Parikshaye in Hindi Moral Stories by Chaya Agarwal books and stories PDF | परीक्षायें

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परीक्षायें

कहानी -परीक्षायें
छम..छम..छम..करती बिरजू के रिक्शे की आवाज दूर से सुनाई दे जाती है, जैसे वो कोई रिक्शा न होकर बैलगाड़ी की बैल हो। सजी-संवरी, साफ-सुथरी, नकली फूलों की लड़ियों से महकती और पीछे की तरफ नज़र से बचने के लिये लटकता काले रंग का चुटीला, उसके रिक्शे को अलग ही पहचान दिलाता है।
बिरजू अपने रिक्शे को अपने दिल से लगा कर रखता है और प्यार से उसे चन्दू कह कर पुकारता है। रोज घर से निकलने से पहले वह अपने रिक्शे को रगड़-रगड़ कर चमकाता, घण्टियाँ चैक करता और चलते समय अपने खाने का थैला आगे टाँग लेता। दोपहर को भूख लगने पर वह किसी पेड़ के नीचे या चबूतरे पर बैठ कर खा लिया करता। ये महज रिक्शा नही उसकी अन्नदाता है, उसकी हम सफर है, सुख-दुख की साथी है। इसी से तो उसके घर का चूल्हा जलता है। अगर ये न होती तो और कोई दूसरा साधन नही है उसके पास। घर में तीन जवान बेटियाँ हैं, वो भी बिन माँ की, ऊपर से उसकी लम्बी बीमारी, ऐसे में कमाई का एकमात्र साधन यही है। माँ और बाप का किरदार एक साथ बखूवी निभाया है बिरजू ने, कितनी मुश्किलें आईं लेकिन उसने कभी हार नही मानी।
पेट की आग जब दहकती है तो अमीरी-गरीबी कुछ नही देखती, उसे तो बस अन्न की आहूति चाहिये।
एक तो पेट की आग दूसरे अभी ब्याह भी करना था उसे तीनों बेटियों का, वो अकेला कमाई दार। दान-दहेज, बरातियों की खातिरदारी इन सब का बन्दोबस्त तो करना ही था। कैसे होगा ये सब? बिरादरी के हिसाब से न चला तो कौन लेगा बेटी को अपने घर?
वह अक्सर एकान्त में अपने रिक्शे चन्दू से बातें करता,
गद्दी को चूम कर खुद को प्रोत्साहित करता- 'आजा चल, आज हवाओं का रुख मोड़ दे, लिख दें अपनी तकदीर अपने ही हाथों से...और आज इतना तो कमा ही लें कि बनिये का कुछ हिसाब चुकता हो जाये' कह कर निकल पड़ते , चन्दू रिक्शा सुन कर जैसे मुस्कुराती और कह उठती 'आजमा लेना मुझे, कभी न जाऊँगी छोड़ कर वो बेटियाँ तुम्हारी ही नही मेरी भी हैं, और फिर तुम्हारा आत्मिक स्नेह मैं कैसे भूल पाऊँगी? मैं तुम्हारे परिवार का हिस्सा हूँ बिरजू, तुम्हारी दोस्त हूँ, जब तुम मुझे प्यार से छूते हो, अपनापन देते हो तो मैं जीवन्त हो उठती हूँ, मेरा रोम-रोम ऊर्जा से भर जाता है और मैं कर्जदार हो जाती हूँ तुम्हारी।'
ये मौन वार्तालाप जब चलता तो उम्मीद की भुरभुरी जमीन को सींच देता। रगो में आशा का संचार होने लगता। मानसिक बल कुछ करने को उद्धत हो जाता।
बिरजू के हारनिया के आपरेशन को आज दस दिन हुये हैं। जमा किया हुआ सारा पैसा दवा और अस्पताल की भेंट चढ़ चुका है ऊपर से कर्जा मुँह बाये खड़ा है। घर में जो अन्न था खत्म हो चुका है। लाख कहने पर भी बिरजू ने बेटियों को कमाने के लिये बाहर नही भेजा। अक्सर जब गली में कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आती तो वह लपक कर खिड़की को बन्द कर देता है। चौकन्ना रहना और लाठी का अभ्यास उसे आता है मगर जब घर की दीवारें कमजोर हों तो एक नही जानवरों का पूरा समूह आक्रमण कर सकता है ये बात वो बखूवी जानता है। इसीलिये वह कोई कोताही नही बरतना चाहता।
