Acid Attack - 5 - last part in Hindi Thriller by dilip kumar books and stories PDF | एसिड अटैक - 5 - अंतिम भाग

Featured Books
Categories
Share

एसिड अटैक - 5 - अंतिम भाग

एसिड अटैक

(5)

सेलेना मिन्नतें कर रही थी। मगर शांत निश्चयात्मक स्वर में बोला ‘‘वो पैसे के लिए मना कर देतीं, तो शायद मुझे उतना बुरा नहीं लगता। लेकिन उन्होंने तुम्हारे चरित्र पर उंगली उठाई, बस इसी बात से मेरा खून खौल उठा’’। थोड़ा ठहरकर, वो रहस्योद्घाटन करते हुये बोला ‘‘मेरी माँ और पापा की शादी आज तक नहीं हुयी है। न कानूनन, न प्रेम विवाह। बिना ब्याही माँ हैं वो। खुद को नहीं देखती, तुम पर खामखां शक करती हैं और हाँ, मेरा दूसरा विकल्प भी जान लो। माँट्रियल मेरा दूसरा विकल्प है। वहां मेरी ज्यादा पूछ होगी, यहाँ के बनिस्बत’’। सेलेना निर्विकार भाव से बोली ‘‘ये सब मैं पहले से जानती थी’’। अब चौंकने की बारी, शांत की थी। उसे अपनी पत्नी से इतने धैर्य की उम्मीद न थी।

