लम्बे अरसे के बाद उसके घर गया था काम के सिलसिला में उसके क्षेत्र की जाना था, तो सोचा एक बार बहन के यहाँ घूम आऊं जी हाँ, विनीता नाम था,दूर के रिश्ते में बहन लगती थी मेरी
जब उसके घर गया तो दरवाजा बंद था दरवाजे पर दस्तक देने के बाद स्वयं विनीता ही दरवाजा खोलने के लिए आई
मुझे देखते ही हर्षोल्लास के साथ बोली"लम्बे अरसे के बाद यहाँ कैसे आना हुआ?" मेरे हाथ में एक छोटा सा बैग था उसे फर्श पर रखते हुए बोला"मैंने कितनी बार योजना बनाई तुम्हारे घर आने के लिए, लेकिन समय ही नहीं मिल पा रही थी"इतना कहकर मैं पास ही पड़े पुरानी कुर्सी पर बैठ गया
मुझे बैठाकर विनीता चाय बनाने चली गई मैं वहाँ चुपचाप बैठा रहा, लेकिन इसी दौरान मैंने अनुभव किया की इतने बड़े घर में विनीता अकेले ही रहती है, और हो सकता है की वो अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रही हो फिर भी वो उस घुटन को चेहरे पर नहीं आने दे रही थी
थोड़ी देर के बाद विनीता चाय और बिस्किट लेकर आई,मैंने चाय की पहली चुस्की के साथ उससे पूछा"तुम्हारे पति कहाँ है?" तो वो बोली"अरे!वो तो सुबह सात बजे ही चले जाते है अपने क्लिनिक पर,लेकिन बारह से साढ़े बारह बजे के बीच
खाने के लिए आते है और फिर तीन बजे के करीब निकल पड़ते हैं,तभी उसका साल भर का बच्चा रोने लगा तो वह उठकर अपने बच्चे को मनाने के लिए गई और अपनी गोद में ही उसे लेकर मेरे पास आ गई उस बच्चे का नाम मैंने पूछा तो विनीता बोली"अभी कोई स्थायी नाम तो नहीं है इसका,लेकिन सभी प्यार से टुकटुक कहते है, और वास्तव में टुकटुक बड़ा ही प्यारा बच्चा था मैंने उसे लेने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन, टुकटुक भय के साथ मुझे देखने लगा और माँ की गोद में चिपक गया
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई मैंने और विनीता ने देखा तो'वो'आए थे 'वो'मतलब विनीता के पति मुझे देखकर उन्होंने अभिवादन किया तथा सामने रखी गई कुर्सी पर बैठ गए विनीता के पति का नाम दिव्यम था तबतक विनीता जा चुकी थी दिव्यम के लिए पानी लाने,जब वह पानी लेकर आई
दिव्यम थोड़ा नाराजगी के साथ बोले"विनीता, मैंने कितनी बार कहाँ है की तुम घर में अकेली रहती हो यह पहाड़ी क्षेत्र है, चारो तरफ जंगल है, हालांकि फिर भी गांवहैं, लेकिन तुम दरवाजा खुला क्यों रखती हो?"
