jyako rakhe saaiya - 5 in Hindi Horror Stories by योगेश जोजारे books and stories PDF | ज्याँकों राँखें साईंयाँ... भाग 5

Featured Books
Categories
Share

ज्याँकों राँखें साईंयाँ... भाग 5

फिर वह एक लम्बी छलाँग लगाकर युवी पर झपट पड़ा तभी युवी ने फुर्ती से जेब की विभुति निकली, "जय साईंनाथ" के जयकारे के साथ उस पिशाच्च की ओर फेकि युवी का साहस और बढ़ रहा था.
उस पिशाच के शरीर मे साईंविभुति के कारण जलन होने लगी.
वोह और ग़ुस्से में आ गया "अब तू देख मेरा कमाल" बोलते ही पिशाच ने अपना कटा सर और धड़ दोनो अलग किये, जिससे वह दो अलग दिशाओ से वार करने लगा. युवी के एक हाथ में मोबाईल होने के कारण वह सिर्फ एक ही दिशा में साईंविभुति फेक सकता था. जिससे कटा सीर या धड़ ही पीछे सरकता, इसी दरमियान एक जोरदार वार युवी की हथेली पर लग गया जिसकी वजह से मोबाइल एक तरफ और युवी दूसरी तरफ जा गिरा. युवी उठ खड़ा हुवा
उस काले गर्द अंधेरे में युवी को कुछ भी नजर नही आ रहा था.
उसे कुछ याद आया , युविने ऊपर की जेब से फूल निकालेते हुए दोनो आँखों पर लगाये. युवी को अब वह नरभक्षी पिशाच्च साफ दिखाई पड़ रहा था.
उसे खुदपर आश्चर्य हुवा के यह सब उसे कैसे सूझ रहा हैं, या कोई मुझसे करवा रहा हैं. दूसरे ही पल युवी सावधानी से खड़ा हो गया.
"ए...खूनी,नरभक्षी,दरिन्दे मैं यहाँ पर हु इधर आ~~~ साईबाबा के आदेश से, तेरा नरक जाने का वक्त आ गया है" युवी की आवाज सुनकर पिशाच्च ने उसकी ओर देखते हुये बोला "ओह...तो तू मुझे बिना उजाले के भी देख सकता है, उस साईं ने तुझे भेजा है ना, मुझे खत्म करने.अब तूझे भी मार कर उसके पास पोहचता हूं सदा के लिए"

वह पिशाच्च ग़ुस्से से पागल हो गया, अपना कटा सर औऱ धड़ युवी के विरुद्ध दिशा में खड़े कर, वार करने लगा. कभी सिर जोरदार टक्कर मारने युवी कि तरफ तेजी से बढ़ता, तो कभी अधनंगा धड अपने दोनो तेजनाखुन वाले हाथ लेकर युवी की गर्दन तक पोहुचता.
पर युवी फुर्तीसे बडी चतुराई के साथ
वार से बच निकलता,साथ ही हर वार पर साईंबाबा की विभुति उस पिशाच्च पर फेकता. जिस कारण उस नरभक्षी की शक्ति क्षीण हो रही थी,साईंविभुति से उस खूनी दरिंदे के अंगप्रत्यंग में तेज जलन होने लगी. गुस्से में आग बबूला होकर वह पिशाच्च फिर उठता फिर से वार करता.
युवी को मामूली जख्म होते ही उसपर
तुरन्त साईंविभुति लगा देता.
यह खेल काफी समय तक चला इधर झोली में विभुति खत्म हो चुकी थी, बस आखरी मुट्ठी बाकी थी. उधर पिशाच्च का शरीर भी अधमरा हों चुका था.
पिशाच्च ने कटा सर धड़ से जोड़ लिया अपनी कमजोर पड़ी ताकत बढ़ाने के लिए. युवी भी सावधानी से खड़ा था. एक ही मुट्ठी बाकी देख वह दरिंदा जोर से दहाडा
" यह आखिरी बची राख, इसके बाद तुझे मुझसे कोई नही बचा सकता तेरा मरना मेरे हाथों तय हैं" इतना बोलकर उसने हवा में लंबी छलांग लगाई,वो सीधे युवी की तरफ.
" ज्यांको राखे सांईंयाँ... मार सके ना कोय..... जय जय साईंनाथ" दीर्घ विश्वास के साथ युविने बाबा की विभुति उसके सारे शरीर पर फेंक दी..
जोरदार झटका खाकर वह पिशाच्च करीब करीब खत्म होने ही आ गया था.
उसके पूरे शरीर से तेज धुंवे की सफेद लपेटे निकल रही थी, जैसे आग लगने से पहले निकलती हैं.
सफेद धुंवा फेकता उसका शरीर फिर उठ कर धिमेधिमे युवी के तरफ बढ़ने लगा.