बिरजू रिक्शा लेकर निकल पड़ा है। चलने से पहले रिक्शे ने उदास होकर कहा - 'बिरजू अभी रहने दो, जहाँ इतना कर्ज है वहाँ थोड़ा और सही, मगर सेहत से खिलबाड़ अच्छी नही। तुम घर के स्तम्भ हो बिरजू, अगर तुम्हे कुछ हो गया तो क्या होगा इन बेटियों का? नोच न खायेगा जमाना इन्हे? आजकल तो गली-गली आदमखोर जनावर घूम रहे हैं। न जाने कैसी जहरीली हवा है जो इन्सानियत को निगल रही है.....रुक जाओ बिरजू"
मगर बिरजू की खामोशी अपने फर्ज और मजबूरी के आगे और मजबूत हो गयी है।
जाड़ो की ठिठुरती शाम है। अंधेरा अपने पैर पसारने को अधीर हो उठा है। बिरजू ने जानबूझ कर ही ये वक्त ही चुना है। कुछ पड़ोसियों की सहानुभूति और कुछ की व्यंगात्मक टिप्पणी, वो नही चाहता था उसे इन सब का सामना करना पड़े, फिर, कौन मुश्किल काम है? दो घण्टे में आठ-दस सवारियों को ढ़ो कर दाल- रोटी का इन्तजाम तो हो ही जायेगा बस इतना ही काफी है।
ठंड से बचाव के लिये मुँह पर ढाटा बाँधे सुनसान सड़क पर बिरजू की रिक्शा अपनी गति से आगे बढ़ रही है छम.. छम... छम ....घँघरुओं की आवाज सन्नाटे को चीरती हुई चली जा रही है अपनी सवारियों की अनवरत तलाश में......और.सवारियाँ हाथ रिक्शे को छोड़ती हुई ऑटो और ई रिक्शे की तरफ दौड़ रही हैं। प्रतिद्वंद्ता की दौड़ में बिरजू की रिक्शा पीछे छूट रही है। सरपट दौड़ती जिन्दगी अपने साथ न जाने क्या-क्या बहा कर ले जायेगी?
बिरजू ने पेट पर बँधी अपनी पट्टियों को जाँचा जिसमें से दर्द की पहली लहर उठी है। बिरजू सिहर गया....उसने अपने निर्णय का आंकलन किया नही...नही....मैं हारुँगा नही...मैं डरूँगा नही.. अभी मुझे आटा, दाल, तेल और मसाले खरीदने हैं ....बनिया अब और उधार नही देगा, पहले ही कितना बकाया है? नैनी, राधा और छोटी मेरे आने की वाट जोह रही होगीं। अगर मैं खाली हाथ लौटा तो तीनों की तीनों टूट जायेगीं। दो दिन से चावल का खन्डा ही तो पक रहा है घर में....भूख बड़ी निर्दयी और स्वार्थी होती है, चली आती है रोज, न हालात देखती है न समय.... उसने एक हाथ से अपने पेट को थाम लिया और कहा- 'बस दो-चार सवारी मिलने तक शान्त रहना है तुझे, फिर चाहे पूरी रात सोने न देना, कोई शिकायत न करूँगा।'
रिक्शा सब खामोशी से सुन- देख रही है। बिरजू से उसका जुड़ाव और गहराता जा रहा है। वह उसके हर लम्हे की साक्षी है। रिक्शा दोरा मोड़ के करीब है तभी सामने से आती हुई उस लड़की ने हाथ देकर रिक्शे को रोका और कहा- 'बाबा मुझे जल्दी से मेरे घर पहुँचा दो' वह बेहद घबराई हुई है। उसने इधर-उधर देखा, उसके पैर काँप रहे थे- "मगर मेरे पास पैसे नही हैं। हाँ घर पहुँच कर मैं आपके पैसे जरुर दे दूँगी।" ठंड से उसने अपने चेहरे को शाल से लपेट रखा है दूसरा अन्धकार भी है। उसकी आवाज भर्राई हुई थी।
बिरजू की अनुभवी आँखों ने भाँप लिया कि ये लड़की जरुर किसी बड़ी मुसीबत में है, जो उसकी मदद चाहती है। वह सोचने लगा, वह खुद भी कमजोर और बीमार है जेब में फूटी कौड़ी नही, ऐसे में क्या कर पायेगा वह, ऊपर से कोई मुसीबत गले पड़ गयी तो क्या करेगा....? फिर ये पैसे देगी भी या नही कौन जाने? बिरजू इसी उधेड़बुन में फँसा हुआ है कि लड़की ने कहा- 'बाबा, बताओ मुझे छोड़ दोगे न?'
