दादी की ममता है न्यारी ,
पोतो को लगती है प्यारी ,
लंगड़ लंगड़ के भी चल चल के ,
पोते पोती को हँसाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
कितना बड़ा शिशु हो जाए ,
फिर भी माँ का स्नेह वो पाए,
तब तब वो बच्चा बन जाता,
जब जब वो आ जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
धीरे धीरे नजर खोती हैं ,
ताकत भी तो क्षीण होती है ,
होश बड़ी मुश्किल से रहता ,
बिस्तर पर पड़ जाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
दांतों से ना खा पाती है ,
कानों से ना सुन पाती है ,
लब्ज कभी भी साथ न देते ,
मुश्किल से कह पाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
जर्र जर्र देह है , जर्र काया ,
ईश्वर की कैसी है माया ,
कभी घुमाती पुरे घर को,
अब खुद ना चल पाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
बातों को भी ना समझे वो ,
कैसे सपनों में उलझे वो ,
पर पोतों को दुःख सताए ,
बहु को पास बुलाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
कहती पोतो को यहाँ बुला को ,
हल्दी मीठा वहाँ लगा दो ,
तुलसी , चन्दन लगा लगा के ,
सारे गम को वो भुलाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
मिट्टी का बस तन होता है ,
पर माँ का जो मन होता है ,
सोना सा चमकीला चमके ,
हीरा सा अलख जगाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
समय क्रूर है , जल्दी भागे ,
दादी अब रातों को जागे ,
दिन रातों को राम नाम ले ,
अंतिम समय बिताती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
उपाय न कोई चलता है,
आखिर होकर हीं रहता है,
यम अधिनियम फिर फलता है,
वो इह लोक से जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
जबतक जीवित माँ इस जग में,
आशीषों से जीवन रण में,
अरिदल से करने को रक्षित,
ढाल सदृश बन जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
जब भी उसकी याद सताती,
ख्वाबों में अक्सर वो आती,
जन्मों का रिश्ता माँ का है,
मरने के बाद निभाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
तूने ईश्वर को नहीं देखा होगा,
लगता माँ के हीं जैसा होगा,
बिन मांगे हीं दग्ध हृदय को,
प्रेम सुधा मिल जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
जिनके घर में माँ होती है,
ना घर में विपदा होती है,
सास,ससुर,बेटे, बेटी की,
सब चिंता हर जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
काश कि ऐसा हो पाता,
ईश्वर कुछ पाने को कहता,
मैं कहता कह दे माता से,
यहाँ क्यूँ नही आती है?
धरती पे माँ कहलाती है।
माँ जाना तो दुनिया जानी ,
माँ की महिमा सबने मानी ,
बिन माँ के दुनिया बेमानी ,
अब दिल को बहुत सताती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
जननी तेरा है अभिनन्दन,
तेरे चरणों मे कर वन्दन,
गंगा यमुना जैसी पावन,
प्रेम का अलख जगाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
माँ तो है बरगद की छाया,
परम ब्रह्म की अद्भुत माया ,
ऋचाओं की गरिमा है माँ ,
महाकाव्य सा भाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
जन्नत है जहाँ माँ है मेरी,
मन्नत मेरी हर होती पूरी,
क्या मांगु बिन मांगे हसरत,
वो पूरी कर जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
अब जब तन के रोग सतावे ,
माता याद बहुत हीं आवे ,
तू ना है फिर भी ए माता ,
तेरी हर याद रुलाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
जाओ तुम्हीं काबा काशी,
मैं मातृ वन्दन अभिलाषी,
चारों धामों की सेवा जिसके,
चरणों मे हो जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
पुत कपूत सुना है मैंने,
नहीं कुमाता देखा मैंने,
बेटा चाहे लाख अधम हो,
वो माफ़ी दे जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
एक बात पे मुस्काता जाता है ,
दिल में चैन फिर आ जाता है ,
जीवन का वियोग क्षणिक है ,
मृत्यु तो फिर मिलवाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
आह वो दिन कैसा होगा ?
मृत्यु का आलिंगन होगा ?
देखूं माता रथ से हौले ,
मुझको लेने आती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
जब माता है फिर क्या गम है ,
स्वर्ग नरक बालक सम सम है ,
यम का भी स्वागत हो हंस के ,
जब माता संग आती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
माँ जिनकी होती न जग में,
जब पीड़ा होती रग रग में,
विचलित होते वे डग डग में,
तब जिसकी याद सताती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
जीवन का आधार वो ही है ,
करुणा मूर्ति साकार वो ही है ,
परम तत्व अवतार वो ही है ,
ममता सबपे बरसाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
तन मन की जो ये रेखा है ,
उसके पार उसे देखा है ,
स्वर्ग लोक से ईह लोक तक ,
अविरल बहती जाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
माता का बस ये परिचय है ,
ममता करुणा का संचय है ,
प्रेमाधन जिसमे अक्षय है ,
जो प्रेम सरस बरसाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
बालक जब तन में होता है ,
माँ का मज्जा ले सोता है ,
ईश्वर की कैसी अभिव्यक्ति ,
कि खोकर हीं हर्षाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
हर मर्ज की दवा है माँ ,
हर दर्द की दवा है माँ ,
सारे दुःख छु हो जाते हैं ,
जब बालक को सहलाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
और कहो क्या मैं बतलाऊँ?
माँ की कितनी बात सुनाऊँ,
ममता की प्रतिमूर्ति ऐसी,
देवी छोटी पड़ जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
माँ को गर न जाना होता,
क्या ईश्वर पहचाना होता?
जो ईश्वर में, जिसमे ईश्वर,
जो ईश्वर हीं हो जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।