Deh ki Dahleez par - 15 in Hindi Moral Stories by Kavita Verma books and stories PDF | देह की दहलीज पर - 15

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देह की दहलीज पर - 15

साझा उपन्यास

देह की दहलीज पर

संपादक कविता वर्मा

लेखिकाएँ

कविता वर्मा

वंदना वाजपेयी

रीता गुप्ता

वंदना गुप्ता

मानसी वर्मा

कथाकड़ी 15

अब तक आपने पढ़ा :- मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ? वहीं नीलम मीनोपॉज के लक्षणों से परेशान है। एक अरोरा अंकल आंटी हैं जो इस उम्र में भी एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। मुकुल अपनी अक्षमता पर खुद चिंतित है वह समझ नहीं पा रहा है कि उसके साथ ऐसा क्या हो रहा है ? सुयोग अपनी पत्नी प्रिया से दूर रहता है एक शाम उसकी मुलाकात शालिनी से होती है जो सामने वाले फ्लैट में रहती है। कामिनी का मुकुल को लेकर शक गहरा होता जाता है रात में मुकुल अकेले में अपनी अक्षमता को लेकर चिंतित होता है समाधान सामने होते हुए भी आसान नहीं है। अरोरा आंटी की कहानी सुन कामिनी सोच में डूब जाती है तभी उसकी मुलाकात सुयोग से होती है और वह वह उसके आकर्षण में बंध जाती है। अतृप्त कामिनी फंतासी में किसी को अनुभव करती है लेकिन अंत में हताश होती है। शालिनी अपने अधूरे सपनों से उदास हो जाती है। कामिनी की सासु माँ उसे समझाने की कोशिश करती हैं लेकिन समस्या उलटी है जान हैरान हो जाती हैं। कामिनी मुकुल नीलम राकेश का रिश्ता देह की देहलीज पर ठिठका खड़ा रहता है।

अब आगे

राकेश ने एक नजर सोई हुई नीलम को देखा, चेहरे पर थकान और तकलीफ की छाया अब तक परिलक्षित हो रही थी। प्यार से उसने उसका माथा चूम लिया, गाल पर गिरे लटों को उँगलियों से उसके कान के पीछे सरका दिया। राकेश को नीलम की कच्ची नींद का एहसास था और उसे मालूम था कि वह अभी भी जाग रही है। उसे इतनी जल्दी नींद भी नहीं आती है और हल्के स्पर्श से टूट भी जाती है। वह समझ रहा था कि नीलम जानबूझ कर उसे इग्नोर कर रही है और बस यूँ ही आंखे बंद कर उस छुवन का आनंद ले रही है। एक मुस्कुराहट आ गई राकेश के चेहरे पर और फिर बस बैठ उसे निहारने लगा।

परदों की झिर्री से आ रही चाँदनी नीलम के चेहरे पर पड़ रही थी, कितनी सुंदर कितनी मनमोहनी है ये सूरत। राकेश का मन बेकाबू होने लगा, कोई और समय होता तो वह नीलम को ऐसे ही सोने नहीं देता। रात बीत रही थी, कमलदल अपनी पखुड़ियों को समेट चुका है पर प्यासा भँवरा बाहर ही मंडराता रह गया। अब सुबह तक कैसे कटे ये रात?

राकेश की तड़प बेकाबू होने लगी, शिराओं के तनाव उसे बेचैनइयों की छटपटाहट से प्रमुदित कर व्याकुल करने लगे।

“नहीं नहीं ये गलत हो जाएगा”,

सोच उसने परदे को भली भांति सटा दिया ताकि सुबह सुबह नवरश्मि अपने दलबदल सहित नीलम की आँखों में चुभने न लगे और वह हर दिन की तरह जल्दी ही न उठ बैठे। उसे आराम की अभी सख्त जरूरत जो है।

राकेश का तन मन संसर्ग को व्याकुल होने लगा, वह बिस्तर से दबे पाँव उठ बाहर आ गया कमरे से। तलब की बेकरारी से वह बेबस होने लगा, अचानक कुछ याद आया। पिछले दिनों उसका एक मित्र आया था जो अपनी सिगरेट की डिब्बी उसके यहाँ भूल गया था।

बहुत देर तक खोजता रहा, डिब्बी खोजने के क्रम में उसका तनाव थोड़ा जाता हुआ महसूस हुआ। जब सिगरेट सुलगा वह बालकनी में अकेले बैठे कश लेने लगा, अचानक एक जोर से खांसी आ गई और उसने फिर उसे होंठों से नहीं लगाया। उँगलियों में उसे सुलगते देखता रहा, कोई तो और है जो उस जैसा ही सुलग रहा। राकेश देर तक उसे राख बनता देखता रहा। फिर जाने क्या मन हुआ गिरी हुई सारी राख को उसने बटोरा और डस्टबिन में डाल दिया। उसे अचानक सद्य: ब्याहता नीलम की प्रिया याद हो आई जो उसको पहली बार सिगरेट पीता देख सकपका गई थी।

“आप सिगरेट पीते हैं इससे तो कैंसर होता है न?”

