Dayalu in Hindi Thriller by Kumar Gourav books and stories PDF | दयालु

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दयालु



उससे इश्क भी नहीं था और उसके बिना करार भी नहीं । कहते हैं प्रेम कोई जंगली फूल है दुर्गम परिस्थितियों में खिलकर वह और सुंदर दिखाई देता है।
औरों से दुगुनी कीमत देकर उसकी सोहबत हासिल की थी । इस गुमान में कुछ ज्यादा ही पाना चाहता था ।
झुंझला उठा " तुम मुझे पगला समझती हो । हर रात तुम साथ होती हो बावजूद इसके तुम्हारी मौजूदगी से मेरे दिल को सूकून नहीं मिलता है । "

उसने साँस छोड़ी " तुमने जिस्म खरीदा है। रूह नहीं । "

" तो क्या तुम्हारी रूह के लिए अलग से पान फूल चढाऊं या अलग से कोई चार्ज वसूलती हो ।"

" बेशक़! रूह को पाने के लिए कुछ तो अलग से करना ही पड़ेगा । जहाँ तक चार्ज की बात है कोई भी कीमत लेकर रूह बेच देना घाटे का ही सौदा होता है । "

"वाक़ई खूब कही! लेकिन ये घाटा तुम्हारे लिए है। इसे मुझसे मत जोड़ना। मैं जिस धंधे में हूँ वहाँ रूह जैसा कुछ भी नही होता....। और फिर मैं दुगुनी कीमत देता हूं तो कुछ तो खास समझता हूं तुमको । क्या मैं ये आशा न करूं कि तुम भी मुझे खास समझो । "

"समझती हूं न , तुम मेरे लिए उन चार दयालु लोगों में से सबसे बड़े दयालु जैसे हो जिनके कारण मैं जिंदा हूं । "

"कौन चार दयालु लोग ? "

"वही लोग जिनके कारण दिन में फूलों से भरा खूबसूरत बाग रात में वहशत का ठिकाना बन जाता है । "

उसकी आवाज कहीं दूर से आती लग रही थी ।

"मैंने बचपने में एक औरत की लाश पार्क के बेंच पर देखी थी। मुँह अंधेरे सफाईवाले उस लाश को झाड़ी तक घसीट के ले गए थे।"

गिलास खाली करते हुए उसने आँखें बंद कर ली " क्या फर्क पड़ता है। सफाईवाले खुश हो गये होंगे । बेजान जिस्म किसी के तो काम आया। इससे बेहतर क्या.... । तुम भी तो हर रात खुश करती हो किसी न किसी को , तो फिर तुम क्यों शिकायत कर रही हो । "

"क्यों न करूँ शिकवा। जब वे सफाईवाले भी आपस में शिकवा कर रहे थे , की सब कुछ बढ़िया था। लेकिन कोई चीख नही थी । "

वो उसकी सर्द आँखों में झांकने का ताव न ला सका । किसी गहरे कुएं से लगातार आवाज आ रही थी " उस बेंच पर एक बच्ची थी ।चार साल की ,ठंड में अकड़ी ,मगर जिंदा । उन चारों ने तत्काल उसपर दया की, एक ने गमछे में लपेटा ,दूसरे ने आग जलाकर गर्म किया और तीसरे नेे कहीं से दूध लाकर पिलाया । चौथा जो सबसे अधिक दयालु था । उसने गोद में उठाया और लाकर यहाँ इस कोठे पर डाल दिया । दुनिया में यही एक जगह है जहाँ औरत होने की कीमत चुकानी नहीं पड़ती बल्कि वसूली जाती है ।
तुम्हारी सूरत भी बिल्कुल उसी चौथे दयालु आदमी सी लगती है मुझे । "

उसने बोतल मुँह से लगा ली ,उसे साबित करना था कि वह दयालु नहीं , क्रूर आदमी है ।

© Kumar Gourav