Yun hi raah chalte chalte - 1 in Hindi Travel stories by Alka Pramod books and stories PDF | यूँ ही राह चलते चलते - 1

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यूँ ही राह चलते चलते - 1

यूँ ही राह चलते चलते

-1-

चाय की चुस्की लेते हुए रजत बोले ’’ अगर तुम मुझे पाँच लाख रुपये दो तो मैं तुम्हें एक सरप्राइज दे सकता हूँ। ‘‘

’’ ये कौन सा सरप्राइज है जिसकी कीमत पाँच लाख है?‘‘

’’घाटे में नहीं रहोगी ये वादा है। ‘‘

बात को मजाक में लेते हुए अनुभा ने भी हाँ कह दी । बात आई गई हो गई।

शाम को उसे पता चला कि बात गंभीर थी और उसे सच में पाँच लाख का इंतजाम करना होगा । पर सरप्राइज इतना आकर्षक था कि अनुभा को पाँच लाख का सौदा भी सस्ता लगा । उन्नीस दिनों का यूरोप भ्रमण का पर्यटन कम्पनी का विज्ञापन था । अनुभा को विश्वास नहीं हो रहा था कि उसका वर्षों का सपना पूरा होने की कगार पर है।

अब तो दो तीन दिन दोनों अपनी अपनी जमा पूँजी में गोते लगाते रहे कि वो कितने मोती निकाल सकते हैं। चार दिनों बाद वो पर्यटन कम्पनी के आफिस में अपना नाम अंकित करा रहे थे । फिर तो जाने के दिन तक न जाने कितनी बार दोनो सपनों में यूरोप की सैर ही कर आये ।

जब अनिल भाईसाहब ने सुना तो बोले ‘‘ ये हुई कोई बात, कुछ भी कहो रजत अपना यार, है जिंदा दिल, जिंदगी जीना जानता है. ’’

अनुभा का उत्साह पूरे उत्कर्ष पर था, रजत के आफिस जाते ही मोबाइल उठाया और मोबाइल पर जिसको जिसको बता सकती थी, सब को शुभ समाचार दे दिया कि वो विदेश यात्रा पर जा रहे हैं, वो भी एक दो नहीं पूरे पूरे ग्यारह देशों की । सबसे पहले तो रीमा को फोन मिलाया, जब देखो विदेश से उसके भाई द्वारा लाई चीजें दिखाया करती थी ।अब जब उसे पता चलेगा कि अनुभा तो स्वयं ही जा रही है तो निश्चय ही ईर्ष्या की ऐसी छौंक लगेगी कि उसके चारों ओर धुआँ ही धुआँ होगा।

‘‘ हैलो ’’उधर से रीमा की आवाज आई ।

अनुभा उत्साह में सामान्य औपचारिकता भी भूल गयी और सीधे बोली ‘‘वो मैं इस बार किटी में नहीं आ पाऊँगी, सोचा तुम्हे बता दूँ।‘‘

‘‘ क्यों क्या हुआ सब ठीक तो है ?’’

‘‘ कुछ विशेष नहीं मैं यूरोप जा रही हूँ न, तो थोड़ी तैयारी करनी है।’’

रीमा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ उसने पुष्टि के लिये पूछा ‘‘ यूरोप? क्यों कोई लकी ड्रा में आफर आ गया क्या?’’

उसके आश्चर्य का आनन्द लेते हुए अनुभा ने कहा ‘‘ नहीं अपने खर्चे पर जा रहे हैं ।’’

रीमा के लिये कोई सुखद सूचना नहीं थी, वह तो आयातित वस्तुओं को पा कर ही स्वयं को विशिष्ट समझे बैठी थी और यह अनुभा स्वयं ही विदेश जा रही है। रीमा चाह कर भी प्रसन्नता प्रकट न कर पायी और बॅाय कह कर मोबाइल काट दिया।

अब अनुभा ने नंदा को बताया तो वह सीधे व्यय का जोड़ घटाना लगाने लगी, उसने पूछा ‘‘ कितना खर्च होगा?’’

अनुभा ने बताया दो लोगों का पाँच लाख तो उसने मुँह बिचकाया कर कहा ’’ उन्नीस दिनों में पाँच लाख फूंक ताप कर आ जाना कहाँ की समझदारी है ? ’’

चंदा बुआ अवश्य उत्साहित हो गई और ढेरों आशीर्वाद देते हुए बोलीं ‘‘ बहुत अच्छा लगा बेटी, चलो मैं तो कभी अपने प्रदेश की देहरी भी नही लाँघ पायी कम से कम तुम तो विदेश घूम आओगी, वहाँ के फोटो दिखा देना मैं समझ लूँगी कि मैंने ही देख लिया ।’’

कुछ हितैषियों ने तो यहाँ तक सावधान किया कि सोच लो ये फिजूलखर्ची करने से पहले, कल को कोई संकट आया तो क्या होगा।पर सारी प्रतिक्रियाओं के बावजूद उन दोनों के उत्साह का पारा ज्यों का त्यों चढ़ा रहा ।

