घमंडी डाली
एक नन्ही चिड़िया बहुत दूर से उड़ते हुए आ रही थी. तेज़ गर्मी थी. वह प्यास से बेहाल थी. उसके नन्हे पंखों में अब और अधिक दूर तक उड़ने की ताकत नहीं बची थी. तभी थोड़ी दूरी पर उसे एक घना पेड़ दिखा. चिड़िया ने अपनी बची-कुची ताकत समेटी और उस पेड़ की तरफ उड़ने लगी. जल्दी ही वह उस पेड़ पर पहुँच गयी. गर्मी से बचने के लिए वह पेड़ की पत्तियों के बीच घुसने लगी. डाल-डाल पर फुदकते हुए वह एक घनी पत्तियों से भरी मजबूत डाली तक पहुंची. यह पेड़ के बीचोंबीच थी. चरों तरफ से पत्तियों से घिरी हुई. यहाँ ठंडी छाँव थी क्योंकि चरों तरफ ढेर साड़ी पत्तियां होने के कारण सूरज की गर्मी यहाँ तक पहुँच नहीं पाती थी. चिड़िया उस डाली पर बैठ गयी. डाली ने देखा कि चिड़िया गर्मी और थकान से सुस्त हो रही है तो उसे दया आ गयी. डाली ने तुरंत उसे एक रसभरा फल खाने को दिया. और अपने पत्ते हिलाकर उसे हवा करने लगी.
चिड़िया ने उसे धन्यवाद कहा और फल खा लिया. फल खाकर उसकी प्यास बुझी और थोड़ी ताकत आई.
“तुम्हारा घर कहाँ है? तुम कहाँ से आई हो?” जब चिड़िया फल खा चुकी तो डाली ने सहानुभूति से पूछा.
“मेरा घर बहुत दूर है. एक शिकारी बाज मेरे पीछे लगा था. उससे बचते हुए मैं बहुत दूर उड़ आई हूँ. मुझे अब याद ही नहीं आ रहा कि मेरा घर कहाँ है.” नन्ही चिड़िया रोते हुए बोली.
“प्यारी चिड़िया रो मत. तुम मेरे पास आराम से रह सकती हो. यहाँ तुम्हे खाने को ढेर सारे फल मिलेंगे. मेरे पत्तों के बीच तुम सुरक्षित होकर चैन से रह सकती हो.” डाली ने स्नेह भरे स्वर में कहा.
डरी, थकी चिड़िया को डाली की स्नेह भरी बातों से बड़ा आराम और भरोसा मिला. वह अपने
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पंख लपेटकर डाली पर सो गयी. डाली बड़े प्यार से अपने पत्तों से उसे थपकियाँ देने लगी.
डाली के स्नेह ने चिड़िया के घाव भर दिए. अब वह निडर होकर वहां रहने लगी. आस-पास उडती, चहकती और फिर आकर डाली पर बैठ जाती. उसके आने से डाली का अकेलापन भी दूर हो गया. दिन भर चिड़िया के चहकने का मधुर संगीत उसके आसपास गूंजता रहता. चिड़िया भी उसका खूब मान रखती. हमेशा उसकी सहृदयता और बडप्पन की प्रशंसा करती. धीरे-धीरे डाली में घमंड आने लगा की वह बहुत महान है. उसने चिड़िया की मदद की नहीं तो वह बाज का शिकार बन जाती. चिड़िया सिर्फ उसी के कारण जीवित है. वह अपने फल खिलाकर उसे पाल रही है और बदले में चिड़िया उसे कुछ नहीं दे सकती.