उसने अविश्वास और लापरवाही से पूछा ‘‘तुम ये सब पहले से जानती थी, तो तुमने पलट कर मां को जवाब क्यों नहीं दिया, आखिर क्यों अपने बारे में ये सब अनाप-शनाप सुनती रही। उस अंधेरे कमरे में, सेलेना अपने वीभत्स चेहरे पर अपनी सम्पूर्ण मासूमियत समेटे हुए निर्दोषिता से बोली ‘‘मैं अभागन अगर किसी को सुख न दे सकूं, तो दुख क्यों दूं। किसी की तकलीफें मैं क्यों बढ़ाऊं। वैसे भी वो मेरी माँ हैं। माँ के बिना, एक लड़की का जीवन क्या होता है। मैं ही बेहतर जानती हूँ। मेरा सारा बचपन माँ के बगैर बीता है। माँ सिर्फ प्यार और सांत्वना ही नहीं देती, नैतिक लगाम भी लगाती है। मैं तुम्हें अब अपनी बात क्या बताऊँ, मैं सबको एक आजाद ख्याल, फैशनेबुल और खुशमिजाज लड़की दिखती थी। लेकिन अपनी तकलीफें, दुख दर्द किससे कहती मैं। बहुत सी ऐसी बातें होती हैं शांत, जो लड़की सिर्फ माँ से कहती है। अब मैं भला किससे कहती ये सब। तुम्हारे इस घर में आने के बाद, उनके व्यंग्य और तानों को नजर अंदाज करके, हमेशा उनमें मैंने अपनी उस माँ को तलाशा है, जो मुझे जन्म देते ही चल बसी थीं’’। थोड़ा ठहर कर सेलेना फिर बोली ‘‘शांत बखेड़ा मत खड़ा करना। विनती करती हूँ तुमसे, वे अक्सर तुम्हारी दूसरी शादी करने के चर्चे चलाया करती हैं। जो कि तुम चाहो तो, कर सकते हो। मैं नौकरानी बन कर पड़ी रहूँगी इस घर में। मगर रहूँगी हर हाल में यहीं, अपने प्यार यानी तुम और अपनी माँ के साथ। मेरे लिए इतना ही काफी है। भाग्य का खेल तो देखो शांत। मुझे माँ की ममता नहीं मिली, तुम्हें बाप का प्यार नहीं मिला। हम दोनों कहीं न कहीं अधूरे हैं, इन जख्मों को और मत कुरेदो, तुम्हें मेरा वास्ता’’। इतना कहकर सेलेना चुप हो गयी और शांत ने नये सिरे से सोचना शुरू किया। दूसरी तरफ डॉ0 शीला वस्तुस्थिति पर गम्भीरता से विचार कर रहीं थीं। उन्होंने सोचा ‘‘अगर मैं बूढ़ी होकर कहीं न कहीं, झूठी उम्मीदों के सहारे अपने प्यार के वापस लौट कर आने की उम्मीदें पाले बैठी हूँ। तो फिर, वे दोनों तो अभी जवान हैं। पहले से ही एक दूसरे को चाहते थे। रहा सवाल बेचारी सेलेना का, तो इस हादसे में उसका क्या दोष और फिर ये शादी तो जिद करके शांत ने ही की थी। आखिर पहल उसी की थी। शांत दूसरे विकल्प की बात करके मुझे मांट्रियल जाने की धमकी दे रहा है। जिस शांत के बूते पर मैं प्रोफेसर साहब की वापसी की उम्मीदें पाले बैठी हूँ। कही चला जायेगा तब तो मैं कहीं की न रहूंगी, न बेटा रहेगा और न उनके वापसी की उम्मीदें’’। सुबह नाश्ते की मेज पर माँ और बेटा, दोनों ही एक दूसरे से कुछ कहना चाह रहे थे। पहल शांत ने ही की थी, वो नजरें झुका कर बैठा था। बगैर निगाह उठाये उसने बोलना शुरू किया ‘‘माँ, तुम पैसा दो या न दो। मगर मैं तुम्हे बता देना चाहता हूँ कि, सेलेना के चेहरे पर तेजाब मैंने ही फेका था। उसे शायद शक हो या न हो, मगर उसने मेरे खिलाफ पुलिस में कोई खास पैरवी नहीं की थी। वो कायदे से पैरवी करती, तो मैं जरूर पकड़ा जाता। मैं पकड़ा जाता, तो हमारी पोजीशन मिट्टी में मिल जाती। वो मुझ पर केस भी कर सकती थी, मुझसे मुआवजा वसूल सकती थी। मुझ पर वो और कोई इल्जाम बढ़ा-चढ़ाकर लगा सकती थी। फिर अब तो अक्सर ऐसे मामलों में, कानून मुझे उससे शादी करने का आदेश दे सकता था’’। थोड़ा ठिठककर, फिर अचानक याचना भरे स्वर में बोला शांत ‘‘उसे अपना लो माँ, वो बहुत अच्छी है और बहुत बडे़ दिल की है। देर-सबेर अगर उसे ये सब पता लगा भी, तो वो मुझे माफ कर देगी’’। इतना कहकर भरभरा कर रोने लगा शांत। डॉ0 शीला के चेहरे पर कई भाव आये और गये, मगर शांत ने उनमें से किसी को नहीं निहारा। उसमें शायद अब नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं रह गई थी। काफी देर बाद डॉ0 शीला दीर्घ श्वास छोड़़ते हुये बोलीं ‘‘एक धोखेबाज और फरेबी बाप की औलाद हो तुम। बेशक तुम्हारी परवरिश सिर्फ मैंने की है, लेकिन खून ने अपना असर दिखा ही दिया। तुमसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती थी। तुम भी