Aaghaat - 46 in Hindi Women Focused by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आघात - 46

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आघात - 46

आघात

डॉ. कविता त्यागी

46

अपने बयान की प्रतिक्रियास्वरुप रणवीर का व्यवहार पूजा को तनिक भी अस्वाभाविक प्रतीत नहीं हो रहा था । वह रणवीर के स्वभाव से भली-भाँति परिचित थी और इसी आधर पर वह रणवीर के अगले कदम का अनुमान भी थोड़ा-बहुत लगा सकती थी । इसीलिए वह अपनी ओर से किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया दिये बिना मुस्कराती हुई कोर्ट से बाहर निकल गयी । पूजा को प्रसन्नचित्तवस्था में देखकर अपने मस्तिष्क में संदेह के साथ एक छद्म-योजना लिये हुए रणवीर भी कोर्ट से बाहर निकल आया ।

कोर्ट से बाहर आते ही रणवीर विवाह-विच्छेद के लिए पूजा द्वारा सहज सहमति देने के कारण को ज्ञात करने के प्रयास में उसकी जासूसी में जुट गया । अपने इस उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने के लिए उसने अपने कुछ विश्वासपात्र मित्रों का सहयोग भी लिया । इसी के साथ उसने अपने वकील तथा कुछ घनिष्ठ मित्रों के समक्ष विवाह-विच्छेद के केस को बन्द करने की अपनी इच्छा प्रकट करते हुए उनसे आग्रह किया कि वे इस विषय में पूजा से मिलकर बात करें !

दूसरी ओर, अविनाश ने पूजा से सम्पर्क करके बताया कि वह पूजा के निवास-स्थान से कुछ ही दूरी पर अपने एक मित्र के बेटे के जन्मदिवस-समारोह में सम्मिलित होने के लिए आ रहा है । अविनाश ने पूजा से कहा कि यदि उसको कोई आपत्ति न हो, तो वह उसके घर पर आकर उसके बच्चों के साथ बातें करते हुए चाय पीना चाहता है । अविनाश के प्रस्ताव का पूजा कोई प्रतिकार नहीं कर सकी और उसे घर आने की अनुमति दे दी ।

शाम के लगभग पाँच बजे पूजा के घर अविनाश आया । वह प्रियांश, सुधांशु और पूजा के साथ बातें करते हुए चाय पीकर रात को लगभग आठ बजे वहाँ से वापिस लौटा । प्रियांश और सुधांशु को अविनाश से बातें करके इतना अच्छा लगा था कि उन्होंने मित्रता का हाथ बढाते हुए भविष्य में भी मिलते रहने का वचन लेकर ही उसको विदा किया । अविनाश और प्रियांश की परस्पर घनिष्ठता का कारण उन दोनों की व्यवहारिकता के साथ-साथ दोनों का एक ही कार्य-क्षेत्र का होना भी था । एक-समान कार्य-क्षेत्र होने के चलते प्रियांश को अविनाश के अनुभवों से अनेक प्रकार से अपनी उन्नति हेतु मार्गदर्शन की अपेक्षा थी । अतः अब प्रियांश और अविनाश की घनिष्ठता-निकटता पूजा और अविनाश की अपेक्षा अधिक हो गयी थी ।

अगले दिन रणवीर ने सुधांशु को उसके मोबाइल पर सम्पर्क करके अपने पास बुलाया । थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के पश्चात अपने मुख्य विषय पर आते हुए रणवीर ने सुधांशु से पूछा -

‘‘बेटा ! कल शाम घर पर कौन आया था ?’’

‘‘प्रियांश भाई का फ्रैंड ?

‘‘तेरे बाप की उम्र का वह व्यक्ति प्रियांश का फ्रैंड था ? सच-सच बता कौन था !’’ रणवीर ने क्रोधित मुद्रा बनाते हुए पूछा ।

‘‘पापा जी ! फ्रैंडशिप के लिए कोई एज-बाउन्डेशन नहीं होता है ! वैसे भी, कल तक वे दोनों फेसबुक-फ्रैंड्स थे ! अब एक-दूसरे से मिलकर और क्लोज हो गये हैं !’’

