Bhadukada - 38 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 38

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भदूकड़ा - 38

रमा और सारी देवरानियां अवाक ! इतनी हिम्मत तो किसी ने अब तक न की थी कुन्ती के सामने ! कुन्ती को काटो तो ख़ून नहीं. अभी तक तो उन्होंने कहा और आज्ञा का पालन तुरन्त होता था. जिसे नज़र के सामने से हटने को कहा फिर उसकी हिम्मत न थी, कुन्ती के आदेश के बिना उसका सामना करने की. सुमित्रा जी सारा कांड अब तक चुपचाप देख रहीं थीं. कुन्ती के मामले में कुछ भी बोलने की उनकी कभी हिम्मत ही नहीं होती थी.

जानकी का जवाब ठीक ही था, लेकिन पता नहीं क्यों सुमित्रा जी को कुन्ती का अपमान बुरा लगा. वे जानकी के लिये खुश थीं कि इस लड़की को किसी के सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन कुन्ती के लिये भी उन्हें बुरा लग रहा था....... भगवान जाने कैसा मन था सुमित्रा जी का..... कुन्ती ने क्या-क्या खेल नहीं किये सुमित्रा जी के विरुद्ध, लेकिन तब भी वे दुखी हैं उसके लिये. कुन्ती के अपमान से दुखी सुमित्रा जी कब जानकी के पास पहुंच गयीं, उन्हें खुद भी पता नहीं चला. सुमित्रा जी को भी तब भान हुआ, जब उन्होंने जानकी के कंधे पर हाथ रखा और बोलीं-

जानकी, बेटा हम जानते हैं कि तुम्हारी ग़लती नहीं है. जो सच था तुमने बोल दिया. लेकिन बेटा, बड़ों से बात करने का एक लहजा होता है. जो तुम्हारी सास हैं, वे इस पूरे परिवार की सबसे बड़ी बहू हैं. किसी की मजाल नहीं, जो उन्हें पलट के जवाब दे दे. मानती हूं, कि पहले दिन की कड़वाहट आज निकली है तुम्हारे मुंह से, लेकिन बहुत सी स्थितियं ऐसी होती हैं, जिन्हें कड़वाहट में न बदला जाये तो बेहतर. तुम्हारा और कुन्ती का साथ एक दिन का नहीं है. बरसों-बरस तुम दोनों को साथ रहना है, आपसी सामंजस्य बिठा के. तुम्हारी आखिरी बात हमें अच्छी लगी. न तुम कुछ बोलो न कुन्ती कुछ बोले. लेकिन अगर कुन्ती कभी कुछ बोल ही दे तो तुम पलट के जवाब मत देना. जाओ, उनसे माफ़ी मांग लो, भले ही तुम्हारा कोई अपराध नहीं है. माफ़ी मांगने वाला, देने वाले से ज़्यादा बड़ा होता है

जानकी ने पूरी बात चुपचाप सुनी. सीधे कुन्ती के पास गयी.

अम्मा, हमें माफ़ करियो छोटो जान कें. आइंदा हम कछु न बोलहैं, लेकिन तुम गारीं न दियो हमाय मताई-बाप खों.

अब अवाक होने की बारी कुन्ती की थी. तिलमिला गयी कुन्ती ! अच्छा तो अब इतना बोलना आने लगा सुमित्रा को ! इनके समझाने से हमारी बहू माफ़ी मांगेगी ! उफ़्फ़! फनफनाती हुई कुन्ती अपनी अटारी की तरफ़ चली गयी तो सबने राहत की सांस ली.

दो-चार दिन बाद ही सुमित्रा जी वापस ग्वालियर चली गयी थीं. बाक़ी सब भी अपने –अपने घरों में व्यवस्थित हो गये. गांव से कुन्ती और जानकी के बीच होने वाले बड़े-छोटे झगड़ों की खबर आती रहती थी. अक्सर ही गांव से कोई न कोई आता था, और सारी खबरें दे जाता था. कई बार सुमित्रा जी का मन परेशान होता था कि बताने वाले ने तो केवल घटना बता दी वास्तविकता में पता नहीं क्या-क्या हुआ होगा. बहुत बाद में खबर मिली कि कुन्ती ने गुस्से में आ के जानकी को पीट दिया. फिर अक्सर ऐसी ख़बरें आने लगीं.

क्रमशः