अपने बाप की तरह बुजदिल निकले। शायद मेरे संस्कारों का असर था ये कि, सेलेना से ब्याह करके तुमने अपने गुनाहों का बोझ थोड़ा सा हल्का कर लिया है। काबिलेमाफी नहीं है तुम्हारा गुनाह। ये सब जानने या न जानने के बावजूद, उसने पता नहीं कैसे तुम्हें कुबूल कर लिया’’। शांत ने बीच में ही प्रतिवाद किया ‘‘वो ये सब नहीं जानती। मैं पहले से ही अपने वजूद को उसके सामने बौना पाता हूँ। उसे ये सब बता कर, मैं खुद को उसकी नजरों में घिनौना नहीं बनाना चाहता। तुम भी उसे ये सब मत बताना। वरना अनर्थ हो जायेगा माँ’’। डॉ0 शीला ने कहा ‘‘शांत, तुम इतनी कमीने और नीच हो सकते हो। मैं सोच भी नहीं सकती हूँ। प्रेम का दम्भ भरते हो तुम। तुम्हारा ये रूप, तुम्हारी पत्नी तक को नहीं पता। अगर पैसों की जरूरत न होती, तो तुम मुझे भी शायद कभी न बताते। भगवान जाने, क्या होगा तुम्हारा। खैर जब पाप तुमने किया है, तो ढोना मुझे भी पडे़गा। मैं चेक साइन कर दूँगी’’। फिर बडे़ अफसोस के स्वर में डॉ0 शीला बोलीं ‘‘मैं खामखां उस बेचारी को गलत समझती रही। जब अपना ही माल खोटा हो, तो परखने वाले का क्या दोष’’। थोड़ी देर बाद, लान में खड़ी डॉ0 शीला और शांत गुमसुम से थे। वे दोनों, शायद अपने जज्बातों को सम्भालने की कोशिशें कर रहे थे। तभी घर के भीतर से सेलेना सूटकेस लेकर निकली। उन दोनों ने निगाहों से ही सवाल किया तो सेलेना मुस्कराकर बोली ‘‘शांत, तुम क्या समझते हो कि खेल खेलना तुम्ही जानते हो। मुझे पहले दिन से ही तुम पर शक था और आखिर, तुम मेरे पास आ ही गये थे। याद करो, शादी से ठीक पहले जब तुमने डरते-डरते मुझसे पूछा था कि अगर मुझे पता चल जाये कि मेरे साथ ये हादसा किसने किया है तो मैं उसके साथ क्या बर्ताव करूँगी। तभी मुझे इस बात का पुख्ता यकीन हो गया था कि, मेरे साथ ये सब करने वाले तुम्ही हो। अगर मैं उस वक्त अपने मनोभाव तुम्हे बता देती, तो तुम सतर्क हो जाते। शायद मुझसे शादी भी न करते। तब बिस्तर पर पड़ी, जली, कटी, कानी और बीमार सेलेना के पास और कोई विकल्प नहीं था। मगर तब मैं, लाचारगी में, कोई कानूनी कार्यवाही ठोस तरीके से कर भी नहीं सकती थी। अगर करती भी, तो तुम अपनी ऊँची पहुँच के बदौलत बच जाते। उस हादसे के बाद, मैंने तुम्हे एक मकसद के तहत शीशे में उतारा। सुबह नाश्ते के मेज पर हुई तुम दोनों की बात चीत मैंने सुन ली थी। मेरी बर्बादी का अपराध बोध, कभी भी तुम दोनों को चैन से जीने नहीं देगा। तुम्हें मैं कभी भी तलाक नहीं दूंगी। मगर न तो तुम्हें पत्नी का सुख मिलेगा, और न ही इन्हे सास का। हिन्दू ला के नियमों के तहत तुम मुझे तलाक नहीं दे सकते और मैं तुम्हे तलाक देने से रही। शांत, तुम अपने प्रेम को हासिल नहीं कर पाये थे, अब पत्नी को भी यदा कदा जबरदस्ती या बलात्कार के जरिये ही हासिल कर सकते हो। और हाँ, खैरात के पैसों से प्लास्टिक सर्जरी करवा कर, मैं तुम्हारे सजावट का सामान बनने से रही’’। सांसों को व्यवस्थित करके, उन दोनों के मनोभावों को ताड़कर सेलेना पुनः बोली ‘‘फिलहाल, मैं हल्दी जा रही हूँ। आगे मुझे और क्या-क्या करना है, कह नहीं सकती। हाँ, मगर इतना याद रखना कि अब तुम्हारा सामना मिसेज शांत से है, किसी ऐरी-गैरी से नहीं’’। सेलेना तेज कदमों से चल पड़ी। थोड़ा आगे बढ़कर, वो ठिठक गयी और पुनः उसी स्थान पर लौट आई, जहां वो पहले खड़ी थी। उसने दृढ़ स्वर में कहा ‘‘और हाँ शांत, मेरा मकसद था तुम्हारे बच्चे की माँ बनना। तुमने अपनी चाल चली, और मैंने अपनी। मैं जानती हूँ कि मैं तुम्हारा प्यार हूँ। मगर अब तुम मेरे और अपने बच्चे के मोहताज रहोगे। जो मैं चाहती थी वो तो हुआ ही। कुछ रोज पहले ही, मुझे इस बात का पता लगा है कि मैं गर्भवती हूँ और दूसरी बात, मेरे लिए ये बोनस पाने जैसी है कि आज से तुम लोग इस अपराध बोध के तले तिल-तिल कर मरोगे, जैसे मैं अभी तक जिन्दा रही हूँ’’। सेलेना तेज-तेज कदमों से चलती हुयी निकल गयी थी। पीछे से वे दोनों, माँ-बेटा बड़ी देर तक उसकी कमनीय काया को निहारते रहे थे।

समाप्त