bali ka beta - 12 in Hindi Classic Stories by राज बोहरे books and stories PDF | बाली का बेटा (12)

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बाली का बेटा (12)

12

बाली का बेटा

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

तलाश

सुबह सबेरे राम के साथ सुग्रीव , जामवंत, द्विविद, हनुमान आदि योद्धा बैठे और विचार करने लगे कि सीता को खोजने के लिए किस दिशा में दल भेजा जाये।

जामवंत ने बताया कि चारों दिशाओं में दल भेजे जाने चाहिए लेकिन सबसे बड़ा दल दक्षिण दिशा को भेजा जाये। क्योंकि उस दिन वह कालाकलूटा सा आदमी दक्षिण दिशा को ही अपना रथ लेकर गया था।

यही सहमति बनी। जामवंत को दल का मुखिया बना कर दक्षिण दिशा में जो दल भेजा गया उसमें हनुमान, अंगद, नल,नील, द्विविद,मयंद, विकटास आदि वीर शामिल थे।

लगभग पूरा दल राम को प्रणाम करके निकल गया तो आखिर में अंगद और हनुमान खड़े रह गये। राम ने अंगद से कहा ‘‘ अंगद, तुम अभी छोटे हो। इस यात्रा में जाने कितने कष्ट होंगे, जाने कैसे लोगों से पाला पड़ेगा। सो तुम मत जाओ।’’

अंगद ने लाड़ भरे स्वर में कहा ‘‘ आप मेरे पिता के समान में हैै प्रभु। अगर इस उम्र से मैं संकट और अन्जान परिस्थितियों से निपटना नहीं सीखूंगा तो कब सीखूंगा। आप चिन्ता मत करिये मेरे साथ हनुमानजी और गुरूदेव जामवंत जी भी जा रहे हैं न। उनके साथ मैं बहुत सुरक्षित और निश्चिंत हूं।’’

राम जानते थे कि संसार में तीन हठ प्रसिद्ध है - बाल हठ, राज हठ और त्रिया हठ। अंगद की यह हठ बालहठ है जो संभलना मुश्किल है, फिर युवराज होने के कारण इसमें राज हठ भी सम्मिलित है। वे लक्ष्मण की हठ के कई बार शिकार हो चुके थे। इस कारण उन्होने अंगद को ज्यादा नहीं समझाया, हंस करसहमति देदी। हां हनुमान को संकेत करके अपने पास बुलाया।

हनुमान पास आये और चुपचाप खड़े हो गये।

राम ने उनसे कहा ‘‘ हनुमान तुम भी साथ जा रहे हो।अंगद का ख्याल करना, वह अभी बच्चा है। उसे हठ मत करने देना। किसी आपत्ति में न पड़ जाये वह। हां... एक बात और कहनी है तुमसे । अगर तुम किसी तरह सीता तक पहुंच सको, तो तुम्हे यह प्रमाण देना पड़ेगा कि तुम मेरे दूत हो। इसके लिए मैं तुम्हे अपनी मुद्रिका दे रहा हूं। यह मुद्रिका देखते ही वह विश्वास कर लेगी कि तुम्हे मैंने भेजा है।तुम उसे मेरा यह संदेश सुनाना और उसके समाचार लेकर वापस चले आना।’’

फिर राम ने हनुमान को अलग ले जाकर सीता तक पहुंचाने हेतु कोई संदेश दिया ।

राम ने एक अंगूठी अपनी अंगुली में से निकाल कर हनुमान को दी, जिसे हनुमान ने अपने कांधे पर पहने जनेऊ में बड़े जतन से बांध लिया और जय श्रीराम कहकर वहां से चल पड़े।

प्रवर्शन पर्वत से उतर कर यह झुण्ड सीधा दक्षिण की ओर मुंह कर चल पड़ा। आदिवासी लोग थे, ऊंचे-नीचे रास्ते और झाड़ियों में से चलने का अनुभव था सो तेज गति से चलने में कोई दिक्कत नही हुई। समय काटने के लिऐ लोग आपस में हंसीमजाक करने लगे, मस्ताने लगे । जामवंत का अनुशासन जरूर था फिर भी बानर लोग हो-हल्ला कर रहे थे।

अचानक कोई मुनि मिलता तो वे सब उसे घेर लेते। पूरे सम्मान के साथ उससे बात करते । पूछते भी कि क्या उन्हे पता है कि अयोध्या की राजरानी सीता को कोई अजनबी आदमी हर ले गया है! वो आदमी कौन है, और कहां रहता है?

लेकिन कुछ भी पता नहीं लगता तो वे मुनि को छोड़ आगे बढ़ लेते।

सीता को हर ले जाने वाले काले-कलूटे मुस्तण्डे आदमी जैसा कोई मिलता तो वे उसे घेर लेते और गहरी पूछताछ करते। अगर वह कुछ गलत बोलता या बदतमीजी करता तो उसके नाक कान काट कर बानर उसे वही छोड़ देते और आगे चल देते।

इसी तरह चलते हुए वे लोग एक गहरी सी घाटी में जा पहुंचे।

चारों ओर ऊंचे पहाड़ थे और किसी जन्तु या जानवर का नामोनिशान न था वहां। जामवंत को लगा कि इस घाटी में ऐसा कोई खतरनाक जन्तु तो नहीं रहता जिसने यहां के सारे पशु-पक्षी खा डाले हों!

