Azaadi - 2 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | आजादी - भाग 2

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आजादी - भाग 2



राहुल का भूख के मारे बुरा हाल हो रहा था । रह रह कर उसे स्कूल की याद आने लगती । उसके दिमाग में घूम रहा था ‘ स्कूल में लंच की छुट्टी हुयी होगी । सब बच्चे अपना अपना लंच बॉक्स लेकर एक साथ बैठ कर लंच कर रहे होंगे । उसे अपने मित्र सोनू की बहुत याद आ रही थी । वही तो था जो जबरदस्ती उसकी टिफिन से सब्जी ले लेता था और चटखारे लेकर खाते हुए उसके माँ की बड़ी तारीफ करता ” वाह ! वाह ! आंटीजी के हाथों में तो गजब का जादू है ! क्या स्वाद रहता है उनकी बनायीं डिश में । वाह ! ”
राहुल जल भुन जाता क्योंकि उसे अपने घर का खाना तो बिलकुल भी पसंद नहीं था और जबरदस्ती ही उसे किसी तरह अपना पेट भरना पड़ता था । यह और बात है कि अभी उसका मन कह रहा था कि काश ! कुछ भी खाने को मिल जाता !
राहुल सड़क पर आगे बढ़ता जा रहा था । सड़क के दोनों तरफ दुकानों की कतारें थीं जिनमे तरह तरह की दुकानें थीं । नजदीक ही शहर का अंतर्राज्यीय बस अड्डा था । बस अड्डा तथा रेलवे स्टेशन नजदीक होने की वजह से सड़क के किनारे बनी दुकानों में भोजनालय अधिक थे ।

सभी भोजनालयों के सामने एक से बढ़कर एक लजीज व्यंजनों के नाम के बड़े बड़े बैनर लगे हुए थे । ‘ आकर्षक दाम अच्छा काम ‘का स्लोगन भी कई जगह लिखा हुआ था । कई जगह शुद्ध शाकाहारी भोजन की थालियों को भी बैनर पर दिखाया गया था । लोगों को भोजन करते देख राहुल की भूख और बढ़ गयी । बड़ी देर तक वह निरुद्देश्य ही इधर से उधर भटकता रहा । धुप भी काफी थी लेकिन उसे धुप का नहीं भूख का अहसास हो रहा था ।

अब तो उसे प्यास भी लग गयी थी । उसने उम्मीद से भोजनालयों के बाहर सड़क पर देखा लेकिन कहीं भी बाहर पानी पीने का इंतजाम नहीं था ।

भोजनालयों को देखते देखते वह एक बार फिर रेलवे स्टेशन तक पहुँच गया था ।
स्टेशन की ईमारत के बाहरी हिस्से में स्थित कैंटीन में भी ग्राहकों की खासी भीड़ थी । मैले कुचैले कपडे पहने दो लड़कों को होटल के काउंटर पर बैठा आदमी भद्दी भद्दी गालियाँ देते हुए बाहर की तरफ धकेल रहा था । राहुल थोड़ी देर दूर खड़े रहकर तमाशा देखता रहा । शीघ्र ही उसे समझ में आ गया कि वह दोनों लडके होटल में घुस कर बीना पुछे पानी पीने का गुनाह कर चुके थे । इसीलिए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा था । उन लड़कों का अंजाम देखकर राहुल की प्यास दहशत के मारे बुझ चुकी थी ।

राहुल उलटे पैरों वापस बस अड्डे की तरफ चलने लगा और एक भोजनालय के सामने जाकर पीने के लिए पानी माँगा । वह आदमी शायद सज्जन था उसने उसे अन्दर जाकर पानी पीने की इजाजत दे दी ।
पानी पीकर राहुल को थोड़ी राहत महसुस हुयी । थकान भी लग रही थी सो बस अड्डे के बगल में ही बने बगीचे में जाकर बैठ गया । हरी घास पर पेड़ के नीचे बैठे बैठे वह आगे के बारे में सोचने लगा ।
तभी उसके दिमाग में एक फ़िल्मी कहानी कौंध गयी जो उसने अभी कुछ ही दिन पहले टी वी पर देखी थी । वह फिल्म भी उसने बेमन से देखी थी क्योंकि उसकी माँ वह फिल्म देख रही थी । उसने थोड़ी देर फिल्म देखी थी और फिर अपने मित्र के बुलाने पर बाहर खेलने चला गया था । जीतनी फिल्म उसने देखी थी उसके अनुसार फिल्म का हीरो फूटपाथ पर रहते हुए बूट पॉलिश करके बहुत बड़ा आदमी बन जाता है । इस कहानी ने उसके बालमन पर गहरा प्रभाव छोड़ा था । कहानी का अंत उसे पता नहीं चल पाया था क्योंकि वह पुरी फिल्म नहीं देख पाया था ।
इस कहानी की याद आते ही राहुल के मन में एक उत्साह का संचार हो गया । फिल्म का नायक भी तो एक दिन उसीकी तरह से बेसहारा था और एक दिन शहर का सबसे बड़ा आदमी बन गया था तो वह क्यों नहीं कुछ बन सकता ?
वह उठ गया और बगीचे से बाहर आ गया ।

शाम के छह बज गए थे । राहुल के माँ की बेचैनी बढ़ती जा रही थी । पांच बजे राहुल के स्कूल की छुट्टी होती है और अगले दस मिनट में राहुल घर पहुँच जाता था । लेकिन उसकी माँ इसलिए चिंतित थी क्योंकि स्कूल बंद हुए लगभग एक घंटा हो चुका था और राहुल अभी तक घर नहीं पहुंचा था ।