‘‘यह सच है, तो पूजा उसको कैसे जानती है ?’’ रणवीर ने अंधेरे में तीर छोड़ते हुए कहा ।

‘‘मम्मी जी उन्हें अपने बचपन से जानती हैं ! कल वे यहीं पास में अपने किसी मित्र के बच्चे की बर्थ-डे पार्टी में आये थे, मम्मी ने उन्हें घर पर बुला लिया ! भाई की कल उनके साथ आमने-सामने की प्रथम भेंट थी !’’

सुधांशु ने स्पष्ट करके बताया, तो रणवीर को अपनी दूरदर्शिता पर अत्यन्त गर्व हुआ कि उसका अंधेरे में चलाया गया तीर लक्ष्य पर जाकर लगा है । वह मन-ही-मन प्रसन्नता से खिल उठा कि उसने दो ही दिन में अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है । अब उसने पूजा की जासूसी करने के स्थान पर उस व्यक्ति के विषय में सारी सूचनाएँ एकत्रित करने की आवश्यकता का अनुभव किया और यही अपना लक्ष्य भी निश्चित किया ।

रणवीर उस व्यक्ति के विषय में अधिक-से-अधिक जानकारी एकत्र करने में जुट गया, जिसको पूजा ने अपने घर पर आमंत्रित किया था और जो न केवल पूजा के बुलाने से घर आया था, बल्कि उसके बेटों को अपना मित्र बनाकर वापिस लौटा था । रणवीर को सन्देह था कि वह व्यक्ति प्रियांश का मित्र नहीं है, बल्कि पूजा का पुरुष मित्र है ! उसको यह भी शंका होने लगी थी कि विवाह-विच्छेद होने पर पूजा उसको अपना जीवन-साथी बना सकती है ! संभवतः इसी कारण वह कोर्ट में विवाह-विच्छेद के लिए सहमत हो गयी थी । रणवीर की यह शंका उसके मनःमस्तिष्क पर अपने सम्पूर्ण प्रभाव के साथ हावी हो रही थी । उसके अन्दर एक प्रकार का भय-सा व्याप्त होता जा रहा था ।

दूसरी ओर, पूजा स्वंयसेवी-संस्था से जुड़कर एक अद्भुत शान्ति और सुख का अनुभव कर रही थी। उसने अपने मूल्यवान समय का कुछ अंश सेवा-कार्य हेतु उस संस्था को देना आरम्भ कर दिया था । अविनाश से अचानक भेंट और तत्पश्चात् उसका घर पर आगमन दोनों संयोग भी ईश्वर में पूजा के विश्वास को बढ़ा रहे थे । अब तक रणवीर की उपेक्षा के कारण वह अपने व्यक्तित्व को लेकर अनेक बार नकारत्मक भावों से घिरकर स्वयं ही हीनता का शिकार होती रहती थी ।

अविनाश ने अपने वाक् कौशल से पूजा को उसके त्याग-तपस्या और सादगी-युक्त जीवन के महत्त्व का अनुभव करा दिया था । अविनाश द्वारा की गयी उसके विषय में अनेक सकारात्मक टिप्पणियो ने उसके पिता द्वारा सिखाये गये सूत्रा - ‘सादा जीवन उच्च विचार’ को सार्थक और सत्य सिद्ध कर दिया था । अब वह अपने जीवन की उपलब्धियों से पूर्णतः सन्तुष्ट थी, सुखी थी तथा अपने शेष-जीवन के लिए चुने गये कार्य-क्षेत्र को लेकर अत्यन्त उत्साहित थी । सामाजिक-सेवा-कार्य से जुड़कर पूजा का हृदय-विस्तार एवं कार्यक्षेत्र-विस्तार हो चुका था, इसलिए रणवीर का किसी अन्य स्त्री के साथ रहना अब उसकेे लिए कष्टकारक नहीं था । न ही अब उसके लिए स्वयं के साथ रणवीर का रहना सुख का संचार करने वाला विषय रह गया था । रणवीर के साथ अपने सम्बन्धों को लेकर अब वह पूरी तरह से उदासीन हो चुकी थी ।

इसके विपरीत, रणवीर अपनी शंका के चलते दिन-रात चिन्तित रहता था और इस प्रयास में रहता था कि पूजा के विषय में उसको प्रतिक्षण सूचनाएँ प्राप्त होती रहें कि वह कब ? क्या कर रही है ? कब ? किससे ? और किसलिए भेंट कर रही है ?