नीलम ने बहुत ही मासूमियत से पूछा था। तुरंत तो नहीं छोड़ पाया था पर उसके बाद उसे खुद ही वह बुरी लगने लगी और अगले कुछ महीनों में उसने सिगरेट पूरी तरह त्याग ही दिया। तब तक वह नीलम से छुप कर ही सिगरेट पीता और जब जब कश लेता उसे नीलम द्वारा पूछे प्रश्न कानों में बजने लगते और एक गिल्ट भाव से वह भर जाता।

शुरुआत से ही वह नीलम की मासूमियत का दीवाना हो गया था, कहाँ होतीं हैं ऐसी लड़कियाँ जिनमें इतना पढ़ने लिखने के बाद भी भोलापन कहीं दुबका रह जाता है। अतीव सुंदरी तो नहीं कहा जा सकता पर राकेश उसके आकर्षण से ऐसा बंधा कि शादी के इतने सालों के बाद भी उसकी निकटता उसे दीवाना बनाए रखती है। धीर गंभीर नीलम नदी के दो पाट की भांति उसकी चपलता, चुहलता और चाहतों के वेग को संभाले रखती रही है। शादी के बाद से ही वह नीलम को अपने हृदय मुद्रिका में जड़ा कर सहेज लिया था। उसकी साली सलहज कितना चिढ़ाती उसे जब वह एक रात भी उसे मायके में अकेले नहीं छोड़ता था। साथ साथ ही जाता क्यूंकि उसे एक रात का विछोह भी बर्दास्त नहीं होता था। बेटी की शादी के बाद तो उसने मानों खुल कर अकेलेपन को इन्जॉय करना शुरू किया। अब दस बाइ चौदह के बेडरूम की जगह घर का हर कोना दिन का हर पल उसके अभिसार के लिए उपलब्ध था। सही, बच्चों के सेटेल होने के बाद की निश्चिंतता का सुख अपूर्व होता है। ये उम्र का वो दौर है जब वह और नीलम दोनों अपने करियर की ऊंचाइयों तक पहुँच चुके हैं। जवानी को आए भले बहुत वर्ष हो गए हों पर बुढ़ापे ने अब तक दस्तक नहीं दी थी । दोनों खूब घूमते, मल्टीप्लेक्स में जा कर हर मूवी देखते। कहीं घूमने जाते तो खूब अच्छे वाले होटल में ठहरते। एक दूसरे के प्रति ये आकर्षण पहले भी शायद इतना नहीं था। एक दूसरे की बाहों मे समा जाने का ये सुख पहले से भी द्विगुणित हो चुका था। जिंदगी के इस सेकंड हनीमून की गाड़ी बहुत नहीं चल पाई क्यूंकि एक चक्का अब घिस घिस घिसटने लगी थी।

पिछले कुछ महीनों से राकेश, नीलम की घटती रुचि और संसर्ग से बचने के बहानों को महसूस कर रहा था। जहां इसकी चाहतो का घड़ा हमेशा छलकने को आतुर रहता वहीं नीलम मानों तृप्ति का प्याला खाली कर बैठी हो। कभी कभी वह इसे मानिनी का मान समझ रिझाता तो कभी उसके नखरे समझ उन्हें उठता। कभी पति का चोला बिल्कुल उतार दास भाव से सेवातुर हो जाता तो कभी कभी नीलम की बेजारी से चिढ़ उठता तो कभी आपा भी खो बैठता। सब दिन होत न एक समाना। तो कोई कोई रात ऐसी होती है, उसमें कोई बात ऐसी होती है - ऐसा भी सोचता।

मौन मूक संवाद की धनी नीलम पहले जहां अंतरंग पलों में एक अति चपल मुखरा अभिसारिका बन जाती कि राकेश कृत कृत हो उठता। पर अब वह नीलम कहीं खो गई है मानों, कितनी रातें उसने उस पहल की प्रतीक्षा में बिताई हैं। नीलम की मंद होती कामाग्नि और यौनेच्छा उसका चैन चुराने लगे थें। वह कभी कोई हॉट मूवी नीलम को दिखाने की कोशिश करता तो अरुचि से मुहँ घुमा लेती। वह उसको जलाने के लिए मॉडेल्स की न्यूड तस्वीरें देखता। एक बार तो मलायका की तस्वीर उसने जानबूझ कर उसे छेड़ने के लिए घूरने की एक्टिंग भर की थी। पर बाद में नीलम को रोते सिसकते देख राकेश का मन भर आया था।