घबरा कर परेशानहाल उसकी माँ ने राहुल के पिताजी को फोन करके सब बता दिया । वह भी ऑफिस से नीकल तो चुके थे लेकिन अभी तक घर नहीं पहुंचे थे । अभी उनके आने में और समय लगेगी यह सोचकर राहुल की माँ उसके स्कूल पहुँच गयी । शायद स्कूल वालों ने किसी काम से रोक लिया हो लेकिन वहां पहुँच कर भी उन्हें निराशा ही हुयी । स्कूल बंद हो चुका था । सारे अध्यापक अध्यापिकाएं और प्रधानाचार्य सभी जा चुके थे । चौकीदार राहुल के बारे में कुछ नहीं बता पाया था क्योंकि छुट्टी की घंटी बजाने के बाद वह सभी कक्षाओं के कमरों में दरवाजा बंद करने चला जाता था । आज भी जब वह सभी कमरों के दरवाजे बंद करके आया सभी छात्र वहाँ से जा चुके थे ।

कल्पना ! जी हाँ कल्पना ही नाम था राहुल की माँ का अब और अधिक परेशान हो गयी थी । राहुल की फ़िक्र में वह बदहवाश सी तेज तेज चलते हुए अपने घर पहुंची ।
विनोद ! राहुल के पिताजी अब तक घर पर आ चुके थे और कल्पना को भी घर पर न पाकर उनकी चिंता थोड़ी बढ़ गयी लेकिन ठीक उसी समय सामने से कल्पना को आते देखकर वह उसकी ओर लपके । विनोद को देखकर अब तक बहादुरी से खुद को संभाले रखनेवाली कल्पना के सब्र का बाँध टूट गया । वह विनोद के सीने से लग कर फफक पड़ी ।
रोते हुए ही कल्पना ने विनोद को बताया ” राहुल स्कूल में भी नहीं मिला । पता नहीं कहाँ चल गया है मेरा बेटा ! कहाँ गया होगा ? कैसा होगा ? ” कहकर रोते हुए विलाप करने लगी ।
उसे सांत्वना देते हुए विनोद ने कल्पना से पुछा ” तुम्हें राहुल के किसी मित्र के बारे में पता है ? उसके घर का पता या फिर फोन नंबर ? ”
अचानक जैसे कल्पना को कुछ याद आया हो ” हाँ हाँ ! वो उसका मित्र सोनू यहीं आगे चौराहे के नजदीक ही एक बिल्डिंग में रहता है । मुझे उसका फोन नंबर तो नहीं मालूम लेकिन घर मालूम है । ”
अब तक अडोस पड़ोस के लोग भी यह खबर जानकर विनोद के घर के आगे जमा हो चुके थे । विनोद और कल्पना सोनू के घर जाने के लिए नीकल ही रहे थे कि पडोसी वर्माजी ने उन्हें अपने स्कूटर की चाबी देते हुए स्कूटर से जाने का आग्रह किया । मौके की नजाकत को समझते हुए विनोद ने बीना कोई प्रतिरोध किये वर्माजी की स्कूटर स्टार्ट की और कल्पना के साथ उसके बताये पते पर पहुंचा । दरवाजा सोनू की माँ ने खोला था । सोनू सामने ही बैठा कुछ लिख रहा था । नमस्ते करते हुए दोनों ने सोनू से कुछ बात करने की इच्छा जताई । आवाज सुनकर सोनू ने दरवाजे की तरफ देखा और कल्पना को देखकर उनके पास आ गया । वह कल्पना को पहचानता था सो उसके नजदीक आकर पूछने लगा ” क्या बात है आंटी आज राहुल स्कूल नहीं आया ? उसकी तबियत तो ठीक है न ? ”
सोनू के मुंह से यह सुनते ही कल्पना और विनोद अवाक् रह गए । उनके मुंह से निकल पड़ा ” क्या ? वह स्कूल नहीं आया था ? ऐसा कैसे हो सकता है ? वह ठीक समय पर तैयार होकर स्कूल के लिए निकल था । हो सकता हो तुमने ध्यान नहीं दिया हो । तुम्हें न दिखा हो । ”
” अरे नहीं आंटी जी ! आज दोपहर में लंच की छुट्टी में भी मैंने उसे ढूंढने की कोशिश की थी । लेकिन वह नहीं मिला था । अगर स्कूल आया होता तो मैं अवश्य उसे मिलता । हम एक ही कक्षा में पढ़ते हैं । कक्षा में तो अवश्य दिख जाता ” सोनू ने अपनी बात पर जोर दिया था ।
सोनू की मुलाकात से यह नयी बात जानकर विनोद और अचंभित हुआ । वह समझ गया कि राहुल जान बुझ कर घर छोड़ कर कहीं गया होगा ।
पिछले सभी घटनाक्रम पर सोच विचार करने से विनोद को अंदाजा लग गया था कि वह उसकी ही डांट से नाराज होकर शायद ……..! और फिर ….

अब और ज्यादा देर करना उचित नहीं । जल्द से जल्द उसे पुलिस को इसकी सूचना देते हुए उसे खोजने की विनती करनी चाहिए ।
बस कुछ ही देर बाद दोनों उसी स्कूटर से पुलिस स्टेशन की ओर बढ़ रहे थे ।

क्रमशः