मात्र तीन दिन में रणवीर ने अविनाश के विषय में पर्याप्त सूचनाएँ एकत्र कर ली थी । यह ज्ञात होने पर कि अविनाश ने बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने तक मेरठ में अपने एक रिश्तेदार के घर पर रहकर पढ़ाई की थी, जिसका घर कौशिक जी के घर से मात्र कुछ ही दूरी पर स्थित था, रणवीर को तीव्र आघात लगा । वह किंकर्तव्य-विमूढ़-सा कुछ क्षण के लिए नकारात्मक विचारों के बवंडर में फँस गया था । वह सोचने लगा -

‘‘अविनाश इंजीनीयर है, सर्वसम्पन्न है, व्यवहार-कुशल है और पूजा को प्रेम भी करता है ! प्रियांश और सुधांशु भी उसको पसन्द करते हैं ! ये सभी बातें पूजा और अविनाश के पक्ष को दृढ़ करने वाली हैं ! इसीलिए पूजा विवाह-विच्छेद के लिए सहमत हो गयी है, ताकि विवाह-विच्छेद होते ही ये दोनों एक-दूसरे के जीवन-साथी बन जाएँ !’’

मात्र कुछ ही क्षणों तक निराशा के बवंडर में फँसे रणवीर में अचानक सकारात्मक शक्ति का संचार हुआ और वह बैठे-बैठे अकेला चीखने लगा -

‘‘नहीं ! मैं ऐसा नहीं होने दूँगा ! मैं ऐसा कदापि नहीं होने दूगाँ ! मैं पूजा को ऐसा कदम नहीं उठाने दूँगा, जिससे मेरे पूर्वजों की मान-प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाए !’’

चार-पाँच मिनट तक रणवीर इसी प्रकार चीखता रहा । तत्पश्चात् एक झटके के साथ उठा और तेज कदमों से बाहर की ओर चल दिया । देर-रात तक वह निरुद्देश्य भटकता रहा । रात में भी उसको नींद नही आयी । वह निरन्तर इसी विषय में सोचता रहा कि आखिर कौन-सी ऐसी युक्ति है, जिससे अपने घर में अपनी पूर्व-स्थिति कोे प्राप्त कर पूजा तथा बेटों पर अपनी सत्ता स्थापित कर सके ? परन्तु ऐसी कोई युक्ति उसको सूझ नहीं रही थी । प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में अचानक उसके मस्तिष्क में एक विचार आया -

‘‘क्यों न मैं इस विषय में पूजा की बुआ-चित्रा से मिलूँ और अपने पक्ष में कोई मार्ग प्रशस्त करुँ ? चित्रा ही वह व्यक्तित्व है, जिसका मत पूजा पर मेरे पक्ष में प्रभावी हो सकता है ! मैं जानता हूँ कि पूजा की बुआ मेरे प्रति सन्तुष्ट नहीं होगी, परन्तु, मेरे निवेदन पर वह पूजा को समझाने के लिए अवश्य ही मान जाएँगी ! वे कभी नहीं चाहेगी कि पूजा मुझे छोड़कर किसी अन्य के साथ विवाह करें ! इस मोड़ पर आकर तो कदापि नहीं, जबकि हमारे बच्चे वयस्क हो गये है !’’