यूरोप जाने के लिये जितना उत्साह था उतने ही उत्साह से खरीदारी की गयी। डर था कि कहीं दो दिनों की फोटेा में एक ही कपड़े न आ जायें, सो स्वाभाविक है कि उन्नीस दिनों के लिये उन्नीस परिधान होने चाहिये । यानि कि भूमिका भी खासी रुचिकर थी। हर दिन नेट पर यूरोप के विभिन्न देशों का तापमान देखा जाता और तय किया जाता कि किस स्थान पर कितने गरम कपड़े चाहिये होंगे । लखनऊ की गर्मी में स्विटजरलैंड के ऋणात्मक तापमान की कल्पना ही रोमांच जगा रही थी ।

अभी अनुभा सुखानुभूति में पूरी तरह डूबी भी नहीं थी कि रजत ने उसे सुख सागर से खींच कर बाहर निकाल लिया । वह सुबह की चाय बना रही थी कि रजत ने आवाज दी ‘‘ अनुभा जल्दी आओ। ’’

इतनी आतुरता से वो कम ही बुलाते हैं अतः अनुभा कुछ अनहोनी की आशंका से हड़बड़ाती दौड़ कर कमरे में पहुँची। रजत ने बताया ‘‘ टीवी में समाचार आ रहा है कि आइसलैंड में ज्वालामुखी फूटा है, जिसका धुआँ लगभग छः किलोमीटर ऊपर तक उठ कर दूर दूर तक पूरे आकाश में विस्तार पा रहा है, जिसके कारण पश्चिमोत्तर के अनेक देशों की उड़ानें रद्द हो गईं और यह धुआँ उत्तरोत्तर यूरोप के देशों की ओर बढ़ता जा रहा है । जाने में एक सप्ताह शेष था और उनके उत्साह का गुब्बारे में पिन चुभ गई ।

जाने की तिथि में दो दिन शेष थे, दोनों जाने न जाने की दुविधा में दुखी बैठे थे । अनुभा को पश्चाताप हो रहा था कि व्यर्थ ही इतना प्रचार कर दिया, लगता है किसी की कुदृष्टि लग गयी। रजत ने पर्यटन कम्पनी को फोन किया । कम्पनी के एजेंट आर्यन ने आश्वस्त किया कि कार्यक्रम वही है, काले धुएं के बादल उनकी यात्रा में कोई व्यवधान नहीं डालेंगें।गुब्बारे में पुनः हवा भर गई और वह सपनों के आकाश में उड़ान भरने लगा।

20 अप्रैल के सुबह सवा बजे राजधानी पकड़ कर रजत और अनुभा दिल्ली पहुँचे, दिन भर अपने सम्बन्धियों के आतिथ्य का आनन्द उठाया और रात ढाई बजे इन्दिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुँच गये । यहाँ तीन घंटे प्रतीक्षा करनी थी। अनुभा का मन यूरोप की धरती पर पाँव रखने को आतुर था अतः उसे अबूधाबी के हवाई अड्डे पर रुकने का विचार प्रीतिकर नहीं लगा ।

अपना सामान अगली उड़ान के लिये चेक-इन करके, समय व्यतीत करने के उद्देश्य से वो दुकानों की ओर बढ़ गये। अबूधाबी हवाई अड्डे पर जगमगाती दुकानों पर रखे तरह तरह के सामानों को देख कर अनुभा को अपना विचार बदलना पड़ा यहाँ तो इतने आकर्षण थे कि तीन घंटे क्या तीन दिन भी बिताना कोई बुरा विचार नही था। तीन घंटे के अन्तराल में हीरे के आभूषण और मोबाइल की दुकानें अनुभा और रजत के यात्रा में खरीदारी न करने के संकल्प को मुँह चिढ़ाने लगीं ।

‘‘हम लौटते में एक मोबाइल लेंगे ’’रजत बोले।

’’और मैं हीरे का पेन्डेन्ट लूँगी ‘‘अनुभा ने कहा और दोनो ही हँस पड़े।

विमान में बैठने की उद्घोषणा हुई और दोनों चल पड़े अगली उड़ान पर। उनके बगल की सीट पर एक युवा जोड़ा बैठा था, पर अनुभा को अपने आगामी दिनों की कल्पना से निकलने की कोई इच्छा नहीं थी अतः उसने उनसे परिचय बनाने की कोई उत्सुकता प्रदर्शित नहीं की, न ही उन्होंने बात करने की कोई पहल की। यूँ भी वायुयान यात्री अपने सहयात्री से रेल यात्रियों जैसी आत्मीयता बढ़ाने में तनिक कम ही आस्था रखते हैं।

अनुभा थक कर आँखें बन्द कर विश्राम कर रही थी। रजत बोले ‘‘यार ये एतिहाद एअरलाइन्स वाले खाना वाना नहीं देंगे क्या ?’’