"नही..नही..बिटिया, मैं तो दूसरी तरफ जा रहा हूँ, तुम कोई दूसरा रिक्शा देख लो।" कह कर बिरजू ने रिक्शे के पैडल को और तेज कर दिया। वह लड़की पीछे से अभी भी पुकार रही है.."बाबा, मुझे छोड़ दो प्लीज....." मगर बिरजू ने एक न सुनी वह अपने हालातों से पहले ही बेहाल है...मजबूर है .क्या करता...पत्थर सा हुआ आगे बढ़ गया..जैसे की तूफान को उसने अपने घर के जर्जर किबाड़ो से रोक दिया हो...पेट के कच्चे टाँकों से खून का रिसाव होने लगा...शायद कोई टाँका टूट गया है वह दर्द से कराह उठा...तेजी से आगे बढ़ चुका है..वह लड़की अब पीछे छूट चुकी है....उसकी आवाज़ भी आनी बन्द हो गयी है। सड़क अभी भी वीरान है...लेकिन बिरजू खाली हाथ घर लौटना नही चाहता है इधर पेट में असहनीय दर्द शुरु हो चुका है....उसे पेट पर कुछ गीलेपन का अहसास हुआ है उसने अपनी पुरानी मैली जैकिट को हटा कर देखा उसकी कमीज पर कुछ लाल निशान उभरने लगे, जिन्हें देख कर वह घबरा जरुर गया है पर हालात से हारा नही है न ही खून से , वह तो इस चिन्ता में घुला है कि दवा के पैसे कहाँ से आयेगे? आज का आटा, दाल कैसे आयेगा?
विचारों की लाचार पँक्ति बद्ध श्रँखला से जूझता हुआ बिरजू घर की तरफ बढ़ने लगा। इम्तहानों का दौर है न जाने कब खत्म होगा?
अंधेरा हो चुका था। घर के किबाड़ों की झिर्रियों से आती रोशनी से पता लग रहा था कि नैना, राधा और छोटी जाग रही हैं शान्त चूल्हे के गरम होने का इन्तजार कर रही हैं।
उसने रिक्शे को किनारे लगा कर उसे चूमा- 'कोई बात नही चन्दू, आज न सही...कल हम जरुर कमा लेगें।' कह कर उसने एक बार फिर से गददी को थपथपा दिया है।
उसकी रिक्शा चन्दू आज उदास है, वह बिरजू के प्यार पर चुप रही और खुद को कोसने लगी। आज वह उसकी कोई मदद नही कर पायी।
अन्दर आकर बिरजू ने अपनी मैली जैकिट को उतार दिया और अपनी बेटियों से मुँह छुपाने लगा है, क्या कहेगा आज भी खाली हाथ लौटा है? राधा ने खून देखा तो गश खा गयी- "ये कैसे हुआ बाबू? चलो जल्दी से अस्पताल चलो बाबू.."
"तू फिक्र न कर बिटिया ठीक हो जायेगा। ये नैनी कहाँ है इतनी रात गये?"
"वो तो तेरे जाने के बाद ही निकली थी बाबू, कुछ पैसों की बात कह कर गयी थी अभी तक न लौटी है।"
बिरजू की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा। वह धड़ाम से खाट पर गिर पड़ा- "हे भगवान! ये कौन सी गल्ती कर बैठा मैं?"
बिरजू खून और दर्द भुला कर बाहर की तरफ दौड़ पड़ा है रिक्शे को हाथ लगाता इससे पहले ही सामने पुलिस को देख कर ठिठक गया है- "आप? मेरे घर...क्या हुआ साहब?"
"हमें एक लड़की दोरा मोड़ पर बेहोशी की हालत में मिली है तुम्हे अभी थाने चलना होगा।"
बिरजू के पेट से बहता खून सूख चुका है शरीर की नसों का खून भी सूखने लगा है। पश्चाताप से पिघलता हुआ वह अनहोनी से काँपने लगा.....क्यों नही रुका मैं? क्यों मदद नही की मैंने? अगर रूक जाता तो? ...दोरा मोड़ पर पुकारती लड़की नैनी...नही...नही.....वो नैनी नही हो सकती....अगर वो नैनी होती तो मुझे पहचान न लेती....पर पहचानती कैसे? कितना अंधेरा था वहाँ पर? मुँह पर तो ढाटा बँधा था....और उसका चेहरे भी तो शाल से ढ़का था.....पर मैं ये सब क्यों सोच रहा हूँ? नैनी....तुम?...न...न....वो तुम नही हो सकतीं....तुम्हे तो मैंने चाहरदीवारी में सुरक्षित रखा है...क्या दीवारें भी दगा दे गयीं? ये कैसी परीक्षाएं हैं प्रभु?... कहीँ जनावरों का झुण्ड? ..नही..नही...ऐसा नही हो सकता...मैं आ रहा हूँ....तुम फिक्र मत करना बिटिया.....तुम्हें कुछ नही होगा...मैं अभी जिन्दा हूँ .....चीखते हुये बिरजू धाड़ से जमीन पर गिर पड़ा।
छाया अग्रवाल
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