Malik The God in Hindi Short Stories by Pratap Singh books and stories PDF | मालिक...The GOD

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मालिक...The GOD

मालिक

“ए मालिक तेरे बंदे हम.. ऐसे हो हमारे करम….। घर पर तेज़ आवाज में रेडियो पर बज रहे गाने की आवाज को सुगंधा ने कम कर किसी से पैसों की बात कर रहे अपने पति की आवाज को कान लगा कर सुनने का प्रयास किया।
“देखिये लालाजी जी…! मुझे पैसों की सख्त जरूरत है। आपसे जो भी लेनदेन चलता है उससे भी एक टका ब्याज ज्यादा देने को तैयार हूं।“ समीर शायद किसी लालाजी को मनाने का प्रयास कर रहे थे। अबकी बार सुगंधा ने रेडियों की आवाज बिल्कुल बंद कर अपने कान समीर की बातों की तरफ लगाये।
“ अब क्या बताऊँ लालाजी! क्या जरूरत आ पड़ी है? आप तो जानते ही हैं लॉकडाउन चल रहा है। इसलिए पैसों की दिक्कत हो रही है। लॉकडाउन खुलते ही सारा पैसा ब्याज समेत चुका दूंगा। आपको भरोसा नहीं है मुझपर!“ समीर के स्वर याचना में बदल रहे थे। “ठीक है आप जमानत के तौर पर मेरी गाड़ी के कागज रख लें।“
सुंगधा की सांसें तेज़ हो चली थी।
“चालीस लाख की गाड़ी है उस पर आप बीस लाख भी नहीं दे पाएंगे…. आप तो जानते ही है, कि मेरा मकान और फैक्ट्री दोनों ही बैंक में गिरवी रखे हुए है और उन पर लोन चल रहा है। और क्या चीज आपके पास जमानत के तौर पर रख सकता हूँ। अपनी गाड़ी पर ही लोन लूंगा तो आराम से 30 लाख मिल जाएंगे परन्तु उसमे समय लग जाएगा। आप तो जानते ही है मुझे ये पैसे परसों ही देने हैं।“ समीर के स्वर में बेचारगी बढ़ती जा रही थी।“ तो ठीक है लालाजी मैं देखता हूँ और क्या ज़मानत के तौर पर गिरवी रख सकता हूँ।“ लालाजी को मना पाने में नाकाम समीर ने फ़ोन काट दिया।
“ये लालाजी जी से किसलिये पैसे मांग रहे थे?” फ़ोन कटने की ही प्रतीक्षा कर रही सुंगधा ने समीर पर प्रश्न दागा।
“तुम तो जानती ही हो सुंगंधा.. परसो एक तारीख है, और अपने वर्कर्स को वेतन देना है। लॉकडाउन की वजह से कहीं से पेमेंट नहीं आ पाई। इसलिए लालाजी से ही उधार ले रहा था। लालाजी भी बड़े सज्जन आदमी निकले वर्कर्स को पेमेंट की बात सुनकर ब्याज भी दो टका कम ही लेंगे। परन्तु ज़मानत के लिए कोई सामान कीमती चाहते है।“ समीर ने पूरी बात सुगंधा को बताई।
“तुम भी बड़े अजीब हो पिछले महीने भी तुमने वर्कर्स को उनकी पूरी तनख्वाह दी जबकि उन्होंने पूरे महीने काम नहीं किया था। और अब तो पूरे महीने ही फैक्ट्री बंद रही। फिर भी तुम उन्हें पूरे महीने की तनख्वाह देने की तैयारी कर रहे हो और वो भी ब्याज पर लेकर…! तुमने हमें लॉक डाउन में खर्चे कम करने को बोला यहां तक तो ठीक है। परंतु वर्कर्स को देने के लिए ब्याज पर पैसे!...दिमाग तो ठीक है न तुम्हारा?
“तुम समझ नहीं रही हो सुंगंधा!”
“हां तो तुम्हीं समझाओ तुम कौन सा समझदारी वाला काम कर रहे हो?”
“तुम जानती हो सुंगधा मेरी फैक्ट्री के वर्कर्स मुझे “मालिक” कह कर बुलाते है। और मालिक किसको कहते है?”
“भगवान को!....तो क्या तुम अपने को भगवान समझते हो?
“नहीं सुंगंधा में तो नहीं…परन्तु जिसने भी ये शब्द गढ़ा होगा उसने जरूर उन लोगों को भगवान के समकक्ष रखा होगा जिन्होंने इस पृथ्वी पर ईश्वर के बाद लोगों को रोजगार देकर उनको और उनके परिवार को पालने का काम उनसे करवाया है। और अगर मैं मालिक हूँ तो तुम कौन हुई?
“मालकिन!....परन्तु कार तो मैं फिर भी गिरवी नही रखने दूँगी। सुंगधा गुस्से में उठकर चल दी।
समीर की बैचनी बढ़ चुकी थी। वह पैसों के इन्तज़ाम के लिए कोई और प्लान सोचने लगा। एकाएक सुंगंधा एक बैग लेकर सामने आ खड़ी हुई
“ये लो समीर यदि तुम मालिक होने का फर्ज निभा सकते हो मुझे भी मालकिन का फर्ज निभाने दो। ये लो मेरे गहने अस्सी-नब्बे लाख के तो होंगे ही।“
“परन्तु सुंगधा तुम तो अपने गहनों को लेकर कितना पॉसिसिव हो और तुम…!”
“हाँ तुम सही कह रहे हो समीर परन्तु ये गहने भी तो तुम्हारे बाद इन्हीं वर्कर्स की मेहनत से बने है। आज अगर उनके काम आ जाये तो इससे अच्छा क्या होगा। और हमारे वर्कर्स हमारे साथ होंगे तो ऐसे गहने में फिर भी गढ़वा लुंगी।“
बिना भावुक हुए सुंगंधा ने आत्मविश्वास के साथ गहनों से भरा बैग समीर के हाथों में दे दिया।
स्वरचित
प्रताप सिंह
मोबाइल: 8595576245
(मेरे साथ काम करने वाले अपने मित्र कुंती को समर्पित जिसने करीब आज से करीब पच्चीस साल पहले कंपनियों के मालिकों के प्रति मेरा नजरिया बदल दिया था।)