Swaprapash in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | स्वप्नपाश- मनीषा कुलश्रेष्ठ

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स्वप्नपाश- मनीषा कुलश्रेष्ठ

कई बार हमें पढ़ने के लिए कुछ ऐसा मिल जाता है कि तमाम तरह की आड़ी तिरछी चिंताओं से मुक्त हो, हमारा मन प्रफुल्लित हो कर हल्का सा महसूस करने लगता है मगर कई बार हमारे सामने पढ़ने के लिए कुछ ऐसा आ जाता है कि हमारा मन चिंतित हो, व्यथा एवं वेदनाओं से भर जाता है और लाख चाहने पर भी हम उसमें व्यक्त पीड़ा, दुख दर्द से खुद को मुक्त नहीं कर पाते। कहानी के किरदार, हम में और हम उसके किरदारों में, कुछ इस कदर घुल मिल जाते हैं कि किताब की दुनिया को ही हम एक हद तक असली दुनिया समझने लगते हैं। ऐसा ही कुछ मुझे आभास हुआ जब मैंने मनीषा कुलश्रेष्ठ जी का उपन्यास "स्वप्नपाश " पढ़ने के लिए उठाया। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में मनीषा कुलश्रेष्ठ जी का नाम।किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनका लिखा पढ़ते वक्त आपको पता ही नहीं चलता कि कब उनकी कहानियों ने आपको अपने मोहपाश में जकड़ लिया है।

इसमें कहानी स्किज़ोफ़्रेनिया नामक बीमारी से पीड़ित एक मरीज़ और उसका इलाज करने वाले मनोचिकित्सक डॉक्टर की है जो तमाम तरह की जटिलताओं के बावजूद अपने व्यवसाय के एथिक्स को ध्यान में रख, उसका उपचार करने का प्रयास करता है। इस बीमारी के अंतर्गत मरीज़ को मतिभ्रम के चलते कुछ ऐसे किरदार अपने आसपास डोलते और बात करते दिखाई देते हैं जो असलियत में कहीं हैं ही नहीं। इसके साथ ही इस कहानी में आर्टिस्ट्स ...उनकी रचना प्रक्रिया, आर्ट गैलरीज़ के गोरखधंधे, उनकी सैटिंग आदि पर भी प्रकाश डाला गया है।

इस बीमारी के दौरान मरीज़ में मतिभ्रम तथा भूलने की बीमारी जैसे लक्षण उभरने लगते हैं। सामान्य अवस्था में होते हुए भी अचानक मनोदशा परिवर्तन की वजह से क्रोध, हिंसा, चिंता, उदासीनता और शक जैसी चीजें उभरने लगती हैं। उचित-अनुचित की समझ का लोप होने लगता है। मरीज़ की दैनिक गतिविधियों में भागीदारी कम हो जाती है तथा एकाग्रता में कमी जैसे लक्षण उत्पन्न होने लगते है। व्यवहार अव्यवस्थित,आक्रामक एवं अनियंत्रित होने लगता है।संयम की कमी के साथ स्वभाव में हिंसा जैसे लक्षणों के चलते खुद को नुकसान पहुंचाने की संभाबनाएँ बढ़ने लगती हैं।

इस उपन्यास को लिखने के लिए लेखिका द्वारा किए गए शोध और मेहनत की तारीफ करनी होगी कि किस तरह उन्होंने इस जटिल विषय को साधा है। ये सोच के ही ज़हन में एक झुरझुरी सी उतर जाती है कि इस उपन्यास को रचते वक्त लेखिका किस तरह की मानसिक यंत्रणा एवं तनाव से गुज़री होंगी? कोई आश्चर्य नहीं कि कभी आपको इस उपन्यास पर बिना किसी कट या दखलन्दाजी के कोई फ़िल्म बनती दिखाई दे।
मेरे अब तक के जीवन में पढ़े गए कठिनतम उपन्यासों में से ये एक है। इस उपन्यास को मैंने पढ़ तो लगभग 4-5 दिन पहले ही लिया था लेकिन विषय की गहनता और इसका ट्रीटमेंट देख कर इस पर आसानी से लिखने की मेरी हिम्मत नहीं हो पा रही थी।

135 पृष्ठीय इस संग्रहणीय उपन्यास के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है किताबघर प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है ₹240/-..आने वाले भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।