जामवंत ने अपनी शंका बताई तो सब लोगों को यही सचाई लगी। उन सबने अपनी-अपनी गदायें संभाली और चारों ओर का निरीक्षण करने लगे।

कुछ देर बार सचमुच उन सबको सामने के पहाड़ में बनी एक चौड़ी सी गुफा में एक विशाल जबड़े वाला खतरनाक सा आदमी दिखा। ऐसा लग रहा था कि वह कोई बहुत ऊंचा और तगड़ा आदमी था जिसके बड़े और डरावने दांत यहीं से चमकते दिख रहे थे। वह अपनी लम्बी सी जीभ अपने होंठों पर वह फेर रहा था। शायद वह नरभक्षी जाति का आदिवासी था। इतने लोग एक साथ देख कर उसे खाने का लालच दिख रहा होगा उसे।

हनुमान ने एक दुस्साहस किया। वे जामवंत से बोले कि हम जाकर उस नरभक्षी को खत्म कर देते हैं जिससे इस सुन्दर घाटी को उदासी में बदल देने वाला यह आदमी समाप्त हो जाये और यह घाटी फिर से गुलजार हो उठे।

जामवंत के मना करते करते हनुमान और द्विविद व विकटास अपने हाथ की गदा चमकाते उस गुफा की तरफ बढ़े तो अंगद भी उधर बढ़ चले। जामवंत ने अंगद को टोका ‘‘तुमा ठहरो राजकुमार, तुम मत जाओ वहां।’’

अंगद ने ऐसा प्रदर्शित किया कि उन्होंने सुना ही नही कुछ। अपनी भागने की गति तेज कर वे सबसे आगे बढ़ गये। फिर तो हनुमान उनसे भी तेज गति से दौड़ने लगे।

उधर उस काले कलूटे खतरनाक आदमी ने अपनी ओर उत्साह के साथ दौड़ते कुछ लोगों को देखा तो उसके माथे पर बल पड़ने लगे। यहां के लोग उससे डरते हैं, ये कैसे लोग हैं जो खुद इधर ही दौड़े चले आ रहे हैं।

जामवंत ने देखा कि उस अन्जान आदमी की ओर जाने वाले लोग माने नहीं हैं तो वे भी उनके पीछे दौड़ने लगे।

जब तक जामवंत ऊपर पहुंचते गुफा का नजारा बदल चुका था। हनुमान ने उस खतरनाक से आदमी को पकड़ कर वहीं पड़ी एक रस्सी से बांध दिया था और वह आदमी नजरें नीची किये अपमानित सा खड़ा था और बाकी लोग खी-खी करके उसकी हंसी उड़ा रहे थे।

जामवंत ने आदिवासियों की भाषा में उससे पूछा कि वह कौन है तो उसने चौंक कर आँखें उठाईं और अपना बड़ा सा मुंह खोल कर बोला ‘‘ मैं गीध जाति का आदिवासी हूं। दूर उधर पंचवटी के पास का रहने वाला हूं। इस घाटी में मेरा विमान गिर गया था सो यहंा रहने लगा हूं।’’

‘‘ तुमने ही यहां के सारे पशु-पक्षी खा डाले क्या?’’

‘‘ हां ’’उसने जामवंत को जवाब दिया ‘‘ मैं क्या करता, मैं घायल था, कहीं आ-जा नहीं सकता था सो जो मिलने लगा मैं पकड़ कर खाने लगा।’’

‘‘ पंचवटी में तो गीध जाति के जटायू रहते थे।’’ जामवंत को सहसा याद आया।

वह चोका और बोल उठा ‘‘ आप उन्हे कैसे जानते हो? वे तो मेरे भाई हैं।’’

जामवंत बोले ‘‘ अयोध्या के राजकुमार राम जब पंचवटी में रहते थे तब किसी काले कलूटे से आदमी ने गधे के सिर के चित्र वाले झण्डे लगे एक रथ में उनका अपहरण कर लिया था और जटायू ने हिम्मत जुटा कर उस दुष्ट चोर से मुकाबला किया था। लेकिन...’’

‘‘ लेकिन क्या ?...कृपया बताओ मुझे।’’

‘‘ लेकिन बेचारे जटायू उस लड़ाई में बुरी तरह घायल हुए और अन्त में वीरगति को प्राप्त हुये। श्रीराम ने खुद अपने हाथों अपने पिता की तरह उनकी अंतिम क्रिया संपन्न की थी।’’

‘‘हाय मेरे भाई...’’ के लम्बे विलाप के साथ वह व्यक्ति रो उठा।

कुछ देर बाद स्वयं ही चुप हो कर वह बोला ‘‘ मैं संपाती हूं । मैं और जटायु सगे भाई थे। अगस्त मुनि ने हम दोनों को आसमान में उड़ने वाला विमान बनाना सिखाया था। हम दोनों ने अपने विमान बनाये और एक बार होड़ लगाई कि कौन सूरज को छू कर आता है। जटायु को ज्यादा गर्मी लगी तो वह तो बहुत नीचे से वापस आ गया लेकिन मैं आगे बढ़ता गया और जब सूरज कुछ ही दूर रह गया था तो मेरा विमान धू-धू करके जलने लगा था। वहां से सीधा मेरा विमान यहीं आकर गिरा । मैं भी घायल हो गया था।’’

संपाती एक क्षण चुप रहा फिर बोला ‘‘ गधे के चित्र वाला झण्डा लगा कर तो केवल एक नीच आदमी चलता है-लंका का राजा रावण। वह स्त्रियों का बड़ा लोभी है। उसने अपने महल में हर जाति की स्त्री लाकर रखी हुई है। इस कारण लंका में हर महत्वपूर्ण पद पर स्त्री ही काम करती है। जरूर उसी ने सीता का हरण किया है।’’

क्रमशः