अपने इन विचारों से रणवीर को पर्याप्त ऊर्जा मिल रही थी । अब उसके अन्तःकरण में आशा का संचार हो रहा था और उषा की किरणों ने निराशा का अंधकार जैसे समाप्त कर दिया था । अपने सकारात्मक विचारों से प्रेरित होकर रणवीर ने तुरन्त चित्रा के घर की ओर प्रस्थान कर दिया।

चित्रा के घर पर पहुँचकर रणवीर ने सर्वप्रथम अपनी प्रकृति के अनुरूप पूरे परिवार के समक्ष पूजा के दोषपूर्ण निर्णय के विषय में बताते हुए स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयत्न किया । उसने अपने वैवाहिक-जीवन के आरम्भ से अब तक पूजा द्वारा लगाये गये आरोपो को निराधर और पूजा की शंकालु प्रकृति का परिणाम बताते हुए पूजा की बुआ से निवेदन किया कि वे उसके साथ चलकर पूजा को समझाएँ अन्यथा बड़ा अनर्थ हो जाएगा ! चूँकि वह पूजा की बुआ थी, पूजा को स्नेह करती थी, पूजा के बचपन से ही उसकी प्रकृति से पूर्णतः परिचित थी और उसके प्रति रणवीर की उपेक्षा तथा दायित्व-निर्वाह न करने की प्रवृत्ति से भी भली-भाँति परिचित थी, इसलिए रणवीर का निवेदन अस्वीकार करते हुए उन्होंने कहा -

‘‘रणवीर ! यह तुम दोनों का व्यक्तिगत विषय है। तुम इसमें मुझे न घसीटो ! यही बेहतर है !’’

रणवीर इसे अपना व्यक्तिगत विषय मानने को तैयार नहीं था । वह चित्रा से बार-बार तब तक आग्रह करता रहा, जब-तक वह उसके साथ चलकर पूजा को समझाने के लिए तैयार न हो गयी ।

शाम को रणवीर चित्रा को अपने साथ लेकर पूजा के पास घर पर पहुँचा । अपनी बुआ को देखते ही पूजा प्रसन्न हो गयी, परन्तु रणवीर को साथ में देखकर उसको आश्चर्य हो रहा था । वह समझ नहीं पा रही थी कि उसकी बुआ के साथ रणवीर क्यों और कहाँ से आया है ? अपनी इस जिज्ञासा को वह प्रकट नहीं करना चाहती थी, इसलिए अपने प्रश्नों को दबाकर वह बुआ के आतिथ्य-सत्कार में जुट गयी । रात के आठ बजे तक पूजा रसोइघर तथा घर के कुछ अन्य कार्यों में इस प्रकार व्यस्त रही कि उसके तथा बुआ के बीच औपचारिक संवाद के अतिरिक्त कोई भी गम्भीर बात नहीं हो सकी । आठ बजे के बाद रणवीर के आग्रह पर चित्रा ने पूजा को अपने पास बुलाया और कहा -

‘‘पूजा ! यह अविनाश कौन है ?’’

‘‘अविनाश ?’’

अपनी बुआ का प्रश्न सुनकर मुस्कराते हुए पूजा ने प्रतिप्रश्न कर दिया और फिर गम्भीरता-पूर्वक रणवीर की ओर देखने लगी । वह समझ चुकी थी कि रणवीर ने ही चित्रा को अविनाश के विषय में बताया है ! वह इस बात का भी अनुमान लगा चुकी थी कि अविनाश को लेकर रणवीर के मस्तिष्क में अपनी छद्म प्रकृति के अनुरुप सन्देह का कीड़ा उत्पन्न हो गया है ! संभवतः बुआ को वही यहाँ लेकर आया है ! बुआ के प्रश्न से उसको अपने उस प्रश्न का उत्तर भी मिल गया था, जो उसके मन में रणवीर को बुआ के साथ देखकर उत्पन्न हुआ था । इसलिए उसके चेहरे पर परिस्थिति सुलभ रहस्यात्मक मुस्कराहट अनायास ही फैल गयी।

बुआ के प्रश्न पर पूजा को अविचलित और उसके चेहरे पर मुस्कराहट देखकर रणवीर की मानसिक दशा असामान्य होती जा रही थी । चित्रा ने उसकी दशा को भाँपते हुए पूजा से पुनः कहा -

‘‘देखो पूजा ! तुम जानती हो कि घुमा-फिराकर बातें करने की मेरी प्रवृत्ति नहीं है ! इसलिए मैं जिस बात को कहने के लिए यहाँ आयी हूँ ! मैं चाहती हूँ कि उसे सीधे-सीधे कह दूँ !’’

