बचपन और गणित
मुझे गणित विषय से शुरु से हीं खास रुचि नही रही जिसका सबसे बङा कारण अंको के साथ खेलना हीं नही आया ।।
आठवां बोर्ड के इग्जाम में भी कुछ खास कर नही सका किंतु जिद्द तो जिद्द होती आठवां बोर्ड अच्छा नही करने के बावजूद नौंवी दसवीं कक्षा में एडवांस मैथ लिए सब कुछ ठीक ठाक रहा "बिना तिर मारे" ।। खैर इंटर में कोलेज का मुंह देखा वो भी साइंस में एक अद्भुत संयोग रहा "जिससे जितना पिछा छुङाना चाहा" वह करीब और करीब आता गया।।
इंटर में भौतिकी शास्त्र में सबसे अच्छा नंबर आया और आता भी क्यों नही "न्यूटन का सेव" जो मुझे हीं खाना था।। अब स्नातक करने के लिए भौतिक शास्त्र से क्या करना था सोंचा कुछ नया सब्जेक्ट लेता हूँ इलेक्ट्रॉनिक्स का विषय लिया ।।
किंतु इसी बिच एक "नया सुर सवार हुआ" पैसा कमाना चाहिए घर की डाँट फटकार से अच्छा कुछ पैसा कमा लिया जाए। :करें तो क्या करें" मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव का काम शुरु किया हमें क्या पता था डाक्टर से मिलते मिलते खुद को डाक्टर ही समझने लगेंगे please prescribe this this के जगह खुद ही prescribe शुरू कर देंगे लोगो को। खैर स्नातक के दूसरे वर्ष का परिक्षा देकर "दिल्ली जाने" का मन बना लिया अंक के जोङ-तोङ चक्कर हेतु क्योंकि BODMAS के अनुसार अंको तक का खेल चल रहा था x का मान रखने और Y का अभिमान भी तो पता करना था।।
यह बचपन यहां तक बचपना का खेल खेलता रहा किंतु बिहार के माँ-बाप से ज्यादा यदि गार्जियन का रसूख कोई रखता है तो वह बङा भाई होता है जो दोस्त के साथ साथ अभिभावक भी होता है ।।
किंतु बच्चे है जी हम बच्चे दिल के बङे सच्चे ।।
आज महान गणितज्ञ वशिष्ठ नरायन सिंह अब हमारे बीच नही रहे और तीस वर्ष से अधिक से मानसिक बीमारी से ग्रसित थे ।। गणित तो बिहार वाले ऐसे भी अलग राज्यों से ज्यादा जानते है यहाँ कम से कम बीस तक का पहाड़ा मुंह जबानी बच्चा-बच्चा याद रखता है इससे जब कोई आगे निकले तब ही न कुछ आगे की चर्चा होगी ।।
गणित और दिल्ली
जैसा कि पहले स्मरण बचपण और गणित में कुछ बुनियादी ढांचा तैयार किया गया था बचपन के गणित का आंकलन रेखांकित किया गया था जोङ तोङ के हिसाब में जन्म स्थान से प्रस्थान कर गया था गणित के विभिन्न आयामों को पार कर गया था।
किंतु जीवन में algebra बीज गणित का बङा सम्मान है जिसको भी x एंव y का मान रखना आ गया समीकरण हल करना आ गया समझो वह जीवन में सुलझ गया नव इतिहास कुछ वो रच गया ।।
किंतु मेरे जीवन में इतने सरलता से थोड़े कुछ होना था राई का जो पहाङ होना था घर से निकलने के पहले ही माँ पिता दो बहनो से दूर होना था वो अलग बात था भाई के पास ही जाना था किंतु शून्यता और तन्हाई एक ही जिसके साथ किसी भी संख्या से गुना हो फल शून्य ही आता है ।।
आखिरकार समीकरण हल करने पहुंचे थे अपना मान सम्मान बढाने पहुंचे थे शुरू से संख्या के चक्कर में जो थे। किंतु जहाँ पहुंचे वो संख्या की देवी लक्ष्मी की नगर लक्ष्मी नगर निकली ।। और जब कमरे का माहौल देखा तो हर तरफ किताब हीं किताब जो भैया के साथी थे CAT की तैयारी कर रहे थे शुरू में सुना तो खूब हंसी भी आई और एक कहानी भी याद आई जो कभी पढा था बिल्ली के गले में घंटी कौन चूहा बांधेगा ।।
किंतु जो भैया के साथी सब थे वो कोई चूहा नही बल्कि चिता थे जो काफी फूर्तिले किंतु काम के पङती नही पढाई के पङती ।। भैया ने कहाँ आराम कर लो और दिमाग को स्थिर कर लो आखिर क्या करना है ।। दिमाग स्थिर कहाँ होने वाली थी यहाँ तो हलचल हो गई सारा का सारा हिसाब फेल हो गया ।।
दो तीन दिन में समझ आ गया और सोंचा अमन बेटा कोई भी फार्मूला तुमने सही लगाया ही नही और जोङ-तोङ के हिसाब सारे असफल हो गए खैर जीवन में मन से और गणित में लग्न से ही हर कुछ हल होता है ।।
जोङ तोङ का ख्याल छोङ दिया और रिक्तता में अपना मान यानी X का मान शुन्य रख लिया और Y यानी भाई और भाई के साथी का मान संख्या में रख दिया। मतलब यह हुआ कि जो मुझे बराबरी करने का सोंचे वो शुन्य हो जाए और जो साथ होने का सोंचे वो अपने बराबर का मान देखे ।।
अब मेहनत करनी थी तो किताब उठाया 6 to tenth सब को पढा और जहाँ समस्या आती उसका सवाल जबाब y से होने लगा 15 16 घंटे तक लगातार पढने वालो के बीच अपनी भी दौङ लगने लगी इंटर ग्रेजुएशन तक की सारी पुस्तकों को कुछ हीं महिने में कंप्लीट कर गया ।।
इस बीच में हिंदी के कहानी कविता अपनी साथी बन गई जो ताजगी का काम करते थे और इसी बीच रुचि पता लगा कि पढने में आर्ट्स और साईंस में काफी रुचि है।।
चार पांच महीने बाद भैया ने पुछा अब बता क्या करना है मैंने कहा काम तो करना है क्योंकि पिताजी से बोलकर आए है कहे अच्छा ठीक है ट्यूशन पढाओंगे निचे वाले फ्लोर का लङका पढाता है मैंने कहा ठीक है ।।
यानी दिल्ली के प्रथम चरण में तो यह समझ आ गया कि दिल्ली की गणित टेढी और मेढी है यहाँ सरल कुछ भी नही है किंतु एक बात तो यहा समझ चूका था इस गणित को बेहतरीन जरुर कर लूंगा क्योंकि यहाँ जो भी आते है सब कुछ छोङ के कुछ पाने की तालाश में और मेरा पहला भ्रम ही टूट चूका था मान सम्मान का क्योंकि शून्यता को पहचान चुका था ।।
किंतु बीज गणित तो ऐसा है हल होते होते दिखता है किंतु हल होता नही किंतु एक बात और थी बीज का रुपांतरण मेरे अंदर हो चूका था वो भी शून्यता का .....
#अनंत