उसे लगने लगा था कि कहीं कोई दिक्कत उसमें तो नहीं जो इस ढलती उम्र में उसके अंदर ठाठें मारने लगी हैं। उसकी इच्छाएं उसकी पत्नी की क्षमता की सीमाएं क्यूँ लांघ जा रहीं है ? राकेश चकित हो जाता जब नीलम उसकी निकटता टालने हेतु पूजा उपवास जैसे झूठ बोल जाती। पति पत्नी तो एक दूसरे के दर्पण ही होतें हैं जहाँ दोनों के हृदय में एक दूसरे की कामनाओं की प्रतिछाया प्रतिबिंबित होती है। वह थाम लेने की असफल कोशिश करता, पर अपनी कामनाओं के ज्वार के समक्ष कभी कभार वह बेबस हो जाता और नीलम की इच्छा विरुद्ध उसके घोड़े सरपट दौड़ लगा जातें। उसे महसूस होता कि काश वह कामनाओं की वल्गा थामे रखने की कला मे माहिर होता।

उसे मन होता नीलम बदलते फैशन के अनुरूप ड्रेस पहनती, नित नये हेयर स्टाइल बनाती पर नीलम, वह उत्तर सोचता तो वह दक्षिण। वह चुस्त दुरुस्त चटकीले टी शर्ट में तैयार होता तो मैडम जी एक ऊँट कलर की साड़ी निकाल लेती। पर राकेश कभी नहीं टोकता वह जानता था कि नीलम बेहद संवेदनशील है। कुछ दिनों से वह उसकी बढ़ती सुस्ती और मूड स्विंग्स भी अनुभव कर रहा था सो छुट्टी वाले दिन वह कोशिश करता कि किचन सँभाल दे ताकि उसकी प्रियतमा को आराम मिले।

इधर कुछ महीनों से नीलम की अनियमित माहवारी भी परेशानी का सबब बन चुकी थी।। उसके समक्ष तो वह हार ही मान जाता और मायूस हो दिन बीतने की गिनती करता। इधर ये गिनती कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी तो उसकी भी आशिकी हवा होने लगी। इसीलिए तो अभी दो दिन पहले ही तो वह शहर की सबसे अच्छी स्त्री रोग विशेषज्ञ को मिलने गया था नीलम को ले कर।

“उम्र का क्या है बस एक नंबर ही तो है”

जैसे विश्वास तले से धरती मानों खिसक गई जब लेडी डॉक्टर ने कहा कि,“हर इंसान चाहे स्त्री हो या पुरुष एक समय के बाद शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजरता है। इसमें विविध हॉर्मोन्स का अहम रोल होता है। औरतों में इसे menopause या रजोनिवृत्ति कहते हैं और नीलम अपनी उम्र के उसी दौर से गुजर रही है। इसमें घरवालों और खास कर पति के अतिरिक्त सहयोग की अति आवश्यकता होती है। मिस्टर राकेश, मेरा ख्याल है आप इस बात से परिचित होंगे”

डॉक्टर ने कुछ स्पेशल टेस्टस और जांच लिख दिया था जिसे राकेश ने कल ही सुबह सुबह करवा कर नीलम को कॉलेज ड्रॉप कर दिया था। नीलम की सुस्ती और कमजोरी बनी हुई थी। आज उसने नीलम को कॉलेज जाने नहीं दिया, शाम तक वह सारे रिपोर्ट्स ले कर भी आ चुका था पर उसका जिक्र उसने नीलम से अभी नहीं किया था।

रिपोर्ट्स में बताया था कि उसके बच्चेदानी का ऑपरेशन जल्द से जल्द करना होगा क्यूंकि उसमें एक बड़ा सा ट्यूमर हो गया है। राकेश दस दिनों के बाद की एक तारीख भी लेते हुए आया था। कल सुबह नीलम को बताएगा और मदद के लिए अपनी चचेरी बहन जो यहीं पास में रहती है उसे बुला लेगा। कैसे क्या होगा, राकेश के दिमाग में अब होने वाले ऑपरेशन को ले कर फिक्र की घड़ी टिक टिक होने लगी थी। अब विदेश में रह रही बेटी को बेकार क्यूँ बताना या अब नीलम जैसा चाहे।