‘‘बुआ जी, मैं आपकी प्रवृत्ति से भली-भाँति परिचित हूँ ! आप जो कुछ भी कहना चाहती है, कह सकती हैं ! मैं सुनने के लिए तैयार हूँ !’’

पूजा ने पहले की ही भाँति अविचलित और सामान्य शैली में हुए कहा ।

‘‘पूजा ! अविनाश नाम का कोई युवक है, जिसे तुम घर पर बुलाती हो और उसके साथ घुल-मिलकर बातें करती हो ?’’

‘‘जी बुआजी ! है !’’

‘‘कौन है यह अविनाश ?’’

‘‘एक युवक है अविनाश ! इसमें पूछने जैसी क्या बात है ? पूजा ने हँसकर कहा ।

‘‘पूजा ! यह हँसने की बात नहीं है ! मैं गम्भीरतापूर्वक तुमसे इसी विषय पर बात करने के लिए आयी हूँ !’’ बुआ ने पूजा को अधिकारपूर्वक डाँटते हुए कहा ।

‘‘साॅरी, बुआजी ! अब नहीं हँसूगी ! पूछिए ! क्या पूछना चाहती हैं आप ?’’

‘‘मैंने पूछा है कि यह अविनाश कौन है ? कभी किसी से न बोलने वाली तुम, जिसको अपने घर बुलाकर चाय पिलाती हो और घुल-मिलकर बातें करती होे ? यह अविनाश कौन है ?

‘‘बुआजी, अविनाश एक बहुत ही सज्जन और सम्भ्रान्त परिवार का युवक है ! वह मेरठ में हमारे घर से कुछ दूरी पर ही अपने अंकल के पास रहता था । बस, तभी से मैं उसे जानती हूूँ !’’

‘‘देखो, पूजा ! परिवार के प्रति तुम्हारे त्याग-तपस्या, सहिष्णुता, क्षमाशीलता और तुम्हारी समझदारी पर हमें गर्व है ! रणवीर भी तुम पर बहुत विश्वास करता है, परन्तु अविनाश के सम्बन्ध में कोई भी तुम्हारे दृष्टिकोण से सहमत नहीं हो सकता है ! रणवीर को तुम्हारे इस प्रकार के कार्य-व्यवहार से बहुत आघात लगा है ! तुम्हें अगली पीढ़ी के मान-सम्मान की तो कोई चिन्ता है ही नहीं, पूर्वजों के उस नाम पर भी कलंक लगा रही हो, जिसे उन्होंने समाज में अपने त्याग-परिश्रम से कमाया था !’’

चित्रा ने पूजा को समझाते हुए कहा था, परन्तु पूजा को ऐसा अनुभव हो रहा था कि वे शब्द उसकी बुआ के नहीं, अपितु रणवीर के हैं । अतः रणवीर के प्रति उसका आक्रोश बढ़ गया । कुछ क्षणों तक वह तिरस्कारपूर्ण दृष्टि से रणवीर की ओर देखती रही । तत्पश्चात अपने आक्रोश को प्रकट करते हुए बोली -

‘‘मेरे कार्य व्यवहार से रणवीर को बहुत बड़ा आघात लगा है ? लेकिन किस कार्य-व्यवहार से ? एक सज्जन व्यक्ति, जो मेरे परिवार से और मुझसे बचपन से परिचित है, वह एक बार मेरे घर आकर मेरे बच्चों के साथ चाय पी लेता है और कुछ देर उनके साथ बातें कर लेता है ! बस, इतनी-सी बात से रणवीर को बहुत बड़ा आघात लग गया ? मेरे इतने-से कार्य-व्यवहार से रणवीर के पूर्वजों के नाम पर कलंक लग गया और अगली-पिछली पीढ़ी का मान-सम्मान नष्ट हो गया ? वाह रे, अगली-पिछली पीढ़ी की मान-प्रतिष्ठा के रखवाले ! मेरी तो ईश्वर यही प्रार्थना है, किसी शत्रु को भी ऐसा रखवाला न दे ! उस दिन से रणवीर को अगली-पिछली पीढ़ियों की कोई चिन्ता नहीं हुई थी, जब वह छोटे-छोटे बच्चों और अपनी पत्नी को छोड़कर अन्य स्त्रियों के साथ रंग-रेलियाँ मनाता फिरता था ? कभी घर पर आकर यह भी नहीं पूछा कि बच्चे भूखे-प्यासे हैं ? उनकी पढ़ाई बन्द हो गयी है या पढ़ रहे हैं ? उनका पालन-पोषण कहाँ से ? किस प्रकार हो रहा है ? बुआ जी ! क्या मुझे इन सब बातों से आघात नहीं लग था ? अब मैं मेरा अपना जीवन अपनी इच्छानुसार जिऊँगी ! रणवीर ने मुझसे तलाक माँगा था, मैंने इसके लिए अपनी सहमति दे दी है ! अगली निर्धरित तिथि में निर्णय आ जाएगा ! अब यह भी स्वतंत्र है और मैं भी स्वतंत्र हूँ ! रणवीर को कोई अधिकार नहीं है कि वह मेरे किसी कार्य में हस्तक्षेप करे !’’

