Addbhut prem - 2 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | अद्भुत प्रेम--(दि्तीय पृष्ठ)

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अद्भुत प्रेम--(दि्तीय पृष्ठ)

करूणा नहीं मानी, उसने सुलक्षणा की स्थिति से सबको अवगत कराया, मां बाप ने तो अपनी इज्जत बचाने के लिए हां कर दी, लेकिन फतेह सिंह ने करूणा से कहा_____
करूणा ये कैसे हो सकता है, मैंने कभी भी इस नज़र से उसे नहीं देखा, तुम से वो पन्द्रह साल छोटी है और तुम मुझसे पांच साल छोटी हो,बीस साल का अंतर है,सुलक्षणा और मुझमें।
करूणा बोली,जरा सोचिए ठाकुर साहब हमारे आंगन में भी किलकारियां गूंजेगी,इस घर को सम्भालने वाला कोई आ जाएगा।
फतेह सिंह बोले, करूणा फालतू की ज़िद मत करो,तुम ही मेरी पत्नी हो और तुम ही रहोगी।
करूणा बोली, अच्छा आप ही बताइए, इसके अलावा, और कोई तरीका है आपके पास,सुलक्षणा की इज्जत बचाने का,अगर है तो बताओ।
फतेह सिंह बोले, ये बच्चा रखने की क्या जरूरत है, खत्म करो इसे और सुलक्षणा की शादी किसी और से करवा दो।
तभी जीजी कमरे में आई और बोली, करूणा ठीक कह रही है, बच्चे को मरवाना, ये समस्या का हल नहीं है,उस नन्ही सी जान का क्या कसूर है जो अभी दुनिया में आया ही नहीं है, उसके आने से हम सबकी जिंदगी खुशियों से भर रही है तो उसमें क्या बुराई है?
जीजी के कहने पर फतेह सिंह शादी के लिए तैयार हो गए, साधारण तरीके से थोड़े बहुत मेहमानों के बीच शादी हो गई।
रात को मधु-चन्द्र रात्रि की बेला थी, इसकी खुशी ना तो सुलक्षणा को थी और ना फतेह सिंह को,वो दोनों तो वहीं कर रहे थे जो करूणा कह रही थी।
करूणा ने सुलक्षणा को सजाकर कमरे में बैठा दिया और ठाकुर साहब से बोली, चलिए अंदर।
फतेह सिंह के मना करने पर भी,फतेह सिंह को कमरे में जाना पड़ा,फतेह सिंह जैसे ही पहुचे_____
सुलक्षणा ने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया, वो बोली...
शर्म नहीं आपको शादी के लिए हां करते, मैं लड़की होकर मना नहीं कर पाई,आप तो मना कर सकते थे, अपनी उम्र देखिए,बीस साल बड़े हैं आप मुझसे, लेकिन नहीं जवान लड़की देखी और निकल पड़े शादी करने,मर्दो की जात ही कुछ ऐसी होती हैं, और खबरदार जो मुझे छूने की कोशिश की,घिन आती है मुझे ऐसी घटिया सोच वाले इंसान से, ये लो तकिया और अपना बिस्तर अलग बिछाकर सो जाओ,सुलक्षणा ने तकिया फतेह के चेहरे पर दे मारा।
बेचारा फतेह अपना सा मुंह लेकर बिस्तर बिछा कर करवट बदलकर लेट गया और दुःख से उसकी आंखे लाल हो गई, और आंखों से दो बूंद आंसू भी टपक गये।
सुलक्षणा ने ये सब सुना और भगवान के पास जाकर फूट-फूट कर रोने लगी,हे भगवान! ये क्या हो गया मुझसे , इतनी बड़ी गल्ती हो गई, इतनी बेइज्जती करवा दी उनकी, मैं कैसे उनसे नज़रें मिला पाऊंगी।
दूसरे दिन ना तो करूणा और ना ही फतेह एक-दूसरे से नजरें मिला पा रहे थे लेकिन जैसे ही करूणा ने हिम्मत करके फतेह से कहा जरा सुनिए,कल रात.......
