी मौत का बिजनेस चला रही हैं और हमारे लिए जहर बनाकर मालामाल हो गयीं। लाख कोशिश करने के बावजूद निराशा के सिवाय आप लोगों के हाथ कुछ नहीं लगा। वह तो प्रकृति की मेहरबानी से दिन-प्रतिदिन हमारा इम्यून सिस्टम इतना मजबूत बन गया कि, जिंदगी और मौत की जंग में हम जिंदगी को चुनते हैं। आप लोगों की तरह हमारे पास को एन्टीबाॅडी दवाइयाॅं तो हैं नहीं।’ उस मच्छर ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा।
‘अच्छा! यह बताओ, धरती पर तुम लोगों की क्या जरूरत है? तुम लोगों ने मानव जाति का सिवाय नुकसान करने के और क्या किया है?’ मैंने झल्लाते हुए पूछा।
'वाह बाबूजी वाह! प्रकृति ने पृथ्वी पर लाखों-करोड़ों किस्म के जीव-जंतु और दूसरी प्रजातियां बनाई हैं। सबकी अपनी-अपनी कुछ न कुछ जरूरतें और महत्ता हैं। धरती पर हम सभी का भी उतना ही अधिकार है, जितना आपका। लेकिन आप इंसानों की सोच इतनी घटिया है कि, आप लोगों को लगता है मनुष्य को छोड़कर बाकी सारी प्रजातियां, जीव-जंतु बेकार, अनावश्यक अथवा आपके हितों की पूर्ति के लिए है। अपने फायदे के लिए आप किसी की भी बेदर्दी से हत्या देते हैं। अपने स्वार्थ के लिए आप लोगों ने प्राकृतिक पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया। नदियों, तालाबों और झरना के अमृत जैसे जल को जहरिला बना दिया। हालत इतनी खराब हो गयी है कि, धरती पर दूसरे जीवों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। वैसे दिखावे के लिए तो आप लोग बड़े दयालु बनते फिरते हो लेकिन हकीकत में आपकी दयालुता रूपी पर्दे के पीछे क्रुरतम और वहशीपन का चेहरा छुपा है। हम भी प्रकृति को उतने ही प्यारे हैं, जितने कि आप। जहाॅं तक जरूरत की बात है तो अगर हम न रहे तो आपको अन्न का एक दाना भी नसीब न हो........।’
मच्छर बोले जा रहा था कि, मैंने बीच में उसकी बात काटते हुए कहा, ‘तुम भी क्या मजाक कर रहे हो, मच्छर भाई। अन्न का एक दाना भी नसीब नहीं होगा? अरे दिन-रात परिश्रम करके खेती हम करते हैं। फसल उत्पादन में तुम्हारा कौन सा योगदान है?’
‘भाई साहब, आप खेतों जोतकर उसमे बीज डालते हो, खाद-पानी देते हैं। इतने से फसल नहीं तैयार होती है। हम लोग आपकी फसलों में परागण करवाते हैं। यदि परागण न हो तो अन्न का एक दाना भी नसीब नहीं होगा।’
‘अरे यार, तुम फालतू की बातें करके मुझे मूर्ख न बनाओ। देखो तुम लोगों ने अवैध घुसपैठिये की तरह मच्छरदानी में प्रवेश कर सीमा रेखा क्रास की है। इसलिए तुम्हें सजा मिलेगी और तुम्हारी सजा होगी, सजा-ए-मौत!’
‘मान गए भाई साहब, इस धरती का सबसे स्वार्थी, निकृष्ट और बेदर्द प्राणी इंसान ही होता है। वो देखो, मेरे छोटे-छोटे मासूम बच्चांे पर जरा अपनी नजर डालो। जो अभी दो दिन पहले ही इस दुनिया में आए हैं। इतना ही नहीं कल रात ही मेरी बीवी एक बार फिर से प्रिग्नेंट हो गई है। बेचारी के पेट में मेरे अजन्मे बच्चे हैं। और आप हमें ऊपर वाले के पास भेजने की धमकी दे रहे हो। आखिर हमने कौन सा गुनाह कर दिया है। खून पीना मेरा धर्म है, ऊपर वाले ने हमें इसीलिए बनाया है। हमने कोई भी अनैतिक काम नहीं किया है।’ सामने मौत देखकर मच्छर ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
‘देखो तुम मुझसे बहस करके मेरा दिमाग मत खराब करो। ऊपर वाले को याद करो और वही जाकर भगवान से बहस करना। कहते हुए मैंने एक मच्छर को मारने के लिए झपट्टा मारा लेकिन वह बच निकला। बगल में बैठा मच्छर मुस्कुराते हुए चिल्लाया, ‘हे भगवान! तेरा लाख-लाख शुक्र है। भाई तुझे तो जीवनदान मिल गया।’ मेरा गुस्सा और बढ़ गया, मैं उस दूसरे मच्छर को मारने के लिए झपटा लेकिन वह भी बच निकला।
‘रुक जाओ भाई!’ सबसे बुजुर्ग मच्छर ने कहा, ‘आप लोग हमेशा अनैतिक और अप्राकृतिक काम क्यों करना चाहते हैं? आप खुद सोचो, ऊपर वाला हमें जीवनदान दे रहा है। प्लीज हमें जाने दो, आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है। वैसे भी मारने वाले से, बचाने वाला बड़ा होता है। प्लीज हमें एक बार माफी दे दो, हम लोग आपसे सामने सरेंडर कर जिन्दगी की भीख मांग रहे हैं और भविष्य में आपके इर्द-गिर्द भी नजर नहीं आएंगे।’ इस बार न जाने क्यों मुझे उन मासूम मच्छरों पर दया आ गयी और उनको सपरिवार जीवनदान दे दिया। मच्छरदानी से बाहर निकालकर उन्हें अपनी चंगुल से आजाद कर दिया।
देवाशीष उपाध्याय!