‘‘लेकिन पूजा, अभी तलाक नहीं हुआ है ! ’’ बुआ ने कहा !

‘‘बुआ जी, हुआ नहीं है, तो शीघ्र ही हो जाएगा ! न भी हुआ तो जो व्यक्ति अपने बच्चों और पत्नी के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करता, आप उसके अधिकारों के विषय में बातें नही कर सकतीं ! मैं दस वर्ष से अकेले ही अपने बच्चों का पालन पोषण कर रही हूँ ! इसिलए कोर्ट में तलाक भले ही न हो, मैं तो दस वर्ष पूर्व ही तलाक मान चुकी थी !

‘‘मैं अब तलाक नहीं लेना चाहता !’’ रणवीर ने ढीठतापूर्वक कहा।

‘‘लेकिन, मैं अब तुमसे मुक्ति चाहती हूँ ! तुम्हारे आघातों ने मुझे इतना दृढ़ बना दिया है कि अब छोटी-छोटी समस्याएँ मुझे कष्ट नही पहुँंचाती हैं!’’

पूजा द्वारा दृढ़तापूर्वक दिये गये उत्तर के प्रत्येक शब्द से आज रणवीर को अपनी दुर्बलता का अनुभव हो रहा था । अतः वह वहाँ से उठकर धीरे-धीरे बाहर की ओर चल दिया । रणवीर के जाने के पश्चात् चित्रा ने पूजा को समझाने का प्रयास किया, तो पूजा ने अपनी बुआ को आश्वस्त करते हुए कहा -

"मैंने रणवीर के जाने के पश्चात् किसी सम्बन्धी से सहायता लिए बिना अपने बच्चों का पालन-पोषण शिक्षा-दीक्षा तथा उनका यथोचित मार्ग-दर्शन किया है, इसलिए मेरी सोच तथा पुरुषार्थ पर आप विश्वास कर सकती हैं ! रहा प्रश्न रणवीर या अविनाश का ? रणवीर मेरे जीवन में ग्रहण बनकर आया था ! अब मैंने अपने हृदय और कर्मक्षेत्र का इतना विस्तार कर लिया है कि रणवीर की छाया मेरे प्रकाश को ढ़क पाने में सक्षम नहीं है ! और अविनाश ? वह एक सज्जन व्यक्ति है ! वह मेरे बेटों का मित्र और उनका शुभचिंतक है ! इसलिए रणवीर का भय मानकर एक सच्चे मित्र से सम्बन्ध तोडना उचित नहीं है ! यदि अविनाश के साथ मेरी भेंट से, बातचीत से और घर पर आने से रणवीर को आघात पहुंँचता है, तो हमेशा दूसरों को आघात देने वाले को भी एक बार उसी पीड़ा का अनुभव हो सके, जो उसने अपनों को दी है, तब इसमें बुराई क्या है ? इससे स्वयं रणवीर का तथा समाज का कल्याण ही होगा ! यह आघात रणवीर को उचित मार्ग पर लौटाकर ला सकता है और उसके अनेक मित्रों को भी सही राह पर चलने के लिए प्रेरित कर सकता है !"

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com