फतेह सिंह बोले,बस इसलिए मैं नहीं चाहता था कि ये शादी हो,वो मुझे इतना गलत समझ रही है,कल रात उसने कितने घटिया इल्जाम लगाये मुझ पर, गुस्से से पागल थी, सही ग़लत में अंतर करना भूल गई है,क्यो कराई तुमने ये शादी?
करूणा गुस्से से सुलक्षणा के पास जाकर बोली___
क्या समझती है,तू खुद को,पाप तूने किया,मुंह तू काला करके आई, और कोई भला आदमी तेरे पाप को समेटने की कोशिश कर रहा, तेरे ऊपर लगे कलंक को मिटा रहा है तो तू उसे खरी-खोटी सुना रही है, ऐसा कोई महान काम नहीं किया है तूने जो हम तेरे नखरे उठाये और खबरदार जो आज के बाद मेरे पति को कुछ कहा तो.....
इतना कहकर करूणा चली गई।
अब,सुलक्षणा को थोड़ा एहसास हुआ कि शायद उसने बहुत कुछ ग़लत कह दिया है और कर दिया है, ये लोग तो सिर्फ मेरी मदद कर रहे हैं, मुझे तो इनका धन्यवाद करना चाहिए लेकिन मैंने तो सबका दिल दुखा दिया।
आज सुलक्षणा को प्रसव-पीडा हो रही हैं, सबको नये मेहमान के आने का इंतजार है, करूणा इतनी खुश हैं कि,बस यहां से वहां,कुछ ना कुछ इंतज़ाम करने में लगी है और फतेह सिंह भी बस परेशान होकर आंगन में टहल रहे हैं, तभी करूणा कमरे से बाहर आई____
ठाकुर साहब........ ठाकुर साहब....... बेटा हुआ है,हम लोग मां-बाप बन गये,सुलक्षणा और बच्चा दोनों ठीक है,हमारा आंगन अब सूना नहीं रहेगा, यहां भी कोई अपने नन्हे-नन्हे पैरों से चलेगा,वो यहां से वहां भागेगा ,सारे घर में छुपता फिरेगा और मैं जशोदा मैया की तरह अपने कन्हैया को ढूंढा करूंगी,आज मैं बहुत खुश हूं ठाकुर साहब, और ये कहते-कहते उसकी आंखे झर-झर बहने लगी।
अरे पगली,अब भी रो रही हो,बधाई हो! मुंह मीठा नहीं कराओगी,फतेह सिंह बोले।
हां,मारे खुशी के तो मैं भूल ही गई,आज तो मैं सारे गांव का मुंह मीठा कराऊंगी,
चलो जीजी,ढोलक लाओ,आज तो मैं सोहर भी गाऊंगी और नाचूंगी भी,तब तक नाचूंगी,जब तक मेरे पैर ना थक जाए।
बहुत धूमधाम से बच्चे का बरहौं मनाया गया,सारे गांव को न्योता दिया गया,घी में छप्पन भोग बने,बाह्मणो को अलग से सात्त्विक भोजन कराया गया।
करूणा ने बच्चे का नाम कान्हा रखा,सुलक्षणा ज्यादा ममता नहीं रखती थी बच्चे से, बच्चे को देखकर सुलक्षणा को प्रकाश के दिए धोखे की याद आ जाती थी, ऐसे ही डेढ़ साल बीत गए।
फिर एक दिन बच्चा छत पर जीजी के साथ धूप सेंक रहा था,बच्चा छत से थोड़ा आगे की तरफ बढ़ने लगा, करूणा ने नीचे से देखा उसे लगा कान्हा अकेला है, उसे आवाज दी तो और आगे बढ़ेगा,वो दौड़कर सीढ़ियों पर जा ही रही थी,कान्हा को बचाने, तभी एकाएक उसका पैर फिसला, और वो सीढ़ियों से लुढ़क कर नीचे आ गई, तभी जीजी आवाज सुनकर बच्चे को लेकर नीचे आई देखा तो करूणा के सर से बहुत खून बह रहा है, उसने जल्दी से फतेह को बुलाया, करूणा को जीप में डालकर सब लोग अस्पताल ले गये।
इलाज के बाद करूणा को होश आया, वो बात करने में असमर्थ थी,इशारे उसने फतेह और सुलक्षणा को बुलाया, अपने हाथ से एक-दूसरे का हाथ मिलवा कर, वो निर्जीव हो गई।
पूरे सोलह-श्रृगांर के साथ उसका अंतिम संस्कार किया गया।

क्रमशः_____

सरोज वर्मा______🦃