कुछ देर पहले कामुक हुआ जा रहा राकेश अब भावुक हुए जा रहा था। सुबह से भाग दौड़ में लगे रहने के कारण उसने ज्यादा गंभीरता से नहीं सोचा था। ऑपरेशन की तारीख मिलने पर उसे अस्पताल के सायकोलोजिस्ट/ कॉउन्सलर से भी नीलम के लिए ऑपरेशन पूर्व मानसिक तैयारियों के लिए भी टाइम लेने जाना पड़ा। जो कल शाम का था। पर उसने अपनी शंका और आशंकाओं के बीच झूलते मन की तसल्ली के लिए आज ही कुछ प्रश्न पूछ लिए मसलन,

“क्या नीलम पूर्ववत उसकी अंकशयनी बन सकेगी?” राकेश ने अपने सबसे बड़ी चिंता को व्यक्त करने से एक क्षण देरी नहीं लगाई थी।

“राकेश जी, देखिए इसीलिए बड़े अस्पतालों में हमसे मिलने की अनुशंशा की जाती है ताकि पति-पत्नी दोनों को मानसिक रूप से तैयार किया जा सके। इस शल्य क्रिया के बाद भले ही आपकी पत्नी की प्रजनन प्रणाली समाप्त हो जाएगी पर आपका स्नेह और विश्वास उसके मन को सदा उर्वर बनाए रखेंगे। मैंने तो जोड़ों को इस के बाद ज्यादा खुल कर जीवन जीते देखा है। आपको शायद मालूम न हो कि कई मर्द भी इन बदलावों से हो कर गुजरतें हैं, कभी अति तो कभी मंद कामाग्नि। ये सब हॉर्मोन्स के बदलते रुख के कारण होतें हैं और शारीरिक से अधिक मानसिक होते हैं। आप कल अपनी पत्नी को ले कर आइए, उन्हें भी बहुत बातें समझने की जरूरत है”

कॉउन्सलर ने उठते हुए कहा।

राकेश का मन गहराती रात के साथ और सशंकित हो रहा था। जिंदगी कैसी सी-सॉ सी हो गई है अचानक। कितने मजे से दौड़ती जिंदगी में मानों अचानक ब्रेक लग गए हों। महसूस ही नहीं हुआ कि सुखी दांपत्य के इतने वर्ष यूँ निकल गए। चलचित्र की भांति बीते हर क्षण उसके आँखों के समक्ष चलने लगे।

“ मैं नीलम को कभी एहसास ही नहीं होने दूंगा कि उसमें कोई बदलाव भी आया है”

राकेश ने मानों मन ही मन कोई प्रण लिया हो। उसे अचानक अपने ऑफिस के मिस्टर साहा याद आ गए जिनकी पत्नी कुछ वर्ष पहले गुजर चुकी है। फिर उसे अपना वो मुंबई वाला दोस्त याद आ गया जो अपनी पत्नी से तलाक के बाद अकेले जिंदगी गुजार रहा है। वैसे और भी बहुत सारे उदाहरण उसे याद आने लगे तब उसे अपनी खुशकिस्मती का एहसास होने लगा।

अब अंधेरा छँटने को था, बैठे बैठे ही सोचने में रात गुजर गई, चलो कुछ घंटे अभी भी सोया जा सकता है। मन ही मन वह फिर लिस्ट बनाने लगा जो वह आज फिर कॉउन्सलर से पूछेगा। अब जाने नीलम को क्या पूछना होगा पर उसे महसूस हो रहा था कि उस की जिज्ञासाओं का अंत ही नहीं हो रहा। दबें पांव उसने बेडरूम में प्रवेश किया और आँखे बंद कर नीलम के पार्श्व में लेट गया। उसने उसके हाथ को उठा अपने सीने पर रख लिया, एक सुखद कामरहित एहसास से मन पुलकित हो उठा। अब पलकें नींद से बोझिल हो चुकी थीं और इस प्रहर नीलम भी वाकई गहरी नींद में थी वही शादी की रात वाली मासूमियत लिए।

क्रमशः

रीता गुप्ता

कहानीकार, स्तंभकार और स्वतंत्र लेखन।

राँची झारखंड से।

छ लघुकथा सांझा संग्रह, तीन सांझा कहानी संग्रह और "इश्क़ के रंग हज़ार" नामक लोकप्रिय एकल कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

मातृभारती पर बाजूबंद, तोरा मन दर्पण कहलाए, काँटों से खींच कर ये आँचल और शुरू से शुरू करते हैं जैसी पापुलर कहानियाँ मौजूद।

koylavihar@gmail.com