डाली का स्वाभाव बदलने लगा. वह चिड़िया को ताने मारने लगी. उसकी प्यारी चाह्चाह्त अब डाली को शोर लगती. अब वह उससे पहले की तरह प्यार से भी नहीं बोलती. हमेशा उसे डांटती रहती. चिड़िया के पंजे उसे चुभने लगे. चिड़िया बेचारी डरी सहमी रहने लगी. अब तो डाली को उसका बैठना भी बोझ लगने लगा. उसका फल खाना भी अखरने लगा. वह हर समय कडवा बोलने लगी. चिड़िया बेचारी रुआंसी हो गयी. आखिर एक दिन डाली ने चिड़िया को डांटकर भगा दिया. चिड़िया रोती हुई पास लगी एक झड़ी में छुपकर रहने लगी. वह कीड़े खाकर गुज़ारा करने लगी. पेट तो भर जाता लेकिन डाली का पहले का स्नेह उसे बहुत याद आता. रात भर उसे डाली की थपकियाँ याद आती और वह उदास हो जाती. दिन भर वह इस आशा में डाली की तरफ देखती रहती कि वह उसे अपने पास बुला लेगी.
इधर जैसे ही चिड़िया चली गयी डाली पर कीड़ों ने हमला कर दिया. वे उसके रसीले फल खाने उसपर चढ़ने लगे. कीड़ों ने उसके पत्तों में भी छेद कर दिए. फल खराब कर दिए. कई कीड़ों ने डाली पर जगह-जगह छेद करके अपने घर बना लिए. वे बेवजह भी डाली को खूब परेशान करते, उसे काटते. डाली दर्द से कराह उठती. चिड़िया थी तो वह कीड़ों को पास नहीं फटकने देती थी. कीड़ों को मार देती थी. अब डाली को अहसास हुआ की नन्ही चिड़िया उसके लिए क्या करती थी. चिड़िया की वजह से ही वह फलफूल रही थी. अब तो कीड़े उसके फूलों को भी नष्ट कर रहे थे तो फल कहाँ से आयेंगे.
दुःख और पश्यात्ताप से डाली सूखने लगी. उसे चिड़िया की खूब याद आती. लेकिन अब किस मुंह से उसे वापस बुलाये. इधर चिड़िया भि देख रही थी कि डाली सूखती जा रही है. उसका मन तड़प उठता लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी उसके पास जाने की. कुछ ही दिनों में डाली
२
पूरी मुरझा गयी. उसके सारे फूल-पत्ते झड़ गये. अब चिड़िया से नहीं रहा गया. वह डाली के पास गयी.
“प्यारी डाली यह तुन्हें क्या हो गया. तुम मुरझा क्यों रही हो?” चिड़िया ने स्नेह से पूछा.
“डाली की आँखों में आंसू भर आये “यह सब तुम्हारे साथ किये बुरे व्यवहार का परिणाम है. देखो कीड़ों ने मेरा क्या हाल कर दिया है. मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम्हे बहुत दुःख दिए. मुझे मेरे घमंड की सजा मिल गयी.”
“ऐसा मत कहो प्यारी डाली. तुमने मेरी जान बचाई, मुझे घर दिया, इतना प्यार दिया. इन बदमाश कीड़ों को तो मैं अभी मजा चखाती हूँ. तुम चिंता मत करो.” कहते हुए चिड़िया ने कीड़ों को मारना शुरू किया.
दो दिन में ही चिड़िया ने सारे कीड़ों को मार दिया. वह डाली के घावों पर अपने पंखों से हवा करती रहती. उसके स्नेह ने डाली को बहुत जल्दी स्वस्थ कर दिया. वह फिर हरीभरी हो गयी, फूल-फल से लद गयी. डाली और चिड़िया दोनों ख़ुशी से, प्यार से साथ रहने लगी. चिड़िया के मधुर गीत फिर से डाली के आसपास गूंजने लगे.
डॉ विनीता राहुरिकर
श्री गोल्डन सिटी
28 फेस 2
होशंगाबाद रोड़
जाट खेड़ी
भोपाल
मध्यप्रदेश 462043
Dr Vinita Rahurikar
Shri golden city
28, phase 2
Hoshangabad road
Bhopal
M.P. 462043