दिव्यम की बातें सुनकर विनीता कुछ नहीं बोलीऔर वहाँ से चली गई थोड़ी देर के बाद वह मेरे लिए और दिव्यम के लिए भोजन लेकर आई,तबतक टुकटुक दिव्यम के पास ही खेल रहा था,जैसे ही उसने विनीता को देखा तो रोने लगा फिर क्या था?विनीत उसे लेकर दूसरी कमरों में चली गई, और थोड़ी देर के बाद"कुछ और चाहिए आपलोगों को"तब मैंने और दिव्यम ने ना में सिर हिलाए
भोजन करने के बाद मैं और दिव्यम आराम से बैठकर बातें कर रहे थे, लेकिन विनीता उस बेचारी को कहाँ आराम कहाँ?जब से मैं आया हूँ वह मुश्किल से मेरे पास बैठी हुई थी, क्योंकि वह घर में अकेली जो थी और स्त्री होने के नाते उसका पहला कर्तव्य था घरेलू कामकाज,और मुझे लगता है हर घरेलू स्त्री की नियति बन जाती है उसकी घरेलू कामकाज, क्योंकि इसमे कुछ नया नहीं होता हैं प्रतिदिन एक ही काम को करना पड़ता है तभी दिव्यम मुझसे पूछ बैठे
"अभी रहना है या चले जाना है?"उनकी बातें सुनकर मजाकिया स्वर में कहा"क्या बात है?मुझे हटाने का इरादा है क्या!" तब दिव्यम बोले"अरे नहीं जी,मैंने तो ऐसे ही पूछा था"और इतना कहकर वह उठ गए और घड़ी की तरफ देखकर विनीता को आवाज लगाए"जी आई,"विनीता का स्वर सुनाई दिया,क्योंकि उस वक्त वो आँगन में बर्तन की सफाई कर रही थी और हमलोग बरामदा में बैठकर बातें कर रहे थे अपनी हाथों को आँचल से पोछती हुई बोली"क्या बात है, बोलिये"विनीता की आवाज सुनकर दिव्यम बोले"घर मे कुछ घटा नहीं है ना?कोई साग-सब्जी या कोई आवश्यक सामान" दिव्यम की बात सुनकर विनीता बोली"जी,नहीं सबकुछ हैं घर मे"विनीता की बात सुनकर दिव्यम एक नजर मेरी तरफ देखे और जाते हुए विनीता से बोले की दरवाजा बंद रखना उनके जाते ही विनीता फिर से बर्तन की सफाई करने के लिए आँगन चली गई तब मैं उसके पीछे-पीछे चला गया और साथ ही बरामदा का दरवाजा भी बंद कर दिया
आँगन में वह बर्तन साफ कर रही थी तभी टुकटुक के रोने की आवाज सुनाई पड़ी तब विनीता उठ गई और टुकटुक को गोद में लेकर आ गई तथा लोरी गाने लगी और टहलने लगी मैं पास ही कुर्सी पर बैठा था तभी मैंने विनीता से पूछा"अच्छा विनीता, एक बात बताओ तुम घर में अकेली रहती हो, सारा काम संभालती हो,क्या तुम्हारा मन लग जाता है?"मेरी बात सुनकर विनीता का चेहरा थोड़ा उदास हो गया और वो टुकटुक को लेकर थोड़ी दूर बैठ गई तथा बोली"मन लगाना पड़ता है क्या करूँ?यहाँ कोई आता भी है हैं मुझसे मिलने के लिए मोहल्ले की औरतों को अपने काम से मतलब है"इतना कहकर वह चुप हो गई,तब मैंने पूछा"अच्छा विनीता,तुम खाना खाई हो"
"अभी कहाँ खाई हूँ सुबह का नाश्ता किया है और अब घर का काम करने में उपरांत ही खाना मिलेगा" वह बड़े ही सहज रूप से बोली"उसकी बातें सुनकर थोड़ी देर तक मैं निरुत्तर हो गया क्या अब मैं पूछता उस विनीता से,जो जब यौवनावस्था में थी ,तब बड़ी ही चंचल और हँसमुख लड़की थी बार-बार खाना नहीं खाने के लिए डाट सुनती रहती थी
,लेकिन आज समय ने उसकी हँसी, चंचलता सबकुछ उससे छीन लिया है, फिर भी मैंने उसे समझाया"विनीता,अपनी सेहत पर ध्यान दिया करो तुम,आखिर एक मां भी तो तुम"
लेकिन विनीता मेरी बात सुनकर बोली"कैसे ध्यान दूँ सेहत पर आप ही बताओ,यहाँ तो एक काम खत्म होती है, तो दूसरी शुरू हो जाती है, और वैसे भी एक माँ के किसी की पत्नी भी तो हूँ यह सब तो करना ही पड़ेगा"
:कुमार किशन कीर्ति,बिहार