तभी दो लम्बी छरहरी विमान परिचारिकाएं अपनी व्यापारिक सौम्य मुस्कराहट लिये खाने के पैकेटों की ट्राली लिये प्रकट हो गयीं। अनुभा ने कहा ‘‘ लीजिये आपकी मनोकामना पूर्ण हुई।’’

सभी यात्री जो सुप्तावस्था में ऊँघ रहे थे चैतन्य हो गये, विमान में फैले विभिन्न व्यंजनों की सुगंध ने लोगों की उदराग्नि जागृत कर दी और विमान की शान्ति में सुगबुगाहट तैर गयी।

कुछ देर के लिये एकरसता दूर हुई और फिर सब विश्राम की मुद्रा में आ गये। अनुभा और रजत वायुयान सेवा का आनन्द उठाते हुए कभी एक ही स्थान पर बैठ-बैठे करवट बदलते, कभी ऊँघते और फिर कभी आगे के सपनों में खो जाते।

वायुयान ने एथेन्स की धरती पर पाँव धरे । अल-वेलेजोलॅास हवाई अड्डे पर टूर मैनेजर प्ले कार्ड ले कर आने वाले अपने समूह के यात्रियों की प्रतीक्षा कर रहे थे । वायुयान से उतरे वो सभी यात्री जो के पैकेज टूर के समूह में थे मैनेजर के चारों ओर एकत्र हो गये। मैनेजर ने सब को सम्बोधित करते हुये कहा ’’ मित्रों मैं सुमित वर्मा हूँ आपके इस टूर का गाइड मैं आप सब को पूरे टूर में यात्रा में सहायता करूँगा और आपकी किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान करने का पूरा पूरा प्रयास करूँगा‘‘ फिर कुछ रुक कर बोला ‘‘ मेरा वादा है कि आप जब यात्रा करके भारत लौटेंगे तो एक नया और सुखद अनुभव आपके साथ होगा’’। सुमित लगभग तीस वर्ष का सौम्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व का युवक था ।

फिर सुमित बोले ‘‘ सामने खड़ा नीला कोच हम लोगों का है आप लोग बस में बैठ जाइये, अब हम होटल चलेंगे और थोड़ा विश्राम करके एथेन्स से दोचार होएंगे’’।

सुमित के कहते ही अपनी शालीनता का लबादा फेंक कर सब के सब अच्छी, अर्थात आगे की या खिड़की के पास की सीट लेने के लिये दौड़ पडे़ ।एक देश के लोग दूसरे देश में एक दूसरे से अजनबी और प्रतिद्वन्दी लग रहे थे। उस समय तो आगे की सीट लेना ही उनकी प्रतिद्वन्दिता का कारण बन गया था। अनुभा के पास की सीट पर जो जोड़ा आया। उसे देख कर वह चैंक पड़ी, यह तो विमान में उनके सहया़त्री युगल थे, जो दिल्ली से ही उनके पास वाली सीट पर थे। वो दोनों भी अनुभा को देख कर मुस्करा दिये।

’’मैं निमिषा उदयपुर से हूँ ‘‘उस युगल में से लड़की ने कहा।

’’और मैं अनुभा लखनऊ से ’’

‘‘ ये मेरे हसबैंड सचिन ‘‘ निमिषा ने अपने पति का परिचय देते हुए कहा। सचिन ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिये।

‘‘आंटी चलेगा ?’’ निमिषा बोली ।

’’चलेगा नहीं दौड़ेगा ‘‘ अनुभा ने मुस्करा कर कहा और आत्मीयता के फूल विदेश की धरती पर खिल उठे।

पीछे की सीट से दूसरी सह यात्री जो उनकी बातचीत सुन रही थी बोली ’’आप लखनऊ से हैं, हम भी वहाँ रहे हैं ‘‘ यह थी संजना और उसके साथ ऋषभ। एक और अपरिचय की दीवार ढही। कुछ क्षण पूर्व सीट के लिये प्रतिद्वन्दी बने यात्री अब उन्नीस दिनों के सहयात्रियों को देख परख रहे थे और संकोच की दूरी कम करने का प्रयास कर रहे थे।

सबको टिटेनिया होटल ले जाया गया । लिफ्ट चार और लोग लगभग पैंतालिस। कमरे की चाभी मिलते ही होड़ लग गई लिफ्ट में पहले चढ़ने की, सब भूल गये कि टूर मैनेजर ने कहा था कि सब लोग पंक्ति में बारी बारी से लिफ्ट में जाएँगे। अनुभा अपनी लखनवी तहजीब दिखाती अपनी बारी आने की प्रतीक्षा में खड़ी थी और लोग धक्का देते आगे बढ़ते जा रहे थे, तभी एक स्मार्ट और आकर्षक युवक ने उसके लिये जगह बनाते हुये कहा ’’ आंटी आप आइये ‘‘ ।

.अनुभा को उसकी शालीनता भा गयी, उसने कहा ‘‘थैंक्स, वैसे तुम्हारा नाम क्या है‘‘?

’’ आंटी मैं यशील हूँ मुंबई से ।‘‘

वह कुछ आगे पूछती तभी यषील उसको छोड़ पीछे मुड़ कर बोला ’’प्लीज मुझे दे दीजिये‘‘ अनुभा ने मुड़ कर देखा तो यशील उनके साथ आयी एक युवा लड़की की सहायता करने का प्रयास कर रहा था।

क्रमशः---------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com